राजनीतिक फिल्म: ‘किस्सा कुर्सी का’ ने हिला दी थी इंदिरा सरकार, फिल्म के प्रिंट गुड़गांव में जलाए गए, संजय गांधी को जाना पड़ा था तिहाड़ जेल
* वर्ष 1974 में बनी अमृत नाहटा की फिल्म कभी रिलीज नहीं हुई, 1977 के चुनाव में बनी थी मुद्दा
* फिल्म बनाने वाले नाहटा दो बार कांग्रेस और एक बार जनता पार्टी से सांसद रहे
*किस्सा कुर्सी का’ फिल्म में राजनीतिक पार्टी का चुनाव चिह्न ‘जनता की कार’ था
उस वक्त मारुति कार संजय गांधी का ड्रीम प्रोजेक्ट था, जिसे जनता की कार बताया गया था
पहले मैं फिल्में कम ही देखता था। लेकिन, अब थोड़ी बहुत देखने लगा हूं। इसलिए पुरानी फिल्मों से ही शुरुआत करनी चाहिए। किसी ने बताया कि 'किस्सा कुर्सी' फ़िल्म देखो। फिर क्या था... मैंने लैपटॉप खोला और फ़िल्म देख डाली।
आपको बताऊं 'किस्सा कुर्सी' पॉलटिक्स पर बनी फिल्म भारतीय सिने इतिहास की सबसे विवादास्पद फिल्म मानी जाती है। तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार हिलाने से लेकर इमरजेंसी के बाद हुए चुनावों में यह फिल्म बहुत बड़ा मुद्दा बनी थी। वर्ष 1974 में अमृत नाहटा द्वारा बनाई गई इस फिल्म पर वर्ष 1975 में रोक लगा दी गई और सरकार ने इस फ़िल्म के प्रिंट जब्त कर लिए गए। सोचो...आज यदि ऐसा होता....।
वर्ष 1977 में जनता पार्टी की सरकार आने पर इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी और वीसी शुक्ला पर आरोप लगा कि उन्होंने फिल्म के प्रिंट मुंबई से मंगवाकर गुड़गांव स्थित मारुति कारखाने में जलवा दिए। मामला कोर्ट तक पहुंचा और संजय गांधी को फिल्म के प्रिंट नष्ट करने का दोषी पाया गया। फिल्म पर आरोप लगा था कि इसमें इंदिरा गांधी और संजय गांधी के साथ-साथ सरकार की नीतियों पर भी तंज कसे गए थे। सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने फिल्म के प्रोड्यूसर्स भगवंत देशपांडे, विजय कश्मीरी और बाबा मजगांवकर को 51 आपत्तियों के साथ एक कारण बताओ नोटिस भेजा था।
फिल्म का निर्देशन अमृत नाहटा ने किया था। मुकदमा दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में चला। साथ ही, संजय गांधी पर गवाहों पर दबाव बनाने का भी आरोप लगा। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी जमानत रद्द करते हुए एक महीने के लिए तिहाड़ जेल में डलवा दिया।
क्या है किस्सा कुर्सी का
आपको बता दें कि फिल्म ‘किस्सा कुर्सी का’ वर्ष 1975 में सिनेमाघरों रिलीज होने वाली थी। उन दिनों इमरजेंसी के दौर में हर फिल्म को पहले सरकार देखती थी। यदि उसके मुताबिक हुई तो फ़िल्म रिलीज होती नहीं तो उसको रोक दिया जाता था। इस फ़िल्म को देखने के बाद सरकार को लगा कि ये फिल्म संजय गांधी के ऑटो मेन्युफैक्चरिंग प्रोजेक्ट का मखौल उड़ाती और सरकार की नीतियों को बदनाम करती है। जुलाई में सेंसर बोर्ड ने 51 आपत्तियां लगाते हुए जवाब मांगा। निर्देशक ने तर्क दिए, लेकिन वे नकार दिए गए।
डायरेक्टर ने 1977 में दोबारा फिल्म बनाई
‘किस्सा कुर्सी का’ फिल्म के ओरिजनल प्रिंट्स ही जलाकर नष्ट कर दिए गए थे। जिस प्रिंट को जलाकर नष्ट कर दिया गया था, उस फिल्म में राज बब्बर मुख्य भूमिका में थे। इमरजेंसी हटने के बाद डायरेक्टर ने वर्ष 1977 में दोबारा फिल्म बनाई। हालांकि दूसरी बार बनी फिल्म में राज ने काम नहीं किया। फिल्म में राज किरण, सुरेखा सीकरी और शबाना आजमी मुख्य भूमिकाओं में थे।
फिल्म बनाने वाले नाहटा दो बार कांग्रेसी सांसद रहे
इस फिल्म के निर्देशक अमृत नाहटा वर्ष 1962 में कांग्रेस में शामिल हो गए। उन्होंने अपना पहला लोकसभा चुनाव वर्ष 1967 में बाड़मेर सीट से लड़ा और सांसद बने। इसी सीट पर वे वर्ष 1971 में फिर से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा के लिए चुने गए। इस चुनाव में उन्होंने राजस्थान के दिग्गज नेता भैरोंसिंह शेखावत को चुनाव में पटखनी दी।
स्टूडेन्ट लाइफ से ही क्रांतिकारी विचारों के नाहटा ने एक बार लिखा था कि इंदिरा गांधी के रूप में देश को ऐसा पीएम मिला है, जिसका विश्वास नैतिकता में नहीं। उनके लिए परिणाम ही सबकुछ था, जिसे पाने के लिए साधन चाहे जैसे भी हों। उन्होंने राजनीति में एकाधिकार के खिलाफ आवाज उठाई। नाहटा 1977 के चुनाव में कांग्रेस छोड़कर जनता पार्टी में आ गए। वे पाली से लोकसभा के लिए चुने गए। साल 2001 में अमृत नाहटा का निधन हो गया।
आप ये फिल्म इस दिए गये लिंक पर देख सकते हैं
https://youtu.be/O9FuOC3TbM0
रघुनाथ यादव
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