दीपावली और इसका पौराणिक महत्त्व
अयोध्या के वासियों ने जब सुना कि उनके प्रिय राजा राम लौट रहे हैं, तो अमावस्या की काली रात को प्रकाशमय करने के लिए सभी ने अपने घरों के सामने घी और तेल के दीप जलाए। इसीलिए दीपावली पर दीप जलाने की परंपरा का प्रारंभ हुआ। राम के आगमन के साथ, सीता को लक्ष्मी का रूप माना गया और उनका अयोध्या आगमन लक्ष्मी के आगमन के रूप में देखा गया।
शास्त्रों में दीपावली का उल्लेख
वेदों और पुराणों में दीपावली के महत्त्व का वर्णन किया गया है। स्कंदपुराण के अनुसार, "अमावास्यायां दीपोत्सवः सर्वपापक्षयो भवेत्," यानी अमावस्या पर दीप जलाने से समस्त पापों का नाश होता है। यह कथन दीप जलाने के धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ को दर्शाता है। इसके साथ ही गरुड़ पुराण में उल्लेख है कि दीपावली पर दीप दान करने से विष्णु और लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जो सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य का प्रतीक है।
विष्णु धर्मसूत्र में कहा गया है कि "दीपेन भवति जीवनं, दीपो लक्ष्मीप्रदायते।" अर्थात दीप जीवन देता है और लक्ष्मी को आकर्षित करता है। इसी तरह, महाभारत में भी दीपों की महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया है, "धन्यः स वह्निसंयुक्तो दीपः सर्वदुखप्रणाशकः।" अर्थात दीप से जुड़े सभी व्यक्ति धन्य होते हैं, और यह समस्त दुखों का नाश करता है।
दीपावली की तिथि और मुहूर्त का महत्त्व
इस वर्ष दीपावली का सही मुहूर्त एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। शास्त्रों के अनुसार, भगवान राम और माता सीता जिस अमावस्या प्रदोषकाल में अयोध्या लौटे थे, वह अमावस्या प्रदोषकाल इस वर्ष 31 अक्टूबर को पड़ रहा है। 1 नवम्बर को जब सूर्यास्त के बाद प्रदोषकाल प्रारंभ होगा, तब तक अमावस्या समाप्त हो चुकी होगी और प्रथमा तिथि आरंभ हो चुकी होगी। चूंकि दीपावली का मुख्य पर्व अमावस्या के प्रदोषकाल में मनाया जाता है, अतः शास्त्रों के अनुसार इसे 31 अक्टूबर को मनाना अधिक उचित होगा।
दीपावली का सही समय समझने के लिए हमें शास्त्रों में वर्णित नियमों का पालन करना चाहिए। रामचरितमानस में इस संदर्भ में तुलसीदास जी कहते हैं:
धन्य धाम अयोध्या पुनि पावनि राति अनूप।
हरषित जन दीप जले हरष भर अनघ रूप॥
इससे यह स्पष्ट होता है कि अयोध्या में उस अमावस्या की रात, जब श्रीराम लौटे थे, सभी ने हर्षपूर्वक दीप जलाए थे।
हमारे त्योहार: संस्कृति का प्रतीक
भारतीय परंपरा में त्योहारों का उद्देश्य केवल धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि अपने अतीत की याद भी बनाए रखना है। प्राचीन काल में, महत्वपूर्ण घटनाओं को याद रखने के लिए उन्हें पर्व का रूप दिया गया। मनुस्मृति के अनुसार, "स्मरणं परमो धर्मः," यानी अपने इतिहास और पूर्वजों को स्मरण करना ही परम धर्म है। इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए दीपावली पर दीप जलाकर भगवान राम और माता सीता के आगमन का स्मरण किया जाता है।
दीपावली और लक्ष्मी पूजन
दीपावली पर लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व है। शास्त्रों में इसे जीवन में समृद्धि और सुख-शांति लाने वाला माना गया है। विष्णुपुराण में लक्ष्मी जी का पूजन करने का महत्त्व इस प्रकार बताया गया है: "लक्ष्मीः करोतु संतोषं धनं वै भजते सदा।" अर्थात लक्ष्मीजी का पूजन करने से सदा धन-धान्य की प्राप्ति होती है और जीवन में संतोष आता है। इसी कारण दीपावली के दिन विशेष रूप से लक्ष्मी पूजन किया जाता है, ताकि जीवन में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहे।
दीपावली का सही अर्थ और महत्व
दीपावली का अर्थ केवल दीप जलाना या पूजा-अर्चना करना नहीं है, बल्कि यह एक पावन अवसर है जो हमें हमारे अतीत की याद दिलाता है। यजुर्वेद में उल्लेख है, "तमसो मा ज्योतिर्गमय" अर्थात अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ो। दीपावली इस संदेश का प्रतीक है और हमें बताती है कि चाहे जीवन में कितना भी अंधकार क्यों न हो, हमें सदैव प्रकाश की ओर अग्रसर रहना चाहिए।
दीपावली एक ऐसा पर्व है, जो भारतीय संस्कृति, परंपरा और इतिहास का प्रतीक है। इस पावन अवसर पर दीप जलाकर हम अपने महान अतीत को याद करते हैं और समाज में समृद्धि, शांति और एकता का संदेश देते हैं। हर वर्ष इस पर्व पर हम अपने घरों को प्रकाशित करके राम और सीता के आगमन का स्वागत करते हैं और लक्ष्मी जी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस दीपावली पर सही मुहूर्त में दीप जलाकर हम इस पर्व के वास्तविक संदेश को समझने और उसे जीने का संकल्प लें।
✍️... रघुनाथ सिंह
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