"जब सभी प्रयास विफल हो जाएँ, तब ही शस्त्र उठाना उचित है।” यह महान संदेश गुरु गोबिंद सिंह जी का है, जिनका जीवन सत्य, शौर्य और धर्म के प्रति अटूट निष्ठा का प्रतीक है। उनका व्यक्तित्व केवल एक योद्धा का नहीं, बल्कि एक कवि, दार्शनिक, और धर्मप्रवर्तक का भी था। उनकी शिक्षाएँ और उनके कार्य आज भी मानवता के लिए प्रेरणास्रोत हैं। यह लेख उनके जीवन की घटनाओं और उनके आदर्शों को रेखांकित करता है। गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को पटना, बिहार में हुआ। उनका बचपन का नाम गोबिंद राय था। बचपन से ही वे असाधारण प्रतिभा के धनी थे। मात्र 7 वर्ष की आयु में उन्होंने गुरमुखी सीख ली और संस्कृत, ब्रज, फारसी में निपुणता प्राप्त की। इसके साथ-साथ उन्होंने शस्त्रकला में भी प्रवीणता हासिल की। उनके जीवन का सबसे बड़ा मोड़ तब आया जब उनके पिता, गुरु तेग बहादुर जी, ने कश्मीरी पंडितों और अन्य हिंदुओं की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया। यह घटना गुरु गोबिंद सिंह के जीवन में धर्म और मानवता की रक्षा का बीज बन गई। गुरु गोबिंद सिंह जी का सबसे महत्वपूर्ण योगदान खालसा पंथ की स्थापना है। 16...
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