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Showing posts from December, 2019

बेमौसम की बारिस

बेमौसम बारिस की सुगबुगाहट कुछ यूं शुरू होती है और भीनी-भीनी ठंडी के एहसास के साथ हल्की सी बूंदाबांदी के साथ पॉल्युशन तो कम हो जाता है लेकिन किसान की शान में कर देती है गुस्ताख़ी बेमौसम की बारिश अलसायी हुई अधखुली आंखें देखती हैं खिड़की से बाहर  तेज पानी की धार साथ में ओलों की मार कहीं खुशी कहीं गम दे जाती ही बेमौसम की बारिश सूर्य देव को इंद्र ने दे दिया इतना अर्ध्य वह भी कर रहे हैं अब लुका-छिपी का खेल यहाँ तो घर में गरम चाय की चुस्कियां वहां खेत पर मेंढ़ पर बेमौसम की मार से अन्नदाता ले रहा है सिसकियां रघुनाथ यादव