Skip to main content

दीपावली: रोशनी के पीछे छिपा है आत्मिक उत्थान का रहस्य, आइए जाने


दीपावली केवल रोशनी और उत्सव का पर्व नहीं है, बल्कि यह आत्म-जागरण, आंतरिक शुद्धि और मानवीय मूल्यों को सशक्त बनाने का अवसर भी है। इस पर्व का वास्तविक संदेश हमें अपने भीतर छुपे अंधकार को ज्ञान, सत्य और प्रेम के प्रकाश से दूर करने की प्रेरणा देता है। दीप जलाना न केवल परंपरा है बल्कि यह प्रतीकात्मक है—जिस प्रकार दीपक अंधकार को समाप्त करता है, उसी प्रकार हमें अपने भीतर की नकारात्मकता और बुराइयों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। 
दीपावली पर माता लक्ष्मी की पूजा के साथ-साथ हम सुख-समृद्धि और आंतरिक शांति की कामना करते हैं, जो केवल बाहरी संपत्ति से नहीं बल्कि आंतरिक शुद्धता और सकारात्मक विचारों से प्राप्त होती है। यह पर्व हमें अपने जीवन में करुणा, परोपकार, और सच्चाई के मार्ग पर चलने का संदेश देता है। इस दिन लोग मिल-जुलकर खुशियां बांटते हैं, एकता और सद्भावना का माहौल बनाते हैं, जो समाज को मजबूत बनाता है। 
दीपावली का पर्व बताता है कि आंतरिक प्रकाश ही वास्तविक समृद्धि है और हमें अपने जीवन में आत्म-साक्षात्कार, विनम्रता और दूसरों की सेवा जैसे गुणों को अपनाने की आवश्यकता है। इस पर्व की असली महिमा तभी है, जब हम इसे केवल बाहरी चमक-धमक तक सीमित न रखें, बल्कि अपने भीतर के अंधकार को भी दूर कर सकें। इस प्रकार, दीपावली हमें जीवन के हर क्षेत्र में सकारात्मकता, प्रेम, और ज्ञान के दीप जलाने की प्रेरणा देती है।
दीपावली भारत का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है, जो पौराणिक कथाओं, शास्त्रों और लोककथाओं में विशेष स्थान रखता है। इस पर्व का सीधा संबंध भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने से जुड़ा है, जब उन्होंने माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्षों का वनवास पूरा किया था। शास्त्रों में इस दिन को विशेष मुहूर्त के रूप में वर्णित किया गया है, जब राम, सीता और लक्ष्मण के अयोध्या आगमन पर वहां के निवासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था। यह पर्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्त्व भी रखता है।

दीपावली और इसका पौराणिक महत्त्व
अयोध्या के वासियों ने जब सुना कि उनके प्रिय राजा राम लौट रहे हैं, तो अमावस्या की काली रात को प्रकाशमय करने के लिए सभी ने अपने घरों के सामने घी और तेल के दीप जलाए। इसीलिए दीपावली पर दीप जलाने की परंपरा का प्रारंभ हुआ। राम के आगमन के साथ, सीता को लक्ष्मी का रूप माना गया और उनका अयोध्या आगमन लक्ष्मी के आगमन के रूप में देखा गया।

शास्त्रों में दीपावली का उल्लेख
वेदों और पुराणों में दीपावली के महत्त्व का वर्णन किया गया है। स्कंदपुराण के अनुसार, "अमावास्यायां दीपोत्सवः सर्वपापक्षयो भवेत्," यानी अमावस्या पर दीप जलाने से समस्त पापों का नाश होता है। यह कथन दीप जलाने के धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ को दर्शाता है। इसके साथ ही गरुड़ पुराण में उल्लेख है कि दीपावली पर दीप दान करने से विष्णु और लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जो सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य का प्रतीक है।

विष्णु धर्मसूत्र में कहा गया है कि "दीपेन भवति जीवनं, दीपो लक्ष्मीप्रदायते।" अर्थात दीप जीवन देता है और लक्ष्मी को आकर्षित करता है। इसी तरह, महाभारत में भी दीपों की महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया है, "धन्यः स वह्निसंयुक्तो दीपः सर्वदुखप्रणाशकः।" अर्थात दीप से जुड़े सभी व्यक्ति धन्य होते हैं, और यह समस्त दुखों का नाश करता है।

दीपावली की तिथि और मुहूर्त का महत्त्व
इस वर्ष दीपावली का सही मुहूर्त एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। शास्त्रों के अनुसार, भगवान राम और माता सीता जिस अमावस्या प्रदोषकाल में अयोध्या लौटे थे, वह अमावस्या प्रदोषकाल इस वर्ष 31 अक्टूबर को पड़ रहा है। 1 नवम्बर को जब सूर्यास्त के बाद प्रदोषकाल प्रारंभ होगा, तब तक अमावस्या समाप्त हो चुकी होगी और प्रथमा तिथि आरंभ हो चुकी होगी। चूंकि दीपावली का मुख्य पर्व अमावस्या के प्रदोषकाल में मनाया जाता है, अतः शास्त्रों के अनुसार इसे 31 अक्टूबर को मनाना अधिक उचित होगा।

दीपावली का सही समय समझने के लिए हमें शास्त्रों में वर्णित नियमों का पालन करना चाहिए। रामचरितमानस में इस संदर्भ में तुलसीदास जी कहते हैं: 

धन्य धाम अयोध्या पुनि पावनि राति अनूप।
हरषित जन दीप जले हरष भर अनघ रूप॥  

इससे यह स्पष्ट होता है कि अयोध्या में उस अमावस्या की रात, जब श्रीराम लौटे थे, सभी ने हर्षपूर्वक दीप जलाए थे।

हमारे त्योहार: संस्कृति का प्रतीक
भारतीय परंपरा में त्योहारों का उद्देश्य केवल धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि अपने अतीत की याद भी बनाए रखना है। प्राचीन काल में, महत्वपूर्ण घटनाओं को याद रखने के लिए उन्हें पर्व का रूप दिया गया। मनुस्मृति के अनुसार, "स्मरणं परमो धर्मः," यानी अपने इतिहास और पूर्वजों को स्मरण करना ही परम धर्म है। इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए दीपावली पर दीप जलाकर भगवान राम और माता सीता के आगमन का स्मरण किया जाता है।

दीपावली और लक्ष्मी पूजन
दीपावली पर लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व है। शास्त्रों में इसे जीवन में समृद्धि और सुख-शांति लाने वाला माना गया है। विष्णुपुराण में लक्ष्मी जी का पूजन करने का महत्त्व इस प्रकार बताया गया है: "लक्ष्मीः करोतु संतोषं धनं वै भजते सदा।" अर्थात लक्ष्मीजी का पूजन करने से सदा धन-धान्य की प्राप्ति होती है और जीवन में संतोष आता है। इसी कारण दीपावली के दिन विशेष रूप से लक्ष्मी पूजन किया जाता है, ताकि जीवन में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहे।

दीपावली का सही अर्थ और महत्व
दीपावली का अर्थ केवल दीप जलाना या पूजा-अर्चना करना नहीं है, बल्कि यह एक पावन अवसर है जो हमें हमारे अतीत की याद दिलाता है। यजुर्वेद में उल्लेख है, "तमसो मा ज्योतिर्गमय" अर्थात अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ो। दीपावली इस संदेश का प्रतीक है और हमें बताती है कि चाहे जीवन में कितना भी अंधकार क्यों न हो, हमें सदैव प्रकाश की ओर अग्रसर रहना चाहिए।

दीपावली एक ऐसा पर्व है, जो भारतीय संस्कृति, परंपरा और इतिहास का प्रतीक है। इस पावन अवसर पर दीप जलाकर हम अपने महान अतीत को याद करते हैं और समाज में समृद्धि, शांति और एकता का संदेश देते हैं। हर वर्ष इस पर्व पर हम अपने घरों को प्रकाशित करके राम और सीता के आगमन का स्वागत करते हैं और लक्ष्मी जी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस दीपावली पर सही मुहूर्त में दीप जलाकर हम इस पर्व के वास्तविक संदेश को समझने और उसे जीने का संकल्प लें।

✍️... रघुनाथ सिंह

Comments

Popular posts from this blog

व्यंग्य: सपनों का पेट, हकीकत का गिटार? कब बजेगी फिटनेस की तार?

हमारे समाज में फिटनेस अब एक नए 'संस्कार' के रूप में लोगों के दिमाग बैठ चुकी है। हर व्यक्ति इस राह पर चलने लगा है, जहां "प्रोटीन शेक्स" को आशीर्वाद की तरह लिया जाता है और वजन घटाने वाले डाइट प्लान को किसी शास्त्र की तरह माना जाता है। लेकिन हम सब जानते हैं कि फिटनेस की इस धारणा में कुछ बातें इतनी सरल नहीं हैं जितनी कि ये दिखती हैं। । खासकर जब हम 'पेट' जैसे जटिल विषय पर बात करें। तो आज हम इसी पेट के इर्द-गिर्द एक मजेदार और व्यंग्यपूर्ण यात्रा पर निकलते हैं, जिसमें फिटनेस की बात होगी, लेकिन चुटीले अंदाज में!  बढ़ता हुआ पेट और समाज का प्यारभरा आशीर्वाद सबसे पहले तो एक सवाल– क्या आपने कभी सोचा है कि पेट बढ़ता क्यों है? यह हमारे समाज का आशीर्वाद है। हां, यही बात है। शादी के बाद लोग तुरंत पूछते हैं, "अरे! पेट कब आएगा?" जब आपके पेट पर थोड़ा सा भी 'संकेत' मिलता है, तो समाज में हर व्यक्ति फिटनेस गुरू बन जाता है। पड़ोसी आंटी से लेकर ऑफिस के सहकर्मी तक, सब आपको हेल्दी डाइट प्लान और व्यायाम के सुझाव देने लगते हैं। और अगर आप जिम जाने का इरादा भी करते हैं,...

ध्यानी नहीं शिव सारस

!!देव संस्कृति विश्विद्यालय में स्थपित प्रज्ञेश्वर महादेव!! ध्यानी नहीं शिव सारसा, ग्यानी सा गोरख।  ररै रमै सूं निसतिरयां, कोड़ अठासी रिख।। साभार : हंसा तो मोती चुगैं पुस्तक से शिव जैसा ध्यानी नहीं है। ध्यानी हो तो शिव जैसा हो। क्या अर्थ है? ध्यान का अर्थ होता हैः न विचार, वासना, न स्मृति, न कल्पना। ध्यान का अर्थ होता हैः भीतर सिर्फ होना मात्र। इसीलिए शिव को मृत्यु का, विध्वंस का, विनाश का देवता कहा है। क्योंकि ध्यान विध्वंस है--विध्वंस है मन का। मन ही संसार है। मन ही सृजन है। मन ही सृष्टि है। मन गया कि प्रलय हो गई। ऐसा मत सोचो कि किसी दिन प्रलय होती है। ऐसा मत सोचो कि एक दिन आएगा जब प्रलय हो जाएगी और सब विध्वंस हो जाएगा। नहीं, जो भी ध्यान में उतरता है, उसकी प्रलय हो जाती है। जो भी ध्यान में उतरता है, उसके भीतर शिव का पदार्पण हो जाता है। ध्यान है मृत्यु--मन की मृत्यु, "मैं" की मृत्यु, विचार का अंत। शुद्ध चैतन्य रह जाए--दर्पण जैसा खाली! कोई प्रतिबिंब न बने। तो एक तो यात्रा है ध्यान की। और फिर ध्यान से ही ज्ञान का जन्म होता है। जो ज्ञान ध्यान के बिना तुम इकट्ठा ...

व्यंग्य: राजधानी दिल्ली की हवा हुई और खराब, राजनेताओं की बातों में कुछ नहीं 'खरा' अब

देश की राजधानी  दिलवालों की   दिल्ली  आजकल  किसी और  के लिए ही जानी जा रही है - वो है यहां की एयर क्वॉलिटी इंडेक्स । यहां की हवा में अब ऐसा जहर घुल चुका है कि सांस लेना किसी कारनामे से कम नहीं लगता। ख़राब एयर क्वॉलिटी से हालात इतने दयनीय हैं कि लोग गहरी सांस लेने की बजाय William Shakespeare के “Hamlet” की तरह सोच रहे हैं- "To breathe or not to breathe, that is the question." यहां की वायु में घुला यह धुआं किसी त्रासदी से कम नहीं, लेकिन सफेद कुर्ताधारियों के लिए यह बस राजनीति का नया मुद्दा ही अपितु एक पॉलिटिकल डायलॉग और लफ्फाजी का अखाड़ा बन चुका है। दिल्ली की ज़हरीली हवा में अब सांस लेना किसी बॉलीवुड के फिल्मी विलेन से लड़ने जैसा हो गया है। यहां के हालात देखकर “Hamlet” का एक अन्य संवाद याद आती है- "Something is rotten in the state of Denmark." बस, ‘डेनमार्क’ की जगह आप दिल्ली लिख लें, बाकी सब वैसा ही है। देश राजधानी की एयर क्वॉलिटी इंडेक्स का हाल पूछिए, तो जवाब आता है—जहांगीरपुरी 458, मुंडका 452, और आनंद विहार 456। अब यह AQI नहीं, जैसे कोई IPL Cricket Match का...