यदि किसी ने जीवन में दु:ख ही दु:ख पाया है, तो उसने बड़ी मेहनत की होगी प्राप्त करने के लिए, कठिन परिश्रम किया होगा, बहुत बड़ी साधना की होगी, तपश्चर्या की गई होगी! ज़िन्दगी में अगर दु:ख ही दु:ख पाया है, तो बड़ी कुशलता अर्जित की होगी! इंसान को दु:ख कुछ ऐसे नहीं मिलता, ये फ्री में नहीं मिलता है।
मनुष्य को दु:ख के लिए बहुत बड़ी कीमत अदा करनी पड़ती है।
संसार में आनंद तो यूं ही प्राप्त हो जाता है, बिना मूल्य चुकाए मिलता है, क्योंकि आनंद स्वभाव है। इंसान को दु:ख अर्जित करना पड़ता है। साथ ही, दु:ख अर्जित करने का पहला नियम क्या है? यदि इंसान सुख मांगे तो दु:ख मिलता है।
यदि आप सफलता मांगो, असफलता मिलेगी। यदि आप सम्मान मांगोगे, तो आपको अपमान, तिरस्कार मिलेगा। आप जो कुछ मांगोगे उससे उल्टा ही मिलेगा। आप जो चाहोगे उससे अक्सर उसके विपरीत घटित होगा। संसार का नियम है कि यह आपकी मर्जी के अनुसार नहीं चलता है। और यह चलता है तो सिर्फ और सिर्फ उस परमसत्ता की मर्जी से।
आप अपनी मर्जियों को हटाओ! स्वमं को हटाओ! उसकी मर्जी पूरी होने दो। फिर दु:ख भी अगर हो, तो दु:ख मालूम नहीं होगा। जिसने सब कुछ उसकी मर्जी पर छोड़ दिया, अगर दु:ख भी हो तो वह समझेगा कि जरूर उसके इरादे नेक होंगे। परमसत्ता के इरादे बुरे तो हो ही नहीं सकते। जरूर इसके पीछे भी कोई राज होगा।
अगर वह कोई कांटा चुभाता है, तो हमें जगाने के लिए चुभाता होगा। साथ ही, उसने रास्तों पर पत्थर डाल रखे हैं, तो उसने सीढ़ियां बनाने के लिए डाले होंगे। और अगर मुझे बेचैनी देता है, परेशानी देता है, तो जरूर मेरे भीतर कोई सोई हुई अभीप्सा को प्रज्ज्वलित कर रहा होगा, मेरे भीतर कोई आग जलाने की चेष्टा कर रहा होगा।
जिस इंसान ने सब कुछ परमात्मा पर छोड़, अपने कर्म में विश्वाश रखता है, औरों के हित के लिए जीता है, औरों के हित के लिए जो तत्पर रहता है, उसका हर "आँशू रामायण और प्रत्येक कर्म गीता" है। उसके लिए दु:ख भी सुख हो जाते हैं। और जिसने सब अपने हाथ में रखा, मैं ही सब कुछ हूं, उसके लिए सुख भी दु:ख हो जाते हैं।
✍️...रघुनाथ यादव
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