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वृंदावन यात्रा: एक अलौकिक, आध्यात्मिक सफर और दिव्य प्रेम का साक्षात्कार



वृंदावन की आध्यात्मिक यात्रा: अनूठे अनुभवों की खोज

आध्यात्मिक यात्रा अक्सर मंज़िल के बारे में एक स्वप्न से जन्म लेती है, पर जब यह कल्पना साकार होती है, तो इसके रंग, इसके शेड्स कुछ अलग होते हैं। यानी कुछ ‘अप्रत्याशित’ मिलना या हो जाना आध्यात्मिक यात्रा की खासियत है। सच कहें तो कल्पना होती भी कुछ धुंधली सी है, ज्यों धुआं हर पल एक नया आकार गढ़े। कल्पना और वास्तविकता में रिश्ता वैसा ही है जैसे कोई मूर्तिकार अपने ख़्वाबों के इशारों पर पत्थर पर छेनी चलाए। फिर जो आध्यात्मिक यात्रा की मूरत मन में उभरे उसी से प्रेम कर बैठे।

वैसे मैं और मेरे मित्र जीतू इस अक्टूबर के महीने में यात्रा पर जाने का प्लान कर ही रहे थे। वैसे हम दोनों एक ही तरह के प्रोफेशन में है। अध्ययन और अध्यापन में व्यस्त रहते हैं। फोन पर वीक में एक दो वार एक-दूसरे की कुशलक्षेम पूछ लेते हैं, लेकिन आपस में मिलने के लिए क्वालिटी टाइम और यात्रा के लिए समय निकाल ही लेते हैं, जहां मन भर के बातें करते करते हैं और फिर अपने कर्तव्य पर लग जाते हैं। इस बार की यात्रा हर बार से थोड़ी अलग थी, जो जीतू ने अचानक से प्लानिंग की थी। 

29 अक्टूबर की सुबह-सुबह, जैसे ही सूरज की किरणों ने ग्रेटर नोएडा की उनींदी सड़कों पर आभा बिखेरी और हल्की सी ठंडक के एहसास ने हमारे जेहन में नया उल्लास भर दिया। मैं, जीतू, दीदी और सोनी एक साथ आस्था और भक्ति की आध्यात्मिक यात्रा पर कार से वृन्दावन के राधारानी मंदिर के लिए निकल पड़े। 

हम कार से यमुना एक्सप्रेस पर बातें करते आगे बढ़ रहे थे। बस सोनी शांत थी। जीतू के एक सवाल पर उसके उत्तर में देव संस्कृति विश्वविद्यालय में प्राप्त की शिक्षा-दीक्षा का प्रभाव साफ झलक रहा था। यात्रा में मुझे ऐसा लग रहा था कि जीतू स्वयं ‘कृष्ण’ की तरह, सारथी की भूमिका निभा रहे हैं, जो वाहन को उसी शालीनता, आत्मीयता और आत्मविश्वास के साथ चला रहे थे जैसा कृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन का रथ हांका था।

भगवान कृष्ण की जन्मस्थली वृन्दावन का हमारे दिलों में एक विशेष स्थान है। हम इस पवित्र शहर की आध्यात्मिक आभा में डूबने के लिए उत्सुक थे। ग्रेटर नोएडा से वृन्दावन तक का सफर सिर्फ दूरी का नहीं था, यह समय के माध्यम से, हलचल भरी आधुनिक दुनिया से भक्ति और दिव्यता के कालातीत क्षेत्र तक का एक मार्ग था। हर गुजरते किलोमीटर के साथ, हम महसूस कर रहे थे कि वृन्दावन की दिव्य ऊर्जा हमें राधारानी और भगवान कृष्ण के करीब ला रही है, ठीक उसी चुंबकीय आकर्षण की तरह जो कृष्ण अपने भक्तों पर रखते थे।

जैसे ही हम यमुना एक्सप्रेस से उतरे, हमारी गाड़ी आगे बढ़ रही थी, दूर-दूर तक हमें यमुना का ख़ादर दिखाई पड़ रहा था। ज्यौं-ज्यौं हमारी गाड़ी मार्ग पर आगे बढ़ रही थी, त्यों-त्यों  हम सब को ब्रजभूमि की दिव्यता का अनुभव हो रहा था। सभी के चहरों पर उसकी ख़ुशी देखते ही बन रही थी।

इस आध्यात्मिक यात्रा में सोनी की प्रसन्नता देखते ही बन रही रही थी। कहते हैं कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं, बस जरूरत है तो सिर्फ और सिर्फ हमारी नज़र की जो बच्चों में दिव्य स्वरूप की दिव्यता को देख सके। बड़ों में और बच्चों यही अन्तर होता है कि बच्चें उस राधारानी की दिव्यता महसूस करके ख़ुशी से झूम उठते हैं। बड़े भी उस दिव्यता में झूम सकते हैं- बस जरूरत है तो बच्चों के मन के करीब रहने की, उनकी ख़ुशी में अपनी ख़ुशी समझने की और उनके जैसे निर्मल मन की।

बच्चों को तर्क नहीं, प्रेम पसंद होता हैं और वे छोटी-छोटी चीजों से ख़ुश हो जाते हैं। यदि हम ऐसा कर सके तो धरती स्वर्ग जैसी होगी। अंग्रेजी के महान लेखक विलियम वर्ड्सवर्थ ने अपनी प्रसिद्ध कविता ‘‘My Heart Leaps Up" में लिखा है, ‘‘Child is father of the man’’। खैर ये बातें छोड़िए! अब अपनी यात्रा पर लौटते हैं।


मार्ग पर दो किलोमीटर आगे चलकर राइट साइड पर जैसे ही टर्न लिया तो दूर से मंदिर का अलौकिक आकर्षण स्वयं प्रकट होने लगा। जैसे ही गाड़ी आगे को चली मंदिर और बगीचे से भगवान कृष्ण और उनकी दिव्य राधारानी के पदचिन्हों की गूंज  प्रतीत हो रही थी। कृष्ण और राधारानी के दिव्य प्रेम की कहानी उस पारलौकिक प्रेम का प्रमाण है जो मानव आत्मा को परमात्मा से बांधती है।

हमारी तीर्थयात्रा केवल एक भौतिक यात्रा नहीं थी, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा थी, जो दिव्य प्रेमी कृष्ण और राधारानी के पदचिन्हों का अनुसरण कर रही थी। मंदिर से पहले जीतू ने कार को पार्क किया। मेले में बच्चों के खेल खि़लोनों की दुकान देखकर अपना बचपन याद आ गया और मुल्कराज आनंद द्वारा लिखित एक लेख ‘‘द लाॅस्ट चाइल्ड’’ की यादें ताजा हो गयीं।

थोड़ा आगे चलकर हम उस लंगर की ओर पहुंचे, जिसका आयोजन श्रृद्धालुओं के लिए जीतू और फौजी भाई नीरज जी ने किया था। वहां सब लोगों से मिले और दीदी, सोनी और जीतू ने अपने-अपने जूते-चप्पल वहीं उतारे और फौजी भाई के साथ सब लोग राधारानी मंदिर की ओर चल दिए। मंदिर मार्ग राधारानी के भक्तों से भरा हुआ था। मधुर भजनों और मंत्रों से वातावरण गूंज रहा था, जिससे एक ऐसा माहौल बन गया जिसने हमें देव लोक में पहुंचा दिया। मंदिर में प्रवेश करने पर देखा कि देदीप्यमान पोशाक में सजी राधारानी की मूर्ति साक्षात प्रेम की प्रतिमूर्ति लग रही थी।

दीदी, जीतू, सोनी, फौजी भाई आदि ने मंदिर में पूजा-अर्चना की और सब के ह्नदय में एक-दूसरे के लिए प्यार हो ऐसी प्रार्थना उस दिव्यप्रेम की प्रतिमूर्ति राधारानी से की।

राधा रानी मंदिर की यह यात्रा सिर्फ एक भौतिक भ्रमण से कहीं अधिक यह एक अलौकिक अनुभव था, जिसने हम सभी की आत्मा पर एक अमिट छाप छोड़ी। कृष्ण और राधा की प्रेम कहानी ने हमें सिखाया कि सच्चा प्रेम समय और स्थान की सीमाओं को पार करता है, जैसे हमारी यात्रा नोएडा और वृंदावन के बीच मीलों की दूरी तय कर उस दिव्य ब्रज में समय और सीमाओं को पार करके पहुंची थी।

सभी ने लंगर में लोगों को भोजन प्रसाद खिलवाने और प्रसाद बनबाने में मदद की। किसी ने आटे की लोई बनाई तो किसी ने भोजन प्रसाद बांटने में हाथ बटाया। लंगर एक तरह का धार्मिक सामुहिक भोजन भंडारा कहलाता है। ये अधिकतर देवी-देवता के हवन, यज्ञ या फिर अनुष्ठान के बाद प्रसाद के रूप में कराया जाता है। हम में से बहुत से लोगों ने अपने जीवन में कभी न कभी भंडारा जरूर खाया होगा, लेकिन यदि सपने में हम भंडारा होते हुए देखते हैं या अपने आप को उस भंडारे में खाना खाते हुए देखते हैं तो इसे स्वप्न शास्त्र में बहुत शुभ माना गया है। ऐसा माना जाता है कि सपने में भंडारा देखने से ये आपके आने वाले भविष्य में धन लाभ होने का संकेत देता है।

इसके बाद पास के ही ब्रज की पावन धरा पर घास चर रही भेड़ों को सोनी ने करीब से देखा और उन बेजुबान भेड़ के बच्चों को गोद में लेकर उनके साथ संवाद करने की कोशिश की। कहते हैं कि प्रेम की भाषा बेजुबान भी समझते हैं। 



दोपहर के करीब मुझे ध्यान आया कि देव संस्कृति विवि में अध्ययन के दौरान गंगा जी में मछलियों को आटा खिलाने जाते थे। आज क्यों न हम राधारानी के मंदिर के पास मछलियों को खिलाएं। इसके बाद मैं, जीतू और सोनी तेजी से कदम बढ़ाते हुए तलाब के पास पहुंच मछलियों को आटे की गोलियां खिलाईं।

हिंदू धर्म में बहुत से पशु-पक्षियों को शुभ माना गया है। इनमें से एक मछली भी है। मछली से जड़ी हिंदू धर्म में अलग-अलग मान्यताएं हैं। वहीं कई घरों में मछली को पाला भी जाता है। इतना ही नहीं, मछली व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों की ख़राब स्थिति को ठीक करने का भी काम करती है। ऐसे में ज्‍योतिष शास्‍त्र में मछली से जुड़े बहुत सारे उपाय बताए गए हैं। मगर सभी उपायों में सबसे महत्वपूर्ण उपाय है मछली को आटा खिलाना। मछली को जल की रानी कहा जाता है और जल सकारात्मक ऊर्जा का सबसे प्रभावशाली स्रोत होता है।

मछली व्यक्ति के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार और उसकी क्षमता एवं मानसिक शक्ति में वृद्धि करती है। ज्‍योतिष शास्‍त्र में मछली को मीन राशि की संज्ञा दी गई है इस राशि के स्‍वामी देव गुरु बृहस्पति होते हैं, जिनकी उपासना से समाज में मान सम्मान, जीवन में सुख-समृद्धि और नौकरी एवं व्यवसाय में उन्नति प्राप्त होती है।

हिंदू धर्म में मछली को जगत पिता भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। मत्स्य अवतार भगवान विष्णु के 10 अवतारों में से एक है। इस अवतार में अवतरित होकर जगत पिता नारायण ने संसार को भयानक जल प्रलय से बचाया था। इसके साथ ही उन्होंने हयग्रीव नामक दैत्य का वध भी किया था, जिसने वेदों को चुराने का अपराध किया था। हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक के महीने में जब भगवान विष्णु जल में निवास करते हैं, उन दिनों लोग मछली खाना बंद कर देते हैं।

मछलियों को आटा खिलाने से धन लाभ तो होता ही है, साथ ही पुरानी संपत्ति से भी लाभ मिलता है। इतना ही नहीं, धन कमाने के नए अवसर प्राप्त होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यदि आपके दुश्मन आप पर हावी हो रहे हैं, तो उनका प्रभाव कम हो जाता है। किसी शुभ काम में आ रही बाधाएं दूर हो जाती हैं।

घर में मछलियों को पालने से कुंडली में अशांत राहु ग्रह शांत हो जाता है। मछली किस रंग की होनी चाहिए, उसका भी बड़ा महत्व है। घर में यदि आप काले रंग की मछली पालते हैं, तो यह सुरक्षा का प्रतीक मानी जाती है। काली मछली घर की नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करती है। 

इसके बाद हम लोग कृष्णा को साथ लेते हुए सीधे प्रेम मंदिर पहुंचे। जब हम मंदिर पहुंचे तो मंदिर बंद था। दीदी हम लोगों के लिए मंदिर के सामने वाली फल की दुकान से कई प्रकार के फल लाईं। हम लोगों ने बड़े चाब से फल खाएं।

कृष्णा का मन भेलपुरी खाने का था, उसने भेलपुरी का आनंद लिया। हम लोगों ने एक दुकान पर चाय का आर्डर किया, सोनी ने मना कर दिया चाय पीने से, उसकी बात सही थी लाॅजिकली। मैं भी चाय नहीं पीता, लेकिन कभी कभार ‘चीटिंग डे’ मना लेता हूं- यात्रा आदि या किसी के साथ जाने के दौरान। सोनी ने इस समय का सदुपयोग किया और पास की ही दुकान से राधारानी की वेशनुमा एक-दो दिव्य परिधान पसंद किए। दीदी ने बिना देर किए दुकान पहुंचकर उन दिव्य परिधानों को सोनी को दिलवाया। परिधान पहनकर सोनी बहुत खुश थी।

फिर हम सीधे प्रेम मंदिर पहुंचे। थोड़े इंतज़ार के बाद मंदिर खुल गया। मंदिर में जैसे ही हमने प्रवेश किया वहां की स्वर्गीय आभा देखते ही बन रही थी। प्रेम मंदिर पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इस मनमोहक मंदिर को देखने के लिए देश और विदेश से आए लोगों का तांता लगा हुआ था। हम भी उसी में शामिल थे। मंदिर की सुंदरता ने हम सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया

यही वजह है कि हम यहां पर घंटों रुकने के लिए मजबूर हो गए। ये प्रेम मंदिर भगवान कृष्ण-राधा और राम-सीता को समर्पित है। इस भव्य मंदिर की संरचना पांचवें जगदगुरु कृपालु महाराज द्वारा स्थापित की गई थी। मंदिर पूरे एक हजार मजदूरों द्वारा 11 सालों में बनाकर तैयार किया गया था।

इस भव्य और खूबसूरत मंदिर का निर्माण जनवरी 2001 में शुरू किया गया था और इसका उद्घाटन समारोह 15 फरवरी से 17 फरवरी 2012 तक किया गया। फिर 17 फरवरी को इसे सार्वजनिक रूप से खोला दिया गया था. इस मंदिर की ऊंचाई 125 फीट है और लंबाई 122 फीट है. वहीं मंदिर की चौड़ाई करीब 115 फीट है। ये मंदिर संगमरमर के पत्थरों से बनाया गया है, जोकि इटली से मंगवाए गए थे। इस प्रेम मंदिर में 94 कलामंडित स्तंभ हैं, जो किंकिरी और मंजरी सखियों के विग्रह को दर्शाते हैं। इसके अलावा मंदिर की सतरंगी रोशनी भी भक्तों को काफी आकर्षित करती हैं। 

मंदिर का मुख्य आकर्षण श्री कृष्ण की मनोहर झांकियां और सीता-राम का खूबसूरत फूल बंगला है। मंदिर में फव्वारे, श्रीकृष्ण और राधा की मनोहर झांकियां, श्रीगोवर्धन धारणलीला, कालिया नाग दमनलीला, झूलन लीलाएं बहुत ही खूबसूरत ढंग से दर्शाई गई है। इस मंदिर खासियत ये भी है कि ये दिन में बिल्कुल सफेद दिखाई देता है और शाम को ये अलग.अलग रंग में नजर आता है, बता दें कि यहां पर स्पेशल लाइटिंग लगाई गई है जिसकी वजह से हर 30 सेकेंड में मंदिर का रंग बदल जाता है। मंदिर में सत्संग के लिए एक विशाल भवन का निर्माण किया गया है, जिसमें एक साथ 25000 हजार लोग बैठ सकते हैं, इस भवन को प्रेम भवन कहा जाता है, जोकि साल 2018 में आम लोगों के लिए खोल दिया गया था, हम लोग जब मंदिर से निकले तो लड्डुओं का प्रसाद देकर विदा किया गया।


वक्त हम लोगों को अब नोएडा निकलने को कह रहा था। इस उम्मीद के साथ हम लोगों ने विदा ली कि जल्द ही राधारानी हम सभी को पुुनः इस पावन ब्रजभूमि पर बुलाएं और कृष्ण जन्मभूमि, द्वारकाधीश मंदिर, निधिवन, वृंदावनए बांके बिहारी मंदिर, नंद महल, गोकुल रमन रेती, गोवर्धन पर्वत, श्री राधारमण, श्री राधा दामोदर, राधा श्याम सुंदर, गोपीनाथ, गोकुलेश, श्री कृष्ण बलराम मन्दिर, पागलबाबा का मंदिर, रंगनाथ जी का मंदिर, श्री कृष्ण प्रणामी मन्दिर, अक्षय पात्र, वैष्णो देवी मंदिर। निधि वन, श्री रामबाग मन्दिर आदि में उस अलौकिक दिव्यता प्राप्त को पुनः बुलाएं। रास्ते में हम लोगों ने दीदी के बताए हुए होटल पर अपनी-अपनी पसंद के लज़ीज व्यंजनों का आनंद लिया। यात्रा के बाद ऐसा लगा कि आज हम वक्त से आगे चल रहे हैं।

अब शाम हो चुकी थी। हमने प्रेम, भक्ति और आंतरिक शांति की गहन भावना से भरे दिलों के साथ वृन्दावन छोड़ दिया। हमारे मित्र जीतू ने वास्तव में आज सारथी कृष्ण की भूमिका निभाई और हमें एक ऐसी यात्रा पर जाने का अवसर उपलब्ध कराया जिसने हमें वृन्दावन के आध्यात्मिक सार से जोड़ा।

जब हम अपने दिलों में वृन्दावन के प्रेम और भक्ति को लेकर नोएडा वापस आ रहे थे तो भगवान कृष्ण की बांसुरी की गूँज हमारा पीछा कर रही थी बल्कि ऐसा कह रही थी जल्द आपको फिर आना है।


!!जय राधारानी की!! जय श्रीकृष्णा

✍️... रघुनाथ सिंह




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