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फुलेरा के सचिव की कलम से, रिंकी के नाम एक Love Letter

 मेरी प्यारी रिंकी,

काग़ज़ पर शब्द लिख रहा हूं, लेकिन हर शब्द के पीछे एक धड़कन है—मेरे दिल की धड़कन, जो अब तुम्हारे नाम से चलती है। कभी सोचा नहीं था कि फुलेरा जैसे छोटे से गांव में मेरी दुनिया बस जाएगी… और वो भी सिर्फ तुम्हारी वजह से।

जब पहली बार सचिव बनकर यहां आया था, तो सब कुछ बेमानी लगता था—बिजली नहीं, चैन नहीं और न ही कोई अपनापन। हर दिन वीरान लगता था, जैसे ज़िंदगी रुक गई हो। लेकिन फिर अचानक जैसे किसी ने मेरी सूनी दुनिया में रंग भर दिए… और वो रंग "तुम" थी, रिंकी।

वो दिन, वो टंकी, और तुम्हारी वो मासूम आवाज़—

"हम हैं रिंकी, प्रधान जी की बेटी। यहां चाय पीने आए हैं।"

उस एक पल में जैसे सारा गांव जगमगा उठा। तुम्हारी आंखों में वो सादगी, वो शरारत, वो गहराई… मेरे दिल को जैसे अपना घर बना गई। उस दिन से फुलेरा की हर गली में तुम्हारी हंसी गूंजती है, हर पेड़ की छांव में तुम्हारी मौजूदगी महसूस होती है।

तुमसे बातें शुरू हुईं… कभी टंकी पर, कभी ऑफिस के बाहर, कभी बस यूं ही चलते-चलते। और वो छोटी-छोटी बातें कब मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी ज़रूरत बन गईं, मुझे खुद भी नहीं पता चला। जब तुम अपने मंगेतर की शिकायत लेकर आई थी, तो मेरा मन किया कि तुम्हारे लिए पूरी दुनिया से लड़ जाऊं। और सच में, उस दिन जैसे ही दरोगा बनकर उसे हड़काया, लगा जैसे तुम्हारे लिए कुछ कर पाया।

रिंकी, तुम्हारे साथ बिताए हर पल की अपनी एक मिठास है। वो जंगल की ट्रिप, वो मफलर पहनाने वाला पल, वो सेवइयां वाली बहस, वो प्यारा-सा थप्पड़… हां, वो भी बहुत खास था, क्योंकि उसमें भी तुम्हारा प्यार छुपा था। तुम्हारी नाराज़गी भी मुझे अपनी लगती है, जैसे कोई बहुत अपना रूठ गया हो। और तुम्हारी मुस्कान? उफ्फ… वो तो जैसे मेरी सुबह, मेरी शाम, मेरी पूरी दुनिया है।

हमारी टॉप सीक्रेट पार्टी… तुम्हें बता रहा हूं क्योंकि अब कोई राज़ तुमसे छुपाना अच्छा नहीं लगता। हम चार दोस्त (मैं, प्रधान जी, प्रह्लाद जी और विकास) जब भी पार्टी करनी होती है, बस ग्रुप में “Hi” लिखते हैं। लेकिन उस दिन, जब नाना जी प्रधान जी को आशीर्वाद दे रहे थे, मैं तुम्हारे बाबूजी को देख रहा था और मन ही मन उन्हें "बाबूजी" कह रहा था। सोच रहा था, क्या कभी ऐसा दिन आएगा जब वो मुझे भी उसी प्यार से देखें… और मैं तुम्हें हमेशा के लिए अपना कह सकूं?

लेकिन रिंकी, सब कुछ इतना आसान नहीं है। वनराकस और क्रांति देवी जैसे आफतों से रोज़ जूझता हूं। ऑफिस में उनका ड्रामा, उनका गुस्सा, कभी-कभी सब कुछ छोड़ देने का मन करता है। MBA करने की सोची थी, अब भी ऑफर है… लेकिन अब दिल नहीं करता। क्योंकि फुलेरा सिर्फ एक गांव नहीं रहा… ये अब तुम्हारे साथ मेरा घर बन गया है।

और सबसे ज़रूरी बात—

रिंकी, जब मैंने उस दिन कहा था "लव यू", तो वो बस एक लाइन नहीं थी। वो मेरा सच था, मेरा इज़हार था, मेरा सब कुछ था। वो लव यू, वो असली वाला लव यू था। दिल से। रूह से। सिर्फ तुम्हारे लिए।

अब तुम्हारा जवाब जानना चाहता हूं। और हां, मैं चाहता हूं कि वो 'हां'ही हो…

क्योंकि तुम भी मुझे वैसे ही चाहती हो ना, जैसे मैं तुम्हें करता हूं? उसी "लव यू वाला" लव यू?

सिर्फ तुम्हारा,

तुम्हारा सचिव जी

नोट: सचिव जी ने लेटर मुझसे लिखवाया है। लेकिन भावनाएं उनकी  की ही हैं।)


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