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क्या मैक्रॉन और नेतन्याहू के बीच का टकराव मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव का संकेत है?


मध्य पूर्व का राजनीतिक और सैन्य परिदृश्य अक्सर आंतरिक और बाहरी ताकतों द्वारा आकार दिया जाता है, जिनके निर्णय लाखों लोगों के जीवन को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं। इस जटिल क्षेत्र में हाल के समय में एक मुख्य बिंदु इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन के बीच का कूटनीतिक टकराव है। दोनों नेताओं के बीच तनाव तब बढ़ गया जब मैक्रॉन ने सार्वजनिक रूप से इज़राइल को हथियारों की बिक्री रोकने का आह्वान किया, यह तर्क देते हुए कि लगातार सैन्य समर्थन हमास के साथ संघर्ष को और खराब करेगा। नेतन्याहू ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए मैक्रॉन पर इज़राइल की रक्षा के अधिकार को कमजोर करने का आरोप लगाया और उनके बयानों को "अपमानजनक" करार दिया।

यह घटना न केवल फ्रांस और इज़राइल के बीच तनाव को बढ़ाती है, बल्कि अन्य अंतरराष्ट्रीय हितधारकों के बीच भी चिंता पैदा करती है, जो मध्य पूर्व की स्थिरता में रुचि रखते हैं। इस संघर्ष के केंद्र में सुरक्षा, कूटनीति और मानवाधिकारों से जुड़े गहरे मुद्दे हैं। मैक्रॉन की टिप्पणी, जो संघर्ष का राजनीतिक समाधान खोजने और तत्काल संघर्ष विराम की आवश्यकता पर जोर देती है, कई लोगों द्वारा शांति को बढ़ावा देने का प्रयास माना जाता है। हालांकि, इज़राइल का नेतृत्व, जो कई मोर्चों पर खतरों का सामना कर रहा है, हथियारों की बिक्री रोकने के सुझाव को अपनी रक्षा क्षमताओं को कमजोर करने के रूप में देखता है। यह कूटनीतिक विवाद दोनों देशों के बीच भविष्य के संबंधों पर गंभीर सवाल खड़े करता है और यह भी कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस क्षेत्र के संघर्षों में कैसे भूमिका निभाएगा।

संघर्ष विराम और हथियार प्रतिबंध की मांग: मैक्रॉन का दृष्टिकोण
फ्रांस इंटर के साथ एक साक्षात्कार में, फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने साहसिक और विवादास्पद बयान दिया, जिसमें उन्होंने इज़राइल को हथियारों की बिक्री तुरंत रोकने की वकालत की, यह तर्क देते हुए कि इन हथियारों का इस्तेमाल हमास के खिलाफ इज़राइली सैन्य अभियानों में किया जा सकता है। मैक्रॉन का यह आह्वान अक्टूबर 7 के हमास के अचानक हमले की पहली बरसी से ठीक पहले आया, जो इज़राइल और हमास के बीच हिंसा में एक महत्वपूर्ण वृद्धि का प्रतीक था। उनकी टिप्पणियां फ्रांस और अन्य यूरोपीय देशों में बढ़ती चिंताओं को दर्शाती हैं, जो गाजा में जारी संघर्ष के मानवीय नुकसान से संबंधित हैं।

मैक्रॉन की टिप्पणी केवल हथियारों की बिक्री के प्रश्न तक सीमित नहीं थी। उन्होंने संघर्ष के राजनीतिक समाधान की आवश्यकता पर भी जोर दिया और तत्काल संघर्ष विराम की मांग की। मैक्रॉन ने कहा, "मुझे लगता है कि आज प्राथमिकता यह है कि हम राजनीतिक समाधान की ओर लौटें, और गाजा में लड़ाई के लिए हथियारों की आपूर्ति बंद कर दें,” ।  उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि चल रही हिंसा न केवल इज़राइल और फिलिस्तीनियों के बीच, बल्कि व्यापक मध्य पूर्व और उससे आगे भी नफरत को जन्म दे रही है। विशेष रूप से, उन्होंने आगाह किया कि गाजा की स्थिति लेबनान को अस्थिर कर सकती है और यह नया संघर्ष मोर्चा गाजा की तरह अराजकता का सामना कर सकता है।

मैक्रॉन की टिप्पणी पश्चिमी नेताओं के बीच बढ़ती भावना को दर्शाती है कि इज़राइल और हमास के बीच हिंसा के चक्र को केवल सैन्य साधनों से हल नहीं किया जा सकता है। इसके बजाय, उनका तर्क है कि ध्यान संघर्ष के मूल कारणों को संबोधित करने वाले स्थायी राजनीतिक समाधान पर होना चाहिए। हथियारों की बिक्री रोकने के बारे में मैक्रॉन की टिप्पणियां एक व्यापक आह्वान का हिस्सा हैं, जिसमें संघर्ष को कम करने और कूटनीति पर जोर देने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। उन्होंने यह भी बताया कि फ्रांस स्वयं इस संघर्ष में किसी भी पक्ष को हथियार नहीं दे रहा है और अन्य देशों से भी ऐसा करने का आह्वान किया।

मैक्रॉन के लिए गाजा में संघर्ष केवल एक क्षेत्रीय मुद्दा नहीं है, बल्कि यह अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए व्यापक खतरा है। उनकी चेतावनी कि लेबनान "एक नया गाजा" बन सकता है, मध्य पूर्व में संघर्षों की परस्पर निर्भर प्रकृति को रेखांकित करती है। एक क्षेत्र में अस्थिरता तेजी से फैल सकती है, एक डोमिनो प्रभाव पैदा कर सकती है जो अन्य देशों को अपनी चपेट में ले सकता है और तनाव को और बढ़ा सकता है।

नेतन्याहू की प्रतिक्रिया: इज़राइल की आत्मरक्षा का अधिकार
इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने मैक्रॉन की टिप्पणी को हल्के में नहीं लिया। मैक्रॉन के साक्षात्कार के तुरंत बाद जारी एक वीडियो बयान में, नेतन्याहू ने फ्रांसीसी राष्ट्रपति की टिप्पणियों की कड़ी निंदा की। नेतन्याहू ने मैक्रॉन के हथियारों की बिक्री रोकने के सुझाव को “अपमानजनक” बताया और फ्रांसीसी नेता पर इज़राइल के उन प्रयासों को कमजोर करने का आरोप लगाया जो विभिन्न खतरों से देश की रक्षा के लिए किए जा रहे हैं।

नेतन्याहू का गुस्सा उस समय स्पष्ट था जब उन्होंने उन कई मोर्चों का उल्लेख किया जिन पर इज़राइल लड़ रहा है। "इज़राइल सभ्यता के दुश्मनों के खिलाफ सात मोर्चों पर अपनी रक्षा कर रहा है," नेतन्याहू ने  गाजा, लेबनान, पश्चिमी तट, यमन, सीरिया, इराक और ईरान का हवाला दिया। उन्होंने इज़राइल के हमास और अन्य दुश्मनों के खिलाफ संघर्ष को सभ्यता और बर्बरता के बीच की व्यापक लड़ाई का हिस्सा बताया, जिसमें ईरान इस संघर्ष के केंद्र में है। नेतन्याहू के लिए, यह विचार कि इज़राइल को एक हथियार प्रतिबंध का सामना करना चाहिए जबकि उसके दुश्मन ईरान और अन्य स्रोतों से समर्थन प्राप्त करते रहते हैं, न केवल गलत है, बल्कि नैतिक रूप से निंदनीय है।

नेतन्याहू के इस बयान में उनकी पारंपरिक सोच परिलक्षित होती है। अपने राजनीतिक करियर के दौरान, उन्होंने लगातार इज़राइल के सामने मौजूद अस्तित्वगत खतरों पर जोर दिया है, विशेष रूप से ईरान और उसके सहयोगियों से। नेतन्याहू लंबे समय से यह तर्क देते आ रहे हैं कि क्षेत्र में जीवित रहने के लिए इज़राइल को अपनी सैन्य श्रेष्ठता बनाए रखनी होगी, और इसकी हथियारों तक पहुंच को सीमित करने के किसी भी प्रयास को उसकी सुरक्षा के लिए सीधा खतरा माना जाता है। इस संदर्भ में, मैक्रॉन का हथियारों की बिक्री रोकने का आह्वान शांति का रास्ता नहीं बल्कि इज़राइल को उसके दुश्मनों के सामने कमजोर करने वाला खतरनाक कदम है।

नेतन्याहू ने उन पश्चिमी नेताओं की कथित पाखंड पर भी हमला किया, जो हथियारों की बिक्री रोकने का आह्वान कर रहे थे। जबकि फ्रांस जैसे देश इज़राइल पर हथियार प्रतिबंध की वकालत कर रहे हैं, नेतन्याहू ने बताया कि ईरान अपने सहयोगियों, विशेष रूप से लेबनान में हिजबुल्लाह और गाजा में हमास को लगातार हथियार उपलब्ध करा रहा है। "जैसे ही इज़राइल ईरान के नेतृत्व वाली बर्बरता की ताकतों से लड़ता है, सभी सभ्य देशों को इज़राइल के साथ मजबूती से खड़ा होना चाहिए। फिर भी राष्ट्रपति मैक्रॉन और अन्य पश्चिमी नेता अब इज़राइल के खिलाफ हथियार प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं,”। उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि क्या ईरान अपने सहयोगियों पर इसी तरह का हथियार प्रतिबंध लगा रहा है। "बिलकुल नहीं, "यह आतंक का धुरी एक साथ खड़ा है।"

नेतन्याहू ने अपने बयान का समापन एक दृढ़ संदेश के साथ किया। उन्होंने इज़राइली जनता और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को आश्वस्त किया कि इज़राइल "चाहे उनके समर्थन के साथ या उसके बिना" जीत जाएगा। लेकिन उन्होंने मैक्रॉन और अन्य पश्चिमी नेताओं को भी चेतावनी दी: "उनकी शर्मिंदगी युद्ध जीतने के बाद भी लंबे समय तक बनी रहेगी।"

व्यापक कूटनीतिक परिणाम
नेतन्याहू और मैक्रॉन के बीच टकराव न केवल दो नेताओं के बीच व्यक्तिगत मतभेद है; इसके व्यापक कूटनीतिक परिणाम हैं, विशेष रूप से इज़राइल और फ्रांस के बीच के संबंधों के लिए, और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के मध्य पूर्व संघर्ष को संबोधित करने के दृष्टिकोण के लिए।

इज़राइल के लिए, मैक्रॉन की टिप्पणी विशेष रूप से चिंताजनक है क्योंकि वे एक ऐसे देश से आ रही हैं जिसे ऐतिहासिक रूप से एक करीबी सहयोगी के रूप में देखा गया है। फ्रांस, कई अन्य पश्चिमी देशों की तरह, लगातार इज़राइल के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन करता रहा है, जबकि साथ ही साथ फिलिस्तीनियों के लिए एक स्वतंत्र राज्य के लिए समर्थन व्यक्त करता रहा है। इस संतुलित दृष्टिकोण ने फ्रांस को इज़राइल और उसके आलोचकों दोनों के साथ एक अद्वितीय स्थिति में रखा है। लेकिन हथियारों की बिक्री पर रोक लगाने का मैक्रॉन का आह्वान, और उसके बाद नेतन्याहू की तीखी प्रतिक्रिया, यह सुझाव देती है कि यह संतुलन अब खतरे में है।

फ्रांस, यूरोपीय संघ का एक प्रमुख सदस्य होने के नाते, इज़राइल-फिलिस्तीनी संघर्ष पर व्यापक यूरोपीय नीति को भी प्रभावित करता है। मैक्रॉन के बयान उस व्यापक भावना का हिस्सा हो सकते हैं जो यूरोपीय नेताओं के बीच विकसित हो रही है, जो इस बात से चिंतित हैं कि क्षेत्र में बढ़ती हिंसा यूरोप में अप्रवासन और आतंकवाद सहित उनके अपने देशों को कैसे प्रभावित कर सकती है। हथियारों की बिक्री पर रोक लगाने का आह्वान इस डर से प्रेरित हो सकता है कि इज़राइल के सैन्य अभियानों को निरंतर समर्थन से अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन हो सकता है और फिलिस्तीनियों के लिए मानवीय स्थिति और खराब हो सकती है।

भविष्य की राह: क्या कूटनीति समाधान ला सकती है?
नेतन्याहू और मैक्रॉन के बीच इस कूटनीतिक विवाद के परिणामस्वरूप जो सबसे बड़ा प्रश्न उभरता है, वह यह है कि क्या अंतरराष्ट्रीय समुदाय इज़राइल की सुरक्षा आवश्यकताओं और गाजा में मानवीय संकट के समाधान के बीच संतुलन बना सकता है। एक तरफ, इज़राइल लगातार ईरान और उसके सहयोगियों से खतरों का सामना कर रहा है, और कई लोगों का तर्क है कि इज़राइल की सैन्य शक्ति उसकी अस्तित्व की गारंटी है। दूसरी ओर, यह भी स्पष्ट है कि गाजा में संघर्ष और हिंसा के परिणामस्वरूप मानवीय तबाही हुई है, जिसने हजारों निर्दोष लोगों को नुकसान पहुँचाया है और क्षेत्रीय अस्थिरता को बढ़ावा दिया है।

यूरोपीय नेताओं, विशेष रूप से मैक्रॉन, के लिए यह एक जटिल संतुलनकारी कार्य है। उन्हें इज़राइल के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन करना जारी रखना होगा, जबकि साथ ही यह सुनिश्चित करना होगा कि मानवीय संकट को नजरअंदाज न किया जाए। इस संदर्भ में, मैक्रॉन की हथियारों की बिक्री पर रोक लगाने की मांग एक महत्वपूर्ण बिंदु है। यह इस बात का संकेत है कि पश्चिमी देश अब केवल इज़राइल के सुरक्षा हितों पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकते हैं, बल्कि उन्हें क्षेत्र में शांति और स्थिरता की संभावना पर भी विचार करना होगा।

आने वाले दिनों और वर्षों में, नेतन्याहू और मैक्रॉन अपनी-अपनी स्थितियों की रक्षा करना जारी रखेंगे। नेतन्याहू इज़राइल की आत्मरक्षा और सैन्य समर्थन की आवश्यकता पर जोर देंगे, जबकि मैक्रॉन और अन्य यूरोपीय नेता तनाव कम करने, कूटनीति को बढ़ावा देने और संघर्ष के मानवीय पहलुओं पर अधिक ध्यान देने का आग्रह करेंगे।जैसे-जैसे यह कूटनीतिक विवाद आगे बढ़ेगा, बड़ा सवाल यह बना रहेगा: क्या अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इज़राइल की सुरक्षा आवश्यकताओं और गाजा में शांति और मानवीय राहत की तात्कालिक आवश्यकता के बीच संतुलन बना पाएगा?

✍️... रघुनाथ सिंह

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