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Bihar Election: राहुल गांधी गए विदेश, महागठबंधन में बढ़ा टेंशन और क्लेश

Image: Google
बिहार की राजनीति इन दिनों किसी धीमी गति की फिल्म जैसी लग रही है, जहां सारे किरदार डायलॉग बोल चुके हैं, कैमरा चालू है, पर मुख्य अभिनेता अचानक सेट से गायब है। महागठबंधन की गाड़ी पूरी रफ्तार से चल रही थी, इंजन गर्म था, रोड क्लियर था, जनता भी ताली बजा रही थी, तभी राहुल गांधी ने अचानक "ब्रेक" लगा दिए। अब बाकी साथी हैरान हैं, ये हुआ क्या?

राहुल गांधी ने चुनावी तैयारी तो मानो किसी ओलंपिक एथलीट की तरह शुरू की थी। बिहार की सड़कों पर रैली, भाषण, पोस्टर, सब तैयार। कांग्रेस के कार्यकर्ता खुश थे कि “इस बार साहब गंभीर हैं।” लेकिन जैसे ही चुनाव का असली वक्त आया, राहुल गांधी ने कहा, अब थोड़ा आराम कर लेते हैं और निकल पड़े विदेश यात्रा पर। शायद उन्होंने सोचा हो कि बिहार के मुद्दे अब Zoom कॉल पर ही निपटा लेंगे।

अब स्थिति यह है कि पहले चरण के नामांकन की आखिरी तारीख 17 अक्टूबर है, यानी सिर्फ दो दिन बाकी हैं। लेकिन महागठबंधन, यानी आरजेडी, कांग्रेस, वामदल और बाकी सहयोगी, अब तक यह तय नहीं कर पाए कि कौन कितनी सीट पर लड़ेगा।

उधर एनडीए 12 अक्टूबर को सीट बंटवारे का ऐलान कर चुका है, जेडीयू और भाजपा को 101-101 सीटें और ‘हम’ को 29। वहाँ तो सीटें बंट गईं, बैनर लग गए, प्रचार शुरू हो गया। इधर महागठबंधन अब भी कैल्क्युलेटर और कॉफी मग लेकर बैठा है।

समस्या कांग्रेस की है, जो सीटों पर उतनी ही अड़ी है जितना कोई बच्चा अपना पसंदीदा खिलौना छोड़ने पर। कांग्रेस 70 सीटें मांग रही है, जबकि आरजेडी कह रही है कि 55-58 ही मिलेंगी।

बीच में खबर आई थी कि डील तय हो गई- 58 सीटों पर समझौता हो गया। लेकिन, फिर पता नहीं क्या हुआ, बातचीत फिर से ठंडी पड़ गई। शायद राहुल गांधी की विदेश यात्रा ने राजनीतिक तापमान कम कर दिया।

अब स्थिति ये है कि आरजेडी ने अपने 71 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी, भाकपा 18 सीटों पर मैदान में उतर चुकी है, सीपीआई ने 6 नाम तय कर दिए और 4 पर चर्चा पूरी। वीआईपी को भी 12 सीटें मिलीं।

यानी सब तैयार हैं, बस कांग्रेस अपने कैंडिडेट्स की फाइलों को "अभी मीटिंग में हैं" कहकर संभाले बैठी है। गठबंधन के बाकी दल अब सांस रोके बैठे हैं कि कांग्रेस कब तय करेगी कि कौन कहां से लड़ेगा।

इधर राहुल गांधी के विदेश जाने से पार्टी का मनोबल भी नीचे गिर गया है। कार्यकर्ता अब "वोटर राइट्स यात्रा" के बजाय "लीडर सर्च यात्रा" निकालने के मूड में हैं।

राहुल की अनुपस्थिति ने न केवल सीट बंटवारे को उलझा दिया, बल्कि तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री चेहरा घोषित करने की प्रक्रिया भी फंसा दी है। तेजस्वी जी तो मंच पर खुद को सीएम घोषित कर चुके हैं, पर कांग्रेस की ओर से अब तक कोई मुहर नहीं लगी है।

अगर राजनीति के नजरिए से देखें, तो राहुल गांधी का यह टाइमिंग कमाल का है, जिस वक्त पार्टी को कप्तान की जरूरत थी, उन्होंने खुद को "रिटायर हर्ट" घोषित कर दिया। ठीक वैसे ही जैसे कोई बल्लेबाज सेंचुरी से 5 रन पहले चोट लगने का बहाना बना ले।

2024 के लोकसभा चुनाव में भी यही पैटर्न देखा गया था। समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन था, अखिलेश यादव पूरी तैयारी में थे, पर कांग्रेस की तरफ से सीटों पर देरी होती रही।

नतीजा यह हुआ कि पहले चरण तक दोनों पार्टियों की संयुक्त सभा तक नहीं हो पाई। अब वही स्क्रिप्ट बिहार में रिपीट हो रही है, बस लोकेशन बदली है।

कांग्रेस की इस "लेट-लतीफी" ने गठबंधन के बाकी दलों को मुश्किल में डाल दिया है। उम्मीदवार तय नहीं, सिंबल जारी नहीं, और प्रचार की कोई दिशा नहीं। जो कार्यकर्ता उम्मीद कर रहे थे कि राहुल गांधी नेतृत्व संभालेंगे, अब वही पूछ रहे हैं "साहब लौटेंगे कब?"

कांग्रेस के भीतर भी असमंजस है। कुछ नेता कह रहे हैं कि राहुल जी की विदेश यात्रा पहले से तय थी। लेकिन सवाल उठता है कि आखिर चुनाव के ठीक बीच में छुट्टी क्यों?क्या बिहार की गर्मी ज़्यादा थी या सीट शेयरिंग की राजनीति ज़्यादा उबाऊ?

राजनीति में वक्त की समझ ही सबसे बड़ी रणनीति होती है। और कांग्रेस की यही पुरानी बीमारी है, वक्त बीत जाता है, और पार्टी अब भी "डिस्कशन मोड" में रहती है।

राहुल गांधी शायद मानते हैं कि राजनीति एक मैराथन है, जिसमें बीच-बीच में ब्रेक लेना जरूरी है। लेकिन चुनाव तो 100 मीटर की रेस होती है,जहां जो एक पल भी रुका, वो पीछे रह गया।

तेजस्वी यादव अब भी उम्मीद लगाए हैं कि राहुल गांधी लौटेंगे और आखिरी समय में जादू दिखाएंगे। पर सवाल यह है कि जब तक वे लौटेंगे, तब तक क्या गाड़ी दोबारा चल भी पाएगी?

राहुल गांधी की इस “ब्रेक पॉलिटिक्स” को कोई “Political Patience” कहे या “Political Absence”, पर नतीजा एक ही है,  महागठबंधन की रफ्तार वहीं अटकी हुई है।

बिहार की जनता अब धीरे-धीरे समझ रही है कि जो नेता अपने सहयोगियों को समय पर संभाल नहीं पाता, वो राज्य की स्टीयरिंग कैसे संभालेगा?

फिलहाल स्थिति यही है, महागठबंधन की गाड़ी सड़क पर है, इंजन चालू है, लेकिन ड्राइवर विदेश में कॉफी की चुस्कियां ले रहा है। और पार्टी के बाकी सदस्य सोच रहे हैं, “अब आगे बढ़ें या ब्रेक फुल दबा दें?”

राजनीति में ब्रेक लेना गलत नहीं, लेकिन टाइमिंग सब कुछ होती है। राहुल गांधी की ये छुट्टी शायद उनके लिए ‘मेंटल रिलैक्सेशन’ हो, पर गठबंधन के लिए ये बन गई है पॉलिटिकल रिलैक्सेशन, यानी चुनाव से पहले ही आराम। अब बस जनता तय करेगी कि राहुल गांधी का ये ब्रेक रणनीति था या ब्रेकडाउन।

✍️...रघुनाथ सिंह

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