Skip to main content

Weekly Explainer: टाटा की यादें, बाबा सिद्दीक़ी की हत्या से लेकर हवाई उड़ानों में बम धमकी संकट तक, आइए जाने...


इस सप्ताह भारत में कई महत्वपूर्ण और चिंताजनक घटनाएँ घटित हुईं, जिनमें राजनीतिक हत्या से लेकर संगठित अपराध, हवाई उड़ानों में बम धमकी संकट और सुप्रीम कोर्ट में न्याय की प्रतीक 'लेडी जस्टिस' की नई मूर्ति पर विवाद शामिल हैं। राष्ट्रीयवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के वरिष्ठ नेता बाबा सिद्दीक़ी की हत्या और लॉरेंस बिश्नोई गैंग की धमकियों ने राजनीति और फिल्मी दुनिया दोनों को हिला कर रख दिया। वहीं, हवाई यात्रा के दौरान बम धमकी के फर्जी संदेशों ने यात्रियों और एयरलाइंस के बीच भय और असुरक्षा का माहौल पैदा कर दिया। इस लेख में, हम इन घटनाओं का विस्तार से विश्लेषण करेंगे और उनके समाज, सुरक्षा और राजनीति पर प्रभावों की पड़ताल करेंगे।

बाबा सिद्दीक़ी की हत्या: राजनीतिक भूचाल का कारण
राष्ट्रीयवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के वरिष्ठ नेता बाबा सिद्दीक़ी की हत्या पिछले सप्ताहांत में मुंबई के बांद्रा इलाके में हुई, जिसने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया। सिद्दीक़ी, जो राज्य के जाने-माने नेता थे, शनिवार (12 Oct 2024) की रात अपने बेटे, विधायक ज़ीशान सिद्दीक़ी के कार्यालय से बाहर निकल रहे थे, जब तीन हमलावरों ने उन पर गोलियां चला दीं। उन्हें दो गोलियां लगीं और तत्काल उन्हें लीलावती अस्पताल में ले जाया गया, लेकिन डॉक्टर उन्हें बचाने में असफल रहे।

इस हत्या के पीछे का मकसद और इसके राजनीतिक प्रभाव पर सवाल उठ रहे हैं। इस घटना ने महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है, और इससे यह स्पष्ट हो गया है कि राजनीति और अपराध का घनिष्ठ संबंध कितनी गंभीर समस्या बन चुका है।

लॉरेंस बिश्नोई गैंग की बढ़ती धमकियां
बाबा सिद्दीक़ी की हत्या के बाद, लॉरेंस बिश्नोई गैंग ने इस अपराध की जिम्मेदारी ली और इस मामले ने मीडिया और जनता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। बिश्नोई गैंग पिछले कुछ वर्षों से उभर कर सामने आया है। यह गैंग पहले भी कई हाई-प्रोफाइल व्यक्तियों और राजनेताओं को निशाना बना चुका है।

लॉरेंस बिश्नोई राजस्थान का एक गैंगस्टर है, जिसकी गतिविधियों ने पूरे भारत में अपराध की दुनिया में उसे एक खतरनाक नाम बना दिया है। बिश्नोई ने अपनी आपराधिक यात्रा विश्वविद्यालय के छात्र नेता के रूप में शुरू की थी, लेकिन जल्द ही वह संगठित अपराध की दुनिया में कूद पड़ा। उसकी गैंग हत्या, फिरौती, और ड्रग तस्करी जैसे अपराधों में लिप्त है। उसकी खास बात यह है कि जेल में बंद रहने के बावजूद, वह अपने गैंग की गतिविधियों को निरंतर संचालित करता रहा है।

सलमान खान और मुन्नवर फ़ारूक़ी भी निशाने पर !
लॉरेंस बिश्नोई गैंग की गतिविधियाँ केवल राजनीतिक हत्याओं तक सीमित नहीं हैं। यह गैंग बॉलीवुड अभिनेता सलमान खान को भी निशाना बनाने की धमकी दे चुका है। 1998 के काला हिरण शिकार शिकार मामले के बाद से बिश्नोई समुदाय और सलमान खान के बीच दुश्मनी चली आ रही है। लॉरेंस बिश्नोई गैंग की मांग है कि सलमान खान काला हिरण शिकार मामले में राजस्थान के बिश्नोई समाज से माफी माँगें। यह मामला अक्टूबर 1998 का है, जब जोधपुर में फिल्म  "हम साथ-साथ हैं" की शूटिंग चल रही थी। उस समय इस घटना ने काफी सुर्खियाँ बटोरी थीं। बिश्नोई गैंग का मानना है कि सलमान को इस अपराध की सजा मिलनी चाहिए, और इसी वजह से वह सलमान के खिलाफ लगातार धमकियां देता आया है। हाल ही में, गैंग ने यह चेतावनी दी है कि जो भी सलमान खान का समर्थन करेगा, वह भी उनके निशाने पर आ सकता है।

इसके अलावा, स्टैंडअप कॉमेडियन मुन्नवर फ़ारूक़ी, जो बिग बॉस 17 के विजेता भी हैं, को भी गैंग द्वारा निशाना बनाया गया था। फ़ारूक़ी पर पिछले महीने दिल्ली दौरे के दौरान हमला करने की योजना बनाई गई थी, लेकिन सुरक्षा एजेंसियों ने समय रहते इस हमले को विफल कर दिया। यह साफ़ है कि गैंग सिर्फ राजनीतिक और फिल्मी हस्तियों तक सीमित नहीं है, बल्कि वह अपने विरोधियों को हर मोर्चे पर निशाना बना रहा है।

 हवाई यात्रा संकट: बम धमकियों ने उड़ानों को बाधित किया
इस सप्ताह भारत के हवाई क्षेत्र में एक और गंभीर समस्या उत्पन्न हुई, जब 19 से अधिक घरेलू और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को बम धमकी के फर्जी संदेशों के कारण रोका गया या उनका मार्ग बदल दिया गया। इन धमकियों ने यात्रियों में दहशत का माहौल पैदा कर दिया और हवाई यात्रा उद्योग को भारी नुकसान उठाना पड़ा।

 बम धमकियों का आर्थिक और मानसिक प्रभाव
इन फर्जी धमकियों के कारण हवाई यात्रियों की सुरक्षा चिंता का विषय बन गई है। उड़ानों के रद्द होने और देर से चलने के कारण यात्रियों को असुविधा का सामना करना पड़ा। यह न केवल हवाई अड्डों पर तनावपूर्ण स्थिति पैदा करता है, बल्कि इन घटनाओं से सुरक्षा तंत्र पर भी दबाव बढ़ता है। नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने बम धमकियों से निपटने के लिए कड़े कदम उठाने की योजना बनाई है, जिसमें अपराधियों को नो-फ्लाई लिस्ट में डालने का विचार भी शामिल है।

सुप्रीम कोर्ट में विवाद: नई लेडी जस्टिस मूर्ति पर बहस
इस सप्ताह  सुप्रीम कोर्ट में लेडी जस्टिस की एक नई मूर्ति का अनावरण किया गया, जिसने कानूनी समुदाय और जनता के बीच विवाद खड़ा कर दिया। पारंपरिक रूप से लेडी जस्टिस की मूर्ति में आंखों पर पट्टी बंधी होती है, जो यह दर्शाती है कि न्याय सभी के लिए समान होता है और कोई भी धन, प्रतिष्ठा या प्रभाव न्याय के मार्ग में बाधा नहीं बन सकता। 

हालांकि, नई मूर्ति में इस पट्टी को हटा दिया गया है, और यह बदलाव मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की पहल का हिस्सा है। उनका तर्क है कि "न्याय अंधा नहीं होता, वह सभी को समान रूप से देखता है।" हालांकि, इस बदलाव ने न्याय की निष्पक्षता और पारंपरिक प्रतीकों की प्रासंगिकता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

रतन टाटा का निधन: उद्योग जगत में शोक
9 अक्टूबर को रतन टाटा का निधन भारत के उद्योग जगत के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ। रतन टाटा, जो टाटा समूह के पूर्व अध्यक्ष रहे, ने अपने जीवन में न केवल व्यापार और उद्योग के क्षेत्र में बल्कि समाज सेवा और दान के कार्यों में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके निधन ने न केवल उद्योग जगत को बल्कि आम नागरिकों को भी गहरे शोक में डाल दिया।

रतन टाटा की विरासत और उत्तराधिकार
रतन टाटा की संपत्ति और उनके उत्तराधिकार पर भी चर्चा तेज हो गई है। उनके सौतेले भाई नोएल टाटा को उनके उत्तराधिकारी के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन टाटा की संपत्ति का बंटवारा कैसे होगा, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है। उनकी वसीयत के बारे में जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है, लेकिन उनकी विरासत को संभालने वाले प्रमुख व्यक्ति कौन होंगे, इस पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं।

 क्या यह संकटों का नया दौर है?
इस सप्ताह भारत में हुई घटनाओं ने यह साफ कर दिया कि देश कई तरह के संकटों का सामना कर रहा है। बाबा सिद्दीक़ी की हत्या और लॉरेंस बिश्नोई गैंग की बढ़ती गतिविधियाँ बताती हैं कि संगठित अपराध का दायरा अब राजनीति और सार्वजनिक जीवन तक पहुंच गया है। इस गैंग की धमकियां बॉलीवुड, कॉमेडी और राजनीति तीनों ही क्षेत्रों में देखी जा रही हैं।


✍️... रघुनाथ सिंह

Comments

Popular posts from this blog

ध्यानी नहीं शिव सारस

!!देव संस्कृति विश्विद्यालय में स्थपित प्रज्ञेश्वर महादेव!! ध्यानी नहीं शिव सारसा, ग्यानी सा गोरख।  ररै रमै सूं निसतिरयां, कोड़ अठासी रिख।। साभार : हंसा तो मोती चुगैं पुस्तक से शिव जैसा ध्यानी नहीं है। ध्यानी हो तो शिव जैसा हो। क्या अर्थ है? ध्यान का अर्थ होता हैः न विचार, वासना, न स्मृति, न कल्पना। ध्यान का अर्थ होता हैः भीतर सिर्फ होना मात्र। इसीलिए शिव को मृत्यु का, विध्वंस का, विनाश का देवता कहा है। क्योंकि ध्यान विध्वंस है--विध्वंस है मन का। मन ही संसार है। मन ही सृजन है। मन ही सृष्टि है। मन गया कि प्रलय हो गई। ऐसा मत सोचो कि किसी दिन प्रलय होती है। ऐसा मत सोचो कि एक दिन आएगा जब प्रलय हो जाएगी और सब विध्वंस हो जाएगा। नहीं, जो भी ध्यान में उतरता है, उसकी प्रलय हो जाती है। जो भी ध्यान में उतरता है, उसके भीतर शिव का पदार्पण हो जाता है। ध्यान है मृत्यु--मन की मृत्यु, "मैं" की मृत्यु, विचार का अंत। शुद्ध चैतन्य रह जाए--दर्पण जैसा खाली! कोई प्रतिबिंब न बने। तो एक तो यात्रा है ध्यान की। और फिर ध्यान से ही ज्ञान का जन्म होता है। जो ज्ञान ध्यान के बिना तुम इकट्ठा ...

व्यंग्य: सैयारा फिल्म नहीं, निब्बा-निब्बियों की कांव-कांव सभा है!

इन दिनों अगर आप सोशल मीडिया पर ज़रा भी एक्टिव हैं, तो आपने ज़रूर देखा होगा कि "सैयारा" नामक कोई फिल्म ऐसी छाई है जैसे स्कूल की कैंटीन में समोसे मुफ्त में बंट रहे हों। इस फिल्म का इतना क्रेज है कि मानो ये देखी नहीं तो सीधे स्वर्ग का टिकट कैंसिल हो जाएगा और नरक में आपको खौलते हुए गर्म तेल में तला जायेगा, वो भी बिना ब्रेक के लगातार। सच बताऊं तो, मैंने अब तक इस फिल्म को नहीं देखा। वास्तव में थियेटर में जाकर इस फिल्म को देखने का कोई इरादा भी नहीं है। क्योंकि मेरा दिल अब भी सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों के उन पंखों में अटका है जो बिना हिले भी आवाज़ करते हैं। लेकिन सोशल मीडिया पर पर जो तमाशा चल रहा है, वो देखकर लग रहा है कि या तो मैं बहुत ही बासी किस्म का मनुष्य हूं या फिर बाकी दुनिया ज़रा ज़्यादा ही Acting Class  से पास आउट है। एक साहब वीडियो में रोते-रोते इतने डूबे कि लगा अभी स्क्रीन से निकलकर ‘सैयारा’ के पायलट को गले लगा लेंगे।  दूसरी तरफ एक मैडम तो थिएटर की कुर्सी से चिपककर ऐसे चिल्ला रही थीं जैसे उनकी पुरानी गुम हुई टेडीबियर वापस मिल गई हो। कोई गला फाड़ रहा है, कोई आंखों से आंसुओं क...

जहाँ लौकी बोलती है, वहाँ कुकर फटता नहीं, पंचायत ने बता दिया, कहानी कहने के लिए कपड़े उतारने की ज़रूरत नहीं होती

आज के दौर में सिनेमाई कहानी कहने की दुनिया जिस मार्ग पर चल पड़ी है, वहाँ पटकथा से ज़्यादा त्वचा की परतों पर कैमरा टिकता है। नायक और नायिका के संवादों की जगह ‘सीन’ बोलते हैं और भावनाओं की जगह अंग प्रदर्शन ‘व्यू’ बटोरते हैं। इसे नाम दिया गया है ‘क्रिएटिव फ्रीडम’।  वेब सीरीजों के लिए बड़े बड़े बजट, चमकदार चेहरे और नग्न दृश्य अब ‘रियलिज़्म’ का नकली नकाब ओढ़ कर दर्शकों को भरमाते हैं। मगर इस सब के बीच अगर कोई सीरीज़ बिना चीखे, बिना झूठे नारे, और बिना कपड़े उतारे भी सीधे दिल में उतर जाए — तो वो "पंचायत" वेब सीरीज है। TVF की यह अनोखी पेशकश इस धारणा को चुनौती देती है कि दर्शकों को केवल ‘बोल्डनेस’ ही चाहिए। पंचायत ने बता दिया कि अगर आपकी कहानी सच्ची हो, तो सादगी ही सबसे बड़ी क्रांति बन जाती है। हालिया रिलीज "पंचायत" उन कहानियों के लिए एक तमाचा है जो यह मानकर चलती हैं कि जब तक किरदार बिस्तर पर नहीं दिखेंगे, तब तक दर्शक स्क्रीन पर नहीं टिकेगा। पंचायत दिखाती है कि गाँव की सबसे बड़ी लड़ाई किसी बिस्तर पर नहीं, बल्कि पंचायत भवन के फर्श पर लड़ी जाती है, कभी लौकी के नाम पर, तो कभी कु...