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Showing posts from 2019

बेमौसम की बारिस

बेमौसम बारिस की सुगबुगाहट कुछ यूं शुरू होती है और भीनी-भीनी ठंडी के एहसास के साथ हल्की सी बूंदाबांदी के साथ पॉल्युशन तो कम हो जाता है लेकिन किसान की शान में कर देती है गुस्ताख़ी बेमौसम की बारिश अलसायी हुई अधखुली आंखें देखती हैं खिड़की से बाहर  तेज पानी की धार साथ में ओलों की मार कहीं खुशी कहीं गम दे जाती ही बेमौसम की बारिश सूर्य देव को इंद्र ने दे दिया इतना अर्ध्य वह भी कर रहे हैं अब लुका-छिपी का खेल यहाँ तो घर में गरम चाय की चुस्कियां वहां खेत पर मेंढ़ पर बेमौसम की मार से अन्नदाता ले रहा है सिसकियां रघुनाथ यादव

राजनैतिक हमाम में सभी पार्टियां नंगी

इलेक्टोरल बॉन्ड के बारे  में देश का प्रत्येक नागरिक जानना चाहता है आखिर इन राजनैतिक पार्टियों के पास इतना पैसा आता कहाँ से है? मुझे आज तक ऐसा आदमी नहीं मिला जिसने किसी नेता या पार्टी को चंदा दिया हो। पार्टियां इलेक्टोरल बॉन्ड को पारदर्शी नहीं बनाना चाहती। इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीतिक पार्टियों को चुनावी चंदा मिलता है। इसे लेकर विवाद होता रहा है। दरअसल किसी भी राजनीतिक दल को मिलने वाले चंदे को इलेक्टोरल बॉन्ड कहा जाता है। पार्टियां एक हज़ार, दस हज़ार, एक लाख, दस लाख और एक करोड़ रुपए तक का बॉन्ड ले सकती हैं। लेकिन, नागरिकों को पूरी जानकारी नहीं देना चाहती। मजेदार बात यह है कि दान देने वालों की पहचान तक गुप्त रखी जाती हैं। पुराने लोग बताते हैं कि पहले सभी दलों के कार्यकर्त्ताओं को रसीद बुक दी जाती थी। फिर उनके समर्थक घर-घर जाकर आम लोगों से चंदा मांगा करते थे और उस समय छोटी-छोटी राशि में मिलने वाले चंदे की  काफी अहमियत होती थी। समय बदला। चंदा देने वालों की सोच बदली, फिर उन्होंने सोचा क्यों न हम नेतागीरी में साथ आजमाएं। फिर यहीं से धनवानों का राजनीतिक मैदान में पदार्पण हु...

अमर रह गया राम-रावण का अपराजेय समर

राम की शक्ति पूजा रवि हुआ अस्त ज्योति के पत्र पर लिखा अमर रह गया राम-रावण का अपराजेय समर। आज का तीक्ष्ण शरविधृतक्षिप्रकर, वेगप्रखर, शतशेल सम्वरणशील, नील नभगर्जित स्वर, प्रतिपल परिवर्तित व्यूह भेद कौशल समूह राक्षस विरुद्ध प्रत्यूह, क्रुद्ध कपि विषम हूह, विच्छुरित वह्नि राजीवनयन हतलक्ष्य बाण, लोहित लोचन रावण मदमोचन महीयान, राघव लाघव रावण वारणगत युग्म प्रहर, उद्धत लंकापति मर्दित कपि दलबल विस्तर, अनिमेष राम विश्वजिद्दिव्य शरभंग भाव, विद्धांगबद्ध कोदण्ड मुष्टि खर रुधिर स्राव, रावण प्रहार दुर्वार विकल वानर दलबल, मुर्छित सुग्रीवांगद भीषण गवाक्ष गय नल, वारित सौमित्र भल्लपति अगणित मल्ल रोध, गर्जित प्रलयाब्धि क्षुब्ध हनुमत् केवल प्रबोध, उद्गीरित वह्नि भीम पर्वत कपि चतुःप्रहर, जानकी भीरू उर आशा भर, रावण सम्वर। लौटे युग दल। राक्षस पदतल पृथ्वी टलमल, बिंध महोल्लास से बार बार आकाश विकल। वानर वाहिनी खिन्न, लख निज पति चरणचिह्न चल रही शिविर की ओर स्थविरदल ज्यों विभिन्न। प्रशमित हैं वातावरण, नमित मुख सान्ध्य कमल लक्ष्मण चिन्तापल पीछे वानर वीर सकल रघुनायक आगे अव...

I Wandered Lonely as a Cloud (Daffodils)

     "I Wandered Lonely as a Cloud"            By William Wordsworth "I Wandered Lonely as a Cloud"  (Also commonly known as 'Daffodils' is a lyric poem Written by William Wordsworth. It is Wordsworth's most famous work in the Galaxy of English Poetry. I wandered lonely as a cloud That floats on high o'er vales and hills, When all at once I saw a crowd, A host, of golden daffodils; Beside the lake, beneath the trees, Fluttering and dancing in the breeze. Continuous as the stars that shine And twinkle on the milky way, They stretched in never-ending line Along the margin of a bay: Ten thousand saw I at a glance, Tossing their heads in sprightly dance. The waves beside them danced; but they Out-did the sparkling waves in glee: A poet could not but be gay, In such a jocund company: I gazed—and gazed—but little thought What wealth the show to me had brought: For oft, when...

हारिये न हिम्मत

हारिये न हिम्मत: पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य https://youtu.be/4HgiwE5s794 दूसरे के छिद्र देखने से पहले अपने छिद्रों को टटोलो। किसी और की बुराई करने से पहले यह देख लो कि हम में तो कोई बुराई नहीं है। यदि हो तो पहले उसे दूर क रो। दूसरों की निन्दा करने में जितना समय देते हो उतना समय अपने आत्मोत्कर्ष में लगाओ। तब स्वयं इससे सहमत होंगे कि परनिंदा से बढऩे वाले द्वेष को त्याग कर परमानंद प्राप्ति की ओर बढ़ रहे हो। संसार को जीतने की इच्छा करने वाले मनुष्यों! पहले अपने केा जीतने की चेष्टा करो। यदि तुम ऐसा कर सके तो एक दिन तुम्हारा विश्व विजेता बनने का स्वप्न पूरा होकर रहेगा। तुम अपने जितेंद्रिय रूप से संसार के सब प्राणियों को अपने संकेत पर चला सकोगे। संसार का कोई भी जीव तुम्हारा विरोधी नहीं रहेगा

आज के ही दिन 11 सितंबर 1893 को अमेरिका में स्वामी विवेकानंद ने दिया था ऐतिहासिक भाषण

गुरुदेव रविंद्र नाथ ठाकुर ने कहा था कि अगर भारत को समझना हो तो स्वामी विवेकानंद को पढ़ना पड़ेगा।  11 सितंबर 1893 को अमेरिका के शहर शिकागो में विश्व धर्म संसद का आयोजन हुआ।  इस सम्मेलन में भारत से स्वामी विवेकानंद भी शामिल हुए। अंग्रेजों के गुलाम देश भारत के बारे में पश्चिमी देशों को बेहद कम जानकारी थी। (तब गूगल नहीं था) स्वामी विवेकानंद के उस संबोधन ने भारत और हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व कुछ ऐसे किया कि आज 126 साल बीत जाने के बाद भी हम उसकी चर्चा कर रहे हैं. दुनिया के संभवत: सबसे ज्यादा पसंद किए गए और प्रभावी भाषणों में स्वामी विवेकानंद का यह भाषण शीर्ष पर विराजमान है.  11 सितंबर 1893 को स्वामी विवेकानंद का पूरा भाषण  पढ़िए. “अमेरिका के बहनो और भाइयो , आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। मैं आपको दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं। मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओ...

फिल्म समीक्षाः मनोरंजन के साथ समाज को संदेश भी देती है फिल्म "छिछोरे"

✍️...रघुनाथ यादव इनसान की ज़िन्दगी में हार और जीत में अधिक अंतर नहीं होता। जीवन में विजेता बनने की सभी कोशिश करते हैं। और करनी भी चाहिए। एक हार से ज़िन्दगी खत्म नहीं होती। विफलता का सामना करने का साहस होना चाहिए। लेकिन कहानी घर परिवार से लेकर सगे-संबंधी एक ही पक्ष पर बातें करते हैं। साहस के साथ विफलता का सामना कैसे करें इस बात पर चर्चा नहीं होती। इसके बाद जो परिणाम होते हैं , उस सब से हम बाकिफ हैं। निर्देशक नितेश तिवारी की " छिछोरे " फिल्म यही संदेश देती है। फिल्म " छिछोरे " की कहानी हॉस्टल लाइफ की है , जिसमें कई परतें हैं। और इन्हीं परतों से हर कोई अपने आप को किसी न किसी लेयर के साथ कनेक्ट करेगा। चाहे वह स्कूली दिनों की छिछोरी यादें हों , साथियों पर मर-मिटने की बात हो , बच्चों के लालन-पालन की बात हो , मेधावी छात्रों पर प्रतियोगी परीक्षा में सिलेक्ट होने का प्रेशर हो या तलाकशुदा पति-पत्नी के बीच का ईगो। फिल्म में सात दोस्तों की कहानी है , जो स्कूली दिनों से ही दोस्त हैं। लम्बे समय से जुदा रहने के बाद भी उनका दोस्ताना कायम है। हॉस्टल लाइफ ...

आँख क्यों बन्द है?

जीवन और मौत का विधान है हर इनसान के लिए फरमान एक है हर किसी के पोर पोर में बसा भगवान एक है इस धरा पर सबका खुदा एक है सबके अन्दर रक्त, मास और खाल एक है हर इनसान के दिल की धड़कन एक है आखिर कौन इंसानियत का खून का प्यासा बना है कौन बर्बादी का सरताज बनना चाह रहा है दुराचारियों का मददगार कौन है संस्कृति का भक्षक कौन है जानते हम सब हैं लेकिन ज़ुबान बंद है आज देखते हुए भी सबकी आँख क्यों बंद है रघुनाथ यादव

शिक्षक दिवस विशेष:

विद्यार्थी किसी भी राष्ट्र की अमूल्य निधि होते हैं। उनका सही मार्गदर्शन करना शिक्षकों का दायित्व है। छात्र राष्ट्र के भाग्य विधाता होते हैं। उनमें नैतिक, सामाजिक और आद्यात्मिक मूल्यों का विकास करना शिक्षकों की ही कर्तव्य हैं 1962 में जब राधाकृष्णन ने राष्ट्रपति का पद ग्रहण किया था। उसी साल से उनके सम्मान में उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा । हमारे देश में 5 सितंबर शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह खास दिन राष्ट्र निर्माण में टीचर्स के योगदान के लिए उनके सम्मान में सेलिब्रेट किया जाता है। हर कोई अपने-अपने तरीके अपनी जिंदगी में शिक्षकों के योगदान के लिए उन्हें आभार जताता है। हमारे देश में वर्ष 1962 से 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है। शिक्षक दिवस पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती के मौके पर मनाया जाता है। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर,1888 में आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु राज्यों की सीमा के पास मद्रास प्रेसीडेंसी में एक मध्यम वर्ग के तेलुगु ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वे एक जमींदारी में तहसीलदार, वीरा समैया के दूस...

बिना कीमत चुकाए ही मिलता है आनंद

यदि किसी ने जीवन में दु:ख ही दु:ख पाया है, तो उसने बड़ी मेहनत की होगी प्राप्त करने के लिए, कठिन परिश्रम किया होगा, बहुत बड़ी साधना की होगी, तपश्चर्या की गई होगी! ज़िन्दगी में अगर दु:ख ही दु:ख पाया है, तो बड़ी कुशलता अर्जित की होगी! इंसान को दु:ख कुछ ऐसे नहीं मिलता, ये फ्री में नहीं मिलता है।  मनुष्य को दु:ख के लिए बहुत बड़ी कीमत अदा करनी पड़ती है। संसार में आनंद तो यूं ही प्राप्त हो जाता है,  बिना मूल्य चुकाए मिलता है, क्योंकि आनंद स्वभाव है। इंसान को दु:ख अर्जित करना पड़ता है। साथ ही, दु:ख अर्जित करने का पहला नियम क्या है?  यदि इंसान सुख मांगे तो  दु:ख मिलता है।  यदि आप सफलता मांगो, असफलता  मिलेगी। यदि आप सम्मान मांगोगे, तो आपको अपमान, तिरस्कार मिलेगा। आप जो कुछ मांगोगे उससे उल्टा ही मिलेगा। आप जो चाहोगे उससे अक्सर उसके विपरीत घटित होगा। संसार का नियम है कि यह आपकी मर्जी के अनुसार नहीं चलता है। और यह चलता है तो सिर्फ और सिर्फ उस परमसत्ता की मर्जी से। आप अपनी मर्जियों को हटाओ! स्वमं को हटाओ! उसकी मर्जी पूरी होने दो। फिर दु:ख भी अगर हो, तो दु:ख माल...

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष: नन्द के आनन्द भयो जय कन्हैया लाल की

भगवान श्रीकृष्ण और राधा जी। भगवान श्रीकृष्ण पूर्ण प्रेम के प्रतीक हैं। हमारी भारतीय संस्कृति में कृष्ण का जन्मदिवस जिसे हम जन्माष्ठमी के नाम से मनाते आए हैं। उनका जन्मदिन लोगों में उत्साह, उल्लास और उमंग भर जाता है। वे हमारी संस्कृति की धुरी हैं।  भगवान श्री कृष्ण निष्काम कर्मयोगी, एक आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्जित महान पुरुष हैं। उनका जन्म द्वापरयुग में हुआ। उनको इस युग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष युगपुरुष या युगावतार का स्थान दिया गया है। श्रीकृष्ण सोलह कलाओं से पूर्ण अवतारी हैं। अत्याचार और अनाचार भरे युग में अधर्म के नाश व धर्म की स्थापना के लिए वे माता देवकी व वासुदेव के यहां प्रकट होते हैं। उनका जीवन अनेक पड़ावों से होकर गुजरता है। भारत भूमि पर धर्म की रक्षा के लिए वे जन्म लेते हैं। उन्होंने जीवन की हर कठिनाई से डटकर मुक़ाबला किया। मनुष्य का जीवन जब झंझावतों से भर जाता है, चारों ओर निराशा का माहौल दिखता है, जिंदगी नीरस लगने लगती है, तब उनके उपदेश एक नया रास्ता दिखाते हैं। आज भी उनके आदर्श हमारे जीवन की डूबती पतझार में एक सहारा हैं। भगवान श्री कृ...

जन्मदिन विशेष: आध्यात्मिक क्रांति की पहली चिंगारी थे महर्षि अरविन्द

अरविन्द आध्यात्मिक क्रां‍ति की पहली चिंगारी थे। वे बंगाल के महान क्रांतिकारियों में से एक थे। क्रांतिकारी महर्षि अरविन्द का जन्म 15 अगस्त 1872 को कोलकाता में हुआ था। उनके पिता केडी घोष एक डॉक्टर तथा अंग्रेजों के प्रशंसक थे। पिता अंग्रेजों के प्रशंसक लेकिन उनके चारों बेटे अंग्रेजों के लिए सिरदर्द बन गए। उन्हीं के आह्वान पर हजारों बंगाली युवकों ने देश की स्वतंत्रता के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदों को चूम लिया था। सशस्त्र क्रांति के पीछे उनकी ही प्रेरणा थी। श्री अरविन्द जब सात वर्ष के थे, तब उन्हें शिक्षा के लिए अपने भाइयों के साथ इंग्लैंड भेजा गया। यहां पर वे 14 वर्ष तक रहे। वहां उन्होंने ग्रीक, लैटिन, फ्रेंच, जर्मन, इटैलिन स्पेनिश आदि भाषाओं का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया इसके पश्चात उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र की पढ़ाई की। वे आईसीएस अधिकारी बनना चाहते थे जिसके लिए उन्होंने भरपूर कोशिश की, पर वे अनुत्तीर्ण हो गए। बड़ौदा से कोलकाता आने के बाद महर्षि अरविन्द आजादी के आंदोलन में उतरे। कोलकाता में उनके भाई बारिन ने उन्हें बाघा जतिन, जतिन बनर्जी और सुरेन्...

Meditation and its benifits

  conscious realm directing them in such a way that you gradually transcend the everyday level of consciousness. Man today is living a life of utter chaos. After witnessing and encountering achievements of Science as materialistic means to give him utmost satiety as far as sensual pleasure is concerned, he finds himself at crossroads with no relief from dynamics of today giving him stress and strains. Stress is a menace today killing silently maximum no of persons in society through psychosomatic ailments. Stress is inevitable and each and everyone have to face it in day to day life. Stress free life should never be imagined, as man is born out of stress only. Yogis and Sages of east knew this and they devised spiritual disciplines to modify stress, a physiological phenomenon, constructively, into a source of energy by harnessing dormant storehouse of pranashakti- kundalini  (the serpentine fire ) Stress survival is something which eastern mysticism and spirituality me...

देवर्षि नारद जयंती : पत्रकारिता की राह दिखाते हैं 'नारद'

देवऋषि नारद  देवर्षि नारद का नाम सुनते ही मन में सीरियल वाले नारद जी की छवि दिमाग में आ जाती है। आम लोग प्रायः नारद को एक जगह की बात दूसरी जगह कहने वाले के रूप में ही जानते हैं। फिल्मों और नाटकों में उन्हें सही तरके से पेश नहीं किया गया। यदि आप नारद जी का बारीकी से अध्ययन करेंगे तो , आपको एक अलग ही छवि मिलेगी। 09/05/2020 को 'दैनिक क्रांति जागरण' समाचार पत्र में संपादकीय पेज पर प्रकाशित देवर्षि नारद का हर एक संवाद लोक कल्याण और परोपकार के लिए होता था। देवर्षि नारद इधर-उधर घूमते हुए संवाद-संकलन का कार्य निष्पक्षता से करते थे। वे घूम-घूम कर सक्रिय और सार्थक संवाददाता की भूमिका निभाते थे। नीर-क्षीर-विवेक से सूचनाओं को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाना उनका धर्म था। देवर्षि नारद को पत्रकारिता का आदि पुरुष कहा जाता है। वे देवर्षि ही नहीं दिव्य पत्रकार भी हैं। नारद जी  की गंभीर प्रस्तुति ‘नारद भक्ति सूक्ति’ में देखने को मिलती है। समय-समय पर जिसकी व्याख्या अनेक विद्वानों ने भी की है। नारद जी की लोकछवि जैसी बनी और बनाई गई है, वे उससे सर्वथा अलग हैं। उनकी लोकछवि झगड़ा लगाने ...