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Showing posts from 2025

Bihar Election: राहुल गांधी गए विदेश, महागठबंधन में बढ़ा टेंशन और क्लेश

Image: Google बिहार की राजनीति इन दिनों किसी धीमी गति की फिल्म जैसी लग रही है, जहां सारे किरदार डायलॉग बोल चुके हैं, कैमरा चालू है, पर मुख्य अभिनेता अचानक सेट से गायब है। महागठबंधन की गाड़ी पूरी रफ्तार से चल रही थी, इंजन गर्म था, रोड क्लियर था, जनता भी ताली बजा रही थी, तभी राहुल गांधी ने अचानक "ब्रेक" लगा दिए। अब बाकी साथी हैरान हैं, ये हुआ क्या? राहुल गांधी ने चुनावी तैयारी तो मानो किसी ओलंपिक एथलीट की तरह शुरू की थी। बिहार की सड़कों पर रैली, भाषण, पोस्टर, सब तैयार। कांग्रेस के कार्यकर्ता खुश थे कि “इस बार साहब गंभीर हैं।” लेकिन जैसे ही चुनाव का असली वक्त आया, राहुल गांधी ने कहा, अब थोड़ा आराम कर लेते हैं और निकल पड़े विदेश यात्रा पर। शायद उन्होंने सोचा हो कि बिहार के मुद्दे अब Zoom कॉल पर ही निपटा लेंगे। अब स्थिति यह है कि पहले चरण के नामांकन की आखिरी तारीख 17 अक्टूबर है, यानी सिर्फ दो दिन बाकी हैं। लेकिन महागठबंधन, यानी आरजेडी, कांग्रेस, वामदल और बाकी सहयोगी, अब तक यह तय नहीं कर पाए कि कौन कितनी सीट पर लड़ेगा। उधर एनडीए 12 अक्टूबर को सीट बंटवारे का ऐलान कर चुका है, जेडीयू ...

रात की नींद, सुबह का ध्यान — बनेगा जीवन का उत्तम विधान

मानव का शरीर केवल हड्डियों, मांसपेशियों और रक्त का समूह नहीं है, बल्कि यह प्रकृति की लय के साथ तालमेल बिठाकर चलने वाला एक अद्भुत जैविक यंत्र है। यह प्रकृति के समय-चक्र से गहराई से जुड़ा है। जिस प्रकार सूर्य, चंद्रमा, ग्रह और नक्षत्र अपने निश्चित क्रम में गति करते हैं, उसी प्रकार शरीर भी अपने भीतर एक अदृश्य जैविक घड़ी के अनुसार कार्य करता है। आयुर्वेद में इसे “कालानुसार दिनचर्या” कहा गया है, अर्थात् समय के अनुरूप आहार, निद्रा और कर्म का पालन। जब हम इस प्राकृतिक लय का अनुसरण करते हैं, तो शरीर और मन दोनों संतुलित रहते हैं। किंतु जब हम इस लय को तोड़ते हैं, तो असंतुलन, रोग और मानसिक अस्थिरता हमारे जीवन का हिस्सा बन जाते हैं। रात्रि का समय शरीर के लिए विश्राम का समय है। जब हम सोते हैं, तब भी शरीर काम कर रहा होता है। वह खुद को ठीक कर रहा होता है। रात्रि 11 बजे से प्रातः 3 बजे के बीच हमारे रक्त (Blood) का अधिकांश भाग यकृत, यानी लीवर की ओर केन्द्रित हो जाता है। यह समय शरीर की विषहरण प्रक्रिया का होता है। दिनभर शरीर में जो विषाक्त पदार्थ, रासायनिक अवशेष, या मानसिक तनाव के कारण उत्पन्न टॉक्सिन ज...

भक्ति में भावना, भावना में ध्यान, करवाचौथ बने जीवन का गान

Image Source: Google भारतीय सनातन संस्कृति में करवाचौथ का व्रत केवल एक पारंपरिक पर्व नहीं, अपितु प्रेम और चेतना का दिव्य उत्सव है। यह वह दिन है जब स्त्री अपने भीतर की ऊर्जा को श्रद्धा, संयम और सजगता के माध्यम से एक उच्च अवस्था में रूपांतरित करती है। उपवास का अर्थ केवल अन्न या जल का त्याग नहीं होता, अपितु अपनी इच्छाओं और इंद्रियों पर विजय पाने की साधना है। जब कोई भूख और प्यास को भी साक्षीभाव से देखता है, तो वह अपने भीतर यह अनुभव करता है कि वह शरीर नहीं है, अपितु उस शरीर को देखने वाली चेतना है। यह व्रत किसी बाहरी कर्मकांड की कठोरता नहीं, अपितु आंतरिक अनुशासन की कोमलता है। इसमें प्रेम का वह रूप प्रकट होता है, जो अधिकार से नहीं, समर्पण से उपजता है। सच्चे प्रेम में दासता नहीं होती, उसमें स्वतंत्रता की गंध होती है। जब कोई प्रेम में यह कहता है कि मैं तुम्हारे साथ जीवन के संगीत में एक सुर बनकर रहूँगा,  तब वह प्रेम किसी सीमित भावना से ऊपर उठकर ध्यान बन जाता है। यही इस व्रत का मर्म है, जहाँ प्रेम और ध्यान एक-दूसरे में विलीन हो जाते हैं। करवाचौथ की रात का सबसे सुंदर और आलोकित क्षण वह होता है ...

Book review: Sleep, Dreams & Spiritual Reflections: युवा जीवन में संतुलन और दिशा

यह पुस्तक “Sleep, Dreams & Spiritual Reflections” पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के वाङ्मय से संकलित अंग्रेज़ी अनुवाद है। इसमें नींद और स्वप्न जैसे साधारण प्रतीत होने वाले विषय की गहराई को आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि से उजागर किया गया है। आचार्यश्री ने इसे स्पष्ट किया है कि नींद केवल शरीर को विश्राम देने की जैविक प्रक्रिया नहीं, बल्कि यह मन को संतुलित करने, आत्मा को गहराई से जोड़ने और चेतना के विकास का माध्यम है। आज का युवा वर्ग सबसे अधिक तनाव, चिंता और अनिद्रा से प्रभावित है। देर रात तक मोबाइल और स्क्रीन पर उलझे रहना, प्रतियोगिता का दबाव और भविष्य की अनिश्चितताएँ उसकी नींद और स्वप्न दोनों को बाधित करती हैं। ऐसे समय में यह पुस्तक युवाओं के लिए विशेष प्रासंगिक बन जाती है क्योंकि यह उन्हें यह समझाती है कि नींद और स्वप्न केवल व्यर्थ का समय नहीं, बल्कि जीवन को दिशा देने वाले संकेत हैं। स्वप्न मनुष्य के अवचेतन और अचेतन मन की गतिविधियों का दर्पण हैं, जो आत्म-विश्लेषण और आत्म-विकास का अवसर प्रदान करते हैं। आचार्यश्री ने गीता और वेदांत की शिक्षाओं का उल्लेख करते हुए बताया है कि चेतना के ...

पद्धतियों से नहीं, प्रामाणिकता से जन्म लेती है शिक्षा

भारतीय शैक्षिक परंपरा में यह मान्यता रही है कि शिक्षा केवल सूचना का आदान-प्रदान नहीं है, बल्कि आंतरिक चेतना और दृष्टि का विस्तार है। इसी संदर्भ में जब “ब्रेकिंग द कैनन : आर्ट एंड डिज़ाइन पैडागॉजी और प्रैक्टिस में जेंडर इक्वैलिटी” जैसे कार्यक्रम सामने आते हैं,तो उनके उद्देश्य और लक्ष्य निस्संदेह प्रशंसनीय प्रतीत होते हैं, किंतु गहराई से विचार करने पर कुछ प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठते हैं। समानता का अनुभव केवल बाहरी प्रशिक्षण या रणनीति से संभव नहीं है। यह तो भीतर की सजगता और धारणाओं से मुक्ति से जन्म लेता है। यदि शिक्षक और विद्यार्थी अपनी जड़बद्ध धारणाओं से परे जाएँ,तभी वास्तविक समानता का वातावरण बन सकता है। कार्यशालाओं के माध्यम सेसमानता सिखाने की कोशिश अक्सर बौद्धिक अभ्यास भर रह जाती है। रचनात्मकता का स्वभाव स्वतंत्रता है। वह किसी सामाजिक या लैंगिक खाँचे में बंधकर प्रकट नहीं होती। जब कला और डिज़ाइन को केवल जेंडर के आधार पर समझने और परिभाषित करने का प्रयास किया जाता है, तो अनजाने में उसी सीमा को मज़बूत कर दिया जाता है जिसे तोड़ना उद्देश्य था। सृजन न पुरुष है, न स्त्री, यह भीतर की सहजता औ...

कश्मीर में पट्टिका विवाद: राजनीतिक नेतृत्व और संवैधानिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन चुनौतीपूर्ण

हाल ही में कश्मीर की हजरतबल दरगाह में हुई संगमरमर की पट्टिका विवाद ने एक बार फिर कश्मीर की राजनीति और राजनीतिक नेतृत्व की भूमिका पर सवाल खड़ा कर दिया है। यह विवाद किसी धार्मिक विषय का नहीं था, बल्कि प्रशासनिक सुधार और जीर्णोद्धार के दौरान स्थापित प्रतीक के इर्द-गिर्द घूमता नजर आया। इसके बावजूद, यह प्रकरण राजनीतिक बहस और बयानबाजी का केंद्र बन गया। राजनीतिक नेतृत्व की जिम्मेदारी इस विवाद में स्पष्ट रूप से देखने को मिली। नेताओं की प्रतिक्रियाएँ समय पर संतुलन और संवैधानिक दृष्टिकोण के बजाय केवल राजनीतिक दृष्टिकोण पर आधारित रही। यह घटना केवल प्रतीकात्मक मुद्दा नहीं था, बल्कि नेतृत्व की संवेदनशीलता, निर्णय क्षमता और लोकतांत्रिक जिम्मेदारी की परीक्षा बन गई। राजनीतिक नेतृत्व का प्रारंभिक रवैया विवाद के तुरंत बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस के वरिष्ठ नेता उमर अब्दुल्ला ने यह कहा कि दरगाह में प्रतीक लगाने की कोई आवश्यकता नहीं थी। वहीं, पीडीपी की महबूबा मुफ्ती ने इसे "भावनाओं से छेड़छाड़" करार दिया। इन प्रतिक्रियाओं ने स्पष्ट कर दिया कि राजनीतिक नेतृत्व ने मुद्दे को संवैधानिक या प्रशासनिक दृष्ट...

बटुए का आख़िरी बयान...आइए जाने!

Image Source: Google मैं हूँ – बटुआ। सही सुना आपने। कभी इस शानदार घर का सबसे कीमती साथी था मैं। जेब में मेरी मौजूदगी… मालिक और मालकिन को आत्मविश्वास देती थी। और आज?…  मैं कोने में पड़ा, धूल खा रहा हूँ। मुझे याद है वो गुजरे दिन… जब मेरे अंदर नोटों की चमचमाती गड्डियाँ रहती थीं। सिक्कों की खनक मेरी धड़कन थी… और हर बार जब मालिक मुझे खोलता था, तो मेरे अंदर एक ज़िंदगी बसती थी। लेकिन वक्त बदल गया। Paytm, Google Pay, PhonePe… सबने मिलकर मेरा अस्तित्व छीन लिया। अब दुकानदार छुट्टा पैसा नहीं माँगता बस कहता है ‘भैया QR स्कैन करो।’ और मैं बस चुपचाप यह सब देखता रह जाता हूँ। आज मैं सिर्फ़ कागज़ों और पुराने कार्डों का कब्रिस्तान बनकर रह गया हूँ। सच बताऊं तो नोटों की खुशबू चली गई, सिक्कों की खनक चली गई… और मेरे अंदर बस बासी पर्चियाँ और पुराने कार्ड बचे हैं। मालिक ने मुझे कभी छाती से लगाकर रखा था। आज वही कहता है... भाई जेब भारी हो जाती है, बटुआ घर पे रख दे। असल में… जेब भारी नहीं हुई, प्यार हल्का हो गया है। वो दूर नहीं जब मैं अलमारी में पड़ा-पड़ा ही भूल दिया जाऊँगा। और फिर कोई मुझे देखकर कहेगा ...

Shri Krishna Janmashtami: The Eternal Beacon of Love, Wisdom, and Courage

Lord Shri Krishna stands as the eternal symbol of divine love, infinite wisdom, and unshakable courage. In the vast heritage of Indian culture, his birth—celebrated as Janmashtami—is not merely an annual festival, but a sacred occasion that awakens enthusiasm, devotion, and joy in countless hearts. He is the very axis of our cultural and spiritual ethos, a poorna purushottam —perfect in every virtue, complete in every art. Born in Dwapara Yuga, Shri Krishna is revered as the yugpurush —the supreme being of his era, the one who descended to re-establish dharma when unrighteousness prevailed. In the Bhagavad Gita (4.7–8), he declares: "Yada yada hi dharmasya glanir bhavati bharata, Abhyutthanam adharmasya tadatmanam srijamy aham. Paritranaya sadhunam vinasaya ca dushkritam, Dharma-samsthapanarthaya sambhavami yuge yuge." ( Whenever dharma declines and adharma rises, O Arjuna, I manifest myself. For the protection of the righteous, the destruction of the wicked, and the re-e...

शब्द, ब्रह्म और नाद

शब्द शब्द ही छुपा है ब्रह्म संचार, नाद में है सृष्टि और मौन में संसार। वाणी ऐसी हो आत्मा को छू जाए, ऐसी ना जो अहंकार में डूब जाए। धरा को चाहिए शीतल वर्षा का प्रेम, क्रोध की बाढ़ से तो मिट्टी भी हो जाती क्षीण। शब्दों में हो तपस्या, जैसे ऋषियों की दृष्टि, हर शब्द बने यज्ञ, हर भाव में सृष्टि। जो चिल्लाते हैं, वे भीतर से खोखले होते हैं, जो मौन रहते हैं, वे ब्रह्म से भी ऊपर होते हैं। ध्वनि सीमित है, अनाहद नाद अनंत है, जहाँ शब्द नहीं, वहाँ आत्मा का संतुलन तंत है। तो मत ढूँढो शक्ति को गरजती आवाज़ों में, ढूँढो उन शब्दों में जो मौन से जन्मे हैं। क्योंकि वाणी वह हो जो भीतर उतरे, और मौन वह हो जो प्रभु से जोड़ बस यूंही रघुनाथ 

व्यंग्य: सैयारा फिल्म नहीं, निब्बा-निब्बियों की कांव-कांव सभा है!

इन दिनों अगर आप सोशल मीडिया पर ज़रा भी एक्टिव हैं, तो आपने ज़रूर देखा होगा कि "सैयारा" नामक कोई फिल्म ऐसी छाई है जैसे स्कूल की कैंटीन में समोसे मुफ्त में बंट रहे हों। इस फिल्म का इतना क्रेज है कि मानो ये देखी नहीं तो सीधे स्वर्ग का टिकट कैंसिल हो जाएगा और नरक में आपको खौलते हुए गर्म तेल में तला जायेगा, वो भी बिना ब्रेक के लगातार। सच बताऊं तो, मैंने अब तक इस फिल्म को नहीं देखा। वास्तव में थियेटर में जाकर इस फिल्म को देखने का कोई इरादा भी नहीं है। क्योंकि मेरा दिल अब भी सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों के उन पंखों में अटका है जो बिना हिले भी आवाज़ करते हैं। लेकिन सोशल मीडिया पर पर जो तमाशा चल रहा है, वो देखकर लग रहा है कि या तो मैं बहुत ही बासी किस्म का मनुष्य हूं या फिर बाकी दुनिया ज़रा ज़्यादा ही Acting Class  से पास आउट है। एक साहब वीडियो में रोते-रोते इतने डूबे कि लगा अभी स्क्रीन से निकलकर ‘सैयारा’ के पायलट को गले लगा लेंगे।  दूसरी तरफ एक मैडम तो थिएटर की कुर्सी से चिपककर ऐसे चिल्ला रही थीं जैसे उनकी पुरानी गुम हुई टेडीबियर वापस मिल गई हो। कोई गला फाड़ रहा है, कोई आंखों से आंसुओं क...

फुलेरा के सचिव की कलम से, रिंकी के नाम एक Love Letter

 मेरी प्यारी रिंकी, काग़ज़ पर शब्द लिख रहा हूं, लेकिन हर शब्द के पीछे एक धड़कन है—मेरे दिल की धड़कन, जो अब तुम्हारे नाम से चलती है। कभी सोचा नहीं था कि फुलेरा जैसे छोटे से गांव में मेरी दुनिया बस जाएगी… और वो भी सिर्फ तुम्हारी वजह से। जब पहली बार सचिव बनकर यहां आया था, तो सब कुछ बेमानी लगता था—बिजली नहीं, चैन नहीं और न ही कोई अपनापन। हर दिन वीरान लगता था, जैसे ज़िंदगी रुक गई हो। लेकिन फिर अचानक जैसे किसी ने मेरी सूनी दुनिया में रंग भर दिए… और वो रंग "तुम" थी, रिंकी। वो दिन, वो टंकी, और तुम्हारी वो मासूम आवाज़— "हम हैं रिंकी, प्रधान जी की बेटी। यहां चाय पीने आए हैं।" उस एक पल में जैसे सारा गांव जगमगा उठा। तुम्हारी आंखों में वो सादगी, वो शरारत, वो गहराई… मेरे दिल को जैसे अपना घर बना गई। उस दिन से फुलेरा की हर गली में तुम्हारी हंसी गूंजती है, हर पेड़ की छांव में तुम्हारी मौजूदगी महसूस होती है। तुमसे बातें शुरू हुईं… कभी टंकी पर, कभी ऑफिस के बाहर, कभी बस यूं ही चलते-चलते। और वो छोटी-छोटी बातें कब मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी ज़रूरत बन गईं, मुझे खुद भी नहीं पता चला। जब तुम ...

जहाँ लौकी बोलती है, वहाँ कुकर फटता नहीं, पंचायत ने बता दिया, कहानी कहने के लिए कपड़े उतारने की ज़रूरत नहीं होती

आज के दौर में सिनेमाई कहानी कहने की दुनिया जिस मार्ग पर चल पड़ी है, वहाँ पटकथा से ज़्यादा त्वचा की परतों पर कैमरा टिकता है। नायक और नायिका के संवादों की जगह ‘सीन’ बोलते हैं और भावनाओं की जगह अंग प्रदर्शन ‘व्यू’ बटोरते हैं। इसे नाम दिया गया है ‘क्रिएटिव फ्रीडम’।  वेब सीरीजों के लिए बड़े बड़े बजट, चमकदार चेहरे और नग्न दृश्य अब ‘रियलिज़्म’ का नकली नकाब ओढ़ कर दर्शकों को भरमाते हैं। मगर इस सब के बीच अगर कोई सीरीज़ बिना चीखे, बिना झूठे नारे, और बिना कपड़े उतारे भी सीधे दिल में उतर जाए — तो वो "पंचायत" वेब सीरीज है। TVF की यह अनोखी पेशकश इस धारणा को चुनौती देती है कि दर्शकों को केवल ‘बोल्डनेस’ ही चाहिए। पंचायत ने बता दिया कि अगर आपकी कहानी सच्ची हो, तो सादगी ही सबसे बड़ी क्रांति बन जाती है। हालिया रिलीज "पंचायत" उन कहानियों के लिए एक तमाचा है जो यह मानकर चलती हैं कि जब तक किरदार बिस्तर पर नहीं दिखेंगे, तब तक दर्शक स्क्रीन पर नहीं टिकेगा। पंचायत दिखाती है कि गाँव की सबसे बड़ी लड़ाई किसी बिस्तर पर नहीं, बल्कि पंचायत भवन के फर्श पर लड़ी जाती है, कभी लौकी के नाम पर, तो कभी कु...

व्यंग्य: सपनों का पेट, हकीकत का गिटार? कब बजेगी फिटनेस की तार?

हमारे समाज में फिटनेस अब एक नए 'संस्कार' के रूप में लोगों के दिमाग बैठ चुकी है। हर व्यक्ति इस राह पर चलने लगा है, जहां "प्रोटीन शेक्स" को आशीर्वाद की तरह लिया जाता है और वजन घटाने वाले डाइट प्लान को किसी शास्त्र की तरह माना जाता है। लेकिन हम सब जानते हैं कि फिटनेस की इस धारणा में कुछ बातें इतनी सरल नहीं हैं जितनी कि ये दिखती हैं। । खासकर जब हम 'पेट' जैसे जटिल विषय पर बात करें। तो आज हम इसी पेट के इर्द-गिर्द एक मजेदार और व्यंग्यपूर्ण यात्रा पर निकलते हैं, जिसमें फिटनेस की बात होगी, लेकिन चुटीले अंदाज में!  बढ़ता हुआ पेट और समाज का प्यारभरा आशीर्वाद सबसे पहले तो एक सवाल– क्या आपने कभी सोचा है कि पेट बढ़ता क्यों है? यह हमारे समाज का आशीर्वाद है। हां, यही बात है। शादी के बाद लोग तुरंत पूछते हैं, "अरे! पेट कब आएगा?" जब आपके पेट पर थोड़ा सा भी 'संकेत' मिलता है, तो समाज में हर व्यक्ति फिटनेस गुरू बन जाता है। पड़ोसी आंटी से लेकर ऑफिस के सहकर्मी तक, सब आपको हेल्दी डाइट प्लान और व्यायाम के सुझाव देने लगते हैं। और अगर आप जिम जाने का इरादा भी करते हैं,...

क्या भारत की ‘चिकन नेक’ को घेरने की साजिश कर रहा है चीन?

खतरनाक और चिंताजनक घटनाक्रम सामने आ रहा है। बांग्लादेश के लालमोनिरहाट जिले में स्थित एक पुराना, निष्क्रिय वर्ल्ड वॉर-2 का एयरबेस अचानक चर्चा में है — और वजह है चीन की उसमें दिलचस्पी। यह एयरबेस भारत की सीमा से महज़ 12 से 15 किलोमीटर और हमारे अत्यंत संवेदनशील "सिलीगुड़ी कॉरिडोर" (चिकन नेक) से मात्र 135 किलोमीटर दूर है। सिलीगुड़ी कॉरिडोर, यानी भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाली बेहद पतली पट्टी — केवल 22 किलोमीटर चौड़ी — हमारी भौगोलिक जीवनरेखा है। अगर यह कॉरिडोर किसी भी कारण से अवरुद्ध हुआ, तो असम, अरुणाचल, नागालैंड, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, मेघालय और सिक्किम से भारत का ज़मीनी संपर्क टूट सकता है। ऐसे में, चीन और पाकिस्तान जैसे देशों की दिलचस्पी इस क्षेत्र में खतरनाक संकेत देती है। लालमोनिरहाट एयरबेस का इतिहास इस एयरबेस को 1931 में ब्रिटिश हुकूमत ने बनाया था। द्वितीय विश्व युद्ध में यह एक अग्रिम मोर्चा था। विभाजन के बाद यह पाकिस्तान के अधीन गया और 1958 में थोड़े समय के लिए नागरिक उपयोग में आया, लेकिन फिर निष्क्रिय हो गया। 2019 में बांग्लादेश सरकार...

The Hindu और The New Indian Express की पक्षपाती पत्रकारिता पर सवाल: आतंकियों के नरसंहार पर भी एजेंडा?

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में  हिंदुओं के सुनियोजित नरसंहारने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। मज़हबी आतंकियों ने हिन्दू तीर्थयात्रियों से पहले उनका धर्म पूछा, नाम पूछा, कुछ से कपड़े उतरवाए और फिर केवल पुरुषों को गोली मार दी। कई परिवारों ने अपने प्रियजनों को अपनी आंखों के सामने मरते देखा, लेकिन कुछ मीडिया संस्थानों ने इस बर्बर हमले की सच्चाई को छिपाने और उसका राजनीतिकरणकरने की कोशिश की। सबसे चौंकाने वाला व्यवहार द न्यू इंडियन एक्सप्रेस  और The Hindu जैसे तथाकथित प्रतिष्ठित अखबारों ने दिखाया है। इन दोनों मीडिया संस्थानों ने न केवल नरसंहार की गंभीरता को कमतर दिखाया, बल्कि संदेहास्पद तर्कों और पाकिस्तान समर्थक नैरेटिव को आगे बढ़ाया। The New Indian Express की नीना गोपाल ने तो  "क्या पहलगाम जाफर एक्सप्रेस अपहरण का बदला है?" जैसे अजीबो-गरीब शीर्षक के साथ एक लेख लिख डाला। इस लेख में उन्होंने कश्मीर के हिंदू नरसंहार को पाकिस्तान के बलूचिस्तान में हुए हमले के प्रतिकारक घटना के रूप में चित्रित करने की घिनौनी कोशिश की है। यह न केवल पत्रकारिता की मूल आत्मा के खिलाफ है, बल्कि यह भार...