पांच महाभूतों की पुकार, संतुलन से बचे संसार: डॉ. चिन्मय पंड्या |
उन्होंने कहा, “आज जब वायु प्रदूषण से मृत्यु दर युद्धों से अधिक हो चुकी है और हमारी बारिश का 34 प्रतिशत हिस्सा एसिडिक हो गया है, यह आत्मचिंतन का समय है। मानवता का भविष्य पंच महाभूतों के संरक्षण पर निर्भर करता है। अगर हमने जल्द कदम नहीं उठाए, तो आने वाली पीढ़ियों को हम गंगा का इतिहास पढ़ाएंगे, पर उसका अस्तित्व नहीं बचेगा।” भारतीय परंपरा में पंच महाभूतों की रक्षा करना और शुद्धि को मानव धर्म का अंग माना गया है, जो प्रकृति और मानव के सह-अस्तित्व की अवधारणा को सुदृढ़ करता है।
तीन दिवसीय इस विमर्श का आयोजन प्रेरणा शोध संस्थान न्यास द्वारा किया गया। इसमें ‘पंच परिवर्तन के पांच सूत्र’ – पर्यावरण, संस्कृति, परिवार, स्व, और नागरिक कर्तव्य जैसे विषयों पर विद्वानों, शिक्षाविदों, और समाजसेवियों ने गहन विमर्श किया।
सृष्टि का आधार पंच महाभूत: डॉ. चिन्मय पंड्या का संदेश
समापन सत्र में डॉ. पंड्या ने भारतीय दर्शन और विज्ञान में वर्णित पंच महाभूतों – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश – की महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “पंच महाभूत केवल हमारे अस्तित्व का आधार नहीं हैं, बल्कि हमारी आंतरिक और बाह्य ऊर्जा का संतुलन भी बनाए रखते हैं। इनका असंतुलन प्रकृति के साथ मानव जीवन को भी खतरे में डालता है।”
उन्होंने विशेष रूप से बढ़ते वायु प्रदूषण और एसिडिक बारिश की समस्या पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इन मुद्दों से हमारी जीवनशैली और स्वास्थ्य को बड़ा खतरा है। “यह केवल पर्यावरणीय समस्या नहीं है, यह मानव अस्तित्व के लिए संकट है। हमें अपने प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए तत्काल कदम उठाने होंगे।”
संस्कृति और राष्ट्र का संबंध: सुनील आंबेकर का विचार
कार्यक्रम के अन्य सत्रों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने संस्कृति और राष्ट्र के बीच गहरे संबंधों पर चर्चा की। उन्होंने कहा, “जब संकट संस्कृति पर आता है, तो वह राष्ट्र पर भी आता है। परिवार, जीवनशैली, पर्यावरण, और आर्थिक व्यवस्था आपस में जुड़े हुए हैं। हमें पंच परिवर्तन के विचारों को समाज के हर वर्ग तक ले जाना होगा।”
आंबेकर ने वर्तमान वैश्विक चुनौतियों का जिक्र करते हुए भारतीय संस्कृति को इन समस्याओं का समाधान बताया। उन्होंने कहा कि परिवार, समाज, और पर्यावरण के बीच संतुलन ही भारत की पहचान है।
‘स्व’ और आत्मबोध पर मंथन
विमर्श के पहले सत्र में ‘स्व’ विषय पर चर्चा हुई। स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह संगठक सतीश कुमार ने कहा, “व्यक्ति को अपने ‘स्व’ का बोध होना चाहिए। महात्मा गांधी ने ‘स्व’ की अवधारणा को कुशलतापूर्वक आंदोलन में बदला। आज हमें अपनी भाषा, भूषा, और स्वदेशी पर गर्व करने की आवश्यकता है।”
मुख्य वक्ता मुकुल कानितकर ने भारतीय संस्कृति और आत्मबोध को ‘विश्वगुरु’ बनने की नियति बताया। उन्होंने कहा, “भारत का धर्म और दर्शन विश्व को नई दिशा देने में सक्षम हैं। हमें अपनी भाषा, भूषा, भजन, भोजन, और भवन में स्वदेशी को अपनाने पर जोर देना चाहिए।”
नागरिक कर्तव्य: अधिकार से पहले कर्तव्य जरूरी
दूसरे सत्र में ‘नागरिक कर्तव्य’ पर चर्चा हुई। भारतीय विद्या भवन की डीन प्रो. डॉ. शशिबाला ने कहा, “कर्तव्य परायणता संस्कारों से आती है। यदि संस्कार नष्ट हो गए, तो समाज और परिवार टूट जाएगा। संस्कारों का पोषण हमारी संस्कृति से होता है, और इसे संरक्षित करना हमारा दायित्व है।”
उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी एवं सांसद डॉ. बृजलाल ने कहा, “संविधान की रक्षा करना और उसके निर्देशों का पालन करना हर नागरिक का कर्तव्य है। नई पीढ़ी को अपने गौरवशाली इतिहास और संस्कृति से जोड़ना होगा। हमें अपनी परंपराओं और भाषाओं को बचाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।”
पर्यावरण संकट पर ठोस कदम जरूरी
पर्यावरण संरक्षण के विषय पर डॉ. चिन्मय पंड्या ने समाज के हर व्यक्ति को सक्रिय भूमिका निभाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि हमारे संसाधनों का अंधाधुंध दोहन न केवल प्रकृति, बल्कि हमारी अगली पीढ़ी के लिए भी खतरा है। “हमें पर्यावरणीय समस्याओं का हल अपने जीवनशैली में परिवर्तन लाकर ही करना होगा। पंच महाभूतों का संतुलन बनाए रखने के लिए सामूहिक प्रयास आवश्यक हैं।”
विद्वानों और समाजसेवियों की भागीदारी
कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों के विद्वानों और विशेषज्ञों ने भाग लिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के प्रचार प्रमुख कृपाशंकर, प्रेरणा शोध संस्थान न्यास की अध्यक्ष प्रीति दादू, कार्यक्रम के अध्यक्ष अनिल त्यागी, समन्वयक श्याम किशोर सहाय, संयोजक अखिलेश चौधरी और मोनिका चौहान ने आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सत्रों के संचालन का कार्य अल्पना तोमर और डॉ. प्रियंका सिंह ने कुशलतापूर्वक किया।
श्रोताओं की जिज्ञासाओं का समाधान
कार्यक्रम के अंत में श्रोताओं ने वक्ताओं से सवाल पूछकर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान किया। समापन सत्र के अध्यक्ष अशोक सिन्हा ने पंच परिवर्तन के सूत्रों को अपनाने का आह्वान करते हुए कहा, “केवल सक्रिय और अनुशासित प्रयासों से ही समाज का विकास संभव है।”
‘प्रेरणा विमर्श 2024’ की प्रमुख उपलब्धियां
इस आयोजन ने पर्यावरण, संस्कृति, और नागरिक कर्तव्यों के प्रति जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विद्वानों और समाजसेवियों के विचारों ने श्रोताओं को प्रेरित किया कि वे अपनी दिनचर्या में पंच परिवर्तन के सूत्रों को अपनाएं। इस विमर्श ने एक नई सोच और ऊर्जा का संचार किया, जो भविष्य में समाज और राष्ट्र के विकास में सहायक होगा।
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