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फ्रेंच फ्राई क्रांति: स्वाद में हिंदुस्तानी ठाठ, निर्यात में रचे नए आयाम

फ्रेंच फ्राइज़, जो दुनिया भर में लाखों लोगों की पसंदीदा कुरकुरी स्नैक है, ने भारत में एक अप्रत्याशित सफलता पाई है। पिछले तीन दशकों में इस लोकप्रिय खाद्य पदार्थ की यात्रा ने एक उल्लेखनीय परिवर्तन किया है।

एक समय में जमी हुई फ्रेंच फ्राइज़ का प्रमुख आयातक रहने वाला भारत अब वैश्विक निर्यातक बन चुका है। वित्तीय वर्ष 2023-2024 में भारत ने 1,35,877 टन फ्रेंच फ्राइज़ का निर्यात किया, जिसकी कुल कीमत 1,478.73 करोड़ रुपये थी। भारत ने वैश्विक फ्रेंच फ्राई बाजार में यह परिवर्तन कैसे हासिल किया?

भारत में जमी हुई फ्रेंच फ्राइज़ की शुरुआत  वर्ष 1992 में अमेरिकी खाद्य कंपनी लैम्ब वेस्टन द्वारा हुई। शुरुआत में इन्हें उच्च श्रेणी के होटलों और रेस्तरां को लक्षित किया गया था, लेकिन जल्द ही इनकी लोकप्रियता बढ़ने लगी। 1996 में, कनाडाई बहुराष्ट्रीय कंपनी मैकेन फूड्स भारतीय बाजार में आई और मैकडॉनल्ड्स की अनन्य आपूर्तिकर्ता बन गई।

वर्ष 2000 के दशक के मध्य तक, भारत में जमी हुई फ्रेंच फ्राइज़ का आयात सालाना 5,000 टन से अधिक हो गया था और 2010-2011 में यह 7,863 टन के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। यह बढ़ती मांग पश्चिमी फास्ट फूड संस्कृति की लोकप्रियता और भारतीय उपभोक्ताओं की बदलती खानपान आदतों को दर्शाती है। हालांकि, जल्द ही एक बड़ा बदलाव देखने को मिला।

2023-2024 तक आते-आते स्थिति पूरी तरह से बदल चुकी है। भारत अब 1,35,877 टन फ्रेंच फ्राइज़ का निर्यात कर रहा है। वित्तीय वर्ष के अप्रैल-अक्टूबर अवधि में ही 1,06,506 टन का निर्यात हुआ, जिसकी कीमत 1,056.92 करोड़ रुपये रही।

भारतीय फ्रेंच फ्राइज़ अब वैश्विक बाजारों में अपनी जगह बना रही हैं, विशेष रूप से दक्षिण पूर्व एशिया में। प्रमुख निर्यात गंतव्य हैं:-फिलीपींस, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, वियतनाम।

दक्षिण-पूर्व एशिया के अलावा, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और ओमान जैसे मध्य पूर्वी देश भी बड़े खरीदार बन गए हैं। भारत का निर्यात अब जापान और ताइवान जैसे बाजारों तक भी पहुंच रहा है, जो परंपरागत रूप से यूरोपीय और अमेरिकी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भर थे।

भारत को आयातक से निर्यातक बनने तक की यात्रा में कई कारकों ने योगदान दिया। भारत में फ्रेंच फ्राइज़ के लिए उपयुक्त आलू की किस्मों का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा रहा है। इनमें प्रमुख हैं। संताना (Santana), इनोवेटर (Innovator), केनेबेक (Kennebec), कुफरी (Kufri) Frysona and Kufri, FryoM and Lady Rosetta and Kufri Chipsona उक्त सभी आलू की किस्में हैं। इनके अलावा बहुत सी किस्में हैं।

प्रमुख निर्यातक कंपनियों जैसे हाईफन फूड्स और इस्कॉन बालाजी फूड्स ने अनुबंध खेती मॉडल को अपनाया है, जिससे किसानों के साथ प्रत्यक्ष कार्य किया जा रहा है और गुणवत्ता सुनिश्चित की जा रही है।

अत्याधुनिक प्रसंस्करण सुविधाएं और भंडारण इंफ्रास्ट्रक्चर ने फ्रेंच फ्राइज़ की गुणवत्ता को वैश्विक मानकों के अनुरूप बना दिया है। भारतीय सरकार ने खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न योजनाएं और अनुदान दिए हैं।

श्रम और उत्पादन लागत में प्रतिस्पर्धात्मक लाभ होने के कारण भारत की फ्रेंच फ्राइज़ अन्य देशों की तुलना में अधिक किफायती हैं।

वैश्विक फ्रेंच फ्राइज़ बाजार में निरंतर वृद्धि देखी जा रही है। अनुमान है कि 2024 में इस बाजार का आकार 17.45 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2025 में 18.54 बिलियन डॉलर हो जाएगा। भारत की बढ़ती भागीदारी से 2034 तक इस क्षेत्र से होने वाली आय 2.25 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की संभावना है।

भारत को वैश्विक फ्रेंच फ्राइज़ बाजार में अपनी स्थिति बनाए रखने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना होगा। बड़े पैमाने पर उत्पादन में गुणवत्ता बनाए रखना चुनौतीपूर्ण है। निर्यात को सुविधाजनक बनाने के लिए कोल्ड स्टोरेज और परिवहन नेटवर्क में निरंतर सुधार की आवश्यकता है।

यूरोप और उत्तरी अमेरिका के पारंपरिक आपूर्तिकर्ता अभी भी अपने मजबूत आपूर्ति श्रृंखलाओं के कारण आगे हैं।भारत की फ्रेंच फ्राइज़ क्रांति इसकी खाद्य प्रसंस्करण क्षमता का प्रमाण है। किसानों, निर्यातकों और सरकारी समर्थन के तालमेल ने इस यात्रा को संभव बनाया है।

गुणवत्ता में सुधार, तकनीकी उन्नयन और बाजार विविधीकरण के निरंतर प्रयासों के साथ, भारत फ्रेंच फ्राइज़ बाजार में अपनी मजबूती बनाए रख सकता है। बढ़ती वैश्विक मांग के साथ, भारत का यह "गोल्डन सफर" और भी ऊंचाइयों को छूने की ओर अग्रसर है।

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