हे हाथी! तुमने 2007 में अपनी चाल से सबको पछाड़ दिया था। चाहे गाँव की पगडण्डी हो या शहर की रपटीली सड़कें, सब पर तुम ख़ूब चिंघाड़े...और सिंघासन पर विराजे। तुमने पहलवान की साइकिल पंचर की, मंझे हुए पहलवाल के कुश्ती के दाव को भी काट दिया। तुमने कमल की लगी-लगाई फसल उजाड़ दी। पंजे को भी तुमने अपने लपेटे में ले लिया।
हे हाथी! तुमने हर साल खूब केक खाये। ये जानते हुए कि ये फास्टफूड है। तुम्हें गन्ने कड़ुए लगने लगा। तुम्हें देख गली-कूंचों के श्वानों को भी तुम पर तरस आया। तुम्हें समझाया उन्होंने पर तुम नहीं माने। सभी श्वानों ने मिलकर कहा कि इसे पूरे 14 इंजेक्शन लगवाने की जरूरत है, इसे राजनीति का असर हो गया। तुम नहीं माने असर होता ही गया मर्ज बढ़ती ही गई।
हे हाथी! तुम यहीं न रुके तुमने गले में खूब हार पहने, तुम्हें फूलों के हार पसंद नहीं आये। तुम कागज की माला के मायाजाल में फंस गए। तुम तिल-तिल करके फसते ही गए। तुम्हें अपने डील-डोल पर घमंड था। तुम पंक (कीचड़) विलास में लगे ही रहे...तुम न माने। तुम्हें असर होता ही गया।
हे हाथी! पहलवाल के पुत्र को तुमने अपने मायाजाल में फसाया। तुम उनकी सायकिल पर विराज गए, साइकिल मंजिल तक पहुंचना तो दूर दो कदम भी नहीं चल पाई और धड़ाम हो गई।
हे हाथी! तुम जमीन से आसमान पर पहुंच गए, तुमने लोगों से दूरी बना ली। पंक से तुम्हें दिक़्क़त होने लगी, एसी की हवा तुम्हें रास आने लगी।
हे हाथी! पब्लिक में चर्चा है कि तुम बहुत एहसानमंद हो। तुमने अपनी जान बचाने वालों का यूपी में कमल खिला के एहसान कर दिया। चर्चा यह भी है कि गुजराती डांडिया वाले ने तुम्हारी दवी नस नस पकड़ ली।
तुमने कुछ वर्षों से राजनीतिक बयान न देकर सलाहकार जैसे बयान देने लगे। साइकिल के सपने पूरे न हो पाए, इसलिए तुमने बुल्डोजर बाबा से साइकिल कुचलवा दी।
हे हाथी! भले ही तुम्हारा एक पैर बचा हो, फिर भी खुश हो... साइकिल के टूटे सपने देख के। हे हाथी! एक पैर के सहारे ज़्यादा दिन नहीं रहा जा सकता, यहाँ रेस लंबी है, वक्त कम है।
दौड़ने के लिए एंटीबायोटिक ज़्यादा काम नहीं करती, तुम्हें ऑक्सीजन की जरूरत है, ये पब्लिक से मिलेगी, तुमने पब्लिक से पहले ही दूरी बना ली, पब्लिक ने तुमसे दूरी बना ली।
एक पैर पता नहीं, कब चला जाए और तुम वेंटिलेटर पर आ जाओ।
हे साइकिल! तुमने उनकी टोपी की नकल की, उनकी टोपी का कैडर बड़ा है, लोग समर्पित है, तुम कैंडल लेकर जाओ और त्राटक ध्यान करो, ध्यान के बाद सब चीजें ठीक दिखती हैं। नहीं तो बाबा का बुल्डोजर तुम्हारे बावली के के घर सुबह-सुबह ही लग जाएगा।
पंजाब भी हाथ से फिसल गया, इटली वाली आंटी पुत्र मोह छोड, किसी राहुल द्रविड जैसे को कप्तान बनाओ, गाँधी नाम से कुछ नहीं होता।
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