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SCO शिखर सम्मेलन 2024: आतंकवाद, अलगाववाद और अतिवाद पर जयशंकर का कड़ा संदेश


इस्लामाबाद में आयोजित 2024 का शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन उस समय हुआ जब दुनिया गंभीर भू-राजनीतिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रही है। भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस मंच का उपयोग करते हुए आतंकवाद, अलगाववाद और अतिवाद के खिलाफ कठोर और स्पष्ट संदेश दिया। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि जब तक सीमा पार आतंकवाद और अतिवाद पर नियंत्रण नहीं पाया जाता, तब तक व्यापार, ऊर्जा, और कनेक्टिविटी जैसे क्षेत्रों में सहयोग का कोई मतलब नहीं रहेगा।

जयशंकर के शब्दों में, "SCO को वर्तमान समय की चुनौतियों का सामना करने के लिए सक्षम और तत्पर होना चाहिए।" यह वक्तव्य सीधे तौर पर इस ओर इशारा करता है कि SCO को अपने मुख्य उद्देश्यों—आतंकवाद, अलगाववाद और अतिवाद—के खिलाफ बिना किसी समझौते के लड़ाई करनी होगी। उनका भाषण केवल आतंकवाद के मुद्दों तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने वैश्विक और क्षेत्रीय सहयोग की आवश्यकता को भी रेखांकित किया, जो एक निष्पक्ष और पारदर्शी ढांचे के तहत होनी चाहिए।

आतंकवाद, अलगाववाद और अतिवाद पर कड़ा रुख
जयशंकर के संबोधन की मुख्य बिंदु यह था कि SCO का मूल उद्देश्य आतंकवाद, अलगाववाद और अतिवाद के खिलाफ लड़ाई है। उन्होंने इस तथ्य को रेखांकित किया कि यदि सदस्य राष्ट्र इन खतरों से निपटने में असफल होते हैं, तो क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी। उनकी यह टिप्पणी पाकिस्तान की ओर संकेत करती है, जिसे भारत लंबे समय से सीमा पार आतंकवाद का समर्थन करने वाला मानता रहा है। जयशंकर ने कहा कि SCO जैसे मंचों पर कोई प्रगति तभी संभव है जब सदस्य देश ईमानदारी से सहयोग करें और आतंकवाद को पनपने से रोकने के लिए गंभीर कदम उठाएं।

उनका यह बयान SCO के संस्थापक उद्देश्यों की याद दिलाता है और बताता है कि अगर संगठन अपने लक्ष्यों को हासिल करना चाहता है, तो इसे अपने सदस्यों के बीच आपसी विश्वास और समर्थन को मजबूत करना होगा।

वैश्विक चुनौतियों के बीच SCO की भूमिका
जयशंकर का भाषण केवल आतंकवाद तक सीमित नहीं था, उन्होंने यह भी कहा कि SCO की बैठक "एक कठिन समय" में हो रही है। दुनिया इस समय रूस-यूक्रेन युद्ध और इजराइल-गाजा संघर्ष के कारण अस्थिरता के दौर से गुजर रही है। इन संघर्षों का वैश्विक प्रभाव है और SCO के सदस्य देशों पर भी इसका असर पड़ रहा है। जयशंकर ने यह भी कहा कि कोविड-19 महामारी ने कई विकासशील देशों को आर्थिक रूप से तबाह कर दिया है, और यह संकट विकास के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है।

जयशंकर ने इस बात पर भी जोर दिया कि विश्व आज कर्ज संकट, आपूर्ति श्रृंखला में बाधाएं, और जलवायु परिवर्तन जैसी गंभीर समस्याओं का सामना कर रहा है। ऐसे समय में, SCO का एकजुट होकर काम करना और अपने सदस्य देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।

चीन और BRI पर संकेत
अपने संबोधन में, जयशंकर ने कहा कि SCO "एकतरफा एजेंडों" पर नहीं चल सकता। यह टिप्पणी चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) की ओर स्पष्ट संकेत थी, जिसमें भारत ने भाग नहीं लिया है। BRI को लेकर भारत की आपत्ति पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में कुछ परियोजनाओं के चलते है, जो भारत की संप्रभुता का उल्लंघन करती हैं। जयशंकर ने इस संदर्भ में कहा कि SCO तभी आगे बढ़ सकता है जब इसका सहयोग आपसी सम्मान और संप्रभु समानता के सिद्धांतों पर आधारित हो। 

यह स्पष्ट है कि भारत SCO जैसे मंच पर भी अपनी संप्रभुता और राष्ट्रीय हितों के मुद्दों पर कोई समझौता नहीं करेगा। उनके शब्द चीन के बढ़ते प्रभाव पर भी सावधानी बरतने का संदेश देते हैं, और इस बात को रेखांकित करते हैं कि क्षेत्रीय विकास के लिए सभी सदस्य देशों को समान अवसरों और सम्मान के साथ काम करना चाहिए।

कर्ज संकट और विकास की चुनौतियाँ
जयशंकर ने कर्ज संकट के मुद्दे पर भी ध्यान खींचा। कई विकासशील देश, विशेष रूप से दक्षिण एशिया और अफ्रीका में, महामारी के कारण गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कर्ज संकट न केवल देशों की आर्थिक प्रगति को बाधित कर रहा है, बल्कि सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने में भी बाधा बन रहा है।

इस संदर्भ में, SCO जैसे संगठनों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। जयशंकर ने कहा कि छोटे और मध्यम उद्यमों (MSMEs), पर्यावरण संरक्षण और जलवायु कार्रवाई के क्षेत्र में सहयोग से SCO सदस्य देश आर्थिक विकास और स्थिरता को बढ़ावा दे सकते हैं। साथ ही, उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि यदि विकासशील देशों को उनके कर्ज संकट से उबरने में मदद नहीं की गई, तो विश्व अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

वैश्विक संस्थानों में सुधार की मांग
जयशंकर ने अपने संबोधन में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) जैसे वैश्विक संस्थानों में सुधार की मांग की। उन्होंने कहा कि वैश्विक संस्थानों को आज की बदलती दुनिया की वास्तविकताओं के अनुरूप होना चाहिए और उन्हें अधिक समावेशी, पारदर्शी और लोकतांत्रिक बनाने की आवश्यकता है। 

यह भारत की लंबे समय से चली आ रही मांग का हिस्सा है कि UNSC जैसे प्रमुख वैश्विक संस्थानों में विकासशील देशों की अधिक भूमिका होनी चाहिए। जयशंकर ने कहा कि SCO को इस दिशा में नेतृत्व करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वैश्विक संस्थान अधिक प्रतिनिधि और जवाबदेह हों।

SCO चार्टर और सदस्य देशों की जिम्मेदारी
जयशंकर ने अपने भाषण में SCO चार्टर के महत्व पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि SCO के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सदस्य देशों को आपसी विश्वास, दोस्ती, और अच्छे पड़ोसी संबंधों को बढ़ावा देना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अगर SCO सदस्य देश इन मूल सिद्धांतों का पालन नहीं करते, तो संगठन के लक्ष्यों को हासिल करना मुश्किल होगा।

जयशंकर का यह संदेश न केवल पाकिस्तान के संदर्भ में था, बल्कि चीन के साथ भारत के संबंधों के संदर्भ में भी था। उन्होंने कहा कि जब तक SCO सदस्य देश आपसी विश्वास और सहयोग पर ध्यान नहीं देंगे, तब तक क्षेत्रीय विकास और स्थिरता को बढ़ावा देने के प्रयास सफल नहीं हो सकते।

SCO का भविष्य
SCO शिखर सम्मेलन 2024 ने भारत के स्पष्ट और स्थिर रुख को फिर से उजागर किया। भारत ने आतंकवाद, अलगाववाद और अतिवाद के खिलाफ बिना शर्त लड़ाई की आवश्यकता पर जोर दिया, जो न केवल भारतीय सुरक्षा हितों की रक्षा करता है, बल्कि क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण है। भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत के दृष्टिकोण को स्पष्ट किया कि आर्थिक सहयोग और कनेक्टिविटी तभी सफल हो सकते हैं जब सदस्य देश संप्रभुता, आपसी सम्मान और पारदर्शिता को प्राथमिकता दें। 

साथ ही, भारत ने वैश्विक संस्थानों में सुधार की अपनी पुरानी मांग को फिर से उठाया, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में, ताकि ये संस्थान अधिक समावेशी और प्रतिनिधि बन सकें। यह भारतीय विदेश नीति का हिस्सा है, जिसमें बहुपक्षीय मंचों पर विकासशील देशों की आवाज़ को बढ़ाने पर जोर दिया गया है। भारत की विदेश नीति हमेशा से संप्रभुता, सुरक्षा, और विकास को बढ़ावा देने के लिए बहुपक्षीय सहयोग पर आधारित रही है, और SCO शिखर सम्मेलन 2024 में इस नीति को और मजबूत किया गया।


✍️... रघुनाथ सिंह


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