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Saint Francis Xavier के अवशेष या बौद्ध संत राहुल थेरो का शरीर: ऐतिहासिक विवाद, DNA परीक्षण की माँग, गोवा के चर्च के अवशेषों पर विवाद गहराया

Saint Francis (left) & Acharya Rahul Thero (Image: Commons.Wikimedia

गोवा के प्रमुख नेता सुभाष वेलिंगकर द्वारा संत फ्रांसिस जेवियर के अवशेषों की डीएनए जाँच की माँग के बाद राज्य में सांप्रदायिक तनाव और विवाद खड़ा हो गया है। वेलिंगकर के इस बयान ने गोवा के ईसाई समुदाय की धार्मिक भावनाओं को आहत किया है और विभिन्न समुदायों के बीच संघर्ष का कारण बन गया है। इस विवाद की पृष्ठभूमि में बौद्ध आचार्य राहुल थेरो से जुड़ी एक पुरानी धारणा भी उभरकर सामने आई है, जिसके अनुसार फ्रांसिस जेवियर के अवशेष वास्तव में श्रीलंका के बौद्ध संत आचार्य राहुल थेरो के हैं।

यह विवाद इतिहास, धर्म और सांस्कृतिक पहचान के मुद्दों को लेकर गंभीर होता जा रहा है। सुभाष वेलिंगकर द्वारा संत फ्रांसिस जेवियर के अवशेषों पर "डीएनए परीक्षण" का आह्वान करने के कुछ दिन बाद, राज्यभर में प्रदर्शन भड़क गए। रविवार (06 Oct 2024) को प्रदर्शनकारियों ने दक्षिण गोवा के मड़गांव में अपने आंदोलन को समाप्त कर दिया, जो कि एक चर्च निकाय और विभिन्न कार्यकर्ताओं द्वारा संयम बनाए रखने और शांति बनाए रखने की अपील के बाद हुआ।

एक बयान में, फादर सावियो फर्नांडिस, जो गोवा के आर्चडीओसीज के सामाजिक कार्य विंग, काउंसिल फॉर सोशल जस्टिस एंड पीस (CSJP) के कार्यकारी सचिव हैं, ने वेलिंगकर की टिप्पणियों की कड़ी निंदा की। उन्होंने कहा, "गोवा का कैथोलिक समुदाय संत फ्रांसिस जेवियर के खिलाफ सुभाष वेलिंगकर द्वारा की गई अपमानजनक और अपमानजनक टिप्पणियों की निंदा करता है, जिससे न केवल कैथोलिकों के धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंची है, बल्कि उन सभी लोगों की भी जिन्होंने अन्य धर्मों के अनुयायी हैं और जो हमारे संत को मानते हैं।"

गोवा पुलिस ने वेलिंगकर के खिलाफ "धार्मिक भावनाओं को आहत करने और धार्मिक विश्वासों का अपमान" करने के आरोप में मामला दर्ज किया। संत फ्रांसिस जेवियर के खिलाफ उनके "अपमानजनक भाषण" के चलते शनिवार को वेलिंगकर की गिरफ्तारी की मांग करते हुए प्रदर्शन तेज हो गए। मड़गांव के पुलिस स्टेशन के बाहर सैकड़ों प्रदर्शनकारी जुटे और सड़कों को अवरुद्ध कर दिया। ओल्ड गोवा, कणकणा, पणजी, अंजुना और पोन्डा सहित अन्य क्षेत्रों में भी प्रदर्शन हुए।

गोवा पुलिस ने रविवार को एक बयान में कहा कि वेलिंगकर को गिरफ्तार करने के लिए गोवा और महाराष्ट्र में कई छापेमारी की गई हैं, जो "अंडरग्राउंड" है। पुलिस ने रविवार को मड़गांव के फातोर्डा पुलिस थाने के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत राष्ट्रीय राजमार्ग को अवरुद्ध करने के लिए प्रदर्शनकारियों के खिलाफ मामला भी दर्ज किया। एफआईआर में कहा गया है कि 500 से अधिक लोगों ने वेलिंगकर की गिरफ्तारी की मांग करते हुए एक "गैरकानूनी सभा" का निर्माण किया और राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-66) को अवरुद्ध कर दिया, जिससे वाहनों की आवाजाही और आम जनता की आवाजाही में बाधा आई। इसमें यह भी कहा गया कि प्रदर्शनकारियों ने एक मोटरसाइकिल सवार और अन्य यात्रियों पर हमला किया और ओल्ड मार्केट सर्कल पर अपनी वैध ड्यूटी निभा रहे पुलिस कर्मियों के खिलाफ "अपराधी बल" का उपयोग किया, उन पर पत्थर फेंककर।

विवाद की उत्पत्ति
संत फ्रांसिस जेवियर, जो 16वीं सदी के स्पेनिश जेसुइट मिशनरी थे, ने गोवा और पूरे एशिया में ईसाई धर्म का प्रचार किया था। उनका अवशेष पुराने गोवा के चर्च ‘बेसिलिका ऑफ़ बॉम जीसस’ में संरक्षित है। यह अवशेष गोवा और विश्व भर के ईसाईयों के लिए पवित्रता और श्रद्धा का प्रतीक है। इसके बावजूद, श्रीलंका सहित दुनिया भर के बौद्धों का एक धड़ा यह दावा करता रहा है कि गोवा के इस चर्च में रखे गए अवशेष वास्तव में आचार्य राहुल थेरो के हैं, जो श्रीलंका के एक महान बौद्ध भिक्षु और साहित्यिक विद्वान थे।

इस विवाद को तूल तब मिला जब सुभाष वेलिंगकर ने इस मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए कहा कि संत फ्रांसिस जेवियर को गोवा का संरक्षक नहीं कहा जा सकता, और उनके अवशेषों की डीएनए जाँच होनी चाहिए। वेलिंगकर ने यह भी दावा किया कि गोवा का वास्तविक संरक्षक संत परशुराम हैं, न कि फ्रांसिस जेवियर। 

आचार्य राहुल थेरो कौन थे?
आचार्य राहुल थेरो का जन्म 1409 में श्रीलंका के राजा पराक्रमबाहु 6वें के शासनकाल में हुआ था। वह 1429 में बौद्ध भिक्षु बने और उनका नाम वच्चिश्वर रखा गया। वह छह भाषाओं में पारंगत थे और उन्होंने कई प्रसिद्ध साहित्यिक और धार्मिक ग्रंथ लिखे। राहुल थेरो का योगदान न केवल साहित्य और ज्योतिष में था, बल्कि उन्होंने आयुर्वेदिक चिकित्सा में भी महारत हासिल की थी। उनके जीवन के बाद, उनके शरीर को एक पवित्र धरोहर के रूप में सुरक्षित रखा गया था।  

श्रीलंका के कुछ बौद्ध विद्वानों का मानना है कि जब पुर्तगाली श्रीलंका में आए, तो उन्होंने राहुल थेरो के शरीर को अपने कब्जे में ले लिया और उसे गोवा ले गए। बाद में इसे फ्रांसिस जेवियर के अवशेष के रूप में प्रस्तुत किया गया। यही कारण है कि बौद्ध समुदाय लंबे समय से इस अवशेष की पहचान की जाँच की माँग कर रहा है।

DNA जाँच की माँग और विरोध
2014 में श्रीलंका के कुछ बौद्ध संगठनों ने भारत और श्रीलंका सरकार से यह माँग की थी कि गोवा के चर्च में रखे गए अवशेषों की डीएनए जाँच कराई जाए, ताकि यह तय किया जा सके कि वे अवशेष वास्तव में किसके हैं। यह माँग आज भी प्रासंगिक है और इसी के आधार पर वेलिंगकर ने भी डीएनए जाँच की बात उठाई। बौद्ध समुदाय का यह दावा है कि जिन अवशेषों को फ्रांसिस जेवियर का बताया जाता है, वे वास्तव में आचार्य राहुल थेरो के अवशेष हैं।
वेलिंगकर के बयान के बाद गोवा के ईसाई समुदाय में नाराजगी फैल गई। समुदाय के लोगों का मानना है कि वेलिंगकर के इस बयान से उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँची है। गोवा में इस मुद्दे को लेकर बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए। ईसाई समुदाय ने इसे धार्मिक भावनाओं का अपमान और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए खतरा बताया है। इसके चलते वेलिंगकर के खिलाफ कई थानों में शिकायतें दर्ज की गई हैं। उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 295A के तहत धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने का मामला दर्ज हुआ है।

संत फ्रांसिस जेवियर और उनके कार्यकाल का इतिहास विवादों से भरा हुआ है। फ्रांसिस जेवियर ने 16वीं सदी में गोवा में ईसाई धर्म का प्रचार करते हुए कई हिन्दू मंदिरों को नष्ट करने और हिन्दुओं के धर्मांतरण के लिए दबाव डालने का कार्य किया था। गोवा में पुर्तगाली शासन के दौरान गोवा इंक्विजिशन की शुरुआत हुई, जिसका मकसद था गैर-ईसाइयों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करना। इस दौरान हिंदुओं पर अत्याचार किए गए, उनके धार्मिक स्वतंत्रता को कुचलने के प्रयास किए गए, और हजारों मंदिरों को नष्ट कर दिया गया।

फ्रांसिस जेवियर के समर्थन से इस धार्मिक उत्पीड़न की शुरुआत हुई थी, और यह तथ्य आज भी गोवा के हिंदू समुदाय के बीच विवादित है। इसलिए, जब वेलिंगकर ने संत फ्रांसिस जेवियर के अवशेषों की जाँच की माँग की, तो इसे गोवा के ईसाई समुदाय ने उनके धर्म के खिलाफ एक सीधा हमला माना।

विरोध प्रदर्शन और राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ 

वेलिंगकर के बयान के बाद, गोवा में राजनीतिक माहौल गरमा गया। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने वेलिंगकर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और उनकी गिरफ्तारी की माँग की। गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने भी इस मामले पर बयान दिया और लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की। 

मुख्यमंत्री सावंत ने कहा कि वेलिंगकर के खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई की जाएगी और मामले की निष्पक्ष जाँच की जाएगी। हालांकि, वेलिंगकर का कहना है कि उनका बयान किसी धर्म को अपमानित करने के लिए नहीं था, बल्कि गोवा के इतिहास के एक महत्वपूर्ण और विवादित अध्याय को उजागर करने के लिए था। उनका दावा है कि गोवा इंक्विजिशन और फ्रांसिस जेवियर के कार्यों की पुनः समीक्षा की जानी चाहिए, ताकि ऐतिहासिक तथ्यों को सामने लाया जा सके।

बौद्ध समुदाय की माँग
बौद्ध समुदाय का दावा है कि आचार्य राहुल थेरो के अवशेषों की पहचान सत्यापित करने के लिए डीएनए जाँच जरूरी है। श्रीलंका और भारत के बौद्ध संगठन लंबे समय से इस मुद्दे पर जाँच की माँग करते आ रहे हैं। उनका कहना है कि गोवा में रखे गए अवशेषों की पहचान का सत्यापन होने से ही इस विवाद का समाधान हो सकता है। इसके अलावा, श्रीलंका के बौद्ध संगठनों का यह भी कहना है कि यदि यह सिद्ध हो जाता है कि अवशेष राहुल थेरो के हैं, तो उन्हें गोवा से श्रीलंका वापस लाया जाना चाहिए।

2014 में, बौद्ध समुदाय ने इस मुद्दे पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को भी पत्र लिखा था, जिसमें अवशेषों की पहचान के लिए डीएनए जाँच की माँग की गई थी। इस पत्र में यह भी कहा गया था कि यदि अवशेष राहुल थेरो के हैं, तो उन्हें फ्रांसिस जेवियर का बताना धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के साथ छलावा है। 

सांप्रदायिक तनाव और भविष्य के संकेत
इस विवाद ने गोवा में सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा दिया है। एक तरफ ईसाई समुदाय अपने पवित्र संत के खिलाफ किसी भी प्रकार की जाँच या अपमानजनक टिप्पणी को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है, तो वहीं बौद्ध समुदाय का दावा है कि सत्य की खोज के लिए वैज्ञानिक जाँच आवश्यक है। वेलिंगकर का बयान इस विवाद को और गहरा कर चुका है, और इस मुद्दे पर समाज और राजनीति में ध्रुवीकरण की स्थिति उत्पन्न हो गई है।

यह देखना होगा कि आने वाले समय में इस विवाद का समाधान कैसे निकलेगा। क्या डीएनए जाँच के जरिए इस मामले का वैज्ञानिक समाधान निकाला जाएगा, या फिर सांप्रदायिक तनाव के कारण यह मामला और जटिल हो जाएगा? फिलहाल, गोवा के राजनीतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य पर इस विवाद का असर गहरा है और यह विवाद भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ रहा है।

✍️... रघुनाथ सिंह

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