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Bihar Election: राहुल गांधी गए विदेश, महागठबंधन में बढ़ा टेंशन और क्लेश

Image: Google बिहार की राजनीति इन दिनों किसी धीमी गति की फिल्म जैसी लग रही है, जहां सारे किरदार डायलॉग बोल चुके हैं, कैमरा चालू है, पर मुख्य अभिनेता अचानक सेट से गायब है। महागठबंधन की गाड़ी पूरी रफ्तार से चल रही थी, इंजन गर्म था, रोड क्लियर था, जनता भी ताली बजा रही थी, तभी राहुल गांधी ने अचानक "ब्रेक" लगा दिए। अब बाकी साथी हैरान हैं, ये हुआ क्या? राहुल गांधी ने चुनावी तैयारी तो मानो किसी ओलंपिक एथलीट की तरह शुरू की थी। बिहार की सड़कों पर रैली, भाषण, पोस्टर, सब तैयार। कांग्रेस के कार्यकर्ता खुश थे कि “इस बार साहब गंभीर हैं।” लेकिन जैसे ही चुनाव का असली वक्त आया, राहुल गांधी ने कहा, अब थोड़ा आराम कर लेते हैं और निकल पड़े विदेश यात्रा पर। शायद उन्होंने सोचा हो कि बिहार के मुद्दे अब Zoom कॉल पर ही निपटा लेंगे। अब स्थिति यह है कि पहले चरण के नामांकन की आखिरी तारीख 17 अक्टूबर है, यानी सिर्फ दो दिन बाकी हैं। लेकिन महागठबंधन, यानी आरजेडी, कांग्रेस, वामदल और बाकी सहयोगी, अब तक यह तय नहीं कर पाए कि कौन कितनी सीट पर लड़ेगा। उधर एनडीए 12 अक्टूबर को सीट बंटवारे का ऐलान कर चुका है, जेडीयू ...
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रात की नींद, सुबह का ध्यान — बनेगा जीवन का उत्तम विधान

मानव का शरीर केवल हड्डियों, मांसपेशियों और रक्त का समूह नहीं है, बल्कि यह प्रकृति की लय के साथ तालमेल बिठाकर चलने वाला एक अद्भुत जैविक यंत्र है। यह प्रकृति के समय-चक्र से गहराई से जुड़ा है। जिस प्रकार सूर्य, चंद्रमा, ग्रह और नक्षत्र अपने निश्चित क्रम में गति करते हैं, उसी प्रकार शरीर भी अपने भीतर एक अदृश्य जैविक घड़ी के अनुसार कार्य करता है। आयुर्वेद में इसे “कालानुसार दिनचर्या” कहा गया है, अर्थात् समय के अनुरूप आहार, निद्रा और कर्म का पालन। जब हम इस प्राकृतिक लय का अनुसरण करते हैं, तो शरीर और मन दोनों संतुलित रहते हैं। किंतु जब हम इस लय को तोड़ते हैं, तो असंतुलन, रोग और मानसिक अस्थिरता हमारे जीवन का हिस्सा बन जाते हैं। रात्रि का समय शरीर के लिए विश्राम का समय है। जब हम सोते हैं, तब भी शरीर काम कर रहा होता है। वह खुद को ठीक कर रहा होता है। रात्रि 11 बजे से प्रातः 3 बजे के बीच हमारे रक्त (Blood) का अधिकांश भाग यकृत, यानी लीवर की ओर केन्द्रित हो जाता है। यह समय शरीर की विषहरण प्रक्रिया का होता है। दिनभर शरीर में जो विषाक्त पदार्थ, रासायनिक अवशेष, या मानसिक तनाव के कारण उत्पन्न टॉक्सिन ज...

भक्ति में भावना, भावना में ध्यान, करवाचौथ बने जीवन का गान

Image Source: Google भारतीय सनातन संस्कृति में करवाचौथ का व्रत केवल एक पारंपरिक पर्व नहीं, अपितु प्रेम और चेतना का दिव्य उत्सव है। यह वह दिन है जब स्त्री अपने भीतर की ऊर्जा को श्रद्धा, संयम और सजगता के माध्यम से एक उच्च अवस्था में रूपांतरित करती है। उपवास का अर्थ केवल अन्न या जल का त्याग नहीं होता, अपितु अपनी इच्छाओं और इंद्रियों पर विजय पाने की साधना है। जब कोई भूख और प्यास को भी साक्षीभाव से देखता है, तो वह अपने भीतर यह अनुभव करता है कि वह शरीर नहीं है, अपितु उस शरीर को देखने वाली चेतना है। यह व्रत किसी बाहरी कर्मकांड की कठोरता नहीं, अपितु आंतरिक अनुशासन की कोमलता है। इसमें प्रेम का वह रूप प्रकट होता है, जो अधिकार से नहीं, समर्पण से उपजता है। सच्चे प्रेम में दासता नहीं होती, उसमें स्वतंत्रता की गंध होती है। जब कोई प्रेम में यह कहता है कि मैं तुम्हारे साथ जीवन के संगीत में एक सुर बनकर रहूँगा,  तब वह प्रेम किसी सीमित भावना से ऊपर उठकर ध्यान बन जाता है। यही इस व्रत का मर्म है, जहाँ प्रेम और ध्यान एक-दूसरे में विलीन हो जाते हैं। करवाचौथ की रात का सबसे सुंदर और आलोकित क्षण वह होता है ...

Book review: Sleep, Dreams & Spiritual Reflections: युवा जीवन में संतुलन और दिशा

यह पुस्तक “Sleep, Dreams & Spiritual Reflections” पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के वाङ्मय से संकलित अंग्रेज़ी अनुवाद है। इसमें नींद और स्वप्न जैसे साधारण प्रतीत होने वाले विषय की गहराई को आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि से उजागर किया गया है। आचार्यश्री ने इसे स्पष्ट किया है कि नींद केवल शरीर को विश्राम देने की जैविक प्रक्रिया नहीं, बल्कि यह मन को संतुलित करने, आत्मा को गहराई से जोड़ने और चेतना के विकास का माध्यम है। आज का युवा वर्ग सबसे अधिक तनाव, चिंता और अनिद्रा से प्रभावित है। देर रात तक मोबाइल और स्क्रीन पर उलझे रहना, प्रतियोगिता का दबाव और भविष्य की अनिश्चितताएँ उसकी नींद और स्वप्न दोनों को बाधित करती हैं। ऐसे समय में यह पुस्तक युवाओं के लिए विशेष प्रासंगिक बन जाती है क्योंकि यह उन्हें यह समझाती है कि नींद और स्वप्न केवल व्यर्थ का समय नहीं, बल्कि जीवन को दिशा देने वाले संकेत हैं। स्वप्न मनुष्य के अवचेतन और अचेतन मन की गतिविधियों का दर्पण हैं, जो आत्म-विश्लेषण और आत्म-विकास का अवसर प्रदान करते हैं। आचार्यश्री ने गीता और वेदांत की शिक्षाओं का उल्लेख करते हुए बताया है कि चेतना के ...

पद्धतियों से नहीं, प्रामाणिकता से जन्म लेती है शिक्षा

भारतीय शैक्षिक परंपरा में यह मान्यता रही है कि शिक्षा केवल सूचना का आदान-प्रदान नहीं है, बल्कि आंतरिक चेतना और दृष्टि का विस्तार है। इसी संदर्भ में जब “ब्रेकिंग द कैनन : आर्ट एंड डिज़ाइन पैडागॉजी और प्रैक्टिस में जेंडर इक्वैलिटी” जैसे कार्यक्रम सामने आते हैं,तो उनके उद्देश्य और लक्ष्य निस्संदेह प्रशंसनीय प्रतीत होते हैं, किंतु गहराई से विचार करने पर कुछ प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठते हैं। समानता का अनुभव केवल बाहरी प्रशिक्षण या रणनीति से संभव नहीं है। यह तो भीतर की सजगता और धारणाओं से मुक्ति से जन्म लेता है। यदि शिक्षक और विद्यार्थी अपनी जड़बद्ध धारणाओं से परे जाएँ,तभी वास्तविक समानता का वातावरण बन सकता है। कार्यशालाओं के माध्यम सेसमानता सिखाने की कोशिश अक्सर बौद्धिक अभ्यास भर रह जाती है। रचनात्मकता का स्वभाव स्वतंत्रता है। वह किसी सामाजिक या लैंगिक खाँचे में बंधकर प्रकट नहीं होती। जब कला और डिज़ाइन को केवल जेंडर के आधार पर समझने और परिभाषित करने का प्रयास किया जाता है, तो अनजाने में उसी सीमा को मज़बूत कर दिया जाता है जिसे तोड़ना उद्देश्य था। सृजन न पुरुष है, न स्त्री, यह भीतर की सहजता औ...

कश्मीर में पट्टिका विवाद: राजनीतिक नेतृत्व और संवैधानिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन चुनौतीपूर्ण

हाल ही में कश्मीर की हजरतबल दरगाह में हुई संगमरमर की पट्टिका विवाद ने एक बार फिर कश्मीर की राजनीति और राजनीतिक नेतृत्व की भूमिका पर सवाल खड़ा कर दिया है। यह विवाद किसी धार्मिक विषय का नहीं था, बल्कि प्रशासनिक सुधार और जीर्णोद्धार के दौरान स्थापित प्रतीक के इर्द-गिर्द घूमता नजर आया। इसके बावजूद, यह प्रकरण राजनीतिक बहस और बयानबाजी का केंद्र बन गया। राजनीतिक नेतृत्व की जिम्मेदारी इस विवाद में स्पष्ट रूप से देखने को मिली। नेताओं की प्रतिक्रियाएँ समय पर संतुलन और संवैधानिक दृष्टिकोण के बजाय केवल राजनीतिक दृष्टिकोण पर आधारित रही। यह घटना केवल प्रतीकात्मक मुद्दा नहीं था, बल्कि नेतृत्व की संवेदनशीलता, निर्णय क्षमता और लोकतांत्रिक जिम्मेदारी की परीक्षा बन गई। राजनीतिक नेतृत्व का प्रारंभिक रवैया विवाद के तुरंत बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस के वरिष्ठ नेता उमर अब्दुल्ला ने यह कहा कि दरगाह में प्रतीक लगाने की कोई आवश्यकता नहीं थी। वहीं, पीडीपी की महबूबा मुफ्ती ने इसे "भावनाओं से छेड़छाड़" करार दिया। इन प्रतिक्रियाओं ने स्पष्ट कर दिया कि राजनीतिक नेतृत्व ने मुद्दे को संवैधानिक या प्रशासनिक दृष्ट...

बटुए का आख़िरी बयान...आइए जाने!

Image Source: Google मैं हूँ – बटुआ। सही सुना आपने। कभी इस शानदार घर का सबसे कीमती साथी था मैं। जेब में मेरी मौजूदगी… मालिक और मालकिन को आत्मविश्वास देती थी। और आज?…  मैं कोने में पड़ा, धूल खा रहा हूँ। मुझे याद है वो गुजरे दिन… जब मेरे अंदर नोटों की चमचमाती गड्डियाँ रहती थीं। सिक्कों की खनक मेरी धड़कन थी… और हर बार जब मालिक मुझे खोलता था, तो मेरे अंदर एक ज़िंदगी बसती थी। लेकिन वक्त बदल गया। Paytm, Google Pay, PhonePe… सबने मिलकर मेरा अस्तित्व छीन लिया। अब दुकानदार छुट्टा पैसा नहीं माँगता बस कहता है ‘भैया QR स्कैन करो।’ और मैं बस चुपचाप यह सब देखता रह जाता हूँ। आज मैं सिर्फ़ कागज़ों और पुराने कार्डों का कब्रिस्तान बनकर रह गया हूँ। सच बताऊं तो नोटों की खुशबू चली गई, सिक्कों की खनक चली गई… और मेरे अंदर बस बासी पर्चियाँ और पुराने कार्ड बचे हैं। मालिक ने मुझे कभी छाती से लगाकर रखा था। आज वही कहता है... भाई जेब भारी हो जाती है, बटुआ घर पे रख दे। असल में… जेब भारी नहीं हुई, प्यार हल्का हो गया है। वो दूर नहीं जब मैं अलमारी में पड़ा-पड़ा ही भूल दिया जाऊँगा। और फिर कोई मुझे देखकर कहेगा ...