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Showing posts from July, 2025

व्यंग्य: सैयारा फिल्म नहीं, निब्बा-निब्बियों की कांव-कांव सभा है!

इन दिनों अगर आप सोशल मीडिया पर ज़रा भी एक्टिव हैं, तो आपने ज़रूर देखा होगा कि "सैयारा" नामक कोई फिल्म ऐसी छाई है जैसे स्कूल की कैंटीन में समोसे मुफ्त में बंट रहे हों। इस फिल्म का इतना क्रेज है कि मानो ये देखी नहीं तो सीधे स्वर्ग का टिकट कैंसिल हो जाएगा और नरक में आपको खौलते हुए गर्म तेल में तला जायेगा, वो भी बिना ब्रेक के लगातार। सच बताऊं तो, मैंने अब तक इस फिल्म को नहीं देखा। वास्तव में थियेटर में जाकर इस फिल्म को देखने का कोई इरादा भी नहीं है। क्योंकि मेरा दिल अब भी सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों के उन पंखों में अटका है जो बिना हिले भी आवाज़ करते हैं। लेकिन सोशल मीडिया पर पर जो तमाशा चल रहा है, वो देखकर लग रहा है कि या तो मैं बहुत ही बासी किस्म का मनुष्य हूं या फिर बाकी दुनिया ज़रा ज़्यादा ही Acting Class  से पास आउट है। एक साहब वीडियो में रोते-रोते इतने डूबे कि लगा अभी स्क्रीन से निकलकर ‘सैयारा’ के पायलट को गले लगा लेंगे।  दूसरी तरफ एक मैडम तो थिएटर की कुर्सी से चिपककर ऐसे चिल्ला रही थीं जैसे उनकी पुरानी गुम हुई टेडीबियर वापस मिल गई हो। कोई गला फाड़ रहा है, कोई आंखों से आंसुओं क...