देवर्षि
नारद का नाम सुनते ही मन में सीरियल वाले नारद जी की छवि दिमाग में आ जाती है। आम
लोग प्रायः नारद को एक जगह की बात दूसरी जगह कहने वाले के रूप में ही जानते हैं।
फिल्मों और नाटकों में उन्हें सही तरके से पेश नहीं किया गया। यदि आप नारद जी का
बारीकी से अध्ययन करेंगे तो, आपको एक अलग ही छवि मिलेगी।
देवर्षि नारद का हर एक संवाद लोक कल्याण और परोपकार के लिए होता था। देवर्षि नारद इधर-उधर घूमते हुए संवाद-संकलन का कार्य निष्पक्षता से करते थे। वे घूम-घूम कर सक्रिय और सार्थक संवाददाता की भूमिका निभाते थे। नीर-क्षीर-विवेक से सूचनाओं को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाना उनका धर्म था। देवर्षि नारद को पत्रकारिता का आदि पुरुष कहा जाता है। वे देवर्षि ही नहीं दिव्य पत्रकार भी हैं।
09/05/2020 को 'दैनिक क्रांति जागरण' समाचार पत्र में संपादकीय पेज पर प्रकाशित |
देवर्षि नारद का हर एक संवाद लोक कल्याण और परोपकार के लिए होता था। देवर्षि नारद इधर-उधर घूमते हुए संवाद-संकलन का कार्य निष्पक्षता से करते थे। वे घूम-घूम कर सक्रिय और सार्थक संवाददाता की भूमिका निभाते थे। नीर-क्षीर-विवेक से सूचनाओं को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाना उनका धर्म था। देवर्षि नारद को पत्रकारिता का आदि पुरुष कहा जाता है। वे देवर्षि ही नहीं दिव्य पत्रकार भी हैं।
नारद जी की गंभीर प्रस्तुति ‘नारद भक्ति सूक्ति’ में देखने को मिलती है। समय-समय पर जिसकी व्याख्या अनेक विद्वानों ने भी की है। नारद जी की लोकछवि जैसी बनी और बनाई गई है, वे उससे सर्वथा अलग हैं। उनकी लोकछवि झगड़ा लगाने या कलह पैदा करने वाले व्यक्ति कि है, जबकि हम ध्यान से देखें तो उनके प्रत्येक संवाद में लोकमंगल और लोक कल्याण की भावना ही है। भगवान के दूत के रूप में उनकी आवाजाही और उनके कार्य हमें बताते हैं कि वे निरर्थक संवाद नहीं करते। वे निरर्थक प्रवास भी नहीं करते। उनके समस्त प्रवास और संवाद सायास हैं। सकारण हैं। उद्देश्य की स्पष्टता और लक्ष्यनिष्ठा के वे सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं।
पत्रकारिता
की मुख्यतः तीन भमिकाएं होती हैं- सूचना देना-शिक्षित करना-इंटरटेन करना। देवर्षि
नारद की पत्रकारिता ऐसी ही थी। उन्हें आदर्श पत्रकारिता के संवाहक के रूप में जाना
जाता है। वे देवताओं से लेकर दानवों और मानव, सबकी
भावनाओं का ध्यान रखते थे।
नारद
जी दुनिया के प्रथम पत्रकार हैं, क्योंकि
उन्होंने इस लोक से उस लोक में परिक्रमा करते हुए संवादों के आदान-प्रदान कर
पत्रकारिता का प्रारम्भ किया। इस प्रकार देवर्षि नारद पत्रकारिता के प्रथम पितृ
पुरुष कहे जाते हैं। अपने
ही पिता ब्रह्मा के शाप के वशीभूत (देवर्षि नारद को ब्रह्मा का मानस-पुत्र माना
जाता है। ब्रह्मा के कार्य में पैदा होते ही नारद ने कुछ बाधा उपस्थित की। अतः
उन्होंने नारद को एक स्थान पर स्थित न रहकर घूमते रहने का शाप दे दिया।)
देवर्षि
नारद जी ने हमेशा घूमते हुए सीधे संवाद किए। उन्होंने हमेशा सजग और सक्रिय रहकर
पत्रकारिता की। टेबल-रिपोर्टिंग नहीं
स्पॉट-रिपोर्टिंग की, जो
आज के पत्रकारों के लिए उदाहरण है। उनके संवाद लोक-मंगल के लिए होते थे। उनके
संवादों में शांति, सत्य और धर्म की सथापना की बात होती थी।
भगवान
राम के अवतार से लेकर भगवान कृष्ण के अवतार तक देवर्षि नारद की पत्रकारिता लोकमंगल
की ही पत्रकारिता और लोकहित का ही संवाद-संकलन है। उनके संवाद करने से जब भगवान
राम का रावण से या भगवान कृष्ण का कंस से युद्ध होता है, तो
लोक मंगल ही होता है।
वे
व्यास, बाल्मीकि
तथा महाज्ञानी शुकदेव आदि के गुरु हैं। उनकी कृपा से ही रामायण और महाभारत जैसे
महाग्रंथ मनुष्यों को प्राप्त हो सके हैं। इन्होंने ही प्रह्लाद, ध्रुव, राजा
अम्बरीष आदि महान् भक्तों को भक्ति मार्ग में प्रवृत्त किया। इस तरह नारद देवताओं
के ऋषि हैं, इसी कारण उनको देवर्षि नाम से भी पुकारा
जाता है।
कहा जाता है कि कठिन तपस्या के बाद नारद को ब्रह्मर्षि पद प्राप्त हुआ था। नारद जी बहुत ज्ञानी थे। इसी कारण दैत्य हो या देवी-देवता सभी उनका आदर और सत्कार किया करते थे। नारद जी व्याकरण, श्रुति-स्मृति, इतिहास, पुराण, वेदांग, संगीत, खगोल-भूगोल, ज्योतिष, योग आदि अनेक शास्त्रों में सिद्धहस्त थे।
मां सरस्वती की अपार कृपा से ही वे अत्यंत बुद्धिमान और संगीत में निपुण थे। हर लोक में उनका सम्मान होता था। यहां तक कि देवताओं के अलावा ज्ञानवान लोग, बुद्धिमान और चतुर होने के कारण दैत्य भी उनका सम्मान करते थे। इसलिए पत्रकारिता में रुचि रखने वालों लोगों को खासतौर से देवर्षि नारद जी आदर्शों को अपने जीवन में उतारना चहिए और उनकी आराधना करनी चाहिए।
कहा जाता है कि कठिन तपस्या के बाद नारद को ब्रह्मर्षि पद प्राप्त हुआ था। नारद जी बहुत ज्ञानी थे। इसी कारण दैत्य हो या देवी-देवता सभी उनका आदर और सत्कार किया करते थे। नारद जी व्याकरण, श्रुति-स्मृति, इतिहास, पुराण, वेदांग, संगीत, खगोल-भूगोल, ज्योतिष, योग आदि अनेक शास्त्रों में सिद्धहस्त थे।
मां सरस्वती की अपार कृपा से ही वे अत्यंत बुद्धिमान और संगीत में निपुण थे। हर लोक में उनका सम्मान होता था। यहां तक कि देवताओं के अलावा ज्ञानवान लोग, बुद्धिमान और चतुर होने के कारण दैत्य भी उनका सम्मान करते थे। इसलिए पत्रकारिता में रुचि रखने वालों लोगों को खासतौर से देवर्षि नारद जी आदर्शों को अपने जीवन में उतारना चहिए और उनकी आराधना करनी चाहिए।
✍️...रघुनाथ यादव
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