इज़राइल और उसके पड़ोसी देशों के बीच का संघर्ष केवल सीमाओं या सैन्य विवादों तक सीमित नहीं है, यह एक गहरा ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, और धार्मिक संघर्ष है। यह संघर्ष इज़राइल के अस्तित्व और उसकी आस्था से जुड़ा हुआ है। वर्तमान में इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू इस लड़ाई का नेतृत्व कर रहे हैं और उनका नेतृत्व इज़राइल की सुरक्षा और अस्तित्व की नींव को मजबूत करने का प्रतीक बन चुका है।
आस्था और अस्तित्व की जंग
इज़राइल की भूमि से यहूदी समुदाय का गहरा और प्राचीन संबंध है। यह संबंध लगभग 3000 साल से भी अधिक पुराना है, जब यहूदी धर्म और संस्कृति की नींव यरूशलम और आसपास के क्षेत्रों में रखी गई थी। यरूशलम यहूदी धर्म का पवित्र स्थल है और इज़राइल की भूमि से यहूदी आस्था का जुड़ाव अटूट है। इस ऐतिहासिक और धार्मिक संबंध को हमेशा चुनौती दी गई है। अरब देशों ने इज़राइल के अस्तित्व को अस्वीकार किया है और समय-समय पर इज़राइल पर हमले किए हैं। लेकिन, हर बार, इज़राइल ने अपने अस्तित्व को कायम रखने और अपनी आस्था की रक्षा करने के लिए सफलतापूर्वक संघर्ष किया है।
संयुक्त राष्ट्र और इज़राइल का अधिकार
1947 में संयुक्त राष्ट्र ने यहूदियों और अरबों के लिए अलग-अलग राज्यों की स्थापना का प्रस्ताव रखा। इज़राइल ने इस प्रस्ताव को स्वीकार किया, लेकिन अरब देशों ने इसे अस्वीकार कर दिया। इसके बाद इज़राइल और अरब देशों के बीच युद्ध छिड़ गया, लेकिन इज़राइल ने न केवल अपनी स्वतंत्रता को कायम रखा, बल्कि इस संघर्ष के दौरान कई बार विजय भी प्राप्त की।
यह घटना इज़राइल के नैतिक दावे को मजबूत करती है कि उसने अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन किया, जबकि उसके विरोधियों ने शांति के मार्ग को अस्वीकार किया। इज़राइल ने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव का सम्मान करते हुए शांति की दिशा में कदम उठाए, जबकि उसके पड़ोसी देशों ने युद्ध का रास्ता चुना।
आतंकवाद के खिलाफ इज़राइल की लड़ाई
इज़राइल का संघर्ष केवल भौगोलिक सीमाओं के लिए नहीं है, यह आतंकवाद और कट्टरपंथ के खिलाफ एक वैश्विक लड़ाई का हिस्सा भी है। हमास, हिज़्बुल्लाह और अन्य आतंकी संगठन इज़राइल को नष्ट करना चाहते हैं, लेकिन इज़राइल ने अपने अस्तित्व की सुरक्षा के लिए हमेशा अडिग रुख अपनाया है।
हमास और हिज़्बुल्लाह जैसे संगठनों का लक्ष्य केवल इज़राइल की सीमाओं पर नहीं, बल्कि उसकी आस्था और अस्तित्व पर भी हमला करना है। लेकिन इज़राइल ने हर बार आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की है। आतंकवाद के खिलाफ इज़राइल का यह संघर्ष उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक अग्रणी स्थान देता है और बेंजामिन नेतन्याहू इस लड़ाई के प्रमुख नेता के रूप में उभरे हैं।
बेंजामिन नेतन्याहू का नेतृत्व
बेंजामिन नेतन्याहू इज़राइल के सबसे प्रभावशाली और लंबे समय तक सेवा करने वाले प्रधानमंत्रियों में से एक हैं। उन्होंने इज़राइल को सुरक्षा और अस्तित्व की दृष्टि से मजबूत बनाने के लिए कई अहम फैसले लिए हैं। नेतन्याहू ने हमेशा इज़राइल की रक्षा को प्राथमिकता दी है, चाहे वह आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई हो, या देश की सीमाओं की सुरक्षा।
नेतन्याहू ने अपने नेतृत्व में इज़राइल को एक मजबूत सैन्य और आर्थिक शक्ति बनाया है। उनकी नीतियों ने इज़राइल को आतंकवाद और कट्टरपंथी ताकतों के खिलाफ सफलतापूर्वक लड़ने में सक्षम बनाया है। इज़राइल की सेना, जिसे दुनिया की सबसे सक्षम सेनाओं में से एक माना जाता है, नेतन्याहू के नेतृत्व में और भी मजबूत हुई है।
सैन्य शक्ति और नेतन्याहू की रणनीति
नेतन्याहू के नेतृत्व में इज़राइल ने अपनी सैन्य शक्ति को निरंतर बढ़ाया है। उन्होंने अत्याधुनिक तकनीक और हथियारों के साथ इज़राइल की सेना को और अधिक सक्षम बनाया है। इज़राइल की 'आयरन डोम' मिसाइल रक्षा प्रणाली इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। यह प्रणाली इज़राइल को दुश्मनों के रॉकेट और मिसाइल हमलों से बचाने में अत्यधिक प्रभावी रही है।
नेतन्याहू ने इज़राइल की सैन्य शक्ति को बढ़ाने के साथ-साथ आतंकवाद के खिलाफ सख्त कदम उठाए हैं। उन्होंने हमास और हिज़्बुल्लाह के ठिकानों पर कई सफल सैन्य अभियानों का नेतृत्व किया है, जिनसे इन संगठनों को भारी नुकसान हुआ है। इन अभियानों से इज़राइल की सुरक्षा और अस्तित्व को मजबूती मिली है।
शांति प्रयास और नेतन्याहू की भूमिका
इज़राइल ने अपने पड़ोसी देशों के साथ शांति स्थापित करने के कई प्रयास किए हैं। बेंजामिन नेतन्याहू ने मिस्र और जॉर्डन के साथ शांति समझौतों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 1979 में मिस्र और 1994 में जॉर्डन के साथ हुए शांति समझौतों ने इज़राइल को अपनी सीमाओं पर स्थिरता और सुरक्षा दी है।
नेतन्याहू ने फिलिस्तीन के साथ भी शांति वार्ताओं की पहल की है, लेकिन कट्टरपंथी ताकतों ने इन प्रयासों को विफल कर दिया है। इसके बावजूद नेतन्याहू ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर इज़राइल की स्थिति को मजबूत बनाए रखा है। उन्होंने इज़राइल की रक्षा और सुरक्षा के प्रति अपने अडिग रुख से देश को आतंकवाद के खिलाफ एक प्रमुख वैश्विक ताकत के रूप में स्थापित किया है।
नेतन्याहू के सामने आ रही चुनौतियाँ
हालांकि, नेतन्याहू के नेतृत्व में इज़राइल ने कई सफलताएँ हासिल की हैं, लेकिन उनके सामने कई चुनौतियाँ भी हैं। उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप, न्यायिक सुधारों को लेकर विवाद, और देश में हो रहे विरोध प्रदर्शन उनकी राजनीतिक स्थिति को चुनौती दे रहे हैं। इन मुद्दों के बावजूद, नेतन्याहू ने अपनी नीतियों और नेतृत्व क्षमता के माध्यम से इज़राइल की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है।
7 अक्टूबर 2023 का हमला: नेतन्याहू के लिए निर्णायक मोड़
आतंकी संगठन हमास ने इजरायल पर हमला किया। इस हमले ने इजरायल की सुरक्षा को बुरी तरह हिला दिया। 1200 से ज्यादा इजरायली नागरिक मारे गए। 250 से अधिक लोगों को बंधक बना लिया गया। यह इजरायल के लिए बड़ा सदमा था। हमले की पहली बरसी पर इजरायल ने 10 दिन का शोक घोषित किया है। इजरायली सेना ने कहा है कि जंग जारी रहेगी ताकि भविष्य में ऐसा हमला न हो सके। इजरायल रक्षा बलों (IDF) के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल हेरजी हलेवी ने कहा है कि संघर्ष जारी रहेगा। इस हमले में सैकड़ों निर्दोष नागरिक मारे गए और कई लोग बंधक बना लिए गए। यह हमला इज़राइल की सुरक्षा व्यवस्था के लिए एक गंभीर चुनौती थी, और इसने बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार पर भारी दबाव डाला।
नेतन्याहू की नीतियों पर सवाल उठाए जाने लगे, और जनता ने यह मांग की कि इज़राइल की सुरक्षा को लेकर कड़े कदम उठाए जाएं। इस हमले ने नेतन्याहू के नेतृत्व को एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा कर दिया। लेकिन नेतन्याहू ने इस संकट का सामना करते हुए अपने देश की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी और हमास के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की।
नेतन्याहू की निर्णायक कार्रवाई
हमास के हमले के बाद, नेतन्याहू ने निर्णायक कार्रवाई करते हुए इज़राइल की सेना को आतंकवादी संगठनों के खिलाफ बड़े सैन्य अभियान चलाने का आदेश दिया। इन अभियानों में हमास और हिज़्बुल्लाह के ठिकानों पर हमले किए गए और कई आतंकवादी ठिकानों को नष्ट किया गया।
नेतन्याहू की इस कड़ी कार्रवाई ने इज़राइल के नागरिकों के बीच उनकी लोकप्रियता को बढ़ाया और देश में उन्हें एक सशक्त नेता के रूप में देखा जाने लगा। उन्होंने अपने दृढ़ नेतृत्व से यह साबित किया कि इज़राइल की सुरक्षा के लिए वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं।
क्या युद्ध ने नेतन्याहू की स्थिति मजबूत की?
हमास और हिज़्बुल्लाह के खिलाफ की गई इन सैन्य कार्रवाइयों ने नेतन्याहू की स्थिति को और मजबूत किया है। उन्होंने आतंकवादी संगठनों को भारी नुकसान पहुँचाया, और उनकी इस कार्रवाई ने इज़राइल की सेना को एक नई ऊर्जा दी। जनता ने भी नेतन्याहू के नेतृत्व को सराहा और उन्हें देश की सुरक्षा का रक्षक माना।
हालांकि, देश में बढ़ती अस्थिरता और न्यायिक सुधारों को लेकर हो रहे विवाद ने उनकी राजनीतिक स्थिति को चुनौती दी है। विरोधियों का कहना है कि नेतन्याहू की नीतियाँ देश को और अधिक संकट में धकेल सकती हैं, लेकिन समर्थकों का मानना है कि उनका कठोर रुख ही इज़राइल को सुरक्षित रख सकता है।
नेतन्याहू का भविष्य: चुनौती और उम्मीद
बेंजामिन नेतन्याहू के सामने आने वाले समय में कई चुनौतियाँ हैं। भ्रष्टाचार के आरोप और न्यायिक सुधारों को लेकर हो रहे विरोध प्रदर्शन उनके राजनीतिक करियर के लिए खतरा साबित हो सकते हैं। लेकिन, इसके साथ ही, इज़राइल की सुरक्षा और आतंकवाद के खिलाफ उनकी सख्त नीतियों ने उन्हें एक मजबूत नेता के रूप में स्थापित किया है। इज़राइल की जनता नेतन्याहू के सामने यह चुनौती रख रही है कि वह देश को स्थिरता की ओर कैसे ले जाएं। क्या उनका नेतृत्व इज़राइल को और अधिक सुरक्षित बनाएगा, या उनके कठोर कदम देश को और अधिक अस्थिरता की ओर धकेल देंगे? यह सवाल आने वाले समय में इज़राइल की राजनीति और नेतन्याहू के भविष्य को तय करेगा।
बेंजामिन नेतन्याहू ने इज़राइल को सुरक्षा और अस्तित्व की दृष्टि से एक सशक्त राष्ट्र के रूप में स्थापित किया है। आतंकवाद और कट्टरपंथ के खिलाफ उनकी कड़ी नीतियों ने इज़राइल को एक वैश्विक ताकत के रूप में उभारा है। हालांकि उनके सामने कई चुनौतियाँ हैं, लेकिन उनका दृढ़ नेतृत्व और सुरक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता उन्हें इज़राइल के भविष्य के लिए एक निर्णायक नेता बनाती है।
7 अक्टूबर 2023 का हमला नेतन्याहू के लिए एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ है, और उनकी प्रतिक्रियाओं ने यह साबित किया है कि वह इज़राइल की सुरक्षा के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं। अब यह देखना होगा कि आने वाले समय में वह देश को कैसे स्थिरता की ओर ले जाते हैं और अपनी राजनीतिक चुनौतियों का सामना कैसे करते हैं।
✍️... रघुनाथ सिंह
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