Skip to main content

डोनाल्ड ट्रंप का टैरिफ वार,क्या होगा व्यापार का भविष्य अबकी बार?

Donald Trump  Image Source : Google 

ट्रंप का व्यापार युद्ध: वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए खतरा या अवसर?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत व्यापार नीति में बड़े बदलावों के साथ की, जिसमें चीन, कनाडा और मैक्सिको से आयातित वस्तुओं पर भारी टैरिफ लगाए गए।

ट्रंप प्रशासन का दावा है कि यह कदम अमेरिकी नौकरियों की रक्षा करेगा, अवैध प्रवास को रोकेगा और नशीली दवाओं की तस्करी पर अंकुश लगाएगा। लेकिन आर्थिक विशेषज्ञ इस नीति को वैश्विक व्यापार प्रणाली के लिए एक गंभीर चुनौती मान रहे हैं।

इस व्यापार युद्ध से वैश्विक बाजारों में अस्थिरता बढ़ी है, जिससे निवेशकों की चिंताएं बढ़ गई हैं और कई देशों ने जवाबी कदम उठाने की घोषणा की है।

इस व्यापार युद्ध की पृष्ठभूमि को समझने के लिए हमें अमेरिका और चीन के बीच दशकों से चले आ रहे व्यापारिक असंतुलन पर नजर डालनी होगी। अमेरिका लंबे समय से चीन पर अनुचित व्यापारिक नीतियों का आरोप लगाता रहा है।

ट्रंप प्रशासन का मानना है कि चीन सरकारी सब्सिडी और अन्य तरीकों से अपनी कंपनियों को वैश्विक बाजार में अनुचित लाभ प्रदान करता है।

यही कारण है कि अमेरिका ने चीनी उत्पादों पर 10% टैरिफ लगाने की घोषणा की, जिससे इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, कृषि उत्पादों और अन्य उद्योगों पर प्रभाव पड़ा।

ट्रंप प्रशासन ने कनाडा और मैक्सिको से आयातित उत्पादों पर भी 25% तक टैरिफ लगाए हैं, जबकि कनाडा से आने वाले ऊर्जा उत्पादों पर 10% अतिरिक्त कर लगाया गया है।

इन टैरिफ्स का उद्देश्य अमेरिकी कंपनियों को घरेलू स्तर पर उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रेरित करना था। लेकिन आलोचकों का कहना है कि इन शुल्कों से अमेरिकी उपभोक्ताओं को अधिक कीमत चुकानी पड़ेगी, जिससे महंगाई दर बढ़ सकती है और कई उद्योगों को नुकसान हो सकता है।

टैरिफ लागू होने के बाद चीन ने भी जवाबी कदम उठाए। चीन ने अमेरिकी कोयला, तेल और कृषि उत्पादों पर 15% टैरिफ लगाया और अमेरिकी टेक्नोलॉजी कंपनियों के खिलाफ कठोर कदम उठाए।

गूगल जैसी कंपनियों के खिलाफ एंटी-ट्रस्ट जांच शुरू की गई और कई अमेरिकी कंपनियों को "अविश्वसनीय संस्थाओं" की सूची में डाला गया।

इसके अलावा, चीन ने महत्वपूर्ण खनिजों के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगाए, जिससे अमेरिकी हाई-टेक उद्योग प्रभावित हो सकता है।

मैक्सिको और कनाडा की प्रतिक्रिया भी तीखी रही। मैक्सिको ने अपनी उत्तरी सीमा पर 10,000 सैनिकों की तैनाती की घोषणा की, ताकि अमेरिका के साथ समझौता किया जा सके।

कनाडा ने शुरुआत में 106 बिलियन के अमेरिकी उत्पादों पर जवाबी टैरिफ लगाने की धमकी दी, लेकिन बाद में ट्रंप प्रशासन से समझौता कर सीमा सुरक्षा को मजबूत करने का आश्वासन दिया।

इस व्यापार युद्ध का सबसे बड़ा असर वैश्विक बाजारों पर पड़ा है। जब टैरिफ की घोषणा की गई, तो एशियाई और अमेरिकी शेयर बाजारों में भारी गिरावट दर्ज की गई।

निवेशक अनिश्चितता के कारण पूंजी निकालने लगे और कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने अपनी व्यापार रणनीतियों पर पुनर्विचार करना शुरू कर दिया। इस अस्थिरता से वैश्विक अर्थव्यवस्था पर मंदी का खतरा मंडराने लगा है।

एक अन्य प्रमुख प्रभाव यह है कि अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए आयातित वस्तुएं महंगी हो जाएंगी। जब किसी उत्पाद पर टैरिफ लगाया जाता है, तो उसकी कीमत बढ़ जाती है, जिससे उपभोक्ता अधिक भुगतान करने के लिए मजबूर हो जाते हैं।

उदाहरण के लिए, यदि चीन से आयातित स्मार्टफोन या लैपटॉप की कीमतें बढ़ती हैं, तो अमेरिकी उपभोक्ताओं को अधिक खर्च करना होगा। इसी तरह, ऑटोमोबाइल और अन्य उद्योगों में भी कीमतें बढ़ने की संभावना है, जिससे महंगाई दर पर दबाव बढ़ेगा।

व्यापार युद्ध से वैश्विक व्यापार प्रणाली पर भी गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक संबंध जवाबी टैरिफ और प्रतिबंधों से प्रभावित हो सकते हैं, जिससे देशों के बीच व्यापार अस्थिर हो सकता है।

यह स्थिति अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखलाओं को भी बाधित कर सकती है, क्योंकि कई कंपनियां कच्चे माल और उत्पादन के लिए विभिन्न देशों पर निर्भर करती हैं।

यदि टैरिफ के कारण उत्पादन लागत बढ़ती है, तो यह पूरी अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकता है।

इस व्यापार युद्ध का एक और बड़ा खतरा यह है कि यह निवेशकों के बीच अनिश्चितता पैदा कर सकता है। जब कोई सरकार व्यापारिक नीतियों में अचानक बदलाव करती है, तो निवेशक अपने पूंजी निवेश को लेकर सतर्क हो जाते हैं।

इससे नए प्रोजेक्ट्स में निवेश घट सकता है और आर्थिक विकास दर धीमी हो सकती है। यदि यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहती है, तो इससे वैश्विक आर्थिक मंदी की संभावना बढ़ सकती है।

अमेरिकी निर्यातकों के लिए भी यह नीति नुकसानदायक साबित हो सकती है। जब अन्य देश जवाबी टैरिफ लगाते हैं, तो अमेरिकी कंपनियों के लिए अपने उत्पादों को वैश्विक बाजार में बेचना मुश्किल हो जाता है।

उदाहरण के लिए, चीन ने अमेरिकी कृषि उत्पादों पर टैरिफ लगा दिया, जिससे अमेरिकी किसानों को भारी नुकसान हुआ। इसी तरह, अन्य देशों में भी अमेरिकी उत्पादों की मांग कम हो सकती है, जिससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को झटका लग सकता है।

वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर भी इस व्यापार युद्ध का गहरा प्रभाव पड़ सकता है। आज की दुनिया में उत्पादन कई देशों में फैला होता है। उदाहरण के लिए, एक स्मार्टफोन के अलग-अलग हिस्से विभिन्न देशों में बनाए जाते हैं और फिर उन्हें किसी एक देश में असेंबल किया जाता है।

यदि किसी देश पर भारी टैरिफ लगाए जाते हैं, तो इससे पूरी आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित हो सकती है।

इससे उत्पादन लागत बढ़ेगी और कंपनियों को नए व्यापारिक साझेदारों की तलाश करनी पड़ेगी, जिससे वैश्विक व्यापार अस्थिर हो सकता है।

इस व्यापार युद्ध के दीर्घकालिक प्रभावों को लेकर भी कई सवाल उठ रहे हैं। यदि ट्रंप प्रशासन की यह नीति सफल होती है और अन्य देश अमेरिकी मांगों को मान लेते हैं, तो यह अमेरिका के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।

इससे अमेरिकी कंपनियों को अधिक सुरक्षा मिलेगी, और नौकरियां बढ़ सकती हैं। लेकिन अगर व्यापार युद्ध और गहराया, तो इससे अमेरिका समेत पूरी दुनिया को आर्थिक झटके सहने पड़ सकते हैं।

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस व्यापार युद्ध का अंत बातचीत और समझौते से हो सकता है। जब देशों को यह एहसास होगा कि टैरिफ और प्रतिबंधों से उन्हें नुकसान हो रहा है, तो वे आपसी बातचीत के जरिए समाधान निकालने की कोशिश कर सकते हैं।

हालांकि, यह प्रक्रिया आसान नहीं होगी, क्योंकि हर देश अपने आर्थिक हितों की रक्षा करना चाहता है।

इस व्यापार युद्ध से वैश्विक व्यापार प्रणाली में बड़े बदलाव होने की संभावना है। यदि टैरिफ युद्ध लंबा चलता है, तो इससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों में बदलाव की जरूरत पड़ सकती है।

इससे व्यापारिक संगठनों और समझौतों पर भी प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि देश अपने व्यापारिक संबंधों को फिर से परिभाषित करेंगे।

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इस नीति का अमेरिका की आंतरिक राजनीति पर भी असर पड़ सकता है। यदि यह नीति सफल होती है और अमेरिकी अर्थव्यवस्था को लाभ होता है, तो यह ट्रंप की लोकप्रियता बढ़ा सकती है।

लेकिन, अगर इससे महंगाई बढ़ती है और नौकरियां कम होती हैं, तो इससे ट्रंप प्रशासन को राजनीतिक नुकसान हो सकता है।

ट्रंप का यह व्यापार युद्ध केवल एक आर्थिक नीति नहीं है, बल्कि एक राजनीतिक और कूटनीतिक रणनीति भी है। अमेरिका ने टैरिफ बढ़ाकर अपने हितों की रक्षा करने की कोशिश की है, लेकिन इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ सकता है।

यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह नीति अमेरिका को आर्थिक रूप से मजबूत बनाएगी या फिर यह वैश्विक मंदी की ओर एक और कदम साबित होगी।

✍️... रघुनाथ सिंह

Comments

Popular posts from this blog

व्यंग्य: सपनों का पेट, हकीकत का गिटार? कब बजेगी फिटनेस की तार?

हमारे समाज में फिटनेस अब एक नए 'संस्कार' के रूप में लोगों के दिमाग बैठ चुकी है। हर व्यक्ति इस राह पर चलने लगा है, जहां "प्रोटीन शेक्स" को आशीर्वाद की तरह लिया जाता है और वजन घटाने वाले डाइट प्लान को किसी शास्त्र की तरह माना जाता है। लेकिन हम सब जानते हैं कि फिटनेस की इस धारणा में कुछ बातें इतनी सरल नहीं हैं जितनी कि ये दिखती हैं। । खासकर जब हम 'पेट' जैसे जटिल विषय पर बात करें। तो आज हम इसी पेट के इर्द-गिर्द एक मजेदार और व्यंग्यपूर्ण यात्रा पर निकलते हैं, जिसमें फिटनेस की बात होगी, लेकिन चुटीले अंदाज में!  बढ़ता हुआ पेट और समाज का प्यारभरा आशीर्वाद सबसे पहले तो एक सवाल– क्या आपने कभी सोचा है कि पेट बढ़ता क्यों है? यह हमारे समाज का आशीर्वाद है। हां, यही बात है। शादी के बाद लोग तुरंत पूछते हैं, "अरे! पेट कब आएगा?" जब आपके पेट पर थोड़ा सा भी 'संकेत' मिलता है, तो समाज में हर व्यक्ति फिटनेस गुरू बन जाता है। पड़ोसी आंटी से लेकर ऑफिस के सहकर्मी तक, सब आपको हेल्दी डाइट प्लान और व्यायाम के सुझाव देने लगते हैं। और अगर आप जिम जाने का इरादा भी करते हैं,...

ध्यानी नहीं शिव सारस

!!देव संस्कृति विश्विद्यालय में स्थपित प्रज्ञेश्वर महादेव!! ध्यानी नहीं शिव सारसा, ग्यानी सा गोरख।  ररै रमै सूं निसतिरयां, कोड़ अठासी रिख।। साभार : हंसा तो मोती चुगैं पुस्तक से शिव जैसा ध्यानी नहीं है। ध्यानी हो तो शिव जैसा हो। क्या अर्थ है? ध्यान का अर्थ होता हैः न विचार, वासना, न स्मृति, न कल्पना। ध्यान का अर्थ होता हैः भीतर सिर्फ होना मात्र। इसीलिए शिव को मृत्यु का, विध्वंस का, विनाश का देवता कहा है। क्योंकि ध्यान विध्वंस है--विध्वंस है मन का। मन ही संसार है। मन ही सृजन है। मन ही सृष्टि है। मन गया कि प्रलय हो गई। ऐसा मत सोचो कि किसी दिन प्रलय होती है। ऐसा मत सोचो कि एक दिन आएगा जब प्रलय हो जाएगी और सब विध्वंस हो जाएगा। नहीं, जो भी ध्यान में उतरता है, उसकी प्रलय हो जाती है। जो भी ध्यान में उतरता है, उसके भीतर शिव का पदार्पण हो जाता है। ध्यान है मृत्यु--मन की मृत्यु, "मैं" की मृत्यु, विचार का अंत। शुद्ध चैतन्य रह जाए--दर्पण जैसा खाली! कोई प्रतिबिंब न बने। तो एक तो यात्रा है ध्यान की। और फिर ध्यान से ही ज्ञान का जन्म होता है। जो ज्ञान ध्यान के बिना तुम इकट्ठा ...

व्यंग्य: राजधानी दिल्ली की हवा हुई और खराब, राजनेताओं की बातों में कुछ नहीं 'खरा' अब

देश की राजधानी  दिलवालों की   दिल्ली  आजकल  किसी और  के लिए ही जानी जा रही है - वो है यहां की एयर क्वॉलिटी इंडेक्स । यहां की हवा में अब ऐसा जहर घुल चुका है कि सांस लेना किसी कारनामे से कम नहीं लगता। ख़राब एयर क्वॉलिटी से हालात इतने दयनीय हैं कि लोग गहरी सांस लेने की बजाय William Shakespeare के “Hamlet” की तरह सोच रहे हैं- "To breathe or not to breathe, that is the question." यहां की वायु में घुला यह धुआं किसी त्रासदी से कम नहीं, लेकिन सफेद कुर्ताधारियों के लिए यह बस राजनीति का नया मुद्दा ही अपितु एक पॉलिटिकल डायलॉग और लफ्फाजी का अखाड़ा बन चुका है। दिल्ली की ज़हरीली हवा में अब सांस लेना किसी बॉलीवुड के फिल्मी विलेन से लड़ने जैसा हो गया है। यहां के हालात देखकर “Hamlet” का एक अन्य संवाद याद आती है- "Something is rotten in the state of Denmark." बस, ‘डेनमार्क’ की जगह आप दिल्ली लिख लें, बाकी सब वैसा ही है। देश राजधानी की एयर क्वॉलिटी इंडेक्स का हाल पूछिए, तो जवाब आता है—जहांगीरपुरी 458, मुंडका 452, और आनंद विहार 456। अब यह AQI नहीं, जैसे कोई IPL Cricket Match का...