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Waqf Dispute: इमामबाड़ा, मकबरा और वक्फ का पिटारा: योगी सरकार बोली, दस्तावेज़ कहाँ है तुम्हारा?

योगी आदित्यनाथ सरकार का सख्त रुख—वक़्फ़ बोर्ड के फर्ज़ी दावों पर अब चलेगा सच का बुलडोजर!

  • वक़्फ़ का 1.3 लाख संपत्तियों का झूठा दावा, 78% पर सरकार का मालिकाना हक।
  • कागज़ी घोड़े दौड़ाए वक़्फ़ बोर्ड ने, योगी सरकार ने दिखाए असली दस्तावेज।
  • इमामबाड़ों से अस्पतालों तक, हर सरकारी जमीन पर वक़्फ़ की नज़र।
  • JPC की जांच में खुला सच, वक़्फ़ के फर्जी दावों का होगा खेल खत्म।
  • योगी सरकार का सख्त संदेश– सरकारी संपत्तियों पर नहीं चलेगा अतिक्रमण।
उत्तर प्रदेश में वक़्फ़ बोर्ड का ज़मीन पर दावा ऐसे है, जैसे कोई बिना टिकट यात्रा करने वाले यात्री का रेलवे स्टेशन पर कब्ज़े का ऐलान। योगी सरकार ने संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को बताया कि वक़्फ़ बोर्ड ने जिन 1.3 लाख संपत्तियों पर अधिकार जताया है, उनमें से 78% सरकारी ज़मीनें हैं।

हैरानी की बात ये है कि इन दावों को सही ठहराने के लिए वक़्फ़ बोर्ड के पास काग़ज़ का एक वैध पर्जा भी नहीं है।

सरकारी राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार, वक़्फ़ बोर्ड जिन जमीनों पर दावा कर रहा है, वे श्रेणी 5 और 6 के अंतर्गत आती हैं। इन श्रेणियों में सरकारी और ग्राम सभा की जमीनें आती हैं। लेकिन, वक़्फ़ बोर्ड को शायद लगता है कि "सरकारी" शब्द का अर्थ "वक़्फ़ की विरासत" होता है।  

यूपी सरकार की अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव मोनिका गर्ग ने JPC को बताया कि वक़्फ़ बोर्ड 14,000 हेक्टेयर जमीन का दावा कर रहा है। हालांकि, आधिकारिक रिकॉर्ड की जांच में यह पाया गया कि इनमें से 11,700 हेक्टेयर जमीन सरकारी है।

यह खुलासा ऐसा था जैसे किसी को आईना दिखा दिया गया हो। मोनिका गर्ग ने यह भी याद दिलाया कि सचर समिति की रिपोर्ट में पहले ही बताया गया था कि वक़्फ़ बोर्ड द्वारा दावा की गई 60 संपत्तियां भी सरकारी हैं।  

सरकार ने JPC को स्पष्ट किया कि वक़्फ़ बोर्ड के दावे वाली जमीनों का क्रॉस-चेकिंग प्रक्रिया में 1952 के रिकॉर्ड से मिलान किया जाता है। यदि यह साबित होता है कि जमीन वक़्फ़ बोर्ड की है, तो सरकार खुद वक़्फ़ संपत्तियों से अवैध कब्जा हटाने में मदद करती है।

लेकिन, यहां मामला उल्टा निकला। ज्यादातर जमीनें सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज हैं, और वक़्फ़ बोर्ड का दावा निराधार पाया गया।

अब ज़रा वक़्फ़ बोर्ड की इस "दावेदारी" का आलम देखिए! इस पूरी कहानी में सबसे मजेदार बात यह है कि वक़्फ़ बोर्ड ने बड़ा इमामबाड़ा, छोटा इमामबाड़ा और बेगम का मक़बरा जैसी ऐतिहासिक धरोहरों पर भी अपना दावा ठोक दिया है।

ये धरोहरें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित हैं और सरकारी संपत्ति हैं। इसके अलावा बलरामपुर का सरकारी अस्पताल, लखनऊ विकास प्राधिकरण (LDA) की जमीन, और नगर निगम की संपत्तियों पर भी वक़्फ़ बोर्ड ने दावा किया।  

संयुक्त संसदीय समिति की अंतिम क्षेत्रीय बैठक 21 जनवरी 2025 को लखनऊ में आयोजित हुई, जहां इस पूरे मामले पर चर्चा हुई।

बैठक में JPC के अध्यक्ष और बीजेपी सांसद जगदंबिका पाल ने कहा, "JPC पिछले छह महीनों से देशभर में इस विषय पर चर्चा कर रही है। अब रिपोर्ट तैयार है और इसे आगामी 31 जनवरी के बजट सत्र में संसद में पेश किया जाएगा।"  

सरकार ने साफ-साफ बताया कि वक़्फ़ बोर्ड का दावा करना एक बात है, लेकिन दावों का आधार होना दूसरी बात। इस मामले में वक़्फ़ बोर्ड के पास न तो पर्याप्त दस्तावेज़ हैं, न ही उनके दावों की वैधता। 

इससे स्पष्ट हो गया है कि सरकारी संपत्तियों पर वक़्फ़ बोर्ड का दावा केवल एक "कागजी सपना" था, जो अब वास्तविकता की ठोस दीवार से टकरा चुका है।

✍️... रघुनाथ सिंह


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