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Showing posts from February, 2020

त्राटक ध्यान (Tratak Meditation)

!! त्राटक ध्यान (Tratak Meditation)!! त्राटक ध्यान (Tratak Meditation) त्राटक शब्द की उत्पत्ति ‘त्रा’ से हुयी है, जिसका अर्थ है मुक्त करना। यह क्रिया आँखों को साफ करने एवं आँखों की रोशनी बढ़ाने के लिए की जाती है। इस क्रिया में आप नेत्रों को सामान्य रूप से किसी निश्चित वस्तु पर केंद्रित करते हैं, जो दीपक या जलती हुई मोमबत्ती की लौ या जलता हुआ दीपक हो सकता है, चुनी हुई वस्तु को तब तक देखते रहें जब तक आंखों में पानी नहीं आ जाए या आपके आँख दर्द न करने लगे। जब पानी आ जाए या दर्द करने लगे तो आँखों को बंद करे और फिर सामान्य स्थिति में आकर इसे खोलें. अगर सही माने में देखा जाए तो आँखों को सेहतमंद रखने के लिए यह एक उम्दा योगाभ्यास है। त्राटक मैडिटेशन त्राटक योगाभ्यास का एक उच्चतर स्तर है। यहाँ पर भी आप बेशक किसी निश्चित बिंदु पर अपना ध्यान को केंद्रित करते हैं. दुनिया की चीजों को अपने तन मन से निकाल कर आप सिर्फ एवं सिर्फ उस खास बिंदु को फोकस करते हैं. आप अपने शरीर के मांसपेशियों तथा नसों को आराम कराते हुए उस खास बिंदु पर अपने ध्यान को ज़माने की कोशिश करते है और धी...

ध्यानी नहीं शिव सारस

!!देव संस्कृति विश्विद्यालय में स्थपित प्रज्ञेश्वर महादेव!! ध्यानी नहीं शिव सारसा, ग्यानी सा गोरख।  ररै रमै सूं निसतिरयां, कोड़ अठासी रिख।। साभार : हंसा तो मोती चुगैं पुस्तक से शिव जैसा ध्यानी नहीं है। ध्यानी हो तो शिव जैसा हो। क्या अर्थ है? ध्यान का अर्थ होता हैः न विचार, वासना, न स्मृति, न कल्पना। ध्यान का अर्थ होता हैः भीतर सिर्फ होना मात्र। इसीलिए शिव को मृत्यु का, विध्वंस का, विनाश का देवता कहा है। क्योंकि ध्यान विध्वंस है--विध्वंस है मन का। मन ही संसार है। मन ही सृजन है। मन ही सृष्टि है। मन गया कि प्रलय हो गई। ऐसा मत सोचो कि किसी दिन प्रलय होती है। ऐसा मत सोचो कि एक दिन आएगा जब प्रलय हो जाएगी और सब विध्वंस हो जाएगा। नहीं, जो भी ध्यान में उतरता है, उसकी प्रलय हो जाती है। जो भी ध्यान में उतरता है, उसके भीतर शिव का पदार्पण हो जाता है। ध्यान है मृत्यु--मन की मृत्यु, "मैं" की मृत्यु, विचार का अंत। शुद्ध चैतन्य रह जाए--दर्पण जैसा खाली! कोई प्रतिबिंब न बने। तो एक तो यात्रा है ध्यान की। और फिर ध्यान से ही ज्ञान का जन्म होता है। जो ज्ञान ध्यान के बिना तुम इकट्ठा ...

आ गया समय उठो तुम नारी

अब आ गया समय उठो तुम नारी 21वीं सदी तुम्हारी है कमजोर न समझो अपने को उठाओ तलवार दुष्टों को हरने को जननी हो सम्पूर्ण जगत की तुम हो गौरव अपनी संस्कृति की और आहट हो तुम क्रांति की नया इतिहास तुम्हें अब रचना है नहीं अब करनी किसी से याचना है दर्श का दर्प तोड़ना है नहीं करनी किसी की वंदना है तुम दुर्गा हो, तुम लक्ष्मी हो सरस्वती हो, सीता हो तुम सदा सत्य का मार्ग दिखलाने वाली रामायण और गीता हो तुम बन्धन रूढ़ि विवशताओं के तोड़ तुम्हें आगे बढ़ना है अब छोड़ो ममता को तुम तुम अलख क्रांति की चिंगारी हो अब नहीं तो कब? तुम दुर्गा की अवतारी हो उठाओ तलवार और युद्ध का करो शंखनाद अंतिम विजय यहाँ सत्य की है विधना का ऐसा है विधान विधना का ऐसा है विधान #बस#यूँही#रघुनाथ