हर प्रेम कहानी में कुछ खूबसूरत पल होते हैं और दिल्ली में प्रदूषण भी आपको कुछ ऐसे ही अनुभव देता है। मगर यह अनुभव बिल्कुल अलग होता है। अब, लोग अपने मास्क के साथ टहलते हैं और रोमांटिक मूड में होते हुए भी अपने दिलों की धड़कन नहीं, बल्कि प्रदूषण के स्तर की चिंता करते हैं।
इस दृश्य को सोचिए—दिल्ली की गलियों में एक जोड़ा अपने रोमांटिक पल बिता रहा है, लेकिन आसपास की धुंध इतनी घनी है कि वह एक-दूसरे को देख भी नहीं सकते। अगर शेक्सपीयर की नायिका जूलियट होती, तो वह शायद अपने प्रेमी से कहती,"तुम्हारे होंठ सुर्ख हों, पर हवाओं में धुंध सी है, क्या यह हमारे प्यार को ढक लेगी?"
दिल्ली में प्रदूषण एक ऐसा ‘तीसरा पक्ष’ बन चुका है, जो हर समय इस प्रेम कहानी का हिस्सा बना रहता है। इसे नकारा नहीं जा सकता, चाहे हम कितने भी मास्क पहन लें। यह वही प्रदूषण है, जो छुपकर हमारे रोमांटिक पलों को अपना बनाता है।
"तुमसे मिलकर दिल को सुकून मिला था, लेकिन अब यह हवा, ये धुंआ, तुम्हारी ग़ैर-मौजूदगी की तरह महसूस हो रहा है।"
दिल्ली के लोग एक खूबसूरत गाने की तरह इस प्रदूषण के साथ जीते हैं, जैसे बॉलीवुड के पुराने गाने—“पहला नशा, पहलां ख़ुमार”—लेकिन अब यह गाना धुंध के बीच हल्का सा गूंजता है। प्रदूषण में भी रोमांस होता है, लेकिन वो रोमांस अब मास्क में ढक गया है।
अगर शेक्सपीयर होते तो वह दिल्ली की धुंध पर कुछ इस तरह लिखते, “क्या वह हवा शुद्ध हो सकती है, जो क्यूंकि तुम पास नहीं हो?” यह प्रेम कहानी न केवल जटिल है, बल्कि यहां शेक्सपीयर की नायिकाएं भी प्रदूषण से मुक्ति चाहतीं।
वह भी उसी धुंध में खो जातीं, और शायद कहतीं, "तुम्हारी सांसें वही हैं, जो हवा में घुल कर हर दिल में बसी हैं!"
दिल्ली का प्रदूषण शेक्सपीयर के दुखभरे प्रेम त्रासदी से कहीं ज्यादा भयावह है। यहां, प्रदूषण हमारी भावनाओं को भी अवरुद्ध कर देता है, जैसे "रोमियो और जूलियट" के अंत में वे एक-दूसरे से मिल नहीं पाते थे। अब दिल्लीवाले भी, प्रदूषण के कारण, शुद्ध हवा के लिए तड़पते रहते हैं, लेकिन वह केवल सपना बनकर रह जाता है।
दिल्ली में प्रदूषण और प्यार का आदान-प्रदान अब आम बात हो चुका है। लोग जब एक-दूसरे से मिलते हैं, तो सबसे पहले यह नहीं पूछते कि तुम कैसे हो, बल्कि यह पूछते हैं कि बाहर का प्रदूषण कितना है। “तुमसे मिलकर दिल को सुकून मिला था, लेकिन अब यह हवा, ये धुंआ, तुम्हारी ग़ैर-मौजूदगी की तरह महसूस हो रहा है।”
यह स्थिति अब इस शहर की संस्कृति बन चुकी है। यह मोहब्बत केवल दो लोगों के बीच नहीं, बल्कि उस शहर की हर सांस में महसूस होती है। हालांकि, यह मोहब्बत जितनी मीठी है, उतनी ही खतरनाक भी है।
दिल्ली का प्रदूषण अब एक स्थायी प्रेमी की तरह बन चुका है, जो कभी छोड़ता नहीं। यह वही प्रेमी है जो अपनी धुंध से हर जगह अपना असर छोड़ता है, और उसकी उपस्थिति का अहसास हर पल होता है। लेकिन जैसे शेक्सपीयर ने कहा था, “कभी प्रेमी का प्यार चुपके से आता है, कभी वह हवा के जैसे घुलकर फैल जाता है।” वैसे ही प्रदूषण भी दिल्ली में हर जगह फैल चुका है।
जब तक दिल्ली के लोग इस प्रदूषण से मोहब्बत करते रहेंगे, तब तक यह धुंध उनके साथ बनी रहेगी। और जैसे एक प्रेमी का प्यार कभी खत्म नहीं होता, वैसे ही दिल्ली की धुंध भी इस शहर के दिल में हमेशा के लिए बस चुकी है।
✍️... रघुनाथ सिंह
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