Skip to main content

ऋषि कपूर न चाॅकलेटी थे न चिंटू।

ऋषि कपूर आज हमारे बीच में नहीं है। बॉलीवुड का वह सितारा जो बाप के बचपन से लेकर सैकड़ा पार बुजुर्ग तक का किरदार। डिंपल से लेकर दिव्या भारती तक के साथ रियल लगता रोमांस। और फिर लवर ब्वाय से लेकर डी कंपनी के डाॅन तक का चरित्र ….एक ट्वीट से नेताओं तक की नींद छीन लेने वाले ऋषि कपूर सदा के लिए सो गये। दुनिया ने हर बार लेबल चिपकाने की कोशिश की, पर आखिरकार साबित कर दिया कि वे न चाॅकलेटी थे न चिंटू।


मेरा नाम जोकर में राजकपूर जैसे बाप के बचपन का किरदार निभाकर राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार हासिल किया। पर जोकर के सच को दुनिया ने दुत्कार दिया। बदहाली के साथ साथ पिता राज के शोमैन होने की कूवत पर दुनिया सवाल उठाने लगी। बेटा फिर बाप के लिए सामने आया- ‘बाॅबी’ का ब्वाॅयफ्रैंड बनकर। बाप-बेटे ने दुनिया को बता दिया कि मिस वल्र्ड! तुमसे ज्यादा जानता हू कि तुम्हें क्या पसंद है? और फिर सिर्फ गुदगुदाते, दिल लुभाते किरदार।
डिंपल से दिव्या भारती तक और पद्मिनी से श्रीदेवी के अपोजिट नजर आये। पर्दे पर करने को कुछ खास नहीं, पर दर्शक एक झलक से ही खुश। वीमन डॉमिनेटेड फिल्में करने का साहस कम नहीं होता। ‘दामिनी’ से लेकर ‘नागिन’ तक को हक दिलाने वाले ‘चिंटू’ पहलेे फैमिनिस्ट हीरो कहे जा सकते हैं। सुपरहीरो के छोटे भाई बने, तो लगे। इस ‘स्वेटर लवर’ ने कभी गिटार से लोगों को दीवाना बनाया तो कभी ढपली का। एक साक्षात्कार में बताया था-एक इंस्ट्रूमेंट तक को बजाने का अभिनय कैसे यादगार बनाया जा सकता है, बशर्ते हुनर से हो, दिल से हो।
सूरज ढलने लगता है, तो और खूबसूरत हो जाता है। उम्र चढ़ने लगी, तो काॅस्मेटिक करेक्टर का लबादा उतार फेंका और एक से बढ़कर एक चुनौती वाले किरदार लिये। चाॅकलेटी चेहरे के पीछे इतनी खूबसरत अभिनय कला छिपी थी, यकीन करना मुश्किल था। अग्निपथ में रउफ लाला जब चौराहे पर नायक की बहन की नीलामी करता है, दर्शक सिहर सा जाता है। फिर ‘डी डे’ में दाउद का किरदार- दुनिया को दिखाता डर और भीतर मौत का खौफ, पर्दे पर सब कुछ जिंदा।
‘मुल्क’ में अपनों और आलोचकों से लड़ रहे एक वतन परस्त बूढ़े मुसलमान का किरदार। कपूर एंड सन्स में हैपनिंग बुड्ढे के साथ परिवार को जोड़ने के लिए परेशान वृद्ध का जटिल चरित्र। ‘102 नाॅट आउट’ में अमिताभ बच्चन के साथ फिर ‘नसीब’ की याद दिलाई। पर हमारे नसीब में उनका सौ पार जाना देखना नहीं लिखा था, सो नायाब वृद्ध किरदारों के साथ वो कमी भी पूर
साभार: वाईजीन

Comments

Popular posts from this blog

व्यंग्य: सपनों का पेट, हकीकत का गिटार? कब बजेगी फिटनेस की तार?

हमारे समाज में फिटनेस अब एक नए 'संस्कार' के रूप में लोगों के दिमाग बैठ चुकी है। हर व्यक्ति इस राह पर चलने लगा है, जहां "प्रोटीन शेक्स" को आशीर्वाद की तरह लिया जाता है और वजन घटाने वाले डाइट प्लान को किसी शास्त्र की तरह माना जाता है। लेकिन हम सब जानते हैं कि फिटनेस की इस धारणा में कुछ बातें इतनी सरल नहीं हैं जितनी कि ये दिखती हैं। । खासकर जब हम 'पेट' जैसे जटिल विषय पर बात करें। तो आज हम इसी पेट के इर्द-गिर्द एक मजेदार और व्यंग्यपूर्ण यात्रा पर निकलते हैं, जिसमें फिटनेस की बात होगी, लेकिन चुटीले अंदाज में!  बढ़ता हुआ पेट और समाज का प्यारभरा आशीर्वाद सबसे पहले तो एक सवाल– क्या आपने कभी सोचा है कि पेट बढ़ता क्यों है? यह हमारे समाज का आशीर्वाद है। हां, यही बात है। शादी के बाद लोग तुरंत पूछते हैं, "अरे! पेट कब आएगा?" जब आपके पेट पर थोड़ा सा भी 'संकेत' मिलता है, तो समाज में हर व्यक्ति फिटनेस गुरू बन जाता है। पड़ोसी आंटी से लेकर ऑफिस के सहकर्मी तक, सब आपको हेल्दी डाइट प्लान और व्यायाम के सुझाव देने लगते हैं। और अगर आप जिम जाने का इरादा भी करते हैं,...

ध्यानी नहीं शिव सारस

!!देव संस्कृति विश्विद्यालय में स्थपित प्रज्ञेश्वर महादेव!! ध्यानी नहीं शिव सारसा, ग्यानी सा गोरख।  ररै रमै सूं निसतिरयां, कोड़ अठासी रिख।। साभार : हंसा तो मोती चुगैं पुस्तक से शिव जैसा ध्यानी नहीं है। ध्यानी हो तो शिव जैसा हो। क्या अर्थ है? ध्यान का अर्थ होता हैः न विचार, वासना, न स्मृति, न कल्पना। ध्यान का अर्थ होता हैः भीतर सिर्फ होना मात्र। इसीलिए शिव को मृत्यु का, विध्वंस का, विनाश का देवता कहा है। क्योंकि ध्यान विध्वंस है--विध्वंस है मन का। मन ही संसार है। मन ही सृजन है। मन ही सृष्टि है। मन गया कि प्रलय हो गई। ऐसा मत सोचो कि किसी दिन प्रलय होती है। ऐसा मत सोचो कि एक दिन आएगा जब प्रलय हो जाएगी और सब विध्वंस हो जाएगा। नहीं, जो भी ध्यान में उतरता है, उसकी प्रलय हो जाती है। जो भी ध्यान में उतरता है, उसके भीतर शिव का पदार्पण हो जाता है। ध्यान है मृत्यु--मन की मृत्यु, "मैं" की मृत्यु, विचार का अंत। शुद्ध चैतन्य रह जाए--दर्पण जैसा खाली! कोई प्रतिबिंब न बने। तो एक तो यात्रा है ध्यान की। और फिर ध्यान से ही ज्ञान का जन्म होता है। जो ज्ञान ध्यान के बिना तुम इकट्ठा ...

व्यंग्य: राजधानी दिल्ली की हवा हुई और खराब, राजनेताओं की बातों में कुछ नहीं 'खरा' अब

देश की राजधानी  दिलवालों की   दिल्ली  आजकल  किसी और  के लिए ही जानी जा रही है - वो है यहां की एयर क्वॉलिटी इंडेक्स । यहां की हवा में अब ऐसा जहर घुल चुका है कि सांस लेना किसी कारनामे से कम नहीं लगता। ख़राब एयर क्वॉलिटी से हालात इतने दयनीय हैं कि लोग गहरी सांस लेने की बजाय William Shakespeare के “Hamlet” की तरह सोच रहे हैं- "To breathe or not to breathe, that is the question." यहां की वायु में घुला यह धुआं किसी त्रासदी से कम नहीं, लेकिन सफेद कुर्ताधारियों के लिए यह बस राजनीति का नया मुद्दा ही अपितु एक पॉलिटिकल डायलॉग और लफ्फाजी का अखाड़ा बन चुका है। दिल्ली की ज़हरीली हवा में अब सांस लेना किसी बॉलीवुड के फिल्मी विलेन से लड़ने जैसा हो गया है। यहां के हालात देखकर “Hamlet” का एक अन्य संवाद याद आती है- "Something is rotten in the state of Denmark." बस, ‘डेनमार्क’ की जगह आप दिल्ली लिख लें, बाकी सब वैसा ही है। देश राजधानी की एयर क्वॉलिटी इंडेक्स का हाल पूछिए, तो जवाब आता है—जहांगीरपुरी 458, मुंडका 452, और आनंद विहार 456। अब यह AQI नहीं, जैसे कोई IPL Cricket Match का...