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Showing posts from May, 2020

हिन्दी पत्रकारिता दिवस: आज के ही दिन छपा था पहला हिन्दी समाचार पत्र

✍️...रघुनाथ यादव हिंदी भाषा में 'उदन्त मार्तण्ड' के नाम से पहला समाचार पत्र आज के ही दिन 30 मई 1826 में निकाला गया था। इसलिए इस दिन को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है। उस समय पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने इसे कलकत्ता से एक साप्ताहिक समाचार पत्र के तौर पर शुरू किया था। इसके प्रकाशक और संपादक भी वह ही थे। इस तरह हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले पंडित जुगल किशोर शुक्ल का हिंदी पत्रकारिता के जगत में विशेष सम्मान है। जुगल किशोर शुक्ल जाने-माने वकील भी थे और कानपुर के रहने वाले थे। लेकिन, उस समय औपनिवेशिक ब्रिटिश भारत में उन्होंने कलकत्ता को अपनी कर्मस्थली बनाया। अंग्रेजों के खिलाफ परतंत्र भारत में हिंदुस्तानियों के हक की बात करना बहुत बड़ी चुनौती बन चुका था। इसीलिए उन्होंने कलकत्ता के बड़ा बाजार इलाके में अमर तल्ला लेन, कोलूटोला से साप्ताहिक 'उदन्त मार्तण्ड' का प्रकाशन शुरू किया। यह साप्ताहिक अखबार हर हफ्ते मंगलवार को पाठकों तक पहुंचता था। परतंत्र भारत की राजधानी कलकत्ता में अंग्रजी शासकों की भाषा अंग्रेजी के बाद बांग्ला और उर्दू का प्रभाव...

डोंडा वाला बाग: गांव के मेले की कहानी भाग-1

!!श्रीश्री 1008 रामानंद जी महाराज!!      Photo Credit: Raju ✍️... रघुनाथ यादव गर्मियों के दिन थे। सुबह का वक़्त था। तिथि थी आधे बैसाख अख़तीज। गांव के सभी बच्चों के चेहरों पर मुस्कान- कुछ करने की। कुछ खरीदने की। सभी बच्चों ने पहले से ही निर्णय कर लिया था कि क्या करना है, क्या खरीदना है, क्या खाना है, घर क्या लाना है- आदि आदि। छोटे भइया के लिए क्या लाना है, बहन के लिए क्या लाना है.....उनके चेहरे पर खुशियां कई दिनों से तैर रही थीं। और तैरें भी क्यों न क्योंकि, साल में यह तिथि एक ही दिन तो आती है। जी हां... हम बात कर रहे हैं अपने गांव के डोंडा वाले बाग़ की। बाग़ को श्रीश्री 1008 रामानंद जी महाराज ने पुष्पित-पल्लवित किया। भले ही महाराज जी आज हमारे बीच स्थूल रूप में न हो, लेकिन सूक्ष्म रूप से उनकी उपस्थिति आज भी बाग़ में महसूस की जा सकती है। उनके सद वाक्य आज भी हमारे कानों में गूंजते हैं। आज बात महाराज जी पर नहीं, महाराज जी पर अलग से किसी दिन चर्चा करेंगे। दूसरी कहानी आप को बताते हैं...ये बात वर्ष 1990 की है। इस बात को 30 बरस हो गए, लेकिन आज भी वैसी ही नयी है- जैसी कि तब थ...

ऋषि कपूर न चाॅकलेटी थे न चिंटू।

ऋषि कपूर आज हमारे बीच में नहीं है। बॉलीवुड का वह सितारा जो बाप के बचपन से लेकर सैकड़ा पार बुजुर्ग तक का किरदार। डिंपल से लेकर दिव्या भारती तक के साथ रियल लगता रोमांस। और फिर लवर ब्वाय से लेकर डी कंपनी के डाॅन तक का चरित्र ….एक ट्वीट से नेताओं तक की नींद छीन लेने वाले ऋषि कपूर सदा के लिए सो गये। दुनिया ने हर बार लेबल चिपकाने की कोशिश की, पर आखिरकार साबित कर दिया कि वे न चाॅकलेटी थे न चिंटू। मेरा नाम जोकर में राजकपूर जैसे बाप के बचपन का किरदार निभाकर राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार हासिल किया। पर जोकर के सच को दुनिया ने दुत्कार दिया। बदहाली के साथ साथ पिता राज के शोमैन होने की कूवत पर दुनिया सवाल उठाने लगी। बेटा फिर बाप के लिए सामने आया- ‘बाॅबी’ का ब्वाॅयफ्रैंड बनकर। बाप-बेटे ने दुनिया को बता दिया कि मिस वल्र्ड! तुमसे ज्यादा जानता हू कि तुम्हें क्या पसंद है? और फिर सिर्फ गुदगुदाते, दिल लुभाते किरदार। डिंपल से दिव्या भारती तक और पद्मिनी से श्रीदेवी के अपोजिट नजर आये। पर्दे पर करने को कुछ खास नहीं, पर दर्शक एक झलक से ही खुश। वीमन डॉमिनेटेड फिल्में करने का साहस कम नहीं होता। ‘दामिनी’ स...