मेरी प्यारी रिंकी, काग़ज़ पर शब्द लिख रहा हूं, लेकिन हर शब्द के पीछे एक धड़कन है—मेरे दिल की धड़कन, जो अब तुम्हारे नाम से चलती है। कभी सोचा नहीं था कि फुलेरा जैसे छोटे से गांव में मेरी दुनिया बस जाएगी… और वो भी सिर्फ तुम्हारी वजह से। जब पहली बार सचिव बनकर यहां आया था, तो सब कुछ बेमानी लगता था—बिजली नहीं, चैन नहीं और न ही कोई अपनापन। हर दिन वीरान लगता था, जैसे ज़िंदगी रुक गई हो। लेकिन फिर अचानक जैसे किसी ने मेरी सूनी दुनिया में रंग भर दिए… और वो रंग "तुम" थी, रिंकी। वो दिन, वो टंकी, और तुम्हारी वो मासूम आवाज़— "हम हैं रिंकी, प्रधान जी की बेटी। यहां चाय पीने आए हैं।" उस एक पल में जैसे सारा गांव जगमगा उठा। तुम्हारी आंखों में वो सादगी, वो शरारत, वो गहराई… मेरे दिल को जैसे अपना घर बना गई। उस दिन से फुलेरा की हर गली में तुम्हारी हंसी गूंजती है, हर पेड़ की छांव में तुम्हारी मौजूदगी महसूस होती है। तुमसे बातें शुरू हुईं… कभी टंकी पर, कभी ऑफिस के बाहर, कभी बस यूं ही चलते-चलते। और वो छोटी-छोटी बातें कब मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी ज़रूरत बन गईं, मुझे खुद भी नहीं पता चला। जब तुम ...
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