घास की चाय! वाह!वाह
"निम्बूक तृणम" से बनी यह चाय पूरी तरह से प्राकृतिक है। इसमें तृण तथा पानी के अलावा और कुछ नहीं है। इसका शानदार अरोमा है। सेहत के लिए भी कई फायदे बताये जाते हैं। दो-तीन दिन पीने से ही आपको फर्क दिखने लगता है।
विधि
जंगल में घूमने जाएं और अगर यह घास दिखती है तो इसके सिर्फ चार नवतृणों को खींचकर निकाल लें। घर लाकर धोयें और तृणों के निचले हिस्से को धनिये की तरह काट लें। इस बीच केतली में डेढ़ कप पानी उबलने के लिए रख दें। फिर इन टुकड़ों को कैटल के पानी में डाल दें। पूरा किचन एक शानदार हल्की हल्की खुशबू से भर जाएगा। पांच मिनट तक उबलने दें, फिर कप में छान लें।
आपकी निम्बूक तृणम चाय तैयार है।
इसके फायदे मैं नहीं बताऊंगा। यह बताना रासायनविदों का काम है। हां यह अवश्य बताऊंगा कि किसी को इससे एलर्जी भी हो सकती है। इसलिए शुरुआत बहुत थोड़ी मात्रा से करें। अगर फायदा महसूस हो तो रोज सुबह एक कप पी सकते हैं।
इस चर्चा में एक और बात बताना जरूरी लग रहा है कि "तृणसी" शब्द संस्कृत का है और घास शब्द "प्राकृत" से निकला है। प्राकृत का मूल शब्द है "घस", जिसका अर्थ है खाना।
इसी घस से घास और अंग्रेजी का ग्रास बना है।
आश्चर्य की बात यह है कि अंग्रेजी का "ग्रास" लैटिन से नहीं निकला है। लेटिन में तो घास को "पोएसी" कहा जाता है। घास के मैदान को "प्रियाता" कहते हैं और "ग्रास" शब्द उसके आसपास भी नहीं है।
"घस" का अर्थ खाना, यह बताता है कि "घास" ही कभी इंसान का मुख्य भोजन थी। सारे मिलेट्स किसी न किसी प्रकार की घास के ही बीज हैं। बाजरा, रागी, श्यामक आदि घास की ही अलग अलग प्रजातियां हैं।
डायट विशेषज्ञ दावा करते हैं कि मिलेट्स में हमारे डीएनए को रिपेयर करने की भी क्षमता है। यह बात भी संकेत देती है कि इंसान का विकास सभी शाकाहारी मेमल्स और एवेस की तरह घास के मैदानों में हुआ है। वही उसका भोजन था। चिड़ियों की तरह हमने घास के बीज खाना सीखा। हमारा डीएनए विकसित होता गया मगर आज भी उसे अपनी रिपेयरिंग के लिए मूल तत्व मिलेट्स से मिलते हैं।
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