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Showing posts from September, 2025

Book review: Sleep, Dreams & Spiritual Reflections: युवा जीवन में संतुलन और दिशा

यह पुस्तक “Sleep, Dreams & Spiritual Reflections” पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के वाङ्मय से संकलित अंग्रेज़ी अनुवाद है। इसमें नींद और स्वप्न जैसे साधारण प्रतीत होने वाले विषय की गहराई को आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि से उजागर किया गया है। आचार्यश्री ने इसे स्पष्ट किया है कि नींद केवल शरीर को विश्राम देने की जैविक प्रक्रिया नहीं, बल्कि यह मन को संतुलित करने, आत्मा को गहराई से जोड़ने और चेतना के विकास का माध्यम है। आज का युवा वर्ग सबसे अधिक तनाव, चिंता और अनिद्रा से प्रभावित है। देर रात तक मोबाइल और स्क्रीन पर उलझे रहना, प्रतियोगिता का दबाव और भविष्य की अनिश्चितताएँ उसकी नींद और स्वप्न दोनों को बाधित करती हैं। ऐसे समय में यह पुस्तक युवाओं के लिए विशेष प्रासंगिक बन जाती है क्योंकि यह उन्हें यह समझाती है कि नींद और स्वप्न केवल व्यर्थ का समय नहीं, बल्कि जीवन को दिशा देने वाले संकेत हैं। स्वप्न मनुष्य के अवचेतन और अचेतन मन की गतिविधियों का दर्पण हैं, जो आत्म-विश्लेषण और आत्म-विकास का अवसर प्रदान करते हैं। आचार्यश्री ने गीता और वेदांत की शिक्षाओं का उल्लेख करते हुए बताया है कि चेतना के ...

पद्धतियों से नहीं, प्रामाणिकता से जन्म लेती है शिक्षा

भारतीय शैक्षिक परंपरा में यह मान्यता रही है कि शिक्षा केवल सूचना का आदान-प्रदान नहीं है, बल्कि आंतरिक चेतना और दृष्टि का विस्तार है। इसी संदर्भ में जब “ब्रेकिंग द कैनन : आर्ट एंड डिज़ाइन पैडागॉजी और प्रैक्टिस में जेंडर इक्वैलिटी” जैसे कार्यक्रम सामने आते हैं,तो उनके उद्देश्य और लक्ष्य निस्संदेह प्रशंसनीय प्रतीत होते हैं, किंतु गहराई से विचार करने पर कुछ प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठते हैं। समानता का अनुभव केवल बाहरी प्रशिक्षण या रणनीति से संभव नहीं है। यह तो भीतर की सजगता और धारणाओं से मुक्ति से जन्म लेता है। यदि शिक्षक और विद्यार्थी अपनी जड़बद्ध धारणाओं से परे जाएँ,तभी वास्तविक समानता का वातावरण बन सकता है। कार्यशालाओं के माध्यम सेसमानता सिखाने की कोशिश अक्सर बौद्धिक अभ्यास भर रह जाती है। रचनात्मकता का स्वभाव स्वतंत्रता है। वह किसी सामाजिक या लैंगिक खाँचे में बंधकर प्रकट नहीं होती। जब कला और डिज़ाइन को केवल जेंडर के आधार पर समझने और परिभाषित करने का प्रयास किया जाता है, तो अनजाने में उसी सीमा को मज़बूत कर दिया जाता है जिसे तोड़ना उद्देश्य था। सृजन न पुरुष है, न स्त्री, यह भीतर की सहजता औ...

कश्मीर में पट्टिका विवाद: राजनीतिक नेतृत्व और संवैधानिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन चुनौतीपूर्ण

हाल ही में कश्मीर की हजरतबल दरगाह में हुई संगमरमर की पट्टिका विवाद ने एक बार फिर कश्मीर की राजनीति और राजनीतिक नेतृत्व की भूमिका पर सवाल खड़ा कर दिया है। यह विवाद किसी धार्मिक विषय का नहीं था, बल्कि प्रशासनिक सुधार और जीर्णोद्धार के दौरान स्थापित प्रतीक के इर्द-गिर्द घूमता नजर आया। इसके बावजूद, यह प्रकरण राजनीतिक बहस और बयानबाजी का केंद्र बन गया। राजनीतिक नेतृत्व की जिम्मेदारी इस विवाद में स्पष्ट रूप से देखने को मिली। नेताओं की प्रतिक्रियाएँ समय पर संतुलन और संवैधानिक दृष्टिकोण के बजाय केवल राजनीतिक दृष्टिकोण पर आधारित रही। यह घटना केवल प्रतीकात्मक मुद्दा नहीं था, बल्कि नेतृत्व की संवेदनशीलता, निर्णय क्षमता और लोकतांत्रिक जिम्मेदारी की परीक्षा बन गई। राजनीतिक नेतृत्व का प्रारंभिक रवैया विवाद के तुरंत बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस के वरिष्ठ नेता उमर अब्दुल्ला ने यह कहा कि दरगाह में प्रतीक लगाने की कोई आवश्यकता नहीं थी। वहीं, पीडीपी की महबूबा मुफ्ती ने इसे "भावनाओं से छेड़छाड़" करार दिया। इन प्रतिक्रियाओं ने स्पष्ट कर दिया कि राजनीतिक नेतृत्व ने मुद्दे को संवैधानिक या प्रशासनिक दृष्ट...