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मोदी-शी मुलाकात: बदलते समीकरणों में भारत-चीन रिश्तों का विश्लेषण

भारत-चीन संबंध: इतिहास, चुनौतियाँ और कज़ान में मोदी-शी मुलाक़ात की अहमियत
  • सीमा विवाद पर नई पहल और विश्वास का पुनर्निर्माण
  • व्यापार संतुलन के मुद्दे और आर्थिक संबंधों की संभावनाएँ
  • रूस-चीन संबंधों में भारत की कूटनीतिक स्थिति का विश्लेषण
भारत और चीन, दो प्राचीन सभ्यताएँ, सदियों से ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंधों में बंधी रही हैं। हालाँकि, समय के साथ-साथ दोनों देशों के बीच राजनैतिक और भौगोलिक विवाद भी उत्पन्न हुए, विशेषकर सीमा विवाद और सैन्य तनाव के रूप में। कज़ान में हुए ब्रिक्स सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की पाँच साल बाद हुई मुलाक़ात, इन संबंधों में एक नया मोड़ लाती है। इस लेख में हम भारत-चीन संबंधों के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य से लेकर हालिया घटनाओं और भविष्य की संभावनाओं का विश्लेषण करेंगे।


भारत और चीन के बीच संबंधों की जड़ें प्राचीन काल तक फैली हुई हैं। बुद्ध धर्म का प्रसार भारत से चीन तक हुआ, और दोनों देशों के बीच व्यापारिक मार्गों ने सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया। सिल्क रूट के माध्यम से व्यापारिक संबंध विकसित हुए, जिससे दोनों सभ्यताओं ने एक-दूसरे से काफी कुछ सीखा। भारतीय विद्वानों और धर्मगुरुओं का चीन में सम्मान किया जाता था और इसके उलट भी चीन का भारत के साथ व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंध गहरा था।

भारत-चीन संबंधों में गिरावट: 1962 का युद्ध और उसके बाद
हालाँकि, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत और चीन के बीच संबंधों में तनाव उत्पन्न हुआ। 1962 में भारत-चीन युद्ध ने दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास को गहरा झटका दिया। इस युद्ध में भारत की हार और चीन के साथ सीमा विवाद के कारण दोनों देशों के संबंध कई वर्षों तक तनावपूर्ण बने रहे। दोनों देशों के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) को लेकर विवाद आज भी जारी है।

2020 में गलवान संघर्ष: आधुनिक युग की नई चुनौती
2020 में पूर्वी लद्दाख में गलवान घाटी में भारत और चीन की सेनाओं के बीच हुई हिंसक झड़प ने एक बार फिर से संबंधों को गहरे संकट में डाल दिया। इस संघर्ष में भारत के 20 सैनिक शहीद हुए और चीन के भी कई सैनिक मारे गए। इसके बाद दोनों देशों के बीच सैन्य तनाव और बढ़ गया। इस संघर्ष के बाद दोनों देशों ने सीमा पर सैनिकों की तैनाती बढ़ा दी और राजनैतिक एवं कूटनीतिक वार्ताओं के जरिए इसे सुलझाने की कोशिश की।

कज़ान में मोदी-शी मुलाक़ात: एक नया अध्याय
पाँच साल बाद, रूस के कज़ान में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बुधवार (२३ अक्टूबर २०२४) को द्विपक्षीय मुलाक़ात ने दोनों देशों के बीच संवाद की एक नई दिशा प्रदान की। इस बैठक का समय और संदर्भ विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मुलाक़ात ऐसे समय में हुई जब दोनों देशों के बीच सीमा विवाद और व्यापारिक तनाव चरम पर थे। 
बैठक के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “आतंकवाद और टेरर फंडिंग से निपटने के लिए हम सभी को एक मत हो कर दृढ़ता से सहयोग देना होगा। ऐसे गंभीर विषय पर दोहरे मापदंड के लिए कोई स्थान नहीं है। हमारे देशों के युवाओं में कट्टरपंथ को रोकने के लिए हमें सक्रिय रूप से कदम उठाने चाहिए।”
"भारत-चीन संबंधों को आपसी विश्वास, आदर और संवेदनशीलता के साथ संभालने की जरूरत है। उन्होंने जोर दिया कि दोनों देशों के बीच शांति और स्थिरता न केवल उनके नागरिकों के लिए बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक शांति के लिए भी महत्वपूर्ण है।" 
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी इस बात पर जोर दिया कि दोनों देशों को आपसी मतभेदों को समझदारी से सुलझाना चाहिए और सहयोग को बढ़ावा देना चाहिए। उन्होंने कहा कि चीन और भारत को एक-दूसरे की विकासात्मक महत्वाकांक्षाओं का समर्थन करना चाहिए और पारस्परिक हितों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

सीमा विवाद पर चर्चा: समाधान की दिशा में कदम
इस मुलाक़ात में सीमा विवाद को सुलझाने के लिए भी महत्वपूर्ण चर्चा हुई। दोनों देशों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तनाव कम करने और सैनिकों को वापस बुलाने के लिए पहले से हुए समझौतों का पालन करने पर जोर दिया। विशेष प्रतिनिधियों की नियुक्ति पर सहमति बनी, जो जल्द ही मुलाक़ात कर सीमा विवाद का समाधान ढूंढने का प्रयास करेंगे। यह दोनों देशों के बीच शांति बहाल करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।

भारत-चीन सीमा विवाद लंबे समय से दोनों देशों के संबंधों में सबसे बड़ा अवरोध बना हुआ है। हालाँकि, इस बैठक के बाद यह उम्मीद की जा रही है कि दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधि सीमा विवाद के समाधान के लिए आगे बढ़ेंगे और सैन्य तनाव को कम करेंगे।

व्यापारिक संबंधों में संभावनाएँ: नए सिरे से शुरुआत
भारत और चीन दोनों के लिए व्यापारिक संबंध बेहद महत्वपूर्ण हैं। हालाँकि, 2020 के बाद से दोनों देशों के बीच व्यापारिक गतिविधियों में गिरावट आई है, विशेषकर चीन की ओर से लगाए गए व्यापारिक प्रतिबंधों के कारण। फिर भी, दोनों देशों के लिए एक-दूसरे के साथ व्यापारिक सहयोग को बढ़ावा देना आवश्यक है, खासकर वैश्विक आर्थिक मंदी और आपूर्ति श्रृंखला के संकट के समय में।

बैठक के दौरान दोनों नेताओं ने व्यापारिक संबंधों को फिर से सशक्त बनाने पर चर्चा की। भारत के लिए चीन एक प्रमुख व्यापारिक भागीदार है, और चीन के लिए भारतीय बाजार में बड़ी संभावनाएँ हैं। इसलिए, यह दोनों देशों के लिए एक अवसर है कि वे अपने व्यापारिक संबंधों को फिर से पटरी पर लाएँ और व्यापारिक मतभेदों को दूर करें।

वैश्विक शांति और स्थिरता में भूमिका
भारत और चीन दोनों एशिया के दो सबसे बड़े देश हैं, और उनकी भूमिकाएँ वैश्विक शांति और स्थिरता में महत्वपूर्ण हैं। ब्रिक्स जैसे मंच पर दोनों देशों के सहयोग से यह साबित होता है कि वे बहुपक्षीय संगठनों के जरिए वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। 
प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी ने वैश्विक शांति, स्थिरता और विकास में अपने-अपने देशों की भूमिका पर जोर दिया। दोनों नेताओं ने कहा कि वे अपने क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभाव को सकारात्मक दिशा में बढ़ाने के लिए एक-दूसरे के साथ सहयोग करेंगे।

रूस की भूमिका: मध्यस्थता का प्रयास
कज़ान में हुई इस मुलाक़ात में रूस की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही है। रूस, भारत और चीन दोनों का करीबी सहयोगी है, और उसने दोनों देशों के बीच तनाव को कम करने में मध्यस्थता की भूमिका निभाई है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ प्रधानमंत्री मोदी की बैठक के बाद यह स्पष्ट हुआ कि रूस भी चाहता है कि भारत और चीन के बीच के तनाव समाप्त हों और दोनों देश शांतिपूर्ण तरीके से अपने विवादों को सुलझाएँ।

नई दिशा की ओर बढ़ते भारत-चीन संबंध
कज़ान में हुई मोदी-शी मुलाक़ात न केवल भारत-चीन संबंधों के लिए बल्कि वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए भी एक महत्वपूर्ण कदम है। दोनों देशों के बीच सीमा विवाद, व्यापारिक तनाव और राजनीतिक मतभेदों को सुलझाने की दिशा में इस बैठक ने नई संभावनाओं को जन्म दिया है। 

भारत-चीन संबंध हमेशा से जटिल रहे हैं, लेकिन इस मुलाक़ात से यह साबित होता है कि दोनों देश अपने मतभेदों को सुलझाने के लिए तैयार हैं और एक नए अध्याय की शुरुआत करने की दिशा में बढ़ रहे हैं। भारत और चीन के बीच संबंधों का भविष्य इसी पर निर्भर करेगा कि वे अपने पुराने विवादों को किस तरह सुलझाते हैं और नई चुनौतियों का सामना कैसे करते हैं। 

आने वाले समय में, दोनों देशों के बीच कूटनीतिक और व्यापारिक वार्ताएँ यह तय करेंगी कि भारत और चीन अपने संबंधों को किस दिशा में ले जाते हैं। अगर दोनों देश आपसी विश्वास और सहयोग के साथ आगे बढ़ते हैं, तो न केवल उनके बीच शांति बहाल होगी, बल्कि यह वैश्विक स्थिरता के लिए भी एक सकारात्मक संकेत होगा।

✍️... रघुनाथ सिंह


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