Image Source: Google मैं हूँ – बटुआ। सही सुना आपने। कभी इस शानदार घर का सबसे कीमती साथी था मैं। जेब में मेरी मौजूदगी… मालिक और मालकिन को आत्मविश्वास देती थी। और आज?… मैं कोने में पड़ा, धूल खा रहा हूँ। मुझे याद है वो गुजरे दिन… जब मेरे अंदर नोटों की चमचमाती गड्डियाँ रहती थीं। सिक्कों की खनक मेरी धड़कन थी… और हर बार जब मालिक मुझे खोलता था, तो मेरे अंदर एक ज़िंदगी बसती थी। लेकिन वक्त बदल गया। Paytm, Google Pay, PhonePe… सबने मिलकर मेरा अस्तित्व छीन लिया। अब दुकानदार छुट्टा पैसा नहीं माँगता बस कहता है ‘भैया QR स्कैन करो।’ और मैं बस चुपचाप यह सब देखता रह जाता हूँ। आज मैं सिर्फ़ कागज़ों और पुराने कार्डों का कब्रिस्तान बनकर रह गया हूँ। सच बताऊं तो नोटों की खुशबू चली गई, सिक्कों की खनक चली गई… और मेरे अंदर बस बासी पर्चियाँ और पुराने कार्ड बचे हैं। मालिक ने मुझे कभी छाती से लगाकर रखा था। आज वही कहता है... भाई जेब भारी हो जाती है, बटुआ घर पे रख दे। असल में… जेब भारी नहीं हुई, प्यार हल्का हो गया है। वो दूर नहीं जब मैं अलमारी में पड़ा-पड़ा ही भूल दिया जाऊँगा। और फिर कोई मुझे देखकर कहेगा ...
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