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फिल्म समीक्षाः मनोरंजन के साथ समाज को संदेश भी देती है फिल्म "छिछोरे"



✍️...रघुनाथ यादव
इनसान की ज़िन्दगी में हार और जीत में अधिक अंतर नहीं होता। जीवन में विजेता बनने की सभी कोशिश करते हैं। और करनी भी चाहिए। एक हार से ज़िन्दगी खत्म नहीं होती। विफलता का सामना करने का साहस होना चाहिए। लेकिन कहानी घर परिवार से लेकर सगे-संबंधी एक ही पक्ष पर बातें करते हैं। साहस के साथ विफलता का सामना कैसे करें इस बात पर चर्चा नहीं होती। इसके बाद जो परिणाम होते हैं, उस सब से हम बाकिफ हैं। निर्देशक नितेश तिवारी की "छिछोरे" फिल्म यही संदेश देती है।

फिल्म "छिछोरे" की कहानी हॉस्टल लाइफ की है, जिसमें कई परतें हैं। और इन्हीं परतों से हर कोई अपने आप को किसी न किसी लेयर के साथ कनेक्ट करेगा। चाहे वह स्कूली दिनों की छिछोरी यादें हों, साथियों पर मर-मिटने की बात हो, बच्चों के लालन-पालन की बात हो, मेधावी छात्रों पर प्रतियोगी परीक्षा में सिलेक्ट होने का प्रेशर हो या तलाकशुदा पति-पत्नी के बीच का ईगो। फिल्म में सात दोस्तों की कहानी है, जो स्कूली दिनों से ही दोस्त हैं। लम्बे समय से जुदा रहने के बाद भी उनका दोस्ताना कायम है। हॉस्टल लाइफ होने के बाद भी फिल्म में अश्लीलता बिल्कुल नहीं है।

कहानी इस प्रकार है कि अनिरुद्ध (सुशांत सिंह राजपूत) का बेटा राघव (मोहम्मद समद) पढ़ाई-लिखाई में बहुत मेहनती है। वह एंट्रेंस एग्ज़ाम में सिलेक्ट होने के प्रेशर से गुजर रहा है। माया (श्रद्धा कपूर) से तलाक लेने के बाद अनिरुद्ध सिंगल पैरंट है। प्रवेश परीक्षा में जब राघव का सिलेक्शन नहीं हो पाता, तो वह इस सदमे को सहन नहीं कर पाता और दोस्त की बिल्डिंग से कूदकर जान देने की कोशिश करता है। आत्महत्या की कोशिश में उसके दिल-दिमाग पर गहरी चोट लगती है।

अनिरुद्ध जब अपने बेटे को हाथों से जाता हुआ देखता है, तो उसे बचाने के लिए अपने हॉस्टल डेज के दौर में ले जाता है। हॉस्टल में माया के प्यार के साथ उसे सेक्सा (वरुण शर्मा), डेरेक (ताहिर राज भसीन), एसिड (नवीन पॉलीशेट्टी), बेवड़ा (सहर्ष शुक्ला) क्रिस क्रॉस( रोहित चौहान), मम्मी (तुषार पांडे) जैसे जिगरी दोस्तों की दोस्ती मिलती है, तो रेजी (प्रतीक बब्बर) जैसे अव्वल स्टूडेंट की दुश्मनी।


कोमा में जा चुके राघव का शरीर पिता अनिरुद्ध की यादों के साथ रिस्पॉन्ड करने लगता है। अनिरुद्ध अपने हॉस्टल के इन सभी दोस्तों को को इकट्ठा करता है। अनिरुद्ध राघव को बताता है कि कैसे वे हॉस्टल में लूजर्स के नाम से कुख्यात उन लोगों ने खुद को लूजर्स के टैग से मुक्त करने की कोशिश की थी। लेकिन, मामला उल्टा हो जाता है। अनिरुद्ध के अतीत की कहानी से राघव की हालत और ज्यादा खराब हो जाती है।

नितेश तिवारी ने पुराने माहौल को बढ़िया से दर्शाया है। उस जमाने की लूज जींस, केसियो घड़ियां, रेनॉल्ड्स पेन, प्लेबॉय सरीखी मैगजींस जैसी छोटी-छोटी डिटेलिंग ने उनके किरदारों को रंग दिए हैं। फिल्म में बच्चों के प्रेशर को बखूबी दर्शाया गया है। फिल्म के एक भावुक दृश्य में अनिरुद्ध अपनी पत्नी माया और दोस्तों के सामने स्वीकारता है कि मैंने शैंपेन की बोतल इसलिए लाकर रखी थी कि बेटे के सिलेक्ट हो जाने के बाद मैं उसके साथ इसे पीकर खुशियां मनाऊंगा।

एक संवाद में अनिरुद्ध कहता है कि बेटे के चुने जाने पर सेलिब्रेट कैसे करना है, मगर यह नहीं बताया कि अगर वह एग्ज़ाम पास नहीं कर पाया, तो क्या करना है। फिल्म में हॉस्टल की दुनिया दिखायी गई है। जैसे कि बॉयज हॉस्टल में बैचलर लड़कों की अजीब मसखरी, छिछोरी डायलॉगबाजी, रोमांस और राइवलरी से दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करती है। पुरानी फिल्म "जो जीता वही सिकंदर" और "थ्री इडियट्स" की थोड़ी सी झलक भी देखने को मिलती है।


फिल्म के किरदारों की बात की जाए तो सुशांत सिंह राजपूत ने नौजवान अनि के साथ अधेड़ अनिरुद्ध रोल बखूबी किया है। श्रद्धा कपूर भी माया के रूप में खूब जमी हैं। सुशांत और श्रद्धा की केमेस्ट्री में मासूमियत झलकती है। सेक्सा के रूप में वरुण शर्मा ने दर्शकों को खूब गुगगुदाया है। राघव के रूप में मोहम्मद समद की परफॉर्मेंस ईमानदारी से भरी है। डेरेक के रूप में ताहिर राज भसीन का काम दमदार है, तो एसिड (नवीन पॉलीशेट्टी), बेवड़ा (सहर्ष शुक्ला), क्रिस क्रॉस( रोहित चौहान), मम्मी (तुषार पांडे) के किरदार कहानी में दमदार कर देते हैं। ग्रे किरदार रेजी के रूप में प्रतीक बब्बर ने काम सराहनीय।



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