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योगा एवं पर्यावरण

 योगा का शाब्दिक अर्थ है जोड़ना। हम सभी का शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है जो कि हमारे शरीर के नष्ट होने पर वापस प्रकृति में विलीन हो जाते हैं‚ किन्तु एक तत्व जो अमर है वह है हमारी आत्मा। अगर हम यह कहें कि हमारा शरीर प्रकृति और ईश्वर के अंशों द्वारा पोषित योग है तो कदाचित उचित होगा।

प्रकृति के साथ रहते हुए हमारा जीवन बाल्यकाल से वृद्धावस्था को प्राप्त हो जाता है किंतु हमारे कर्म हमेशा हमारे साथ रहते हैं। योगा इन्हीं कर्मों को उचित प्रकार समायोजित करके जीवनोपयोगी कलाओं के विकास हेतु एवं आत्मिक उत्थान के सहायक बनता है। प्रकृति हमें उतना ही देती है जितना कि हम उसे दे सकते हैं‚ उदाहरण के लिए व्यस्त दिनचर्या के कारण रात्रि जागरण करने वाले कितने ही लोग सुबह की शुद्ध हवा का लाभ नहीं ले पाते और अवसाद मोटापे अनिद्रा इत्यादि जैसी बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं।

हमारे वेदों में जल‚ पृथ्वी‚ वायु‚ अग्नि‚ वनस्पति‚ अन्तरिक्ष‚ आकाश आदि के प्रति असीम श्रद्धा प्रकट करने पर अत्यधिक बल दिया गया है। ऋषियों के निर्देशों के अनुसार जीवन व्यतीत करने पर पर्यावरण-असन्तुलन की समस्या ही उत्पन्न नहीं हो सकती। इनमें हुए अवांछनीय परिवर्तनों के कारण आज जल प्रदूषण‚ वायु प्रदूषण‚ मृदा प्रदूषण की समस्याएं चारों ओर व्याप्त हैं।

जल के बिना हम नहीं रह सकते। यह हमारे जीवन का प्रमुख तत्त्व है। इसलिए‚ वेदों में अनेक सन्दर्भों में उसके महत्त्व पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। ऋग्वेद में “अप्सु अन्तः अमृतं‚ अप्सु भेषजं”  के रूप में जल का महत्व बताया गया है। लेकिन‚ आज ये दूषित हो गया। अथर्ववेदीय पृथ्वीसूक्त में जलतत्त्व पर विचार करते हुए उसकी शुद्धता को स्वस्थ जीवन के लिए नितान्त आवश्यक माना गया है।

निसंदेह जल−सन्तुलन से ही भूमि में अपेक्षित सरसता रहती है। पृथ्वी पर हरीतिमा छायी रहती है। वातावरण में स्वाभाविक उत्साह दिखाई पड़ता है एवं समस्त प्राणियों का जीवन सुखमय तथा आनन्दमय बना रहता है।

जब हम प्राणायाम करते हैं तो सांस लेने की इस प्रक्रिया का सीधा संबंध पर्यावरण से है, क्योंकि प्रातः जिस शुद्ध वायु को हम स्वांस के साथ फेफड़ों में भरने के लिए प्रणायाम करते हैं‚ यदि वह शुद्ध नहीं होगी तो प्राणायाम से लाभ की बजाए हानि होगी। दीपावली के बाद दिल्ली में वायू प्रदूषण की जो स्थिति रहती है‚ वैसी स्थिति में योग करना घातक हो सकता है। जबकि‚ इसमें योगा क्रिया का कोई दोष नहीं है। ऐसे में हमें पर्यावरण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

योगा हमें सिखाता है नियम संयम से जीवन यापन करने वाला एक योगी कैसे प्रकृति के द्वारा प्रदत्त संशाधनों का कंजूसी से उपयोग में लाता है और कैसे एक भोगी व्यक्ति प्रकृतिक संशाधनों का भोगविलास में उपयोग में ले कर जल्द नष्ट करने में लगा रहता है।

आज का युग कलियुग है जहां आज से बीस साल पहले पानी की बोतल हमारे लिए अस्तित्व में नहीं थी। आज चीन जैसे देश में हवा भी बोतलों में भर कर सफलता पूर्वक बेची जा रही हैं। क्या हम अपनी भावी पीढ़ी को शुद्ध हवा और पानी देने में भी समर्थ होंगे ? नहीं ऐसे में क्या हमारा योगी बन कर जीना हमारी आने वाली संतति को एक दिशा नहीं देगाक्या मानवता को भावी संकटों से निपटने को कुछ और वक्त देने के लिए हम योगी बन कर प्रकृति का संरक्षण नहीं कर सकते? आज शहरों एवं महानगरों में अनेक समस्याएं जैसे शुद्ध वायु स्वच्छ जल‚ एवं व्यस्त दिनचर्या के कारण लोगों का अपने स्वास्थ्य के प्रति ध्यान के बराबर है ऐसे में योग जैसे हमारे स्वास्थ्य के लिए एक वरदान जैसा बन पड़ा है। 

पर्यावरण में असन्तुलन उपस्थित करना विनाश को आमंत्रण देना होता है। यदि 05 सेकंड के लिए धरती से ऑक्सीजन गायब हो जाए तो 05 सेकंड के लिए धरती बहुत, बहुत ठंडी हो जाएगी,जितने भी लोग समुद्र किनारे लेटे हैं उन्हें तुरंत सनबर्न होने लगेगा,दिन में भी अँधेरा छा जाएगा,हर वह इंजन रूक जाएगा जिनमें आंतरिक दहन होता है.  धातुओ के टुकड़े बिना वैल्डिंग के ही आपस में जुड़ जाएगे.ऑक्सीजन न होने का यह बहुत भयानक साइड इफेक्ट होगा . पूरी दुनिया में सबके कानों के पर्दे फट जाएगे क्योंकि 21% ऑक्सीज़न के अचानक लुप्त होने से हवा का दबाव घट जाएगा, हर जीवित कोशिका फूलकर फूट जाएगी.  पानी में 88.8% ऑक्सीज़न होती है,ऑक्सीजन ना होने पर हाइड्रोजन गैसीय अवस्था में आ जाएगी और इसका वाल्यूम बढ़ जाएगा, हमारी साँसे बाद में रूकेगीहम फूलकर पहले ही फट जाएँगे,समुद्रो का सारा पानी भाप बनकर उड़ जाएगा.....क्योंकि बिना ऑक्सीजन पानी हाइड्रोजन गैस में बदल जाएगा और यह सबसे हल्की गैस होती है तो इसका अंतरिक्ष में उड़ना लाज़िमी है,ऑक्सीजन के अचानक गुम होने से हमारे पैरों तले की जमीन खिसककर 10-15 किलोमीटर नीचे चली जाएगी. जीवनकाल में कुछ वृक्ष जरूर लगाएं और ध्यान रहे कि नदी जब भी बहेगी, सन्तुलन के दो कगारों के बीच से ही बहेगी। उसमें व्यवधान पड़ा नहीं कि वह आवर्त बना डालती है, किनारों को झकझोरने लगती है, तटबंध को तोड़ देना चाहती है। योग की महत्ता पिछले वर्षों में कुछ अधिक बढ़ गयी है एवं इसकी कई शाखाएं भी उदीप्त हुईं हैं जैसे कॉरपोरेट में काम करने वाले लोगों को अधिक समय तक एक ही स्थान पर बैठ के कार्य करना होता है ऐसे में उनमे डिप्रेशन आंखों में कमजोरी सिर दर्द हाई बीपी ओर हार्ट एवं शुगर जैसे बीमारियों से बचाने के लिए कॉरपोरेट योग‚ शादी−शुदा महिलाओं के लिए ब्राइडल योग‚ घूमने के शौकीनों के लिए डेस्टिनेशन योग‚ डांस के शौकीनों के लिए जुम्बा स्टाइल योग तथा अन्य कई और विधाओं के समावेश के साथ एक विस्तृत रूप ले चुका है। इसके उम्मीद से बेहतर परिणाम भी देखने को मिले हैं।

ऐसे में भारत की गौरवान्वित थाती के अनमोल रत्न योगा को सर्वजन तक पहचाना हर भारतीय का परम उद्देश्य होना चाहिए, साथ ही साथ अपने पर्यावरण को भी साफ सुथरा रख के स्वस्थ्य जीवन की कल्पना को साकार करना एवं सुंदर समाज की रचना करना मानवता का परमोद्देश्य होता है। पर्यावरण में के अस्त−व्यत हो जाने से अशोभन दृश्य उपस्थित हो जाता है। इतना ही नहीं‚ कभी−कभी तो समुद्र भी अपनी सीमा छोड़ने लगता है और सम्पूर्ण पृथ्वी पाताल में लय हो जाती है। यदि महाविनाश से बचना है‚ तो प्राकृतिक सन्तुलन को बिगाड़ने की चेष्ट कभी करें और सच्चे योगी की तरह जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। 


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