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एक सुबह हरिद्वार में गंगा किनारे

 14 जून 2017 की सुबह हरिद्वार के गंगा घाट के पास का वातावरण अत्यंत पवित्र और दिव्य था। गंगा की शांत धारा के किनारे स्थित एक आश्रम में मुझे पंच पल्लव वृक्षों के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। यह अनुभव मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक क्षण था, जिसने मेरे मन और आत्मा को गहराई से प्रभावित किया।

पंच पल्लव वृक्षों का उल्लेख भारतीय आध्यात्मिकता और पौराणिक कथाओं में अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा है। इन वृक्षों में वट (बरगद), अश्वस्त (पीपल), आम्र (आम), प्लस (पाकर), और उदुम्बर (गूलर) सम्मिलित हैं। ये वृक्ष न केवल हमारे भौतिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति और साधना में भी सहायक माने जाते रहे हैं।

रामचरितमानस में भगवान शंकर द्वारा इन वृक्षों का विशेष रूप से उल्लेख किया गया था, जो इनकी आध्यात्मिक महत्ता को दर्शाता है। मानस में वर्णित गाथा के अनुसार, हिमालय के उत्तर दिशा में नील पर्वत पर स्थित एक विशाल वृक्ष का वर्णन किया गया था, जिसमें वट, पीपल, पाकर, आम और गूलर के वृक्ष एक साथ विकसित होते थे। यह वृक्ष न केवल अपने भौतिक स्वरूप में अद्वितीय था, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी इसे अत्यंत पवित्र माना जाता था। इस संदर्भ में रामचरितमानस की यह चौपाई अत्यंत प्रासंगिक है:


गिरी सुमेर उत्तर दिसि दूरी। नील सैल एक सुन्दर भूरी।।  

तिह पर एक विटप विशाला वट पीपरी पाकरी रसाला।"


जब मैंने गंगा किनारे इस आश्रम में प्रवेश किया था, तो वहाँ का वातावरण ध्यान और साधना के लिए अत्यंत उपयुक्त था। पंच पल्लव वृक्षों के सान्निध्य में ध्यानस्थ होने से मन को एक अद्भुत शांति और दिव्यता का अनुभव हुआ था। ऐसा प्रतीत होता था जैसे प्रकृति स्वयं अपने समस्त गुणों और ऊर्जा के साथ साधक को आशीर्वाद प्रदान कर रही हो।

वट वृक्ष दीर्घायु और स्थायित्व का प्रतीक था। इसे जीवन के स्थायित्व और निरंतरता का प्रतीक माना जाता था। पुराणों में कहा गया था कि वट वृक्ष के नीचे ध्यान करने से साधक को दीर्घायु और स्थायित्व की प्राप्ति होती थी। इसी कारण वट वृक्ष का आध्यात्मिक महत्व अत्यंत उच्च था। वट वृक्ष के विशाल और विस्तृत आकार ने मुझे अपनी विशालता और स्थिरता से प्रभावित किया था।

पीपल वृक्ष, जिसे अश्वत्थ भी कहा जाता था, को आध्यात्मिक ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक माना जाता था। प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख है कि पीपल के नीचे बैठकर भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था। इसी कारण से पीपल वृक्ष को अत्यंत पवित्र और पूजनीय माना जाता था। इसके नीचे ध्यान करने से साधक को उच्च ज्ञान और बोध की प्राप्ति होती थी। पीपल की हरी-भरी पत्तियों की सरसराहट ने मुझे एक अद्वितीय शांति का अनुभव कराया था।

आम्र वृक्ष, जिसे आम का पेड़ भी कहा जाता था, समृद्धि और सफलता का प्रतीक था। इसके फल, पत्ते और फूल सभी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व था। आम्र वृक्ष के नीचे ध्यान करने से साधक को समृद्धि और सफलता की प्राप्ति होती थी। भारतीय संस्कृति में आम के पत्तों का उपयोग शुभ अवसरों पर किया जाता था, जो इसकी महत्वता को और अधिक बढ़ा देता था। आम के वृक्ष की मीठी खुशबू ने मेरे मन को मोह लिया था।

प्लस वृक्ष, जिसे पाकर भी कहा जाता था, सद्गुणों और आदर्शों का प्रतीक था। प्राचीन ऋषियों ने इस वृक्ष को सत्य, धर्म और सद्गुणों का प्रतीक माना था। पाकर वृक्ष के नीचे ध्यान करने से साधक को सद्गुणों और आदर्शों की प्राप्ति होती थी। यह वृक्ष साधकों को सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता था। पाकर के पत्तों की सरसराहट ने मेरे मन में एक अद्भुत ऊर्जा भर दी थी।

उदुम्बर वृक्ष, जिसे गूलर भी कहा जाता था, स्वास्थ्य और बल का प्रतीक था। आयुर्वेद में इस वृक्ष के औषधीय गुणों का विस्तार से वर्णन किया गया था। गूलर के वृक्ष के नीचे ध्यान करने से साधक को स्वास्थ्य और बल की प्राप्ति होती थी। यह वृक्ष न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को सुदृढ़ करता था, बल्कि मानसिक शांति और संतुलन भी प्रदान करता था। गूलर के वृक्ष के नीचे की शीतल छाया ने मुझे अत्यंत सुखद अनुभूति दी थी।

इन पंच पल्लव वृक्षों का एक साथ होना एक अद्वितीय आध्यात्मिक संगम था, जो साधकों को ध्यान और साधना के लिए एक उत्कृष्ट वातावरण प्रदान करता था। इन वृक्षों की छाया में ध्यानस्थ होने से साधक को एक अद्भुत अलौकिक अनुभव प्राप्त होता था, जो उसे आध्यात्मिक उन्नति की ओर प्रेरित करता था।

प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों ने इन पंच पल्लव वृक्षों के महत्व को समझकर इन्हें अपने आश्रमों में रोपा था। उनके अनुसार, इन वृक्षों की छाया में बैठकर ध्यान और साधना करने से साधकों को दिव्य अनुभव होते थे और उनकी आत्मा को शांति मिलती थी।

गंगा किनारे के उस आश्रम में बिताए गए समय ने मुझे भी इस दिव्यता का अनुभव कराया था। वहाँ का हर क्षण जैसे आत्मा को पवित्र कर रहा था और मन को शांति प्रदान कर रहा था। पंच पल्लव वृक्षों के पास ध्यानस्थ होकर मैंने जो अनुभूतियाँ प्राप्त कीं, वे शब्दों में व्यक्त करना कठिन है। ऐसा प्रतीत होता था जैसे समस्त प्रकृति अपने समस्त गुणों के साथ साधक को आशीर्वाद प्रदान कर रही हो।

वर्तमान समय में भी हमें इन पंच पल्लव वृक्षों की महत्ता को समझकर इनके संरक्षण और संवर्धन के लिए प्रयासरत रहना चाहिए। इन वृक्षों का संरक्षण केवल पर्यावरण के दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इन वृक्षों के नीचे बैठकर ध्यान और साधना करने से हमें वही दिव्यता और शांति प्राप्त हो सकती है, जो प्राचीन काल के साधकों को प्राप्त होती थी।

इन पंच पल्लव वृक्षों का महत्व केवल प्राचीन काल में ही नहीं, बल्कि वर्तमान समय में भी है। आज भी इन वृक्षों के सान्निध्य में बैठकर साधक अपने जीवन को एक नई दिशा दे सकते हैं। इन वृक्षों के संरक्षण और संवर्धन के लिए हमें सतत प्रयासरत रहना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इनका लाभ उठा सकें।

इस प्रकार, पंच पल्लव वृक्षों का आध्यात्मिक महत्व हमारे जीवन में सदैव बना रहा है और रहेगा। इन वृक्षों के नीचे बैठकर ध्यान और साधना करने से हमें जो दिव्यता और शांति प्राप्त होती है, वह अद्वितीय है। हमें इन वृक्षों के संरक्षण के लिए सतत प्रयास करते रहना चाहिए, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियाँ भी इनका लाभ उठा सकें और हमारे धार्मिक और आध्यात्मिक धरोहर को संजोकर रख सकें।

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