हाल ही में कश्मीर की हजरतबल दरगाह में हुई संगमरमर की पट्टिका विवाद ने एक बार फिर कश्मीर की राजनीति और राजनीतिक नेतृत्व की भूमिका पर सवाल खड़ा कर दिया है। यह विवाद किसी धार्मिक विषय का नहीं था, बल्कि प्रशासनिक सुधार और जीर्णोद्धार के दौरान स्थापित प्रतीक के इर्द-गिर्द घूमता नजर आया। इसके बावजूद, यह प्रकरण राजनीतिक बहस और बयानबाजी का केंद्र बन गया। राजनीतिक नेतृत्व की जिम्मेदारी इस विवाद में स्पष्ट रूप से देखने को मिली। नेताओं की प्रतिक्रियाएँ समय पर संतुलन और संवैधानिक दृष्टिकोण के बजाय केवल राजनीतिक दृष्टिकोण पर आधारित रही। यह घटना केवल प्रतीकात्मक मुद्दा नहीं था, बल्कि नेतृत्व की संवेदनशीलता, निर्णय क्षमता और लोकतांत्रिक जिम्मेदारी की परीक्षा बन गई। राजनीतिक नेतृत्व का प्रारंभिक रवैया विवाद के तुरंत बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस के वरिष्ठ नेता उमर अब्दुल्ला ने यह कहा कि दरगाह में प्रतीक लगाने की कोई आवश्यकता नहीं थी। वहीं, पीडीपी की महबूबा मुफ्ती ने इसे "भावनाओं से छेड़छाड़" करार दिया। इन प्रतिक्रियाओं ने स्पष्ट कर दिया कि राजनीतिक नेतृत्व ने मुद्दे को संवैधानिक या प्रशासनिक दृष्ट...
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