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Showing posts from 2025

Shri Krishna Janmashtami: The Eternal Beacon of Love, Wisdom, and Courage

Lord Shri Krishna stands as the eternal symbol of divine love, infinite wisdom, and unshakable courage. In the vast heritage of Indian culture, his birth—celebrated as Janmashtami—is not merely an annual festival, but a sacred occasion that awakens enthusiasm, devotion, and joy in countless hearts. He is the very axis of our cultural and spiritual ethos, a poorna purushottam —perfect in every virtue, complete in every art. Born in Dwapara Yuga, Shri Krishna is revered as the yugpurush —the supreme being of his era, the one who descended to re-establish dharma when unrighteousness prevailed. In the Bhagavad Gita (4.7–8), he declares: "Yada yada hi dharmasya glanir bhavati bharata, Abhyutthanam adharmasya tadatmanam srijamy aham. Paritranaya sadhunam vinasaya ca dushkritam, Dharma-samsthapanarthaya sambhavami yuge yuge." ( Whenever dharma declines and adharma rises, O Arjuna, I manifest myself. For the protection of the righteous, the destruction of the wicked, and the re-e...

शब्द, ब्रह्म और नाद

शब्द शब्द ही छुपा है ब्रह्म संचार, नाद में है सृष्टि और मौन में संसार। वाणी ऐसी हो आत्मा को छू जाए, ऐसी ना जो अहंकार में डूब जाए। धरा को चाहिए शीतल वर्षा का प्रेम, क्रोध की बाढ़ से तो मिट्टी भी हो जाती क्षीण। शब्दों में हो तपस्या, जैसे ऋषियों की दृष्टि, हर शब्द बने यज्ञ, हर भाव में सृष्टि। जो चिल्लाते हैं, वे भीतर से खोखले होते हैं, जो मौन रहते हैं, वे ब्रह्म से भी ऊपर होते हैं। ध्वनि सीमित है, अनाहद नाद अनंत है, जहाँ शब्द नहीं, वहाँ आत्मा का संतुलन तंत है। तो मत ढूँढो शक्ति को गरजती आवाज़ों में, ढूँढो उन शब्दों में जो मौन से जन्मे हैं। क्योंकि वाणी वह हो जो भीतर उतरे, और मौन वह हो जो प्रभु से जोड़ बस यूंही रघुनाथ 

व्यंग्य: सैयारा फिल्म नहीं, निब्बा-निब्बियों की कांव-कांव सभा है!

इन दिनों अगर आप सोशल मीडिया पर ज़रा भी एक्टिव हैं, तो आपने ज़रूर देखा होगा कि "सैयारा" नामक कोई फिल्म ऐसी छाई है जैसे स्कूल की कैंटीन में समोसे मुफ्त में बंट रहे हों। इस फिल्म का इतना क्रेज है कि मानो ये देखी नहीं तो सीधे स्वर्ग का टिकट कैंसिल हो जाएगा और नरक में आपको खौलते हुए गर्म तेल में तला जायेगा, वो भी बिना ब्रेक के लगातार। सच बताऊं तो, मैंने अब तक इस फिल्म को नहीं देखा। वास्तव में थियेटर में जाकर इस फिल्म को देखने का कोई इरादा भी नहीं है। क्योंकि मेरा दिल अब भी सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों के उन पंखों में अटका है जो बिना हिले भी आवाज़ करते हैं। लेकिन सोशल मीडिया पर पर जो तमाशा चल रहा है, वो देखकर लग रहा है कि या तो मैं बहुत ही बासी किस्म का मनुष्य हूं या फिर बाकी दुनिया ज़रा ज़्यादा ही Acting Class  से पास आउट है। एक साहब वीडियो में रोते-रोते इतने डूबे कि लगा अभी स्क्रीन से निकलकर ‘सैयारा’ के पायलट को गले लगा लेंगे।  दूसरी तरफ एक मैडम तो थिएटर की कुर्सी से चिपककर ऐसे चिल्ला रही थीं जैसे उनकी पुरानी गुम हुई टेडीबियर वापस मिल गई हो। कोई गला फाड़ रहा है, कोई आंखों से आंसुओं क...

फुलेरा के सचिव की कलम से, रिंकी के नाम एक Love Letter

 मेरी प्यारी रिंकी, काग़ज़ पर शब्द लिख रहा हूं, लेकिन हर शब्द के पीछे एक धड़कन है—मेरे दिल की धड़कन, जो अब तुम्हारे नाम से चलती है। कभी सोचा नहीं था कि फुलेरा जैसे छोटे से गांव में मेरी दुनिया बस जाएगी… और वो भी सिर्फ तुम्हारी वजह से। जब पहली बार सचिव बनकर यहां आया था, तो सब कुछ बेमानी लगता था—बिजली नहीं, चैन नहीं और न ही कोई अपनापन। हर दिन वीरान लगता था, जैसे ज़िंदगी रुक गई हो। लेकिन फिर अचानक जैसे किसी ने मेरी सूनी दुनिया में रंग भर दिए… और वो रंग "तुम" थी, रिंकी। वो दिन, वो टंकी, और तुम्हारी वो मासूम आवाज़— "हम हैं रिंकी, प्रधान जी की बेटी। यहां चाय पीने आए हैं।" उस एक पल में जैसे सारा गांव जगमगा उठा। तुम्हारी आंखों में वो सादगी, वो शरारत, वो गहराई… मेरे दिल को जैसे अपना घर बना गई। उस दिन से फुलेरा की हर गली में तुम्हारी हंसी गूंजती है, हर पेड़ की छांव में तुम्हारी मौजूदगी महसूस होती है। तुमसे बातें शुरू हुईं… कभी टंकी पर, कभी ऑफिस के बाहर, कभी बस यूं ही चलते-चलते। और वो छोटी-छोटी बातें कब मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी ज़रूरत बन गईं, मुझे खुद भी नहीं पता चला। जब तुम ...

जहाँ लौकी बोलती है, वहाँ कुकर फटता नहीं, पंचायत ने बता दिया, कहानी कहने के लिए कपड़े उतारने की ज़रूरत नहीं होती

आज के दौर में सिनेमाई कहानी कहने की दुनिया जिस मार्ग पर चल पड़ी है, वहाँ पटकथा से ज़्यादा त्वचा की परतों पर कैमरा टिकता है। नायक और नायिका के संवादों की जगह ‘सीन’ बोलते हैं और भावनाओं की जगह अंग प्रदर्शन ‘व्यू’ बटोरते हैं। इसे नाम दिया गया है ‘क्रिएटिव फ्रीडम’।  वेब सीरीजों के लिए बड़े बड़े बजट, चमकदार चेहरे और नग्न दृश्य अब ‘रियलिज़्म’ का नकली नकाब ओढ़ कर दर्शकों को भरमाते हैं। मगर इस सब के बीच अगर कोई सीरीज़ बिना चीखे, बिना झूठे नारे, और बिना कपड़े उतारे भी सीधे दिल में उतर जाए — तो वो "पंचायत" वेब सीरीज है। TVF की यह अनोखी पेशकश इस धारणा को चुनौती देती है कि दर्शकों को केवल ‘बोल्डनेस’ ही चाहिए। पंचायत ने बता दिया कि अगर आपकी कहानी सच्ची हो, तो सादगी ही सबसे बड़ी क्रांति बन जाती है। हालिया रिलीज "पंचायत" उन कहानियों के लिए एक तमाचा है जो यह मानकर चलती हैं कि जब तक किरदार बिस्तर पर नहीं दिखेंगे, तब तक दर्शक स्क्रीन पर नहीं टिकेगा। पंचायत दिखाती है कि गाँव की सबसे बड़ी लड़ाई किसी बिस्तर पर नहीं, बल्कि पंचायत भवन के फर्श पर लड़ी जाती है, कभी लौकी के नाम पर, तो कभी कु...

व्यंग्य: सपनों का पेट, हकीकत का गिटार? कब बजेगी फिटनेस की तार?

हमारे समाज में फिटनेस अब एक नए 'संस्कार' के रूप में लोगों के दिमाग बैठ चुकी है। हर व्यक्ति इस राह पर चलने लगा है, जहां "प्रोटीन शेक्स" को आशीर्वाद की तरह लिया जाता है और वजन घटाने वाले डाइट प्लान को किसी शास्त्र की तरह माना जाता है। लेकिन हम सब जानते हैं कि फिटनेस की इस धारणा में कुछ बातें इतनी सरल नहीं हैं जितनी कि ये दिखती हैं। । खासकर जब हम 'पेट' जैसे जटिल विषय पर बात करें। तो आज हम इसी पेट के इर्द-गिर्द एक मजेदार और व्यंग्यपूर्ण यात्रा पर निकलते हैं, जिसमें फिटनेस की बात होगी, लेकिन चुटीले अंदाज में!  बढ़ता हुआ पेट और समाज का प्यारभरा आशीर्वाद सबसे पहले तो एक सवाल– क्या आपने कभी सोचा है कि पेट बढ़ता क्यों है? यह हमारे समाज का आशीर्वाद है। हां, यही बात है। शादी के बाद लोग तुरंत पूछते हैं, "अरे! पेट कब आएगा?" जब आपके पेट पर थोड़ा सा भी 'संकेत' मिलता है, तो समाज में हर व्यक्ति फिटनेस गुरू बन जाता है। पड़ोसी आंटी से लेकर ऑफिस के सहकर्मी तक, सब आपको हेल्दी डाइट प्लान और व्यायाम के सुझाव देने लगते हैं। और अगर आप जिम जाने का इरादा भी करते हैं,...

क्या भारत की ‘चिकन नेक’ को घेरने की साजिश कर रहा है चीन?

खतरनाक और चिंताजनक घटनाक्रम सामने आ रहा है। बांग्लादेश के लालमोनिरहाट जिले में स्थित एक पुराना, निष्क्रिय वर्ल्ड वॉर-2 का एयरबेस अचानक चर्चा में है — और वजह है चीन की उसमें दिलचस्पी। यह एयरबेस भारत की सीमा से महज़ 12 से 15 किलोमीटर और हमारे अत्यंत संवेदनशील "सिलीगुड़ी कॉरिडोर" (चिकन नेक) से मात्र 135 किलोमीटर दूर है। सिलीगुड़ी कॉरिडोर, यानी भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाली बेहद पतली पट्टी — केवल 22 किलोमीटर चौड़ी — हमारी भौगोलिक जीवनरेखा है। अगर यह कॉरिडोर किसी भी कारण से अवरुद्ध हुआ, तो असम, अरुणाचल, नागालैंड, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, मेघालय और सिक्किम से भारत का ज़मीनी संपर्क टूट सकता है। ऐसे में, चीन और पाकिस्तान जैसे देशों की दिलचस्पी इस क्षेत्र में खतरनाक संकेत देती है। लालमोनिरहाट एयरबेस का इतिहास इस एयरबेस को 1931 में ब्रिटिश हुकूमत ने बनाया था। द्वितीय विश्व युद्ध में यह एक अग्रिम मोर्चा था। विभाजन के बाद यह पाकिस्तान के अधीन गया और 1958 में थोड़े समय के लिए नागरिक उपयोग में आया, लेकिन फिर निष्क्रिय हो गया। 2019 में बांग्लादेश सरकार...

The Hindu और The New Indian Express की पक्षपाती पत्रकारिता पर सवाल: आतंकियों के नरसंहार पर भी एजेंडा?

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में  हिंदुओं के सुनियोजित नरसंहारने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। मज़हबी आतंकियों ने हिन्दू तीर्थयात्रियों से पहले उनका धर्म पूछा, नाम पूछा, कुछ से कपड़े उतरवाए और फिर केवल पुरुषों को गोली मार दी। कई परिवारों ने अपने प्रियजनों को अपनी आंखों के सामने मरते देखा, लेकिन कुछ मीडिया संस्थानों ने इस बर्बर हमले की सच्चाई को छिपाने और उसका राजनीतिकरणकरने की कोशिश की। सबसे चौंकाने वाला व्यवहार द न्यू इंडियन एक्सप्रेस  और The Hindu जैसे तथाकथित प्रतिष्ठित अखबारों ने दिखाया है। इन दोनों मीडिया संस्थानों ने न केवल नरसंहार की गंभीरता को कमतर दिखाया, बल्कि संदेहास्पद तर्कों और पाकिस्तान समर्थक नैरेटिव को आगे बढ़ाया। The New Indian Express की नीना गोपाल ने तो  "क्या पहलगाम जाफर एक्सप्रेस अपहरण का बदला है?" जैसे अजीबो-गरीब शीर्षक के साथ एक लेख लिख डाला। इस लेख में उन्होंने कश्मीर के हिंदू नरसंहार को पाकिस्तान के बलूचिस्तान में हुए हमले के प्रतिकारक घटना के रूप में चित्रित करने की घिनौनी कोशिश की है। यह न केवल पत्रकारिता की मूल आत्मा के खिलाफ है, बल्कि यह भार...

घास की चाय! वाह!वाह

घास की चाय! वाह!वाह "निम्बूक तृणम" से बनी यह चाय पूरी तरह से प्राकृतिक है। इसमें तृण तथा पानी के अलावा और कुछ नहीं है। इसका शानदार अरोमा है। सेहत के लिए भी कई फायदे बताये जाते हैं। दो-तीन दिन पीने से ही आपको फर्क दिखने लगता है।  विधि जंगल में घूमने जाएं और अगर यह घास दिखती है तो इसके सिर्फ चार नवतृणों को खींचकर निकाल लें। घर लाकर धोयें और तृणों के निचले हिस्से को धनिये की तरह काट लें। इस बीच केतली में डेढ़ कप पानी उबलने के लिए रख दें। फिर इन टुकड़ों को कैटल के पानी में डाल दें। पूरा किचन एक शानदार हल्की हल्की खुशबू से भर जाएगा। पांच मिनट तक उबलने दें, फिर कप में छान लें। आपकी निम्बूक तृणम चाय तैयार है।  इसके फायदे मैं नहीं बताऊंगा। यह बताना रासायनविदों का काम है। हां यह अवश्य बताऊंगा कि किसी को इससे एलर्जी भी हो सकती है। इसलिए शुरुआत बहुत थोड़ी मात्रा से करें। अगर फायदा महसूस हो तो रोज सुबह एक कप पी सकते हैं। इस चर्चा में एक और बात बताना जरूरी लग रहा है कि "तृणसी" शब्द संस्कृत का है और घास शब्द "प्राकृत" से निकला है। प्राकृत का मूल शब्द है "घस", ...

मस्ती और रंगों का महापर्व है होली

भारत में होली का पर्व हर्षोल्लास का पर्व है। सभी लोग छोटे-बड़े का भेद भुलाकर पूरे उत्साह, उल्लास और मस्ती से यह रंगों का पर्व मनाते हैं। भारतीय सनातन परम्परा के अनुसार यह एक यज्ञीय पर्व है। इस समय नई फसल पकने लगती हैं, उसके उल्लास में सामूहिक यज्ञ के रूप में होली जलाकर नये अन्न की यज्ञ मे आहुतियां देकर बाद में उपयोग में लाते हैं। कृषि प्रधान देश की यज्ञीय संस्कृति के सर्वथा अनुकूल यह परिपाटी बनाई गई है। होली के पर्व को लेकर उत्साह होना स्वाभाविक है। इसका नाम न केवल सबके मन को अपने रंग से भरता है बल्कि डुबा भी देता है। हृदय के अन्तराल में सहानुभूति और प्रेम के अविरल स्रोत खुलने लगते हैं। ये उमंग की तरंगें जिस के भी दिल को छूती हैं, उसे ऐसा लगता है कि जैसे वह खुशी से झूम रहा है। इस पर्व का उल्लास महासिंधु की तरह हैं जिसमें हर कोई डुबकी लगाने को उत्सुक रहता। कुछ ऐसा लगता है जैसे जीवन में नई उम्मीदों की शाखाएं फूट पड़ी हो। हमारा मन आकुल होने लगता है- मस्ती में उमगते हुए इस उल्लास को बांटने के लिए बस क्या क्या न कर डालूं। होली के पर्व पर यही व्याकुलता सभी को व्याकुल करने लगती है। रंगो की मस्त...

PM Modi-Donald Trump की मुलाकात पर अमेरिकी मीडिया में क्या कहा जा रहा है? आइए जाने...

Image Source: Google 12 फरवरी 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्हाइट हाउस में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाक़ात की, जिसमें दोनों नेताओं के बीच व्यापार, रक्षा सहयोग, ऊर्जा सौदे और अवैध प्रवासियों की वापसी जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा हुई। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका में बिना वैध दस्तावेजों के रह रहे भारतीय नागरिकों को वापस लेने की प्रतिबद्धता जताई, वहीं राष्ट्रपति ट्रंप ने व्यापार घाटा कम करने, टैरिफ़ से जुड़ी चिंताओं और भारत द्वारा अमेरिका से तेल व गैस की ख़रीद पर जोर दिया। बैठक में रक्षा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने को लेकर भी सहमति बनी। यह मुलाक़ात ऐसे समय में हुई जब ट्रंप प्रशासन अवैध प्रवासियों को वापस भेजने और नए टैरिफ़ लागू करने को लेकर सख्त नीति अपना रहा है, जिससे यह वार्ता द्विपक्षीय संबंधों के लिहाज से और भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस बैठक के बाद भारत और अमेरिका के रिश्तों को नई दिशा मिल सकती है, लेकिन अब देखना होगा कि इन समझौतों को ज़मीनी स्तर पर कैसे लागू किया जाता है। Washington Post (वॉशिंगटन पोस्ट) की रिपोर्ट अमेरिका के प...

Kejriwal का ‘नाटकशास्त्र’: झाड़ू से जेल तक और दिल्ली की सत्ता में BJP की ‘ऐतिहासिक एंट्री

विलियम शेक्सपियर ने "As You Like It" में लिखा था, "All the world is a stage, and all the men and women merely players." दिल्ली की राजनीति किसी थिएटर से कम नहीं रही। मंच वही था, पर स्क्रिप्ट हर पांच साल में बदलती रही। कभी 'आम आदमी' जनता का हीरो बना, तो कभी वही जनता उसे विलेन बनाने लगी। अरविंद केजरीवाल, जो राजनीति में ‘ईमानदारी की मशाल’ लेकर आए थे, दिल्ली विधानसभा चुनाव में उस मशाल से अपना ही राजनैतिक भविष्य जलाते दिखे। और अंततः  2025 में, यह ड्रामा अपने चरम पर पहुंच गया, जिसमें दिल्ली की जनता ने ‘नाटक मंडली’ को उखाड़ फेंका और नरेंद्र मोदी की ‘विकास गारंटी’ पर मोहर लगा दी। William Shakespeare की तरह केजरीवाल भी अपने आप को एक ट्रैजिक हीरो समझते थे। कुछ-कुछ ‘हेमलेट’ की तरह, जो अपनी ही उलझनों में फंसकर खुद का विनाश कर बैठा। मगर यहां कहानी थोड़ी अलग थी। ये ट्रैजिक हीरो भ्रष्टाचार की गर्त में इतने गहरे उतर चुके थे कि ‘दिल्ली दरबार’   ने उन्हें खलनायक का रोल दे दिया। और वर्ष 2025 का चुनावी नतीजा इस ‘राजनीतिक नाटक’ का ग्रैंड फिनाले बन गया। जब वर्ष 2013 में पहली बार...

डोनाल्ड ट्रंप का टैरिफ वार,क्या होगा व्यापार का भविष्य अबकी बार?

Donald Trump  Image Source : Google  ट्रंप का व्यापार युद्ध: वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए खतरा या अवसर? अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत व्यापार नीति में बड़े बदलावों के साथ की, जिसमें चीन, कनाडा और मैक्सिको से आयातित वस्तुओं पर भारी टैरिफ लगाए गए। ट्रंप प्रशासन का दावा है कि यह कदम अमेरिकी नौकरियों की रक्षा करेगा, अवैध प्रवास को रोकेगा और नशीली दवाओं की तस्करी पर अंकुश लगाएगा। लेकिन आर्थिक विशेषज्ञ इस नीति को वैश्विक व्यापार प्रणाली के लिए एक गंभीर चुनौती मान रहे हैं। इस व्यापार युद्ध से वैश्विक बाजारों में अस्थिरता बढ़ी है, जिससे निवेशकों की चिंताएं बढ़ गई हैं और कई देशों ने जवाबी कदम उठाने की घोषणा की है। इस व्यापार युद्ध की पृष्ठभूमि को समझने के लिए हमें अमेरिका और चीन के बीच दशकों से चले आ रहे व्यापारिक असंतुलन पर नजर डालनी होगी। अमेरिका लंबे समय से चीन पर अनुचित व्यापारिक नीतियों का आरोप लगाता रहा है। ट्रंप प्रशासन का मानना है कि चीन सरकारी सब्सिडी और अन्य तरीकों से अपनी कंपनियों को वैश्विक बाजार में अनुचित लाभ प्रदान करता है। यही कारण है...

Mahakumbh 2025: योगी, ऋषि, संतों का संग, कुंभ में बसता हरि का रंग

                      Mahakumbh 2025: योगी, ऋषि, संतों का संग, कुंभ में बसता हरि का रंग संगम में प्रवाहित पुण्य की धारा, संतों के तप से आलोकित हुआ धर्म का उजियारा. ऋषियों की वाणी, सन्यासियों की साधना, कुंभ में खुला योग, ध्यान और ब्रह्मज्ञान का खजाना. प्रयागराज में हर-हर महादेव, जय जय श्रीराम, महाकुंभ में गूंजा ईश्वर का पावन नाम. महाकुंभ 2025 का पावन आयोजन अपने अंतिम चरण में प्रवेश कर चुका है। वसंत पंचमी (3 जनवरी 2025) के दिन हुए तीसरे अमृत स्नान ने सनातन धर्म की दिव्यता और अखाड़ों की आस्था का भव्य स्वरूप प्रकट किया। त्रिवेणी संगम के तट पर जब नागा संन्यासी गदा, तलवार और त्रिशूल लहराते हुए पहुंचे, तो पूरा प्रयागराज "हर-हर महादेव" और "जय सियाराम" के जयघोषों से गूंज उठा। महाकुंभ केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का मार्गदर्शन करने वाला महापर्व है। इस आयोजन में साधु-संतों से लेकर श्रद्धालु भक्तों तक, सभी ने आस्था और आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव किया। महाकुंभ का महत्व और सनातन परंपरा महाकुंभ विश्व का सबस...