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फुलेरा के सचिव की कलम से, रिंकी के नाम एक Love Letter

 मेरी प्यारी रिंकी, काग़ज़ पर शब्द लिख रहा हूं, लेकिन हर शब्द के पीछे एक धड़कन है—मेरे दिल की धड़कन, जो अब तुम्हारे नाम से चलती है। कभी सोचा नहीं था कि फुलेरा जैसे छोटे से गांव में मेरी दुनिया बस जाएगी… और वो भी सिर्फ तुम्हारी वजह से। जब पहली बार सचिव बनकर यहां आया था, तो सब कुछ बेमानी लगता था—बिजली नहीं, चैन नहीं और न ही कोई अपनापन। हर दिन वीरान लगता था, जैसे ज़िंदगी रुक गई हो। लेकिन फिर अचानक जैसे किसी ने मेरी सूनी दुनिया में रंग भर दिए… और वो रंग "तुम" थी, रिंकी। वो दिन, वो टंकी, और तुम्हारी वो मासूम आवाज़— "हम हैं रिंकी, प्रधान जी की बेटी। यहां चाय पीने आए हैं।" उस एक पल में जैसे सारा गांव जगमगा उठा। तुम्हारी आंखों में वो सादगी, वो शरारत, वो गहराई… मेरे दिल को जैसे अपना घर बना गई। उस दिन से फुलेरा की हर गली में तुम्हारी हंसी गूंजती है, हर पेड़ की छांव में तुम्हारी मौजूदगी महसूस होती है। तुमसे बातें शुरू हुईं… कभी टंकी पर, कभी ऑफिस के बाहर, कभी बस यूं ही चलते-चलते। और वो छोटी-छोटी बातें कब मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी ज़रूरत बन गईं, मुझे खुद भी नहीं पता चला। जब तुम ...
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जहाँ लौकी बोलती है, वहाँ कुकर फटता नहीं, पंचायत ने बता दिया, कहानी कहने के लिए कपड़े उतारने की ज़रूरत नहीं होती

आज के दौर में सिनेमाई कहानी कहने की दुनिया जिस मार्ग पर चल पड़ी है, वहाँ पटकथा से ज़्यादा त्वचा की परतों पर कैमरा टिकता है। नायक और नायिका के संवादों की जगह ‘सीन’ बोलते हैं और भावनाओं की जगह अंग प्रदर्शन ‘व्यू’ बटोरते हैं। इसे नाम दिया गया है ‘क्रिएटिव फ्रीडम’।  वेब सीरीजों के लिए बड़े बड़े बजट, चमकदार चेहरे और नग्न दृश्य अब ‘रियलिज़्म’ का नकली नकाब ओढ़ कर दर्शकों को भरमाते हैं। मगर इस सब के बीच अगर कोई सीरीज़ बिना चीखे, बिना झूठे नारे, और बिना कपड़े उतारे भी सीधे दिल में उतर जाए — तो वो "पंचायत" वेब सीरीज है। TVF की यह अनोखी पेशकश इस धारणा को चुनौती देती है कि दर्शकों को केवल ‘बोल्डनेस’ ही चाहिए। पंचायत ने बता दिया कि अगर आपकी कहानी सच्ची हो, तो सादगी ही सबसे बड़ी क्रांति बन जाती है। हालिया रिलीज "पंचायत" उन कहानियों के लिए एक तमाचा है जो यह मानकर चलती हैं कि जब तक किरदार बिस्तर पर नहीं दिखेंगे, तब तक दर्शक स्क्रीन पर नहीं टिकेगा। पंचायत दिखाती है कि गाँव की सबसे बड़ी लड़ाई किसी बिस्तर पर नहीं, बल्कि पंचायत भवन के फर्श पर लड़ी जाती है, कभी लौकी के नाम पर, तो कभी कु...

व्यंग्य: सपनों का पेट, हकीकत का गिटार? कब बजेगी फिटनेस की तार?

हमारे समाज में फिटनेस अब एक नए 'संस्कार' के रूप में लोगों के दिमाग बैठ चुकी है। हर व्यक्ति इस राह पर चलने लगा है, जहां "प्रोटीन शेक्स" को आशीर्वाद की तरह लिया जाता है और वजन घटाने वाले डाइट प्लान को किसी शास्त्र की तरह माना जाता है। लेकिन हम सब जानते हैं कि फिटनेस की इस धारणा में कुछ बातें इतनी सरल नहीं हैं जितनी कि ये दिखती हैं। । खासकर जब हम 'पेट' जैसे जटिल विषय पर बात करें। तो आज हम इसी पेट के इर्द-गिर्द एक मजेदार और व्यंग्यपूर्ण यात्रा पर निकलते हैं, जिसमें फिटनेस की बात होगी, लेकिन चुटीले अंदाज में!  बढ़ता हुआ पेट और समाज का प्यारभरा आशीर्वाद सबसे पहले तो एक सवाल– क्या आपने कभी सोचा है कि पेट बढ़ता क्यों है? यह हमारे समाज का आशीर्वाद है। हां, यही बात है। शादी के बाद लोग तुरंत पूछते हैं, "अरे! पेट कब आएगा?" जब आपके पेट पर थोड़ा सा भी 'संकेत' मिलता है, तो समाज में हर व्यक्ति फिटनेस गुरू बन जाता है। पड़ोसी आंटी से लेकर ऑफिस के सहकर्मी तक, सब आपको हेल्दी डाइट प्लान और व्यायाम के सुझाव देने लगते हैं। और अगर आप जिम जाने का इरादा भी करते हैं,...

क्या भारत की ‘चिकन नेक’ को घेरने की साजिश कर रहा है चीन?

खतरनाक और चिंताजनक घटनाक्रम सामने आ रहा है। बांग्लादेश के लालमोनिरहाट जिले में स्थित एक पुराना, निष्क्रिय वर्ल्ड वॉर-2 का एयरबेस अचानक चर्चा में है — और वजह है चीन की उसमें दिलचस्पी। यह एयरबेस भारत की सीमा से महज़ 12 से 15 किलोमीटर और हमारे अत्यंत संवेदनशील "सिलीगुड़ी कॉरिडोर" (चिकन नेक) से मात्र 135 किलोमीटर दूर है। सिलीगुड़ी कॉरिडोर, यानी भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाली बेहद पतली पट्टी — केवल 22 किलोमीटर चौड़ी — हमारी भौगोलिक जीवनरेखा है। अगर यह कॉरिडोर किसी भी कारण से अवरुद्ध हुआ, तो असम, अरुणाचल, नागालैंड, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, मेघालय और सिक्किम से भारत का ज़मीनी संपर्क टूट सकता है। ऐसे में, चीन और पाकिस्तान जैसे देशों की दिलचस्पी इस क्षेत्र में खतरनाक संकेत देती है। लालमोनिरहाट एयरबेस का इतिहास इस एयरबेस को 1931 में ब्रिटिश हुकूमत ने बनाया था। द्वितीय विश्व युद्ध में यह एक अग्रिम मोर्चा था। विभाजन के बाद यह पाकिस्तान के अधीन गया और 1958 में थोड़े समय के लिए नागरिक उपयोग में आया, लेकिन फिर निष्क्रिय हो गया। 2019 में बांग्लादेश सरकार...

The Hindu और The New Indian Express की पक्षपाती पत्रकारिता पर सवाल: आतंकियों के नरसंहार पर भी एजेंडा?

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में  हिंदुओं के सुनियोजित नरसंहारने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। मज़हबी आतंकियों ने हिन्दू तीर्थयात्रियों से पहले उनका धर्म पूछा, नाम पूछा, कुछ से कपड़े उतरवाए और फिर केवल पुरुषों को गोली मार दी। कई परिवारों ने अपने प्रियजनों को अपनी आंखों के सामने मरते देखा, लेकिन कुछ मीडिया संस्थानों ने इस बर्बर हमले की सच्चाई को छिपाने और उसका राजनीतिकरणकरने की कोशिश की। सबसे चौंकाने वाला व्यवहार द न्यू इंडियन एक्सप्रेस  और The Hindu जैसे तथाकथित प्रतिष्ठित अखबारों ने दिखाया है। इन दोनों मीडिया संस्थानों ने न केवल नरसंहार की गंभीरता को कमतर दिखाया, बल्कि संदेहास्पद तर्कों और पाकिस्तान समर्थक नैरेटिव को आगे बढ़ाया। The New Indian Express की नीना गोपाल ने तो  "क्या पहलगाम जाफर एक्सप्रेस अपहरण का बदला है?" जैसे अजीबो-गरीब शीर्षक के साथ एक लेख लिख डाला। इस लेख में उन्होंने कश्मीर के हिंदू नरसंहार को पाकिस्तान के बलूचिस्तान में हुए हमले के प्रतिकारक घटना के रूप में चित्रित करने की घिनौनी कोशिश की है। यह न केवल पत्रकारिता की मूल आत्मा के खिलाफ है, बल्कि यह भार...

घास की चाय! वाह!वाह

घास की चाय! वाह!वाह "निम्बूक तृणम" से बनी यह चाय पूरी तरह से प्राकृतिक है। इसमें तृण तथा पानी के अलावा और कुछ नहीं है। इसका शानदार अरोमा है। सेहत के लिए भी कई फायदे बताये जाते हैं। दो-तीन दिन पीने से ही आपको फर्क दिखने लगता है।  विधि जंगल में घूमने जाएं और अगर यह घास दिखती है तो इसके सिर्फ चार नवतृणों को खींचकर निकाल लें। घर लाकर धोयें और तृणों के निचले हिस्से को धनिये की तरह काट लें। इस बीच केतली में डेढ़ कप पानी उबलने के लिए रख दें। फिर इन टुकड़ों को कैटल के पानी में डाल दें। पूरा किचन एक शानदार हल्की हल्की खुशबू से भर जाएगा। पांच मिनट तक उबलने दें, फिर कप में छान लें। आपकी निम्बूक तृणम चाय तैयार है।  इसके फायदे मैं नहीं बताऊंगा। यह बताना रासायनविदों का काम है। हां यह अवश्य बताऊंगा कि किसी को इससे एलर्जी भी हो सकती है। इसलिए शुरुआत बहुत थोड़ी मात्रा से करें। अगर फायदा महसूस हो तो रोज सुबह एक कप पी सकते हैं। इस चर्चा में एक और बात बताना जरूरी लग रहा है कि "तृणसी" शब्द संस्कृत का है और घास शब्द "प्राकृत" से निकला है। प्राकृत का मूल शब्द है "घस", ...

मस्ती और रंगों का महापर्व है होली

भारत में होली का पर्व हर्षोल्लास का पर्व है। सभी लोग छोटे-बड़े का भेद भुलाकर पूरे उत्साह, उल्लास और मस्ती से यह रंगों का पर्व मनाते हैं। भारतीय सनातन परम्परा के अनुसार यह एक यज्ञीय पर्व है। इस समय नई फसल पकने लगती हैं, उसके उल्लास में सामूहिक यज्ञ के रूप में होली जलाकर नये अन्न की यज्ञ मे आहुतियां देकर बाद में उपयोग में लाते हैं। कृषि प्रधान देश की यज्ञीय संस्कृति के सर्वथा अनुकूल यह परिपाटी बनाई गई है। होली के पर्व को लेकर उत्साह होना स्वाभाविक है। इसका नाम न केवल सबके मन को अपने रंग से भरता है बल्कि डुबा भी देता है। हृदय के अन्तराल में सहानुभूति और प्रेम के अविरल स्रोत खुलने लगते हैं। ये उमंग की तरंगें जिस के भी दिल को छूती हैं, उसे ऐसा लगता है कि जैसे वह खुशी से झूम रहा है। इस पर्व का उल्लास महासिंधु की तरह हैं जिसमें हर कोई डुबकी लगाने को उत्सुक रहता। कुछ ऐसा लगता है जैसे जीवन में नई उम्मीदों की शाखाएं फूट पड़ी हो। हमारा मन आकुल होने लगता है- मस्ती में उमगते हुए इस उल्लास को बांटने के लिए बस क्या क्या न कर डालूं। होली के पर्व पर यही व्याकुलता सभी को व्याकुल करने लगती है। रंगो की मस्त...