सपनों का पेट, हकीकत का गिटार? कब बजेगी फिटनेस की तार?
- सुबह उठे थे जिम जाने का इरादा लिए, शाम तक बहानों की गठरी में खुद को छिपाए हुए!
- डाइटिंग के वादों में रातें कटती हैं, पेट फिर भी बढ़ता है और फिटनेस सपनों में ही सिमटती है!
- फिटनेस का जज़्बा लेकर निकलते हैं हर रोज़, शाम तक आलस्य की गोद समा जाते हैं बेहोश!
हमारे समाज में फिटनेस अब एक नए 'संस्कार' के रूप में लोगों के दिमाग बैठ चुकी है। हर व्यक्ति इस राह पर चलने लगा है, जहां "प्रोटीन शेक्स" को आशीर्वाद की तरह लिया जाता है और वजन घटाने वाले डाइट प्लान को किसी शास्त्र की तरह माना जाता है। लेकिन हम सब जानते हैं कि फिटनेस की इस धारणा में कुछ बातें इतनी सरल नहीं हैं जितनी कि ये दिखती हैं।।
खासकर जब हम 'पेट' जैसे जटिल विषय पर बात करें। तो आज हम इसी पेट के इर्द-गिर्द एक मजेदार और व्यंग्यपूर्ण यात्रा पर निकलते हैं, जिसमें फिटनेस की बात होगी, लेकिन चुटीले अंदाज में!
बढ़ता हुआ पेट और समाज का प्यारभरा आशीर्वाद
सबसे पहले तो एक सवाल– क्या आपने कभी सोचा है कि पेट बढ़ता क्यों है? यह हमारे समाज का आशीर्वाद है। हां, यही बात है। शादी के बाद लोग तुरंत पूछते हैं, "अरे! पेट कब आएगा?" जब आपके पेट पर थोड़ा सा भी 'संकेत' मिलता है, तो समाज में हर व्यक्ति फिटनेस गुरू बन जाता है।
पड़ोसी आंटी से लेकर ऑफिस के सहकर्मी तक, सब आपको हेल्दी डाइट प्लान और व्यायाम के सुझाव देने लगते हैं। और अगर आप जिम जाने का इरादा भी करते हैं, तो सब हौसला बढ़ाने के बजाय पूछते हैं– "अरे, अब तो उम्र हो गई है! पेट तो रहना ही चाहिए।"
फिटनेस का राज और महंगी सदस्यताएं
जैसे ही हम फिटनेस के लिए जिम का दरवाजा खटखटाते हैं, हम एक दूसरी दुनिया में पहुंच जाते हैं। यहां हर चीज का मूल्य अलग होता है– आपकी टमी के चंद इंच घटाने के लिए पहले तो एक सदस्यता शुल्क देना होता है। फिर प्रोटीन शेक्स, फैंसी योगा मैट्स, फिटनेस डिवाइसेज़– सबकुछ आपको खरीदना है। और ये सब करने के बाद भी आपका पेट जिद्दी दोस्त की तरह रहता है। वो बिल्कुल आपकी हाई स्कूल की गर्लफ्रेंड की तरह है, जिसे बार-बार कहने पर भी आपकी बात नहीं सुननी। आप जिम जाते रहिए, मेहनत करते रहिए और पेट उसी गर्व के साथ आपके सामने बना रहता है!
आधुनिक डाइट प्लान – हफ्ते का फेस्टिवल
फिटनेस धर्म में 'डाइट प्लान' का महत्व किसी व्रत से कम नहीं है। आपको दिन के हिसाब से अलग-अलग चीजें खाना होता है। सोमवार को 'कीटो', मंगलवार को 'इंटरमिटेंट फास्टिंग', बुधवार को 'पैलियो', और हफ्ते के बाकी दिनों के लिए अलग-अलग फैंसी नामों वाले डाइट प्लान। लेकिन यह डाइट का गणित ऐसा है कि हर हफ्ते शुरू तो बड़े जोश के साथ होता है, लेकिन शुक्रवार आते-आते चिप्स, बर्गर, और गुलाब जामुन हमें बुलाते हुए लगते हैं। और फिर से वो हफ्ता खत्म हो जाता है।
यह डाइट प्लान ठीक वैसे ही है जैसे हमारे नए साल के संकल्प – पूरा होने का नाम नहीं लेते!
योगा और ध्यान: मानसिक शांति या सिर्फ एक्सक्यूज?
योगा का नाम सुनते ही मन में शांति की भावना आनी चाहिए। लेकिन, जब पेट थोड़ा बढ़ा हुआ हो तो वो 'शांति' की बजाय 'शर्मिंदगी' का कारण बन जाता है। योगा क्लास में आपके साथ कुछ ऐसे लोग होते हैं, जो बिलकुल उस संत की तरह दिखते हैं जिनकी जिंदगी में कोई तनाव नहीं होता।
और फिर आते हैं हम– जो हर 'सूर्य नमस्कार' के बाद सोचते हैं कि "क्या ये 1 इंच कम हुआ?" यह क्लासेज़ हमारे लिए एक ऐसा यादगार अनुभव बन जाते हैं, जहां हम खुद को दुनिया के सबसे फूले हुए इंसान के रूप में देखते हैं।
सोशल मीडिया और फिटनेस गुरुओं का जमाना
आज के समय में सोशल मीडिया पर हर कोई फिटनेस एक्सपर्ट है। आपके इंस्टाग्राम पर हर तीसरे पोस्ट में एक नया फिटनेस चैलेंज दिखाई देता है। और हर दूसरे पोस्ट में आपको वही व्यक्ति दिखेगा जो कहेगा, "अरे ये सब मेरे लिए आसान था, आपको भी कर लेना चाहिए।" हकीकत में, ये पोस्ट सिर्फ हमारे आत्मसम्मान को कुचलने का एक तरीका है। यह लोगों का नया शौक है, "देखो, मैं कितना फिट हूं, और तुम कितने आउट ऑफ शेप हो!" हम जैसे लोग इन पोस्ट्स को देखकर बस यही सोचते हैं कि "भाई, तू दिखता ही रह, हमें तो कुर्सी पे बैठ के खाना ज्यादा पसंद है।"
फिटनेस गैजेट्स का असली काम
आजकल फिटनेस बैंड्स और वॉचेस का जमाना है। यह डिवाइसेस आपकी हर गतिविधि पर नजर रखती हैं। इनका असली उद्देश्य है कि आपको यह एहसास दिलाना कि आप कितना आलसी हैं। हर 10 मिनट में ये आपको रिमाइंडर देती हैं कि "थोड़ा चलो", "पानी पियो", और "सांस लो।" इन फिटनेस गैजेट्स का काम है हमारी जिंदगी में एक नया तनाव जोड़ना। अब तो हमें खुद पर हंसने का भी समय नहीं मिलता, क्योंकि घड़ी का रिमाइंडर बता रहा होता है कि अगले 100 कदम कब चलने हैं!
आखिर में - प्यार से पेट को स्वीकार करें!
अंत में, इस फिटनेस और स्वास्थ्य की यात्रा का सबसे बड़ा सबक यही है– अपने बढ़ते पेट को प्यार से स्वीकार करना। आखिरकार, हमारे जीवन का आनंद इस बात में है कि हम अपने शरीर के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखें। फिटनेस के इस मजाकिया सफर में यह स्वीकारना जरूरी है कि थोड़ा-सा पेट होने में कोई खराबी नहीं है। यह हमें हमारी जिंदगी के मजे लेने का हक देता है।
तो, यह व्यंग्य लेख बस इतना ही कहता है कि फिटनेस धर्म में शामिल होना बुरा नहीं है, पर अपनी खुशी और पेट की थोड़ी सी जिद के बीच संतुलन बनाना भी उतना ही जरूरी है।
न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर
बस-यूंही-रघुनाथ
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