विचार हमारे मस्तिष्क से निकलने वाली ऊर्जा तरंगें हैं। जो कल्पना, बुद्धिमत्ता, प्रतिभा आदि अनेक रूपों में निरन्तर गतिशील रहती हैं। जीवन अनेकानेक भागों में बंटा हुआ है। उसे प्रत्यक्ष जीवन से संबंधित अनेकों कार्यों में व्यस्त रहना पड़ता है। अस्तु वह स्थिर नहीं रह पाती, सदा इधर से उधर उड़ती रहती है। भगदड़ में थोड़ा थोड़ा प्रयोजन सभी का पूरा होता है, पर स्थिरता एवं एकाग्रता के आधार पर किसी विशेष प्रयास में जो प्रवीणता, पारंगता होनी चाहिए वह नहीं हो पाती। सांसारिक महत्वपूर्ण प्रयोजनों में एकाग्रता की ही महती भूमिका होती है। वैज्ञानिक, साहित्यकार, कलाकार, यहाँ तक कि सरकस के नट तक अपनी एकाग्रता के सहारे ही आश्चर्यजनक सफलताएँ प्राप्त करते देखे जाते हैं। बिखरे विचारों वाले अस्त-व्यस्त, अनिश्चित होते हैं, पर जिन्हें एकाग्रता में रस आने लगता है वे मन्दबुद्धि होते हुए भी कालिदास, वरदराज की तरह उच्चकोटि के विद्वान हो जाते हैं। द्रौपदी स्वयंवर के समय अर्जुन का लक्ष्य बेध उसकी संसाधित एकाग्रता का ही प्रतिफल था। अध्यात्म जगत में भी अनेकानेक साधनाओं का उद्देश्य एकाग्रता को हस्तगत करना है। इसी निम...
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