Skip to main content

Posts

Showing posts from February, 2018

शक्ति सम्प्रेषण का तत्वज्ञान

विचार हमारे मस्तिष्क से निकलने वाली ऊर्जा तरंगें हैं। जो कल्पना, बुद्धिमत्ता, प्रतिभा आदि अनेक रूपों में निरन्तर गतिशील रहती हैं। जीवन अनेकानेक भागों में बंटा हुआ है। उसे प्रत्यक्ष जीवन से संबंधित अनेकों कार्यों में व्यस्त रहना पड़ता है। अस्तु वह स्थिर नहीं रह पाती, सदा इधर से उधर उड़ती रहती है। भगदड़ में थोड़ा थोड़ा प्रयोजन सभी का पूरा होता है, पर स्थिरता एवं एकाग्रता के आधार पर किसी विशेष प्रयास में जो प्रवीणता, पारंगता होनी चाहिए वह नहीं हो पाती। सांसारिक महत्वपूर्ण प्रयोजनों में एकाग्रता की ही महती भूमिका होती है। वैज्ञानिक, साहित्यकार, कलाकार, यहाँ तक कि सरकस के नट तक अपनी एकाग्रता के सहारे ही आश्चर्यजनक सफलताएँ प्राप्त करते देखे जाते हैं। बिखरे विचारों वाले अस्त-व्यस्त, अनिश्चित होते हैं, पर जिन्हें एकाग्रता में रस आने लगता है वे मन्दबुद्धि होते हुए भी कालिदास, वरदराज की तरह उच्चकोटि के विद्वान हो जाते हैं। द्रौपदी स्वयंवर के समय अर्जुन का लक्ष्य बेध उसकी संसाधित एकाग्रता का ही प्रतिफल था। अध्यात्म जगत में भी अनेकानेक साधनाओं का उद्देश्य एकाग्रता को हस्तगत करना है। इसी निम...

अध्यात्म की यथार्थता और परिणति

मोटेतौर से शरीर को चार भागों में विभक्त किया जा सकता है- 1- हाथ  2- पैर  3- धड़  4- सिर बारीकियों में उतारना हो तो उनमें से प्रत्येक के अनेकानेक भाग विभाजन हो सकते हैं। हृदय , फेफड़े , जिगर , आमाशय , आंतें आदि अकेले धड़ के ही विभाग हैं।  फिर उनमें से भी प्रत्येक की अनेकानेक बारीकियां हैं। इसी प्रकार हमारे जीवन को मोटेतौर से जैसे- ( 1) निर्वाह-परिवार  ( 2) उपासना  ( 3) स्वतन्त्रता संग्राम  ( 4) धर्मतन्त्र से लोकशिक्षण ।  इन चार भागों में बांटा जा सकता है। इनमें से प्रत्येक के साथ कितनी ही रोचक , आकर्षक और शिक्षाप्रद घटनाएं जुड़ी हुई हैं। उसमें से यदि कुछ का भी विवेचन वर्णन किया जाय तो विस्तार बहुत बड़ा हो जाएगा। इनमें से जहां-तहां के प्रसंग भी रोचक हैं और उन्हें औपन्यासिक ढंग से लिखने पर तो वे सरस और पढ़ने योग्य भी बन सकते हैं।  उदाहरणार्थ- जेल जीवन में कंकड़ , तसला और एक अंग्रेजी अखबार , बस इतने भर से काम चलाऊ अंग्रेजी का अभ्यास कर लेना। उदाहरणार्थ- पांच व्यक्तियों के परिवार का 2000 रुपए मासिक में बजट बनाना और उसका संतोषजनक ढंग ...

पुस्तक समीक्षा: "जीत आपकी"– व्यक्तित्व की शक्ति से सफलता के शिखर की ओर

शिव खेड़ा की पुस्तक "जीत आपकी"  (You Can Win) एक ऐसी प्रेरणादायक पुस्तक है, जिसने लाखों लोगों के जीवन में बदलाव लाया है। इस पुस्तक में दिए गए सिद्धांत और विचारधारा लोगों को उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने और सफल होने की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं। "जीत आपकी"  यह साबित करती है कि किसी भी व्यक्ति की सफलता उसकी मानसिकता, व्यक्तित्व और सकारात्मक दृष्टिकोण पर निर्भर करती है, न कि परिस्थितियों पर। शिव खेड़ा ने इस पुस्तक में सरल भाषा, स्पष्ट उदाहरणों और प्रेरक कहानियों का उपयोग करके एक प्रभावी मार्गदर्शक का निर्माण किया है, जो किसी भी व्यक्ति को आत्म-विश्वास, अनुशासन और सफलता के मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा देती है। जब मैं  देव संस्कृति विश्वविद्यालय  (पत्रकारिता एवं जनसंचार में) स्नातकोत्तर का विद्यार्थी था, तब पाठ्यक्रम के अतिरिक्त मुझे परमपूज्य गुरुदेव पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी के साहित्य का अवसर तो मिला ही। साथ ही साथ स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद, परमहंस योगानंद, लाहिड़ी महाशय और तैलंग स्वामी जैसे महापुरुषों के साहित्य का अध्ययन करने का मौका मिला। इन ...

मीडिया और समाज

मीडिया की कहानी एक अजीब कहानी है। एक समय था जब लोग अपने संदेश किसी से आदान-प्रदान करने के लिए कबूतरों और पोस्टमेन के जरिए पत्रों का आदान प्रदान करते थे। मेघदूत में तो यहां तक वर्णन कि उस जमाने में बादलों के माध्यम से ही संदेश भेजे जाते थे। एक पत्र को एक आदमी से दूसरे आदमी तक पहंचने में महीनों लग जाते थे। पत्र का जवाब पाने के लिए भी महीनों इंतजार करना पड़ता था। फिर समय में बदलाव आया और आज देश ही नहीं दुनिया के किसी भी कोने में बैठे लोगों के साथ सीधे बात की जा सकती है। साथ ही, अपना दुःख-दर्द बयां किया जा सकता है। आज आप मोबाइल पर जैसे चाहे वैसे अपना संदेश भेज सकते हैं। ऑक्सफ़ोर्ड के मुताबिक, ऐसी वेबसाइट और एप्लिकेशंस जो यूजरों (उपभोक्ताओं) को सामग्रियां तैयार करने और उसे साझा करने में समर्थ बनाए या सोशल नेटवर्किंग में हिस्सा लेने में समर्थ करे उसे सोशल मीडिया कहा जाता है। वीकिपीडिया के अनुसार, सोशल मीडिया लोगों के बीच सामाजिक विमर्श है जिसके तहत वे परोक्ष समुदाय व नेटवर्क पर सूचना तैयार करते हैं, उन्हें शेयर (साझा) करते हैं या आदान-प्रदान करते हैं। इस प्रकार हम कह सकते है कि सोशल मी...

भारतीय संस्कृति मानव के विकास का आध्यात्मिक आधार बनाती है

हमारी संस्कृति में जन्म के पूर्व से मृत्यु के पश्चात् तक मानवी चेतना को संस्कारित करने का क्रम निर्धारित है । भारतीय संस्कृति हमारी मानव जाति के विकास का उच्चतम स्तर कही जा सकती है ।  इसी की परिधि में सारे विश्वराष्ट्र के विकास के वसुधैव कुटुम्बकम् के सारे सूत्र आ जाते हैं । मनुष्य में पशुता के संस्कार उभरने न पाये।   यह इसका एक महत्त्वपूर्ण दायित्व है। और मनुष्य में संतए सुधारकए शहीद की मनोभूमि विकसित कर उसे मनीषीए ऋषिए महामानवए देवदूत स्तर तक विकसित करने की जिम्मेदारी भी अपने कंधों पर लेती है। सदा से ही भारतीय संस्कृति महापुरुषों को जन्म देती आयी है व यही हमारी सबसे बड़ी धरोहर है।   भारतीय संस्कृति की अन्यान्य विशेषताओं सुख का केन्द्र आंतरिक श्रेष्ठताए अपने साथ कड़ाईए औरों के प्रति उदारताए विश्वहित के लिए स्वार्थों का त्यागए अनीतिपूर्ण नहीं । नीतियुक्त कमाई पारस्परिक सहिष्णुताए स्वच्छता. शुचिता का दैनन्दिन जीवन में पालनए परिवार व राष्ट्र् के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारी का परिपालनए अनीति से लड़ने संघर्ष करने का साहस. मन्युए पितरों की तृप्ति हेतु तथा पर्यावरण संरक्...