खतरनाक और चिंताजनक घटनाक्रम सामने आ रहा है। बांग्लादेश के लालमोनिरहाट जिले में स्थित एक पुराना, निष्क्रिय वर्ल्ड वॉर-2 का एयरबेस अचानक चर्चा में है — और वजह है चीन की उसमें दिलचस्पी। यह एयरबेस भारत की सीमा से महज़ 12 से 15 किलोमीटर और हमारे अत्यंत संवेदनशील "सिलीगुड़ी कॉरिडोर" (चिकन नेक) से मात्र 135 किलोमीटर दूर है।
सिलीगुड़ी कॉरिडोर, यानी भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाली बेहद पतली पट्टी — केवल 22 किलोमीटर चौड़ी — हमारी भौगोलिक जीवनरेखा है। अगर यह कॉरिडोर किसी भी कारण से अवरुद्ध हुआ, तो असम, अरुणाचल, नागालैंड, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, मेघालय और सिक्किम से भारत का ज़मीनी संपर्क टूट सकता है। ऐसे में, चीन और पाकिस्तान जैसे देशों की दिलचस्पी इस क्षेत्र में खतरनाक संकेत देती है।
लालमोनिरहाट एयरबेस का इतिहास
इस एयरबेस को 1931 में ब्रिटिश हुकूमत ने बनाया था। द्वितीय विश्व युद्ध में यह एक अग्रिम मोर्चा था। विभाजन के बाद यह पाकिस्तान के अधीन गया और 1958 में थोड़े समय के लिए नागरिक उपयोग में आया, लेकिन फिर निष्क्रिय हो गया। 2019 में बांग्लादेश सरकार ने इसका एक हिस्सा एविएशन यूनिवर्सिटी को सौंपा, लेकिन अब इसे फिर से एक पूर्ण एयरबेस के रूप में विकसित करने की योजना बनाई जा रही है — और वह भी चीन के सहयोग से!
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार और चीन की नज़दीकी
प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार ने न केवल लालमोनिरहाट बल्कि 5 अन्य ब्रिटिश कालीन एयरपोर्ट को फिर से शुरू करने का प्रस्ताव दिया है। अप्रैल 2025 में यूनुस की चीन यात्रा के बाद इस परियोजना को गति मिली है। चीनी अधिकारियों ने हाल ही में इस एयरबेस का दौरा भी किया, जिससे नई दिल्ली की नींद उड़ गई है।
भूराजनीति के जानकार
ब्रह्म चेलानी अपने X (पूर्व में ट्विटर) अकाउंट पर लिखते हैं, "
बांग्लादेश द्वारा लगभग $1 बिलियन की तीस्ता नदी परियोजना को भारत से हटाकर चीन को सौंपने के प्रयासों के बाद, अब वह चीन की सहायता से लालमोनिरहाट में ब्रिटिश कालीन एक पुराने हवाई अड्डे को पुनर्जीवित करने की योजना बना रहा है। यह हवाई अड्डा भारत-बांग्लादेश सीमा से मात्र 12-15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और भारत के रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सिलीगुड़ी कॉरिडोर (जिसे 'चिकन नेक' भी कहा जाता है) से लगभग 135 किलोमीटर दूर है ।
यदि लालमोनिरहाट एयरबेस सक्रिय होता है, तो यह चीन को भारतीय सैन्य प्रतिष्ठानों, सैनिकों की आवाजाही और महत्वपूर्ण अवसंरचना, विशेषकर सिलीगुड़ी कॉरिडोर, पर हवाई निगरानी और टोही करने की क्षमता प्रदान कर सकता है ।
सिलीगुड़ी कॉरिडोर भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को मुख्यभूमि से जोड़ने वाला एकमात्र संकीर्ण मार्ग है, जिसकी चौड़ाई केवल 22 किलोमीटर है ।
किसी भी विदेशी शक्ति की उपस्थिति इस क्षेत्र में अस्थिरता ला सकती है। भारत को इन परियोजनाओं पर कड़ी नजर रखनी होगी और बांग्लादेश के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए कूटनीतिक प्रयास तेज करने होंगे।
इन घटनाक्रमों के मद्देनजर, भारत को अपनी सुरक्षा रणनीतियों की पुनर्समीक्षा करनी चाहिए और पूर्वोत्तर राज्यों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए।"
चीन की चालें और भारत की चिंता
चीन इस एयरबेस के माध्यम से भारत की सेना की गतिविधियों पर नज़र रख सकता है। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि बांग्लादेश की नई सरकार, जो भारत के हितों को कम प्राथमिकता दे रही है, चीन को इस क्षेत्र में सैन्य दृष्टि से पैर जमाने की खुली छूट दे सकती है।
पाकिस्तान भी पीछे नहीं
एक रिपोर्ट के अनुसार, इस परियोजना में एक पाकिस्तानी कंपनी को सब-कॉन्ट्रैक्ट दिया जा सकता है और ISI की टीम ने पहले ही सीमा क्षेत्रों का दौरा किया है। अगर चीन और पाकिस्तान दोनों की मौजूदगी इस क्षेत्र में होती है, तो यह भारत की सुरक्षा के लिए दोहरी चुनौती बन जाएगी।
सिलीगुड़ी कॉरिडोर: भारत की नाड़ी
यह पट्टी रोज़ाना 1 मिलियन वाहनों का आवागमन, 2400 मीट्रिक टन सामान का व्यापार और 142 करोड़ रुपये का राजस्व उत्पन्न करती है। यही पट्टी बिहार और सिक्किम को जोड़ती है, और नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और चीन के बेहद करीब स्थित है। अगर चीन इस क्षेत्र को घेर लेता है, तो यह भारत की आर्थिक, सामरिक और राजनीतिक स्थिरता को झटका दे सकता है।
भूटान की भूमिका और चीन की घुसपैठ
भूटान, जो इस क्षेत्र के उत्तर में स्थित है, भारत का सुरक्षा सहयोगी है। लेकिन चीन ने भूटान की 4 विवादित सीमाओं में सैन्य अड्डे बना लिए हैं। यह न केवल भूटान की संप्रभुता पर हमला है, बल्कि भारत की सुरक्षा पर भी सीधा खतरा है।
बांग्लादेश में लालमोनिरहाट एयरबेस का पुनर्जीवन सिर्फ एक विकास परियोजना नहीं, बल्कि भारत के खिलाफ रणनीतिक घेराबंदी का हिस्सा प्रतीत होता है। यह भारत के लिए चेतावनी है कि हमें अपने पूर्वोत्तर की सुरक्षा को और अधिक मजबूत करना होगा और कूटनीतिक स्तर पर भी सतर्कता बढ़ानी होगी।
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