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अल जजीरा का दोहरा चेहरा: भारतीय संस्कृति पर कटाक्ष और सांप्रदायिकता का बढ़ावा

 


अल जजीरा की दोहरी नीति: व्यंग्य के बहाने भारतीय त्योहारों और लोकतंत्र को निशाना बनाना

जहाँ लाखों हिंदू दशहरे के पावन पर्व पर भगवान राम की रावण पर विजय का उत्सव मना रहे थे, वहीं कतर-स्थित मीडिया संस्थान अल जजीरा ने एक बार फिर अपनी विवादित पत्रकारिता का परिचय देते हुए भारत की सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक सद्भाव पर प्रश्न उठाने का प्रयास किया।
इस बार उसने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण पर आधारित नौ महीने पुराने एक व्यंग्यात्मक पोस्ट को आधार बनाकर भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे पर चोट की। अल जजीरा की यह चाल उसकी पुरानी और स्थापित दोहरी नीति का एक और उदाहरण है, जहाँ वह इस्लामी हिंसा और धार्मिक उन्माद की आलोचना करने से कतराता है, लेकिन हिंदू रीति-रिवाजों और परंपराओं को अपमानित करने का कोई अवसर नहीं छोड़ता।

अल जजीरा की संपादकीय नीति पर सवाल
अल जजीरा, जो कतर सरकार द्वारा वित्तपोषित है, एक ऐसे देश से संचालित होता है जहाँ गैर-मुसलमानों को अपने धार्मिक अधिकारों का पालन करने की स्वतंत्रता नहीं है। फिर भी, यह मीडिया संगठन अक्सर भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देशों को धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने का प्रयास करता है। इस बार उसने राम मंदिर पर व्यंग्यात्मक पोस्ट को उठाकर हिंदुओं के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों के दौरान सांप्रदायिकता फैलाने की कोशिश की है। इससे यह स्पष्ट होता है कि अल जजीरा की पत्रकारिता निष्पक्ष नहीं है, बल्कि उसके पीछे एक सोची-समझी विचारधारा काम कर रही है।

इस व्यंग्यात्मक पोस्ट को ‘द सावला वड़ा’ (The Savala Vada) नामक सोशल मीडिया हैंडल से जनवरी 2023 में प्रकाशित किया गया था, जिसे केरल के दो अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्तियों द्वारा चलाया जाता था। इस पोस्ट में राम मंदिर के नीचे भारतीय संविधान के अवशेष मिलने का मजाक उड़ाया गया था। यह पोस्ट सुप्रीम कोर्ट के फैसले और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा प्रस्तुत तथ्यों का उपहास उड़ाता था, जिन्होंने मंदिर निर्माण के पक्ष में सबूत दिए थे।

हालांकि यह पोस्ट नौ महीने पुरानी है, अल जजीरा ने इसे ठीक उस समय उछाला जब भारत में नवरात्रि और दशहरा का उत्सव चल रहे हैं। इसके पीछे स्पष्ट उद्देश्य हिंदुओं और उनके धार्मिक पर्वों को निशाना बनाना  है। लेख में राम मंदिर को ‘विवादित मंदिर’ कहा गया और यह दर्शाने की कोशिश की गई कि भारत का संविधान कमजोर हो रहा है। अल जजीरा का यह कदम केवल हिंदू धर्म को अपमानित करने तक सीमित नहीं था, बल्कि इसमें भारतीय लोकतंत्र और न्यायपालिका पर भी गंभीर सवाल उठाए गए।

अल जजीरा की पक्षपाती पत्रकारिता
अल जजीरा की यह पहली घटना नहीं है जब उसने हिंसा की अनदेखी की हो। कई बार मुस्लिम समुदाय द्वारा की गई हत्याओं की उसने कभी आलोचना नहीं की। इसके विपरीत, जब भी हिंदू धर्म से जुड़ी कोई घटना होती है, तो वह उसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने का कोई मौका नहीं छोड़ता। यह स्पष्ट है कि अल जजीरा की संपादकीय नीति कट्टरपंथ के इर्द-गिर्द घूमती है, और वह जानबूझकर हिंदू धर्म, यहूदी धर्म, या अन्य धर्मों के खिलाफ पक्षपाती रिपोर्टिंग करता है।

अल जजीरा का यह दोहरा रवैया साफ तौर पर उसकी विचारधारा को दर्शाता है, जहाँ वह अतिवाद की आलोचना करने से कतराता है और गैर-मुस्लिम धर्मों और समुदायों पर हमला करने का अवसर खोजता रहता है। खासकर भारत और इज़राइल जैसे देशों के प्रति उसकी रिपोर्टिंग में यह पक्षपात स्पष्ट रूप से दिखता है। 

व्यंग्य का राजनीतिक हथियार बनाना
‘द सावला वड़ा’ की पोस्ट व्यंग्यात्मक थी और व्यंग्य पत्रकारिता में सत्ताधारी शक्तियों की आलोचना करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम होता है। लेकिन, व्यंग्य का इस्तेमाल सही और निष्पक्ष तरीके से होना चाहिए। यहाँ ‘द सावला वड़ा’ ने न केवल सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का उपहास उड़ाया, बल्कि एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल के निर्माण पर भी सवाल उठाए। 

अल जजीरा ने इस व्यंग्यात्मक पोस्ट को एक खास समय पर उछालकर न केवल त्योहारों की भावना को ठेस पहुँचाने की कोशिश की, बल्कि इसका इस्तेमाल हिंदुओं और उनकी आस्था को निशाना बनाने के लिए किया। यह न केवल मीडिया की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे एक मजाक के पीछे छिपे संदेश का गलत इस्तेमाल किया जा सकता है।

वास्तविक हिंसा की अनदेखी
अल जजीरा की सबसे बड़ी समस्या उसकी चयनात्मक रिपोर्टिंग (selective reporting) है। जहाँ वह हिंदू धर्म के रीति-रिवाजों और परंपराओं पर लगातार सवाल उठाता रहता है, वहीं कट्टरपंथियों द्वारा की गई हिंसा पर वह अक्सर चुप रहता है। उदाहरण के लिए, भारत में कई मौकों पर लोगों की जान अपमान करने के आरोप में चली गई, लेकिन अल जजीरा ने शायद ही कभी इन घटनाओं की आलोचना की हो। कट्टरपंथियों द्वारा की गई हिंसा को उसने अक्सर या तो अनदेखा किया या इसे धार्मिक विचारधारा का एक स्वाभाविक हिस्सा माना। 

इसके विपरीत, जब हिंदू धर्म या यहूदी धर्म की बात आती है, तो अल जजीरा उन्हें एक नकारात्मक रूप में प्रस्तुत करने का कोई अवसर नहीं छोड़ता। यह उसका एक स्थायी तरीका बन गया है, जिससे उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं।

अल जजीरा की विश्वसनीयता पर प्रश्न
अल जजीरा द्वारा नौ महीने पुराने व्यंग्यात्मक पोस्ट को हिंदू त्योहारों के दौरान उछालना उसकी विचारधारा में कट्टरता और पक्षपाती सोच को दर्शाता है। उसकी संपादकीय नीति केवल एजेंडे को बढ़ावा देने के उद्देश्य से संचालित होती है।
कतर, जहाँ अल जजीरा स्थित है, खुद एक ऐसा देश है जहाँ गैर-मुसलमानों को अपनी धार्मिक स्वतंत्रता का पालन करने का अधिकार नहीं है, और वहां इस्लामी कानून का कड़ा पालन किया जाता है। ऐसे में, अल जजीरा का भारत जैसे लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश पर सवाल उठाना न केवल हास्यास्पद है, बल्कि उसकी खुद की विश्वसनीयता को भी संदिग्ध बनाता है।

अल जजीरा का यह रवैया केवल पत्रकारिता की निष्पक्षता पर प्रश्न नहीं उठाता, बल्कि यह एक ऐसे नैरेटिव को बढ़ावा देता है जो समाज में विभाजन और सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने का काम करता है। दुनिया को अब अल जजीरा की इस दोहरी नीति और विचारधारा को पहचानने की जरूरत है, जो पत्रकारिता के नाम पर कट्टरपंथ को बढ़ावा देने का काम कर रहा है।

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