Skip to main content

तकनीक के पंख लगा कर सुदूर इलाकों में पहुंच रही है शिक्षा

ग्रेटर नोएडा, 22 अप्रैल। संचार तकनीक ने शिक्षा को पंख दे दिए हैं। इसके जरिए ज्ञान देश के दूर-दराज के इलाकों तक पहुंच रहा है। लोग अपने अपने मनचाहे शिक्षक से घर बैठे विधिवत ज्ञान पा रहे हैं। विजुअल्स (दृश्य कथ्य) के कारण आम लोगों की इस ज्ञान में रुचि बढ़ी है। लोगों की भागीदारी के चलते देश में ऑन लाइन शिक्षण प्रदान कर रहा ‘स्वयं’ (स्टडी वेब्स फॉर एक्टिव लर्निंग ऑफ यंग एंड एस्पायरिंग माइंड्स) आज विश्व में पहले स्थान पर आ गया है। 

यह बात सोमवार को नोयडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ एजुकेशन और राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (एनआईओएस) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एक कार्यशाला में एनआईओएस के चेयरमैन प्रो. चंद्र भूषण शर्मा ने कही। मुख्य अतिथि के तौर पर उन्होंने बताया कि यह मैसिव ओपन ऑन लाइन कोर्सेस (मूक) के जरिए विद्यार्थी ही नहीं शिक्षक भी लाभान्वित हो रहे हैं। ‘स्वयं’ इसका सबसे बड़ा प्लेटफॉर्म है। हाल ही में एनआईओस ने ‘स्वयं’ के जरिए 15 लाख शिक्षकों को प्रशिक्षण दे कर कीर्तिमान स्थापित किया है।

ऑन लाइन शिक्षण पर आयोजित इस कार्यशाला में विवि के कुलपति डॉ आर डी शर्मा ने कहा कि मौजूदा विश्वविद्यालय तंत्र और ऑन लाइन शिक्षण दोनों के साथ आने से ही ज्ञान क्रांति संभव है। उन्हांंने कहा विश्वविद्यालय के शिक्षक पहले ही ‘स्वयं’ के जरिए अपना ज्ञान देश के कोने-कोने तक पहुंचा रहे हैं। एनआईओएस के सहयोग के जरिए इस काम को और गति मिलेगी।

विवि के रजिस्ट्रार डॉ. जयानन्द ने कहा कि नोयडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी तकनीक के जरिए शिक्षा को अत्याधुनिक बनाने के लिए संकल्पित है। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय में बीस प्रतिशत शिक्षण की सुविधा ऑन लाइन पाठ्यक्रमों के जरिए दी है।

तकनीकी सत्र में एनआईओएस के डायरेक्टर एस.के प्रसाद ने बताया कि भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 1989 का उद्देश्य देश के दूर-दराज क्षेत्रों के छात्रों को सस्ती शिक्षा सभी को सुलभ कराना है। आज देश में हमारे 22 रीजनल सेंटर तथा 6500 स्टडी सेंटर हैं। जिनमें प्रति वर्ष 5.50 लाख स्टूडेंट्स नामांकन कराते हैं। 
उन्होंने आगे बताया कि कोई भी छात्र ‘स्वयं’ (स्टडी वेब्स फॉर एक्टिव लर्निंग ऑफ यंग एंड एस्पायरिंग माइंड्स) के प्लेटफॉर्म पर जाकर अपना रजिस्ट्रेशन कर सकता है। कार्यक्रम का संचालन विवि के स्कूल ऑफ एजुकेशन की निदेशक प्रोफेसर (डॉ.) मीना भण्डारी ने किया। कार्यक्रम सचिव का दायित्व डा. निशि त्यागी ने निभाया। कार्यक्रम की आयोजन समिति में डॉ. सैयद फहर अली, अभिषेक सक्सेना, डा. पूजा गुप्ता शामिल थे। कार्यक्रम में विभिन्न विभागों के निदेशक, विभागाध्यक्षों, अध्यापकों एवं विभिन्न विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों ने शिरकत की।

Comments

Popular posts from this blog

व्यंग्य: सपनों का पेट, हकीकत का गिटार? कब बजेगी फिटनेस की तार?

हमारे समाज में फिटनेस अब एक नए 'संस्कार' के रूप में लोगों के दिमाग बैठ चुकी है। हर व्यक्ति इस राह पर चलने लगा है, जहां "प्रोटीन शेक्स" को आशीर्वाद की तरह लिया जाता है और वजन घटाने वाले डाइट प्लान को किसी शास्त्र की तरह माना जाता है। लेकिन हम सब जानते हैं कि फिटनेस की इस धारणा में कुछ बातें इतनी सरल नहीं हैं जितनी कि ये दिखती हैं। । खासकर जब हम 'पेट' जैसे जटिल विषय पर बात करें। तो आज हम इसी पेट के इर्द-गिर्द एक मजेदार और व्यंग्यपूर्ण यात्रा पर निकलते हैं, जिसमें फिटनेस की बात होगी, लेकिन चुटीले अंदाज में!  बढ़ता हुआ पेट और समाज का प्यारभरा आशीर्वाद सबसे पहले तो एक सवाल– क्या आपने कभी सोचा है कि पेट बढ़ता क्यों है? यह हमारे समाज का आशीर्वाद है। हां, यही बात है। शादी के बाद लोग तुरंत पूछते हैं, "अरे! पेट कब आएगा?" जब आपके पेट पर थोड़ा सा भी 'संकेत' मिलता है, तो समाज में हर व्यक्ति फिटनेस गुरू बन जाता है। पड़ोसी आंटी से लेकर ऑफिस के सहकर्मी तक, सब आपको हेल्दी डाइट प्लान और व्यायाम के सुझाव देने लगते हैं। और अगर आप जिम जाने का इरादा भी करते हैं,...

ध्यानी नहीं शिव सारस

!!देव संस्कृति विश्विद्यालय में स्थपित प्रज्ञेश्वर महादेव!! ध्यानी नहीं शिव सारसा, ग्यानी सा गोरख।  ररै रमै सूं निसतिरयां, कोड़ अठासी रिख।। साभार : हंसा तो मोती चुगैं पुस्तक से शिव जैसा ध्यानी नहीं है। ध्यानी हो तो शिव जैसा हो। क्या अर्थ है? ध्यान का अर्थ होता हैः न विचार, वासना, न स्मृति, न कल्पना। ध्यान का अर्थ होता हैः भीतर सिर्फ होना मात्र। इसीलिए शिव को मृत्यु का, विध्वंस का, विनाश का देवता कहा है। क्योंकि ध्यान विध्वंस है--विध्वंस है मन का। मन ही संसार है। मन ही सृजन है। मन ही सृष्टि है। मन गया कि प्रलय हो गई। ऐसा मत सोचो कि किसी दिन प्रलय होती है। ऐसा मत सोचो कि एक दिन आएगा जब प्रलय हो जाएगी और सब विध्वंस हो जाएगा। नहीं, जो भी ध्यान में उतरता है, उसकी प्रलय हो जाती है। जो भी ध्यान में उतरता है, उसके भीतर शिव का पदार्पण हो जाता है। ध्यान है मृत्यु--मन की मृत्यु, "मैं" की मृत्यु, विचार का अंत। शुद्ध चैतन्य रह जाए--दर्पण जैसा खाली! कोई प्रतिबिंब न बने। तो एक तो यात्रा है ध्यान की। और फिर ध्यान से ही ज्ञान का जन्म होता है। जो ज्ञान ध्यान के बिना तुम इकट्ठा ...

व्यंग्य: राजधानी दिल्ली की हवा हुई और खराब, राजनेताओं की बातों में कुछ नहीं 'खरा' अब

देश की राजधानी  दिलवालों की   दिल्ली  आजकल  किसी और  के लिए ही जानी जा रही है - वो है यहां की एयर क्वॉलिटी इंडेक्स । यहां की हवा में अब ऐसा जहर घुल चुका है कि सांस लेना किसी कारनामे से कम नहीं लगता। ख़राब एयर क्वॉलिटी से हालात इतने दयनीय हैं कि लोग गहरी सांस लेने की बजाय William Shakespeare के “Hamlet” की तरह सोच रहे हैं- "To breathe or not to breathe, that is the question." यहां की वायु में घुला यह धुआं किसी त्रासदी से कम नहीं, लेकिन सफेद कुर्ताधारियों के लिए यह बस राजनीति का नया मुद्दा ही अपितु एक पॉलिटिकल डायलॉग और लफ्फाजी का अखाड़ा बन चुका है। दिल्ली की ज़हरीली हवा में अब सांस लेना किसी बॉलीवुड के फिल्मी विलेन से लड़ने जैसा हो गया है। यहां के हालात देखकर “Hamlet” का एक अन्य संवाद याद आती है- "Something is rotten in the state of Denmark." बस, ‘डेनमार्क’ की जगह आप दिल्ली लिख लें, बाकी सब वैसा ही है। देश राजधानी की एयर क्वॉलिटी इंडेक्स का हाल पूछिए, तो जवाब आता है—जहांगीरपुरी 458, मुंडका 452, और आनंद विहार 456। अब यह AQI नहीं, जैसे कोई IPL Cricket Match का...