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ध्यानी नहीं शिव सारस

!!देव संस्कृति विश्विद्यालय में स्थपित प्रज्ञेश्वर महादेव!!

ध्यानी नहीं शिव सारसा, ग्यानी सा गोरख। 
ररै रमै सूं निसतिरयां, कोड़ अठासी रिख।।

साभार : हंसा तो मोती चुगैं पुस्तक से

शिव जैसा ध्यानी नहीं है। ध्यानी हो तो शिव जैसा हो। क्या अर्थ है? ध्यान का अर्थ होता हैः न विचार, वासना, न स्मृति, न कल्पना। ध्यान का अर्थ होता हैः भीतर सिर्फ होना मात्र। इसीलिए शिव को मृत्यु का, विध्वंस का, विनाश का देवता कहा है। क्योंकि ध्यान विध्वंस है--विध्वंस है मन का। मन ही संसार है।

मन ही सृजन है। मन ही सृष्टि है। मन गया कि प्रलय हो गई। ऐसा मत सोचो कि किसी दिन प्रलय होती है। ऐसा मत सोचो कि एक दिन आएगा जब प्रलय हो जाएगी और सब विध्वंस हो जाएगा। नहीं, जो भी ध्यान में उतरता है, उसकी प्रलय हो जाती है। जो भी ध्यान में उतरता है, उसके भीतर शिव का पदार्पण हो जाता है।

ध्यान है मृत्यु--मन की मृत्यु, "मैं" की मृत्यु, विचार का अंत। शुद्ध चैतन्य रह जाए--दर्पण जैसा खाली! कोई प्रतिबिंब न बने।

तो एक तो यात्रा है ध्यान की। और फिर ध्यान से ही ज्ञान का जन्म होता है। जो ज्ञान ध्यान के बिना तुम इकट्ठा करते हो, वह ज्ञान नहीं है, ज्ञान का धोखा है--मिथ्या ज्ञान है। शास्त्रों से, सिद्धांतों से, दूसरों से, अन्यों से तुम जो इकट्ठा कर लेते हो, वह ज्ञान नहीं है। ज्ञान तो ध्यान में जन्मता है। ध्यान है शुद्ध बोध। उस बोध में तुम्हें दिखाई पड़ना शुरू होता है--जीवन का अर्थ, जीवन का रहस्य। ध्यान तो है कुंजी, खोल देती है अनंत के द्वार।

ध्यानी नहीं शिव सारसा, ग्यानी सा गोरख।

और लाल कहते हैः न तो आज दिखाई पड़ते हैं ध्यानी, जिन्होंने शिव को निमंत्रण किया हो, जो शिव जैसे हो गए हों। हां, शिव की प्रतिमाएं पूजी जा रही हैं। गांव-गांव, घर-घर शिव के आराधन, पूजन के आयोजन चल रहे हैं। जितनी शिव की प्रतिमाएं हैं, उतनी तो किसी और की नहीं।

सरल भी है, कहीं से भी गोल पत्थर ढूंढ कर रख दो किसी भी झाड़ के नीचे और शिव की प्रतिमा निर्मित हो गई। शिवलिंग कहीं से भी ढूंढ लाओ और किसी भी पेड़ के नीचे बिठा दो। छप्पर की भी कोई जरूरत नहीं है।


शिव की जगह-जगह पूजा हो रही है, लेकिन शिव पूजा की बात नहीं है। शिवत्व उपलब्धि की बात है। वह जो शिवलिंग तुमने देखा है बाहर मंदिरों में, वृक्षों के नीचे, तुमने कभी ख्याल नहीं किया, उसका आकार ज्योति का आकार है।

जैसे दीये की ज्योति का आकार होता है। शिवलिंग अंतर-ज्योति का प्रतीक है। जब तुम्हारे भीतर का दीया जलेगा तो ऐसी ही ज्योति प्रकट होती है, ऐसी ही शुभ्र! यही रूप होता उसका। और ज्योति बढ़ती जाती है, बढ़ती जाती है। और धीरे-धीरे ज्योतिर्मय व्यक्ति के चारों तरफ एक आभामंडल होता है; उस आभामंडल की आकृति भी अंडाकार होती है।

रहस्यवादियों ने तो इस सत्य को सदियों पहले जान लिया था। लेकिन इसके लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण उनके पास नहीं थे। लेकिन अभी रूस में एक बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग चल रहा है--किरलियान फोटोग्राफी।

मनुष्य के आस-पास जो ऊर्जा का मंडल होता है, अब उसके चित्र लिए जा सकते हैं। इतनी सूक्ष्म फिल्में बनाई जा चुकी हैं, जिनसे न केवल तुम्हारी देह का चित्र बन जाता है, बल्कि देह के आस-पास जो विद्युत प्रकट होती है, उसका भी चित्र बन जाता है। और किरलियान चकित हुआ है, क्योंकि जैसे-जैसे व्यक्ति शांत होकर बैठता है, वैसे-वैसे उसके आस-पास का जो विद्युत मंडल है, उसकी आकृति अंडाकार हो जाती है।

 उसको तो शिवलिंग का कोई पता नहीं है, लेकिन उसकी आकृति अंडाकार हो जाती है। शांत व्यक्ति जब बैठता है ध्यान में तो उसके आस-पास की ऊर्जा अंडाकार हो जाती है। अशांत व्यक्ति के आस-पास की ऊर्जा अंडाकार नहीं होती, खंडित होती है, टुकड़े-टुकड़े होती है। उसमें कोई संतुलन नहीं होता। एक हिस्सा बड़ा, एक हिस्सा छोटा; कुरूप होती है।

शिवलिंग ध्यान का प्रतीक है। वह ध्यान की आखिरी गहरी अवस्था का प्रतीक है।

raghunath.yadav1@gmail.com

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