Skip to main content

Dehradun Accident: सनरूफ में ठिठोली, मौत की बोली, गाड़ी बनी जिंदगी की डोली...खूनी रफ्तार, एक डरावनी दास्तान

रात के 12 बज रहे थे। शहर के बाजार बंद हो चुके थे। सड़कों पर सन्नाटा था। हर कोई अपने घरों में आराम कर रहा था, लेकिन सात दोस्तों की टोली ने उस रात कुछ अलग करने की ठानी थी। देहरादून की घटना न तो पहली है, न अंतिम। छह मित्र, नई इनोवा कार, पार्टी, दारू, लॉन्ग ड्राइव की चर्चा और फिर ‘दारू पीने से कन्सनट्रेशन बढ़ता है’ जैसे निरर्थक उपहास को सत्य मानने वाले लाखों बच्चों की तरह, अल्कोहल के नशे में सड़क पर।

कुणाल कुकरेजा (23), अतुल अग्रवाल (24), ऋषभ जैन (24), नव्या गोयल (23), कमाक्षी (20), और गुनीत (19)—ये छह युवा, जो अपने जीवन के सबसे अच्छे समय में थे, रात की मस्ती और नशे के जाल में फंसे थे। उनकी दोस्ती और मस्ती के आगे कोई रुकावट नहीं थी। उन सभी के पास थी एक नई इनोवा गाड़ी और दिलों में था नशे का जुनून। "आज की रात यादगार बनेगी!" कुणाल ने शराब की बोतल खोलते हुए कहा। 

"भाई, ये गाड़ी तो ऐसी दौड़ाऊँगा कि सब देखते रह जाएँगे!" अतुल ने ठहाका लगाते हुए कहा। उनके लिए ये मज़ाक था। गाड़ी में संगीत की आवाज़ इतनी तेज़ थी कि उनके अपने दिल की धड़कनें भी सुनाई नहीं दे रही थीं।  

एक घंटे बाद, गाड़ी में हर कोई नशे में था। गुनीत गाड़ी चला रहा था। उसकी आँखें शराब के नशे में धुंधली हो चुकी थीं। जैसे ही वे मुख्य सड़क पर पहुँचे, एक BMW ने उन्हें ओवरटेक किया।  

"भाई, ओवरटेक कर गया? तुझे ये बर्दाश्त है?" ऋषभ ने उकसाते हुए कहा।  

"कभी नहीं! अब देखो, उसे कैसे पीछे छोड़ते हैं!" गुनीत ने एक्सलेरेटर पर पैर रख दिया।  

गाड़ी की स्पीड बढ़ने लगी—80, 100, 120। गाड़ी अब नियंत्रण से बाहर थी। सनरूफ से सिर बाहर निकालकर कुणाल और अतुल चिल्ला रहे थे, “गुनीत भाई, और तेज़, और तेज़!”  

गाड़ी की तेज़ी ने उन्हें अंधा बना दिया था। अचानक, सामने से एक ट्रक आ रहा था। गुनीत ने गाड़ी को बचाने की कोशिश की, लेकिन नशे और स्पीड ने उसके हाथों से गाड़ी का नियंत्रण छीन लिया।  

ट्रक से टकराने की आवाज़ इतनी जोरदार थी कि आस-पास के लोग डर से बाहर निकल आए। गाड़ी पलट चुकी थी। कुणाल और अतुल के शरीर सनरूफ से बाहर लटक रहे थे। उनके सिर कटकर गाड़ी से दूर जा चुके थे। ऋषभ, नव्या और कमाक्षी की हालत इतनी खराब थी कि उनकी पहचान करना भी मुश्किल था।  

सड़क खून से लाल हो चुकी थी। हर तरफ गाड़ी के टुकड़े बिखरे हुए थे। पुलिस और एंबुलेंस जब वहाँ पहुँची, तो उन्हें गाड़ी की पहचान करना मुश्किल हो गया। मृतकों के शरीर को कपड़ों के रंग और टूटे अंगों के आधार पर इकट्ठा किया गया।  

अगली सुबह, हर न्यूज़ चैनल पर यह खबर थी—“देहरादून में दर्दनाक सड़क हादसा। पाँच दोस्तों की मौत।” उनके परिवार के सदस्य अस्पताल में पहुंचे। माताएँ बेहोश हो गईं। पिता का गुस्सा और दर्द शब्दों में बयान करना मुश्किल था।  

“क्यों छोड़ा उन्हें उस रात? काश मैंने रोका होता!” एक माँ चीखते हुए बेहोश हो गई।  

शराब और स्पीड का यह खेल हर साल हजारों युवाओं की जान लेता है। लेकिन इसे हल्के में लिया जाता है। दोस्तों के उकसाने और खुद को साबित करने की जिद्द, कई परिवारों को तबाह कर देती है।  

क्या सीखें इस हादसे से?

स्पीड मौत है: तेज़ गाड़ी चलाना वीरता नहीं, मूर्खता है।
शराब और ड्राइविंग नहीं: शराब के नशे में गाड़ी चलाना आत्महत्या करने जैसा है।
दोस्तों को रोकें: असली दोस्त वह है जो अपने साथी को गाड़ी चलाने से रोक सके।  

रास्ता बदलें, मौत नहीं बुलाएँ
सोचिए, अगर गुनीत ने गाड़ी न चलाई होती? अगर ऋषभ ने उसे रोक दिया होता? अगर उन्होंने शराब न पी होती? शायद आज कुणाल, अतुल, ऋषभ, नव्या, कमाक्षी और गुनीत ज़िंदा होते।  

आपके जीवन की कीमत किसी भी क्षणिक मज़े से अधिक है। अपने माता-पिता के चेहरे को याद करें। सोचें, अगर वे आपकी लाश को पहचानने अस्पताल आएंगे, तो उनकी क्या हालत होगी।  

डर ही आपका रक्षक है
रफ्तार के शौक को त्यागें। शराब को नकारें। और अपने दोस्तों को समझाएँ। सड़क पर वीरता नहीं चाहिए, संयम चाहिए। अपने जीवन को जिएँ, उसे गवाएँ नहीं। कहते हैं कि अगर आप अपने पेरेंट्स से डरते हैं, अपने परिजन से डरते हैं या किसी अन्य से तो आप गलत रस्ते पर जाने से बच जाते हैं। सोचो अगर इन लोगों के मन में थोड़ा सा भी डर होता। इसलिए डर भी आपका रक्षक होता है। किसी की कार या थार के लालच में न पढ़े। अपने रास्ते आएं जाएं।  

एक आखिरी सवाल:
जरा सोचे...क्या हम लोग भी तो ऐसा जाने अनजाने में नहीं करते? यदि उक्त लोगों की तरह करते हैं...तो संभल जाए। क्या आप अपनी लाश के टुकड़ों में बिखरने की प्रतीक्षा करोगे? या अपने जीवन को सही दिशा दोगे? जवाब आपके हाथ में है।

✍️... रघुनाथ सिंह

Comments

Popular posts from this blog

व्यंग्य: सपनों का पेट, हकीकत का गिटार? कब बजेगी फिटनेस की तार?

हमारे समाज में फिटनेस अब एक नए 'संस्कार' के रूप में लोगों के दिमाग बैठ चुकी है। हर व्यक्ति इस राह पर चलने लगा है, जहां "प्रोटीन शेक्स" को आशीर्वाद की तरह लिया जाता है और वजन घटाने वाले डाइट प्लान को किसी शास्त्र की तरह माना जाता है। लेकिन हम सब जानते हैं कि फिटनेस की इस धारणा में कुछ बातें इतनी सरल नहीं हैं जितनी कि ये दिखती हैं। । खासकर जब हम 'पेट' जैसे जटिल विषय पर बात करें। तो आज हम इसी पेट के इर्द-गिर्द एक मजेदार और व्यंग्यपूर्ण यात्रा पर निकलते हैं, जिसमें फिटनेस की बात होगी, लेकिन चुटीले अंदाज में!  बढ़ता हुआ पेट और समाज का प्यारभरा आशीर्वाद सबसे पहले तो एक सवाल– क्या आपने कभी सोचा है कि पेट बढ़ता क्यों है? यह हमारे समाज का आशीर्वाद है। हां, यही बात है। शादी के बाद लोग तुरंत पूछते हैं, "अरे! पेट कब आएगा?" जब आपके पेट पर थोड़ा सा भी 'संकेत' मिलता है, तो समाज में हर व्यक्ति फिटनेस गुरू बन जाता है। पड़ोसी आंटी से लेकर ऑफिस के सहकर्मी तक, सब आपको हेल्दी डाइट प्लान और व्यायाम के सुझाव देने लगते हैं। और अगर आप जिम जाने का इरादा भी करते हैं,...

ध्यानी नहीं शिव सारस

!!देव संस्कृति विश्विद्यालय में स्थपित प्रज्ञेश्वर महादेव!! ध्यानी नहीं शिव सारसा, ग्यानी सा गोरख।  ररै रमै सूं निसतिरयां, कोड़ अठासी रिख।। साभार : हंसा तो मोती चुगैं पुस्तक से शिव जैसा ध्यानी नहीं है। ध्यानी हो तो शिव जैसा हो। क्या अर्थ है? ध्यान का अर्थ होता हैः न विचार, वासना, न स्मृति, न कल्पना। ध्यान का अर्थ होता हैः भीतर सिर्फ होना मात्र। इसीलिए शिव को मृत्यु का, विध्वंस का, विनाश का देवता कहा है। क्योंकि ध्यान विध्वंस है--विध्वंस है मन का। मन ही संसार है। मन ही सृजन है। मन ही सृष्टि है। मन गया कि प्रलय हो गई। ऐसा मत सोचो कि किसी दिन प्रलय होती है। ऐसा मत सोचो कि एक दिन आएगा जब प्रलय हो जाएगी और सब विध्वंस हो जाएगा। नहीं, जो भी ध्यान में उतरता है, उसकी प्रलय हो जाती है। जो भी ध्यान में उतरता है, उसके भीतर शिव का पदार्पण हो जाता है। ध्यान है मृत्यु--मन की मृत्यु, "मैं" की मृत्यु, विचार का अंत। शुद्ध चैतन्य रह जाए--दर्पण जैसा खाली! कोई प्रतिबिंब न बने। तो एक तो यात्रा है ध्यान की। और फिर ध्यान से ही ज्ञान का जन्म होता है। जो ज्ञान ध्यान के बिना तुम इकट्ठा ...

व्यंग्य: राजधानी दिल्ली की हवा हुई और खराब, राजनेताओं की बातों में कुछ नहीं 'खरा' अब

देश की राजधानी  दिलवालों की   दिल्ली  आजकल  किसी और  के लिए ही जानी जा रही है - वो है यहां की एयर क्वॉलिटी इंडेक्स । यहां की हवा में अब ऐसा जहर घुल चुका है कि सांस लेना किसी कारनामे से कम नहीं लगता। ख़राब एयर क्वॉलिटी से हालात इतने दयनीय हैं कि लोग गहरी सांस लेने की बजाय William Shakespeare के “Hamlet” की तरह सोच रहे हैं- "To breathe or not to breathe, that is the question." यहां की वायु में घुला यह धुआं किसी त्रासदी से कम नहीं, लेकिन सफेद कुर्ताधारियों के लिए यह बस राजनीति का नया मुद्दा ही अपितु एक पॉलिटिकल डायलॉग और लफ्फाजी का अखाड़ा बन चुका है। दिल्ली की ज़हरीली हवा में अब सांस लेना किसी बॉलीवुड के फिल्मी विलेन से लड़ने जैसा हो गया है। यहां के हालात देखकर “Hamlet” का एक अन्य संवाद याद आती है- "Something is rotten in the state of Denmark." बस, ‘डेनमार्क’ की जगह आप दिल्ली लिख लें, बाकी सब वैसा ही है। देश राजधानी की एयर क्वॉलिटी इंडेक्स का हाल पूछिए, तो जवाब आता है—जहांगीरपुरी 458, मुंडका 452, और आनंद विहार 456। अब यह AQI नहीं, जैसे कोई IPL Cricket Match का...