Skip to main content

लालू के ‘नैन सेंकने’ वाले बयान ने खोली राजनीति की सच्चाई, क्या महिलाओं का सम्मान सिर्फ नारे तक सीमित रह जाएगा?

भारतीय राजनीति का मंच हमेशा से ही एक अद्भुत नाट्यशाला रहा है। यहां बयानबाजी की गूंज अक्सर मुद्दों की गहराई से अधिक सुनाई देती है। ताजा मामला राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का है, जिन्होंने एक बार फिर अपनी चुटीली जुबान से ऐसा जादू चलाया कि पूरे देश में हलचल मच गई। उनका 'नैन सेंकने' वाला बयान भले ही हल्के-फुल्के अंदाज में दिया गया हो, लेकिन इसने राजनीति की खोखली वास्तविकताओं को बड़े ही व्यंग्यात्मक तरीके से उजागर किया है।

लालू प्रसाद यादव का यह बयान उनकी विशिष्ट शैली का ही एक उदाहरण है। वे अक्सर अपने देहाती मुहावरों और चुटीले बयानों से राजनीतिक गलियारों को गुदगुदाते रहे हैं। लेकिन, इस बार मामला जरा अलग है। उनके इस बयान ने न केवल मज़ाक उड़ाया है, बल्कि राजनीति के गंभीर पहलुओं पर चर्चा को भी मजबूर कर दिया है।

लालू प्रसाद यादव का 'नैन सेंकने' का बयान

लालू यादव ने हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर कटाक्ष करते हुए कहा, "वो महिला संवाद के नाम पर नैन सेंकने निकल पड़े हैं।" अब, यह टिप्पणी क्या एक सहज मज़ाक था या गंभीर व्यंग्य, यह तो लालू ही जानें, लेकिन इसने राजनीति की मौजूदा स्थिति को पूरी तरह से उजागर कर दिया।

यह बयान सुनते ही राजनीति के गलियारों में हंसी-ठिठोली का दौर शुरू हो गया। किसी ने इसे 'लालू का चिर-परिचित अंदाज' बताया, तो किसी ने इसे 'महिलाओं का अपमान' करार दिया। सोशल मीडिया पर मीम्स की बाढ़ आ गई। किसी ने लालू को 'बयानवीर' का खिताब दे दिया, तो किसी ने इसे 'वोट बैंक पॉलिटिक्स' का नया रूप बताया।

नेताओं की जुबान: जब सोच पर जुबान भारी पड़ जाए

भारतीय राजनीति में बयानबाजी कोई नई बात नहीं है। नेताओं की जुबान अक्सर फिसलती है, लेकिन कई बार यह फिसलन उनके असली इरादों को उजागर कर देती है।

मुलायम सिंह यादव का बयान: 'लड़कों से गलती हो जाती है'

बात वर्ष 2014 की है,  जब महिलाओं के खिलाफ अपराध की चर्चा हो रही थी, तब मुलायम सिंह यादव ने कहा, "लड़कों से गलती हो जाती है।" यह बयान उनकी सोच का परिचायक था, जो महिलाओं की सुरक्षा को हल्के में लेती है। उनके इस काफी की आलोचना हुई। बदायूं में दो बहनों के साथ गैंगरेप का सनसनीखेज मामला सामने आया था। इसी पर मुरादाबाद में उन्होंने कहा कि 'लड़कियां पहले दोस्ती करती हैं इसके बाद लड़का-लड़की के बीच जब मतभेद हो जाता है तो इसे रेप का नाम दे देती हैं। इसके बाद बेचारे लड़के को फांसी की सजा सुना दी जाती है। बलात्कार के लिए फांसी की सजा अनुचित है। लड़कों से गलती हो जाती है।' उनका यह बयान बलात्कार पीड़ितों के लिए असंवेदनशील माना गया था। इस बयान को लेकर लोगों में काफी गुस्सा भी देखा गया।

दिग्विजय सिंह का '100 टका टंच माल'

साल 2013 की बात है जब दिग्विजय सिंह ने अपनी ही पार्टी की सांसद के लिए एक ऐसी टिप्पणी कर दी जिस पर काफी बवाल मचा। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने अपनी पार्टी की एक महिला नेता को '100 टका टंच माल' कहकर विवाद खड़ा कर दिया। जब आलोचना हुई, तो उन्होंने इसे तारीफ बताने की कोशिश की। दिग्विजय सिंह ने मंदसौर की रैली में तत्कालीन सांसद मीनाक्षी नटराजन को लेकर कहा था कि मैं राजनीति का पुराना जौहरी हूं। मीनाक्षी जी का काम देख कर मैं यह कह सकता हूं कि वह 100 टका टंच माल हैं। इस बयान पर काफी विवाद हुआ था, तब दिग्विजय सिंह ने कहा था कि मैंने कुछ गलत नहीं कहा। मैंने उन्हें 100 टका सोने का माल कहा था। मैंने उनकी तारीफ में ये बात कही थी।

शरद यादव का 'परकटी महिलाओं' का तंज

महिला आरक्षण का विरोध करते हुए शरद यादव ने कहा था, "हम संसद में परकटी महिलाओं को नहीं देखना चाहते।" यह बयान महिलाओं के प्रति उनकी सोच को दर्शाता है। 12 मार्च 2015 को राज्यसभा की कार्यवाही चल रही थी। इसी दौरान सदन में शरद यादव ने एक ऐसी टिप्पणी कर दी, जिस पर सियासी बवाल मच गया। उन्होंने दक्षिण भारतीय महिलाओं के रंग पर चर्चा की और कह दिया कि दक्षिण की महिलाएं सांवली होती हैं लेकिन वे अपने शरीर की तरह सुंदर होती हैं। शरद यादव ने राजस्थान के अलवर में चुनाव प्रचार के दौरान वसुंधरा राजे को लेकर विवादित टिप्पणी कर दी थी। उन्होंने कह दिया था कि राजे बहुत मोटी हो गई हैं और उन्हें आराम की जरूरत है। पहले पतली थी। इसी तरह महिला आरक्षण पर परकटी महिलाएं यानी छोटे बाल वाली महिलाओं को लेकर उनका बयान काफी सुर्खियों में रहा था। महिला आरक्षण का उस वक्त संसद में विरोध करते हुए शरद ने कह दिया था कि इस विधेयक के जरिए क्या आप परकटी महिलाओं की सदन में एंट्री कराना चाहते हैं।

महिला मुद्दों पर नेताओं के विचित्र बयान

नेताओं की बयानबाजी महिलाओं के पहनावे, श्रृंगार और चरित्र पर बार-बार सवाल उठाती है।

कैलाश विजयवर्गीय का 'श्रृंगार ज्ञान'

बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय ने कहा था कि महिलाओं को ऐसा श्रृंगार करना चाहिए, जो 'उत्तेजना' नहीं, बल्कि 'श्रद्धा' जगाए। यह सोच बताती है कि हमारे नेता महिलाओं के स्वतंत्र निर्णय को कितना सीमित मानते हैं।

संजय निरुपम का 'ठुमके' वाला बयान

संजय निरुपम ने टीवी डिबेट के दौरान स्मृति ईरानी पर कटाक्ष करते हुए कहा था, "आप तो ठुमके लगाती थीं।" यह बयान महिलाओं के मेहनत और पेशेवर उपलब्धियों को नीचा दिखाने का प्रयास था।

आजम खान का ने बताया था जया प्रदा के अंडरवियर का रंग

अपने अनोखे अंदाज के लिए मशहूर समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान ने  रामपुर की एक जनसभा में जया प्रदा के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करते हुए कहा था, रामपुर वालों आपको उनको समझने 17 साल लग गए, मैं 17 दिन में पहचान गया कि इनका अंडरवियर खाकी रंग का है।

संसद या नाटकशाला?

आज की राजनीति मुद्दों से भटककर बयानबाजी और विवाद की राजनीति में बदल गई है। टीवी चैनलों पर होने वाली बहसें अब गंभीर मुद्दों पर चर्चा करने के बजाय नेताओं के विवादित बयानों को भुनाने का जरिया बन गई हैं।

वोट बैंक पॉलिटिक्स

नेताओं की बयानबाजी का असली मकसद अपने वोट बैंक को सुरक्षित करना होता है। महिलाओं पर विवादित बयान देकर वे एक खास तबके का समर्थन पाने की कोशिश करते हैं।

'अरे महिला हो, कुछ जानती नहीं हो'- नीतीश कुमार

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 24 जुलाई 2024 को विधानसभा में अपना आपा खो बैठे। उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल की महिला विधायक रेखा देवी पर भड़कते हुए एक विवादास्पद टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि अरे महिला हो, कुछ जानती नहीं हो। इन लोगों (RJD) ने किसी महिला को आगे बढ़ाया था। क्या आपको पता है कि मेरे सत्ता संभालने के बाद ही बिहार में महिलाओं को उनका हक मिलना शुरू हुआ। 2005 के बाद हमने महिलाओं को आगे बढ़ाया है। बोल रही हो, फालतू बात... इसलिए कह रहे हैं, चुपचाप सुनो। उनके इतना कहते ही सदन में हंगामा और बढ़ गया। नीतीश कुमार के बयान को लेकर उनकी काफी आलोचना भी हुई थी।

नेताओं के बयान: एक आइना समाज के लिए

लालू यादव के 'नैन सेंकने' वाले बयान ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि भारतीय राजनीति को अपने स्तर पर सुधार की जरूरत है। नेताओं को यह समझना होगा कि उनके बयान समाज पर गहरा असर डालते हैं।

महिलाओं को राजनीतिक व्यवस्था में केवल एक 'वोट बैंक' के रूप में देखना बंद करना होगा। जब तक नेता अपनी सोच नहीं बदलते, तब तक भारतीय लोकतंत्र केवल बयानबाजी का अखाड़ा बनकर रह जाएगा।

लालू यादव का यह बयान भले ही मजाकिया हो, लेकिन यह राजनीति के असली मुद्दों से ध्यान भटकाने का एक तरीका भी है। नेताओं को चाहिए कि वे मुद्दों पर गंभीरता से चर्चा करें और समाज के लिए एक सकारात्मक बदलाव लाएं। तो अगली बार जब कोई नेता 'नैन सेंकने' जैसी टिप्पणी करे, तो जनता को चाहिए कि वह उन्हें आईना दिखाए और कहे, "पहले अपनी सोच बदलो, फिर देश की राजनीति में सुधार करो।"

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

व्यंग्य: सपनों का पेट, हकीकत का गिटार? कब बजेगी फिटनेस की तार?

हमारे समाज में फिटनेस अब एक नए 'संस्कार' के रूप में लोगों के दिमाग बैठ चुकी है। हर व्यक्ति इस राह पर चलने लगा है, जहां "प्रोटीन शेक्स" को आशीर्वाद की तरह लिया जाता है और वजन घटाने वाले डाइट प्लान को किसी शास्त्र की तरह माना जाता है। लेकिन हम सब जानते हैं कि फिटनेस की इस धारणा में कुछ बातें इतनी सरल नहीं हैं जितनी कि ये दिखती हैं। । खासकर जब हम 'पेट' जैसे जटिल विषय पर बात करें। तो आज हम इसी पेट के इर्द-गिर्द एक मजेदार और व्यंग्यपूर्ण यात्रा पर निकलते हैं, जिसमें फिटनेस की बात होगी, लेकिन चुटीले अंदाज में!  बढ़ता हुआ पेट और समाज का प्यारभरा आशीर्वाद सबसे पहले तो एक सवाल– क्या आपने कभी सोचा है कि पेट बढ़ता क्यों है? यह हमारे समाज का आशीर्वाद है। हां, यही बात है। शादी के बाद लोग तुरंत पूछते हैं, "अरे! पेट कब आएगा?" जब आपके पेट पर थोड़ा सा भी 'संकेत' मिलता है, तो समाज में हर व्यक्ति फिटनेस गुरू बन जाता है। पड़ोसी आंटी से लेकर ऑफिस के सहकर्मी तक, सब आपको हेल्दी डाइट प्लान और व्यायाम के सुझाव देने लगते हैं। और अगर आप जिम जाने का इरादा भी करते हैं,...

ध्यानी नहीं शिव सारस

!!देव संस्कृति विश्विद्यालय में स्थपित प्रज्ञेश्वर महादेव!! ध्यानी नहीं शिव सारसा, ग्यानी सा गोरख।  ररै रमै सूं निसतिरयां, कोड़ अठासी रिख।। साभार : हंसा तो मोती चुगैं पुस्तक से शिव जैसा ध्यानी नहीं है। ध्यानी हो तो शिव जैसा हो। क्या अर्थ है? ध्यान का अर्थ होता हैः न विचार, वासना, न स्मृति, न कल्पना। ध्यान का अर्थ होता हैः भीतर सिर्फ होना मात्र। इसीलिए शिव को मृत्यु का, विध्वंस का, विनाश का देवता कहा है। क्योंकि ध्यान विध्वंस है--विध्वंस है मन का। मन ही संसार है। मन ही सृजन है। मन ही सृष्टि है। मन गया कि प्रलय हो गई। ऐसा मत सोचो कि किसी दिन प्रलय होती है। ऐसा मत सोचो कि एक दिन आएगा जब प्रलय हो जाएगी और सब विध्वंस हो जाएगा। नहीं, जो भी ध्यान में उतरता है, उसकी प्रलय हो जाती है। जो भी ध्यान में उतरता है, उसके भीतर शिव का पदार्पण हो जाता है। ध्यान है मृत्यु--मन की मृत्यु, "मैं" की मृत्यु, विचार का अंत। शुद्ध चैतन्य रह जाए--दर्पण जैसा खाली! कोई प्रतिबिंब न बने। तो एक तो यात्रा है ध्यान की। और फिर ध्यान से ही ज्ञान का जन्म होता है। जो ज्ञान ध्यान के बिना तुम इकट्ठा ...

व्यंग्य: राजधानी दिल्ली की हवा हुई और खराब, राजनेताओं की बातों में कुछ नहीं 'खरा' अब

देश की राजधानी  दिलवालों की   दिल्ली  आजकल  किसी और  के लिए ही जानी जा रही है - वो है यहां की एयर क्वॉलिटी इंडेक्स । यहां की हवा में अब ऐसा जहर घुल चुका है कि सांस लेना किसी कारनामे से कम नहीं लगता। ख़राब एयर क्वॉलिटी से हालात इतने दयनीय हैं कि लोग गहरी सांस लेने की बजाय William Shakespeare के “Hamlet” की तरह सोच रहे हैं- "To breathe or not to breathe, that is the question." यहां की वायु में घुला यह धुआं किसी त्रासदी से कम नहीं, लेकिन सफेद कुर्ताधारियों के लिए यह बस राजनीति का नया मुद्दा ही अपितु एक पॉलिटिकल डायलॉग और लफ्फाजी का अखाड़ा बन चुका है। दिल्ली की ज़हरीली हवा में अब सांस लेना किसी बॉलीवुड के फिल्मी विलेन से लड़ने जैसा हो गया है। यहां के हालात देखकर “Hamlet” का एक अन्य संवाद याद आती है- "Something is rotten in the state of Denmark." बस, ‘डेनमार्क’ की जगह आप दिल्ली लिख लें, बाकी सब वैसा ही है। देश राजधानी की एयर क्वॉलिटी इंडेक्स का हाल पूछिए, तो जवाब आता है—जहांगीरपुरी 458, मुंडका 452, और आनंद विहार 456। अब यह AQI नहीं, जैसे कोई IPL Cricket Match का...