देश की राजधानी दिलवालों की दिल्ली आजकल किसी और के लिए ही जानी जा रही है- वो है यहां की एयर क्वॉलिटी इंडेक्स। यहां की हवा में अब ऐसा जहर घुल चुका है कि सांस लेना किसी कारनामे से कम नहीं लगता। ख़राब एयर क्वॉलिटी से हालात इतने दयनीय हैं कि लोग गहरी सांस लेने की बजाय William Shakespeare के “Hamlet” की तरह सोच रहे हैं- "To breathe or not to breathe, that is the question." यहां की वायु में घुला यह धुआं किसी त्रासदी से कम नहीं, लेकिन सफेद कुर्ताधारियों के लिए यह बस राजनीति का नया मुद्दा ही अपितु एक पॉलिटिकल डायलॉग और लफ्फाजी का अखाड़ा बन चुका है। दिल्ली की ज़हरीली हवा में अब सांस लेना किसी बॉलीवुड के फिल्मी विलेन से लड़ने जैसा हो गया है। यहां के हालात देखकर “Hamlet” का एक अन्य संवाद याद आती है-
"Something is rotten in the state of Denmark."
बस, ‘डेनमार्क’ की जगह आप दिल्ली लिख लें, बाकी सब वैसा ही है।
देश राजधानी की एयर क्वॉलिटी इंडेक्स का हाल पूछिए, तो जवाब आता है—जहांगीरपुरी 458, मुंडका 452, और आनंद विहार 456। अब यह AQI नहीं, जैसे कोई IPL Cricket Match का स्कोर हो गया हो, जो हर पल बढ़ रहा। अब ऐसा लगता है कि आप आदमी के फेफड़े क्रिकेट मैदान में ‘फील्डिंग’ कर रहे हैं, जबकि आप आदमी पार्टी बैटिंग कर रही है, भाजपा उसके हिट विकेट की प्रतीक्षा। खद्दरधारियों के हर बयान में सिर्फ दोषारोपण है, मानो पॉलिटिक्स की यह ‘बैटल ऑफ स्मॉग’ कभी समाप्त ही नहीं होगी।
William Shakespeare के “Much Ado About Nothing” की तरह दिल्ली सरकार और केंद्र दोनों प्रदूषण के नाम पर खूब हो-हल्ला कर रहे हैं, लेकिन समाधान के नाम पर हाथ खाली हैं। आप आदमी सस्ती बिजली और पानी में मस्त है। केजरीवाल सरकार ने प्रदूषण रोकने के लिए ‘ग्रैप-3’ का ऐलान किया है, जिसमें निर्माण कार्यों पर रोक और डीजल गाड़ियों पर बैन शामिल है। उनका यह निर्णय वैसा ही सिद्ध हो रहा जैसे कि किसी पेड़ को स्वस्थ रखने के लिए उसकी जड़ों को पानी देने के बजाय पत्तियों पर पानी का छिड़काव करना।
पुराने गाने, नया दर्द: दिल्ली की ख़राब हालत देखकर पुराने बॉलीवुड गाने भी नया मतलब ले रहे हैं “हवा में उड़ता जाए…” अब सिर्फ जहर उड़ता है। दिल धुंआ-धुंआ सा लग रहा है…” अब यह जनता के फेफड़ों की कहानी है “आजा तुझे आसमान में ले चलूं…” अब आसमान देखने की बजाय लोग मास्क पहनने की सोचते हैं।
राजनीति के ‘फॉग’ में खोई जनता: राजधानी का यह हाल देखकर William Shakespeare द्वारा लिखित “The Tempest” का एक संवाद याद आता है:
"Hell is empty, and all the devils are here."
"Hell is empty, and all the devils are here."
यहां ‘डेविल्स’ से तात्पर्य प्रदूषण, स्मॉग, और राजनीति से है। लोग हर सुबह उठकर सोचते हैं कि अब यहां ‘जीवन’ नहीं, बस ‘जीवित’ रहने का प्रश्न है।
नेताओं के वादे: हवा हवाई: केजरीवाल सरकार और केंद्र एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाकर भूल जाते हैं कि हवा में जहरीले कण नहीं, बल्कि जनता का विश्वास घुल रहा है।
नेताओं के वादे: हवा हवाई: केजरीवाल सरकार और केंद्र एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाकर भूल जाते हैं कि हवा में जहरीले कण नहीं, बल्कि जनता का विश्वास घुल रहा है।
जनता कह रही है-
“सांस भी मुश्किल से चलती है, क्यों ये सरकार सोती है?”
क्या वाकई ‘स्मॉग’ दिल्ली का नया राजा है?
विलियम शेक्सपियर के “King Lear” का यह संवाद नेताओं पर फिट बैठता है-
"How sharper than a serpent’s tooth it is to have a thankless child."
यहां ‘थैंकलेस चाइल्ड’ हमारी सरकारें हैं, जो जनता की तकलीफों के बावजूद सिर्फ बयानबाजी करती हैं।
अब जनता को शेक्सपियर के “Romeo and Juliet” के शब्दों में कहना पड़ रहा है-
"How sharper than a serpent’s tooth it is to have a thankless child."
यहां ‘थैंकलेस चाइल्ड’ हमारी सरकारें हैं, जो जनता की तकलीफों के बावजूद सिर्फ बयानबाजी करती हैं।
अब जनता को शेक्सपियर के “Romeo and Juliet” के शब्दों में कहना पड़ रहा है-
"A plague o’ both your houses!"
मतलब, अब जनता न दिल्ली सरकार से खुश है, न केंद्र से। सांसें घुट रही हैं, और सरकारें राजनीति के घुंघरू पहनकर ‘नाच’ रही हैं।
हवा से कौन लड़ेगा, सरकार या हमारी तकदीर?
दिल्ली की हवा इतनी खराब हो चुकी है कि यहां के लोग अब दिनभर गुनगुनाते हैं-
“सांस भी मुश्किल से चलती है, क्यों ये सरकार सोती है?”
“हवा में राजनीति और जनता के फेफड़े का फरेब”
दिल्ली की जहरीली हवा पर केंद्र और राज्य सरकारों का रवैया ऐसा है, जैसे पुरानी बॉलीवुड फिल्मों में बिछड़ते भाइयों का संवाद-
“ये काम तुम्हारा है, ये काम हमारा है।”
लेकिन नतीजा? जनता का दम घुट रहा है।
William Shakespeare के “Macbeth” का संवाद यहां लागू होता है-
"Fair is foul, and foul is fair."
राजनेताओं के वादे तो सुनहरे लगते हैं, लेकिन जनता के लिए यह सिर्फ धुआं और धुंध है।
दिल्ली सरकार: वादों का खेल, धुएं का मेल: केजरीवाल सरकार के फैसले देखकर यह लगता है कि वे वायु प्रदूषण को ‘ऑड-ईवन’ की तरह हल करने की सोच रहे हैं। उनका हर बयान William Shakespeare के “Much Ado About Nothing” जैसा लगता है।
जनता कहती है:
“न मैं वो सरकार चाहूं, न वो योजना तुम्हारी।”
पुराने गाने भी बदल चुके हैं:
“दिल्ली की हवा में, कुछ नशा सा है…”
अब जनता इसे बदलकर गा रही है-
“दिल्ली की हवा में, सिर्फ जहर सा है…”
अब जनता इसे बदलकर गा रही है-
“दिल्ली की हवा में, सिर्फ जहर सा है…”
दिल्ली का नया सुपरविलेन: AQI 450+: जहांगीरपुरी, मुंडका और रोहिणी जैसे इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक 450 पार कर गया है। William Shakespeare के “Othello” का यह संवाद इस स्थिति पर फिट बैठता है-
"O, beware, my lord, of jealousy; it is the green-eyed monster."
यहां ‘ग्रीन-आईड मॉन्स्टर’ प्रदूषण है, जो हर जगह निगल रहा है।
और जनता? वो पुराना गाना गा रही है, “दिल धुंआ धुंआ सा…”
लेकिन यहां ‘दिल’ के साथ फेफड़े भी धुंआ हो रहे हैं।
स्मॉग और सियासत का खेल: दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार की खींचतान देखकर शेक्सपियर के “Julius Caesar” का यह संवाद याद आता है-
"Et tu, Brute?"
यहां जनता हर बार सोचती है कि कौन उसे ‘पीठ में छुरा’ घोंप रहा है—दिल्ली सरकार या केंद्र?
राजनीति के इस खेल को देखकर लोग गुनगुनाते हैं-
“कुछ तो लोग कहेंगे, सरकारों का काम है कहना…”
दिल्ली सरकार के वादे: एक और ‘कॉमेडी ऑफ एरर्स
William शेक्सपियर के “Comedy of Errors” जैसा दिल्ली सरकार का हर बयान हवा में ही खो जाता है। सरकार योजनाएं वैसी ही हैं जैसे पुरानी बॉलीवुड फिल्मों में हीरोइन का ‘बचाओ, बचाओ’ चिल्लाना।
जनता गा रही है, “दिल्ली सरकार, सुन तो ले, अब बचा ले हमें।”
पुराने गाने और नया दर्द: दिल्ली की हालत पर बॉलीवुड के ये गाने नए मतलब ले रहे हैं-
“हवा में उड़ता जाए…”
अब हवा में सिर्फ जहर उड़ता है।
“आज फिर जीने की तमन्ना है…
लेकिन सांस लेने का हक तक नहीं।
“सांसों को सांसों में बसने दो ज़रा…”
अब सांसों में प्रदूषण बस चुका है।
हवा की जगह धुआं और राजनीति की दुआं
दिल्लीवालों को अब उम्मीद भी राजनीति की भेंट चढ़ चुकी है। शेक्सपियर के “The Tempest” का यह संवाद जनता के हालात को बयां करता है-
"Hell is empty, and all the devils are here."
यहां ‘डेविल्स’ से मतलब प्रदूषण और नेता दोनों से है।
जनता का गुस्सा अब बढ़ता जा रहा है।
“दिल्ली में रहना मुश्किल है, पर सरकार को कुछ कहने की हिम्मत नहीं।”
पॉलिटिक्स और पॉल्यूशन की नई जोड़ी: दिल्ली सरकार ने ग्रैप-3 लागू कर दिया, लेकिन जनता की हालत वैसी ही है जैसे गाने में-
“न तुम हमें जानो, न हम तुम्हें जानें…”
शेक्सपियर के “King Lear” का यह संवाद नेताओं पर सटीक बैठता है-
"How sharper than a serpent’s tooth it is to have a thankless child!"
यहां ‘थैंकलेस चाइल्ड’ से मतलब नेताओं के प्रदूषण नियंत्रण प्रयासों से है।
जनता का दम और राजनीति का गम: दिल्ली की हवा और नेताओं की राजनीति, दोनों ही जनता के विश्वास को खत्म कर रहे हैं। जनता अब सोच रही है-
“सांसें ही ले लो, बस चुनाव मत छीनो।”
विलियम शेक्सपियर के “As You Like It” का यह संवाद पॉलिटिशियंस पर लागू होता है-
"All the world’s a stage, and all the men and women merely players."
यहां पॉलिटिशियन खेल रहे हैं, लेकिन जनता के लिए यह जीवन और मृत्यु का सवाल बन चुका है।
सिर्फ बातें नहीं, कार्रवाई चाहिए: दिल्लीवालों को अब सरकार की ‘स्मॉग पॉलिटिक्स’ नहीं, बल्कि साफ हवा चाहिए। शेक्सपियर के “Romeo and Juliet” का यह संवाद इस स्थिति पर फिट बैठता है-
"A plague o’ both your houses!"
यानी जनता अब केंद्र और राज्य दोनों पर नाराज है।
यानी जनता अब केंद्र और राज्य दोनों पर नाराज है।
"अब समय आ गया है कि दिल्ली सरकार असली काम करके जनता की सांसें बचाए, लेकिन उसकी चिंता अगले विधानसभा चुनाव में सरकार कैसे बची रहे, इस पर पूरा फोकस हे "।
दिल्ली की हवा का हाल आजकल कुछ ऐसा है जैसे एक पुरानी बॉलीवुड मूवी का प्लॉट हो—जहां विलेन (प्रदूषण) काफी पावरफुल है, लेकिन हीरो हमेशा ढूंढता हुआ नजर आता है।
AQI इतना बढ़ गया है कि लगता है कि हम एक जबरदस्त धुंआ में डूब रहे हैं और इस बेचैनी का असली कारण है—राजनीतिक ड्रामा।
जब तक सरकार अपने जवाबदेही से बचने के लिए एक-दूसरे पर इल्जाम लगा रही है, तब तक आम आदमी की सांस रुक रही है।
दिल्ली सरकार अपने ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP-3) को अनाउंस करती है, पर यह सब एक बैंड-एड की तरह लगता है—जो एक गहरी चोट को ठीक नहीं कर सकता।
यह स्थिति एक बॉलीवुड फिल्म जैसी लगती है, जहां हीरो अपनी एंट्री करता है बस वक्त पे, लेकिन विलेन (प्रदूषण) अब भी अपनी जगह पे खड़ा है और हंसी उड़ा रहा है। हर बार सरकार, केंद्रीय सरकार पर आरोप लगा देती है, लेकिन असली सवाल यह है—क्या यह हवा सही हो सकती है?
राजधानी की यह पूरी स्थिति एक शेक्सपियरन ट्रैजेडी की तरह लगती है, जहां सभी किरदार अपने घमंड और इल्जाम में इतने उलझे हुए हैं कि असली मसला भूल ही गए हैं।
जैसे Macbeth का यह डायलॉग है-
“Is this a dagger which I see before me?”
वैसे ही यहां असली डैगर प्रदूषण है, और असली सवाल यह है- “क्या यह सरकार हमारे लिए है?”
बॉलीवुड के पुराने गाने भी अब इस स्थिति को नए तरीके से समझा रहे हैं। “दिल धुंआ-धुंआ सा हो रहा है” अब एक ऐसी राग बन गई है जो दिल्ली वालों की धड़कनों को डर और घबराहट से भरता है, जब उनके फेफड़े भर के निकल रहे हैं। सरकार, एक बी-ग्रेड फिल्म के हीरो की तरह, अपने एक्शन प्लान्स और प्रदूषण कंट्रोल पर स्पीचेस दे रही है, लेकिन जो ऑडियंस है (यानी आम लोग) वो स्मॉग के शोर के बीच में इन बातों को सुनने की कोशिश कर रही है।
आखिरकार, यह हवा ही नहीं, यह पूरी राजनीतिक माहौल भी ज़हरीला होता जा रहा है। हर दिन एक नए एपिसोड की तरह, यह रियालिटी शो कंटिन्यू हो रहा है, जहां पब्लिक को बस नुकसान उठाना पड़ रहा है और पॉलिटिशियन्स अपने स्पीचेस और ब्लेम-गेम में बिजी हैं। जैसे ही धुंआ और धुंआ दिल्ली को घेर लेता है।
हम बस एक सवाल पूछते हैं- “क्या असली हीरो कभी सामने आएंगे? या फिर दिल्ली इसी स्मोक-फिल्ड ड्रामा में फंसकर रह जाएगी, जहां कोई सॉल्यूशन नहीं, बस हर कोई अपने रोल का नाम कहता रहेगा।
शायद वक्त आ गया है एक नए प्लॉट ट्विस्ट का—एक ऐसा जहां सरकार और लोग मिलके हवा को साफ करें, लिट्रली और फिगरेटिवली। तब तक के लिए, हम सिर्फ यह उम्मीद कर सकते हैं कि दिल्ली के पॉलिटिकल लीडर्स समझ पाएं कि प्रदूषण से ज्यादा खतरनाक चीज़ एक ज़हरीला पॉलिटिकल एनवायरनमेंट है।
शायद वक्त आ गया है एक नए प्लॉट ट्विस्ट का—एक ऐसा जहां सरकार और लोग मिलके हवा को साफ करें, लिट्रली और फिगरेटिवली। तब तक के लिए, हम सिर्फ यह उम्मीद कर सकते हैं कि दिल्ली के पॉलिटिकल लीडर्स समझ पाएं कि प्रदूषण से ज्यादा खतरनाक चीज़ एक ज़हरीला पॉलिटिकल एनवायरनमेंट है।
✍️... रघुनाथ सिंह
Comments
Post a Comment