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Mahakumbh 2025: योगी, ऋषि, संतों का संग, कुंभ में बसता हरि का रंग

                      Mahakumbh 2025: योगी, ऋषि, संतों का संग, कुंभ में बसता हरि का रंग

  1. संगम में प्रवाहित पुण्य की धारा, संतों के तप से आलोकित हुआ धर्म का उजियारा.
  2. ऋषियों की वाणी, सन्यासियों की साधना, कुंभ में खुला योग, ध्यान और ब्रह्मज्ञान का खजाना.
  3. प्रयागराज में हर-हर महादेव, जय जय श्रीराम, महाकुंभ में गूंजा ईश्वर का पावन नाम.

महाकुंभ 2025 का पावन आयोजन अपने अंतिम चरण में प्रवेश कर चुका है। वसंत पंचमी (3 जनवरी 2025) के दिन हुए तीसरे अमृत स्नान ने सनातन धर्म की दिव्यता और अखाड़ों की आस्था का भव्य स्वरूप प्रकट किया। त्रिवेणी संगम के तट पर जब नागा संन्यासी गदा, तलवार और त्रिशूल लहराते हुए पहुंचे, तो पूरा प्रयागराज "हर-हर महादेव" और "जय सियाराम" के जयघोषों से गूंज उठा।

महाकुंभ केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का मार्गदर्शन करने वाला महापर्व है। इस आयोजन में साधु-संतों से लेकर श्रद्धालु भक्तों तक, सभी ने आस्था और आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव किया।

महाकुंभ का महत्व और सनातन परंपरा
महाकुंभ विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक मेला है, जो हर 12 वर्षों में चार पवित्र स्थलों—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित किया जाता है। इसे धर्म, आस्था, तपस्या और मोक्ष प्राप्ति का महापर्व माना जाता है।
मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय जब अमृत कलश प्राप्त हुआ, तब देवताओं और असुरों के बीच इस दिव्य अमृत को पाने के लिए संघर्ष हुआ। इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें धरती पर गिरीं, जिन स्थानों पर वे गिरीं, वे ही कुंभ स्थलों के रूप में प्रसिद्ध हुए।

महाकुंभ 2025: 144 वर्षों में एक बार होने वाला महासंयोग
महाकुंभ का आयोजन हर 12 वर्षों में होता है, लेकिन 144 वर्षों में एक बार ऐसा दुर्लभ संयोग बनता है, जब महाकुंभ का विशेष ज्योतिषीय योग बनता है। इसे "महामहाकुंभ" कहा जाता है।
इस काल में सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति के विशेष संयोग के कारण गंगा जल में दिव्य ऊर्जा का संचार अधिक होता है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस दौरान संगम में स्नान करने से सहस्र जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं और जीवात्मा मोक्ष के समीप पहुंच जाती है। 
महामहाकुंभ 2025  में संतों, महायोगियों और तपस्वियों का अद्भुत समागम होता है। यह अवसर न केवल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है, बल्कि धर्म, संस्कृति और भारतीय परंपराओं के पुनर्जागरण का भी प्रतीक होता है।
कहा जाता है कि जो इस महायोग में स्नान करता है, उसे पुनर्जन्म से मुक्ति मिलती है और उसे भगवान के दिव्य धाम की प्राप्ति होती है। प्रयागराज का कुंभ विशेष रूप से पवित्र माना जाता है, क्योंकि यहाँ गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम होता है।
इस संगम में स्नान करना जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति दिलाने वाला माना गया है। यही कारण है कि करोड़ों श्रद्धालु इस महापर्व में भाग लेने के लिए देश-विदेश से प्रयागराज पहुंचते हैं।   

अमृत स्नान: आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार
महाकुंभ में स्नान की चार महत्वपूर्ण तिथियाँ होती हैं, जिन्हें "शाही स्नान" या "अमृत स्नान" कहा जाता है। ये स्नान विशेष रूप से अखाड़ों और संत समुदाय के लिए आरक्षित होते हैं। 
वसंत पंचमी के दिन हुए तीसरे अमृत स्नान ने श्रद्धालुओं को अध्यात्म की परम ऊंचाई तक पहुंचाया। सुबह तड़के ही संन्यासियों और नागाओं के दल अपने-अपने अखाड़ों से भव्य जुलूस के साथ निकले। सबसे पहले श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा और श्री शंभू पंचायती अटल अखाड़ा ने स्नान किया। इसके बाद अन्य अखाड़ों ने निर्धारित क्रम में संगम में पुण्य स्नान किया।
हजारों की संख्या में नागा संन्यासी, महामंडलेश्वर, आचार्य, श्री महंत और तपस्वी साधु पारंपरिक वेशभूषा में दर्शन देते हुए निकले। नागा संन्यासियों ने भस्म रमाए, त्रिशूल, तलवार और गदा हाथ में उठाए हुए शौर्य और भक्ति का अनुपम संगम प्रस्तुत किया। वेद मंत्रों के उच्चारण और घंटे-घड़ियाल की ध्वनि के साथ त्रिवेणी संगम में स्नान किया गया।  
स्नान के पश्चात नागाओं और संतों ने विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान संपन्न किए। ईष्ट देवों की पूजा-अर्चना, मंत्र जप, यज्ञ, हवन और दान का विशेष आयोजन हुआ। संत समाज ने इस पावन अवसर पर संकल्प लिया कि वे सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए अपने जीवन को समर्पित करेंगे। 

सनातनी अखाड़ों की दिव्य यात्रा
महाकुंभ में अखाड़ों की भागीदारी इसे विशिष्ट बनाती है। भारत के 13 प्रमुख अखाड़े इसमें भाग लेते हैं, जिन्हें तीन मुख्य वर्गों में विभाजित किया जाता है— शैव अखाड़े, वैष्णव अखाड़े और उदासीन अखाड़े। प्रत्येक अखाड़े की अपनी विशिष्ट परंपरा और अनुशासन होता है।  
शैव अखाड़ों की यात्रा
शैव अखाड़े भगवान शिव के भक्त होते हैं और नागा संन्यासियों के लिए प्रसिद्ध हैं। इनमें श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा, श्री पंचायती अटल अखाड़ा, श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा, अग्नि अखाड़ा और आवाहन अखाड़ा प्रमुख हैं। 
इस बार के कुंभ में जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि की अगुवाई में नागा संन्यासियों का विशाल जुलूस निकला। संन्यासियों ने भस्म रमाए, त्रिशूल उठाए और गंगा तट पर करतब दिखाए। नागा संन्यासियों का अनुशासन, उनका तेजस्वी रूप और उनके अस्त्र-शस्त्रों का प्रदर्शन अद्भुत था।

वैष्णव अखाड़ों का भव्य प्रवेश
वैष्णव अखाड़ों में श्री वैष्णव बाड़ा अखाड़ा, निर्मोही अखाड़ा और दिगंबर अखाड़ा प्रमुख हैं। ये अखाड़े भगवान विष्णु और उनके विभिन्न अवतारों की आराधना करते हैं। इस बार श्री वैष्णव अखाड़े के संतों ने भगवान राम और कृष्ण के जयघोषों के साथ अमृत स्नान किया। 

उदासीन और अनि अखाड़ों की विशेषता
उदासीन अखाड़े और अनि अखाड़े सनातन धर्म की उदासीन संप्रदाय परंपरा का पालन करते हैं। इन अखाड़ों के संत वैराग्य, ध्यान और भक्ति के मार्ग पर चलते हैं।

महाकुंभ में अद्भुत दृश्य
महाकुंभ के दौरान पूरा प्रयागराज एक दिव्य नगरी के रूप में परिवर्तित हो जाता है। इस वर्ष भी संगम तट पर विभिन्न आयोजन हुए— अखाड़ों की शाही सवारी, हाथी-घोड़े, रथ और पालकियों के साथ निकली शोभायात्रा ने श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। वैदिक मंत्रों के साथ विभिन्न यज्ञ, हवन और पूजा संपन्न की गई। संतों और विद्वानों ने सनातन धर्म के सिद्धांतों पर प्रवचन किए।
महाकुंभ में विभिन्न धार्मिक संस्थानों द्वारा आध्यात्मिक प्रदर्शनी लगाई गई।  हजारों संतों और श्रद्धालुओं के लिए अन्नदान और सेवा कार्य किए गए।

महाकुंभ का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक पक्ष
महाकुंभ केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। जब सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति विशेष संयोग में आते हैं, तब संगम तट पर स्नान करने से आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है। 

  • वैज्ञानिक शोधों के अनुसार, महाकुंभ के दौरान गंगा जल में औषधीय गुण बढ़ जाते हैं, जिससे यह अमृत तुल्य बन जाता है। 
  • कुंभ मेले के दौरान ध्यान, योग और तपस्या करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है। 
  • कुंभ का आयोजन भारत की सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों से लोग आते हैं और सनातन संस्कृति के विविध रंगों को देखते हैं।
अमृत स्नान के बाद अखाड़ों की यात्रा
अमृत स्नान के पश्चात शैव अखाड़ों के संतों ने काशी प्रवास के लिए प्रयागराज से प्रस्थान किया। काशी, जो भगवान शिव की नगरी है, संन्यासियों के लिए विशेष महत्व रखती है। वहीं, अन्य अखाड़ों के संत अपने-अपने आश्रमों और मठों में लौटने लगे हैं।  
कुंभ में आए हुए संतों और श्रद्धालुओं ने इस अवसर को आत्मिक शुद्धि और परमात्मा से निकटता का माध्यम माना। सभी ने यह संकल्प लिया कि वे अपने जीवन में धर्म, सेवा, भक्ति और ज्ञान के मार्ग को अपनाएंगे। महाकुंभ 2025 का आयोजन सनातन संस्कृति की महानता, आध्यात्मिकता और भक्ति का प्रतीक बन गया। त्रिवेणी संगम में हुए अमृत स्नान, अखाड़ों की दिव्यता, संतों के प्रवचन और श्रद्धालुओं की भक्ति ने इसे अद्वितीय बना दिया। 
महाकुंभ केवल एक मेला नहीं, बल्कि सनातन धर्म की शक्ति, भारतीय संस्कृति की महानता और मानवता के उत्थान का सबसे बड़ा पर्व है। इस महापर्व ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि सनातन धर्म की जड़ें अटूट हैं और इसकी आध्यात्मिक ऊर्जा संपूर्ण विश्व को आलोकित करने के लिए सदैव प्रवाहित होती रहेगी।
महाकुंभ 2025 इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कड़ी है, जिसने सनातन परंपरा को और अधिक दृढ़ता से स्थापित किया है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, तपस्या और ज्ञान का महोत्सव है, जो संपूर्ण विश्व को आध्यात्मिक प्रकाश से आलोकित करता रहेगा।

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