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भारत-रूस संबंध: एक जटिल रणनीतिक साझेदारी का विश्लेषण

Russian President Vladimir Putin shakes hands with Indian Prime Minister Narendra Modi during their meeting on the sidelines of the BRICS Summit in Kazan, Russia on October 22, 2024. PC: First Post

भारत और रूस के बीच का संबंध एक ऐतिहासिक धरोहर से भरा हुआ है, जो न केवल दो राष्ट्रों की मित्रता को दर्शाता है, बल्कि उनके साझा इतिहास, संस्कृति, और विश्वासों का भी प्रतीक है। इस संबंध की नींव शीत युद्ध के समय रखी गई थी, जब सोवियत संघ ने भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर महत्वपूर्ण समर्थन दिया और कई मामलों में उसका भरोसेमंद साथी बना। समय के साथ, यह साझेदारी केवल राजनीतिक और रक्षा सहयोग तक सीमित नहीं रही, बल्कि आर्थिक, सांस्कृतिक, और वैज्ञानिक क्षेत्रों में भी विकसित हुई है। हालांकि, बदलते वैश्विक परिदृश्य—रूस-यूक्रेन संघर्ष, रूस पर पश्चिमी प्रतिबंध, और चीन का बढ़ता प्रभाव—ने इस साझेदारी के सामने नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। फिर भी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया रूस यात्रा, जिसमें उन्होंने BRICS शिखर सम्मेलन में भाग लिया, यह दर्शाती है कि भारत अपने इस ऐतिहासिक सहयोग को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध है। 

इस लेख में, हम भारत और रूस के बीच की जटिल लेकिन महत्वपूर्ण साझेदारी के विभिन्न आयामों का गहराई से विश्लेषण करेंगे। हम देखेंगे कि कैसे ऊर्जा सहयोग, रक्षा संबंध, और भू-राजनीतिक रणनीतियों ने इस रिश्ते को मजबूती प्रदान की है, साथ ही उन उभरती चुनौतियों पर भी ध्यान केंद्रित करेंगे, जो इस रिश्ते के भविष्य को प्रभावित कर सकती हैं।  इस यात्रा में, हम समझेंगे कि कैसे दोनों देश अपने सांस्कृतिक विरासत को बनाए रखते हुए, एक दूसरे के साथ मिलकर भविष्य की दिशा तय कर सकते हैं।

इतिहास में जमी मजबूत नींव
भारत का रूस (पूर्व में सोवियत संघ) के साथ संबंध भारत की स्वतंत्रता के शुरुआती वर्षों से ही विकसित हुआ है। सोवियत संघ ने भारत का महत्वपूर्ण समर्थन किया, विशेषकर 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान, जब उसने भारत के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में लाए गए प्रस्तावों का वीटो किया था। दशकों से, रूस ने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का समर्थन किया है, विशेषकर कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दों पर।

यह ऐतिहासिक संबंध रक्षा सहयोग, व्यापार, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में भी दिखाई देता है। हाल ही में एक मंच पर विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि रूस ने हमेशा वैश्विक स्तर पर भारत का समर्थन किया है और एक भरोसेमंद सहयोगी साबित हुआ है। हालांकि, यह रिश्ता अब बदलते वैश्विक परिवर्तनों और भारत के पश्चिमी देशों के साथ बढ़ते संबंधों के कारण नए रूप में उभर रहा है।

भारत-रूस संबंधों के रणनीतिक स्तंभ
बदलते अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य के बावजूद, कुछ महत्वपूर्ण स्तंभ भारत-रूस संबंधों को स्थिर बनाए रखते हैं।

ऊर्जा सहयोग: ऊर्जा सुरक्षा भारत-रूस संबंधों का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। भारत, जो तेजी से विकास कर रहा देश है, अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए रूस की विशाल तेल, प्राकृतिक गैस, और कोयले के भंडार पर निर्भर है। रूस भारत का प्रमुख तेल आपूर्तिकर्ता बन गया है, जो यूक्रेन संघर्ष के कारण उत्पन्न वैश्विक अस्थिरता के बीच भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा कर रहा है। 2023 में भारत ने रूसी ऊर्जा के आयात को 60 अरब डॉलर से अधिक कर लिया, जो दोनों देशों के बीच ऊर्जा संबंधों के महत्व को दर्शाता है।

रक्षा सहयोग: भारत की रक्षा निर्भरता रूस पर वर्षों से एक प्रमुख आधार रही है। भारत के 50% से अधिक सैन्य उपकरण रूस से आते हैं, जिसमें "S-400 एयर डिफेंस सिस्टम" और ब्रह्मोस मिसाइल जैसे उन्नत प्रणाली शामिल हैं। ब्रह्मोस मिसाइल, जो भारत और रूस के संयुक्त प्रयास का परिणाम है, उनके रक्षा सहयोग की शक्ति का प्रतीक है। हालाँकि भारत अपने रक्षा आपूर्तिकर्ताओं में विविधता लाने की कोशिश कर रहा है, फिर भी रूस भारत की सैन्य आधुनिकीकरण योजनाओं का महत्वपूर्ण हिस्सा बना हुआ है।

आर्थिक संबंध: ऊर्जा से इतर, भारत और रूस के बीच आर्थिक साझेदारी भी महत्वपूर्ण है। 2024 में द्विपक्षीय व्यापार 65 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया, और इसे 2030 तक 100 अरब डॉलर तक पहुंचाने की योजना है। भारत ने फार्मास्युटिकल्स, मशीनरी, और कृषि उत्पादों का रूस को निर्यात बढ़ाया है, जबकि रूस से तेल, कोयला, और उर्वरक आयात कर रहा है। दोनों देशों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे पश्चिमी बाजारों पर अपनी निर्भरता को कम करें और आईटी, कृषि, और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में व्यापार के नए अवसर तलाशें।

भू-राजनीतिक रणनीति: रूस अब भी भारत की भू-राजनीतिक रणनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, विशेषकर एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के संदर्भ में। हालाँकि पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण रूस चीन के करीब हो गया है, भारत रूस के साथ अपनी साझेदारी को एशिया में चीन के आक्रामक रुख के प्रति एक संतुलन के रूप में देखता है। इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र और BRICS जैसे बहुपक्षीय मंचों में रूस का समर्थन भारत के वैश्विक हितों के साथ मेल खाता है।

बदलते संबंधों की चुनौतियाँ
रूस भारत के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन बदलते अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय संदर्भों में कुछ चुनौतियाँ भी उभरी हैं।

रूस-चीन का बढ़ता गठजोड़: भारत-रूस संबंधों में एक प्रमुख चुनौती रूस और चीन के बीच गहरे होते संबंध हैं। 2023 में, चीन और रूस ने अपने व्यापार को 240 अरब डॉलर तक बढ़ा दिया और उनका सहयोग सैन्य और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी फैल रहा है। जबकि मास्को ने नई दिल्ली को आश्वासन दिया है कि उसका चीन के साथ संबंध भारत-रूस संबंधों को प्रभावित नहीं करेगा, यह बढ़ता गठजोड़ भारत के लिए चिंताजनक है। चीन के साथ सीमा पर तनाव को देखते हुए, रूस-चीन के बीच गहराते संबंध एक रणनीतिक खतरे के रूप में उभर सकते हैं।

पश्चिमी देशों के साथ भारत के बढ़ते संबंध: जैसे-जैसे भारत का वैश्विक प्रभाव बढ़ता जा रहा है, वह पश्चिमी देशों, विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका, के साथ अपने संबंधों को गहरा कर रहा है। अमेरिका-भारत संबंध रक्षा, प्रौद्योगिकी, और व्यापार के क्षेत्रों में तेजी से विकसित हो रहे हैं, विशेषकर चीन के इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में बढ़ते प्रभुत्व के खिलाफ। हालांकि भारत ने रूस-यूक्रेन संघर्ष पर तटस्थता बनाए रखी है और पश्चिमी प्रतिबंधों का हिस्सा नहीं बना है, फिर भी पश्चिम के साथ उसकी बढ़ती निकटता भविष्य में रूस के साथ संबंधों को जटिल बना सकती है।

भविष्य की दिशा: संतुलन साधना
भारत और रूस के संबंधों का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि दोनों देश अपने रणनीतिक हितों को कैसे प्रबंधित करते हैं। भारत के लिए, संतुलित दृष्टिकोण अपनाना महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि वह पश्चिमी शक्तियों के साथ अपने संबंधों को गहरा करते हुए रूस के साथ अपनी पारंपरिक साझेदारी को भी बनाए रखना चाहता है।

आर्थिक सहयोग का विस्तार: ऊर्जा के अलावा, भारत और रूस अपने आर्थिक संबंधों में विविधता लाने के तरीकों की तलाश कर रहे हैं। कृषि, आईटी, और फार्मास्युटिकल्स जैसे क्षेत्रों में सहयोग के नए अवसर मौजूद हैं। इन क्षेत्रों में व्यापार का विस्तार, विशेष उद्योगों पर निर्भरता को कम करेगा और कुल मिलाकर आर्थिक साझेदारी को मजबूत करेगा।

रक्षा सहयोग बनाए रखना: जबकि भारत अपने रक्षा आपूर्तिकर्ताओं में विविधता ला रहा है, रूस के साथ उसका सहयोग महत्वपूर्ण बना रहेगा। ब्रह्मोस मिसाइल और परमाणु पनडुब्बियों का संयुक्त विकास दोनों देशों के बीच गहरे रक्षा संबंधों को दर्शाता है। इन परियोजनाओं को मजबूत करना और रक्षा नवाचार के नए क्षेत्रों की खोज करना दोनों देशों के लिए फायदेमंद हो सकता है।

एक जटिल लेकिन टिकाऊ साझेदारी
भारत-रूस संबंध, हालाँकि वैश्विक और क्षेत्रीय चुनौतियों से गुज़र रहे हैं, फिर भी मजबूत बने हुए हैं। ऐतिहासिक संबंध, रक्षा सहयोग, और ऊर्जा साझेदारी इस रिश्ते को स्थिर बनाए रखते हैं। हालांकि, रूस-चीन के बढ़ते संबंध और भारत-पश्चिम के बीच गहरे होते संबंध इस साझेदारी के नए रूप को परिभाषित कर रहे हैं।  अंततः, भारत और रूस के बीच संतुलित रणनीतिक हित ही इस रिश्ते को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे, ताकि यह साझेदारी नए युग में भी मजबूत बनी रहे।


✍️... रघुनाथ सिंह




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