Skip to main content

ईरान-इज़राइल संघर्ष से तेल की कीमतों में उछाल: वैश्विक अर्थव्यवस्था पर खतरे के बादल !

भू-राजनीतिक अस्थिरता के कारण तेल की कीमतों में तेजी: क्या $100 प्रति बैरल नई हकीकत है?"

ईरान और इज़राइल के बीच बढ़ते संघर्ष के कारण वैश्विक तेल की कीमतों में तेज़ी आ रही है, हाल ही में इसमें 5% की बढ़ोतरी देखी गई। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के इज़राइल को ईरानी तेल सुविधाओं पर हमले में समर्थन देने की संभावना पर चर्चा करने के बाद चिंताएँ बढ़ गईं। ईरान वैश्विक तेल उत्पादन में एक प्रमुख खिलाड़ी है, और उसकी उत्पादन क्षमता बाधित होने से तेल की कीमतें $100 प्रति बैरल तक पहुँच सकती हैं। स्ट्रेट ऑफ होरमुज को बंद करने की संभावना से स्थिति और गंभीर हो सकती है। बढ़ती तेल की कीमतों का असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर होगा, जिससे महंगाई और आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में इज़ाफा हो सकता है।

ईरान-इज़राइल संघर्ष: वैश्विक तेल बाजार में मची हलचल
ईरान और इज़राइल के बीच बढ़ते सैन्य तनाव ने पूरी दुनिया को चिंतित कर दिया है, और इस संकट का सबसे तात्कालिक असर तेल की कीमतों पर पड़ा है। तेल की कीमतों में हालिया उछाल से यह साफ है कि यह तनाव केवल दो देशों के बीच का मामला नहीं रह गया है, बल्कि इसका प्रभाव वैश्विक अर्थव्यवस्था और आम आदमी की जेब तक पहुंचने लगा है।

गुरुवार (03 Oct, 2024) को तेल की कीमतों में 5% की तेज़ी आई, जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने संवाददाताओं को बताया कि अमेरिका और इज़राइल ईरानी तेल सुविधाओं पर संभावित हमले पर चर्चा कर रहे हैं। यह बयान एक बड़े भू-राजनीतिक संकट का संकेत है, जिसका असर सीधे तौर पर तेल की वैश्विक आपूर्ति और कीमतों पर पड़ सकता है। 

तेल की कीमतों में यह उछाल तब आया है जब मंगलवार को ईरान ने इज़राइल पर 180 मिसाइलों की भारी बमबारी की। हालांकि इज़राइल ने इन हमलों को नाकाम करने का दावा किया, लेकिन इस घटना ने पूरे विश्व में अस्थिरता पैदा कर दी। तेल, जो पहले $71 प्रति बैरल के आसपास था, अब $77.62 तक पहुंच गया है, और विशेषज्ञों का मानना है कि अगर हालात बिगड़ते हैं, तो तेल की कीमतें $100 प्रति बैरल तक भी जा सकती हैं।

ईरान की तेल उत्पादन क्षमता और विश्व बाजार पर संकट

ईरान विश्व के सबसे बड़े तेल उत्पादक देशों में से एक है। अमेरिकी ऊर्जा सूचना प्रशासन (EIA) के अनुसार, ईरान दुनिया का नौवां सबसे बड़ा तेल उत्पादक है और इसका उत्पादन विश्व तेल आपूर्ति का 4% हिस्सा है। ईरान का सबसे बड़ा तेल खरीदार चीन है, और अगर ईरान की तेल उत्पादन क्षमता पर कोई आघात होता है, तो इसका प्रभाव वैश्विक बाजारों पर बड़े पैमाने पर देखने को मिलेगा।
जब इज़राइल ने ईरानी मिसाइल हमले का जवाब देने की बात की, तो विश्लेषकों का मानना है कि इज़राइल ईरान की तेल रिफाइनरियों, टर्मिनलों या परमाणु स्थलों पर हमला कर सकता है। अगर ऐसा होता है, तो तेल की कीमतों में एक बड़ा उछाल आ सकता है। "क्लियरव्यू एनर्जी" की रिपोर्ट के मुताबिक, अगर ईरान की तेल उत्पादन क्षमता को नुकसान पहुंचता है, तो तेल की कीमतें $86 प्रति बैरल तक बढ़ सकती हैं। 

हालांकि, यह केवल शुरुआत हो सकती है। SEB के प्रमुख कमोडिटी विश्लेषक बियार्ने शीलड्रॉप का मानना है कि अगर ईरान की पूरी तेल उत्पादन क्षमता पर आघात होता है और वह निर्यात करने में असमर्थ हो जाता है, तो तेल की कीमतें $100 प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं। इसके अलावा, अगर ईरान ने स्ट्रेट ऑफ होरमुज को बंद करने की धमकी दी, तो स्थिति और भी गंभीर हो सकती है।

स्ट्रेट ऑफ होरमुज: तेल के प्रवाह पर खतरा
स्ट्रेट ऑफ होरमुज वैश्विक तेल आपूर्ति के लिए सबसे महत्वपूर्ण मार्गों में से एक है। होरमुज जलडमरूमध्य से विश्व के कुल तेल का लगभग 20% भाग गुजरता है। यह एक 21 मील चौड़ा जलडमरूमध्य है, जो फारस की खाड़ी और ओमान की खाड़ी को जोड़ता है। अगर ईरान ने इस मार्ग को बंद करने का निर्णय लिया, तो तेल की आपूर्ति पर भारी संकट आ सकता है और कीमतें आसमान छू सकती हैं।

स्ट्रेट ऑफ होरमुज के बंद होने का मतलब होगा कि विश्व की तेल आपूर्ति में बड़े पैमाने पर कटौती होगी, जिससे तेल की कीमतें $101 प्रति बैरल तक बढ़ सकती हैं। कई विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि अगर ईरान ने इस जलडमरूमध्य को बंद करने का कदम उठाया, तो यह वैश्विक तेल बाजारों और अर्थव्यवस्था के लिए "टिपिंग पॉइंट" साबित हो सकता है। 

सिटीग्रुप के विश्लेषकों ने कहा कि अगर होरमुज जलडमरूमध्य को बंद किया गया, तो तेल की कीमतें पिछले सभी रिकॉर्ड को पार कर जाएंगी और विश्व अर्थव्यवस्था अनिश्चितता के दौर में प्रवेश करेगी। यह संकट रूस-यूक्रेन युद्ध से भी अधिक गहरा हो सकता है, क्योंकि ईरान की स्थिति और भूमिका विश्व तेल आपूर्ति में कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ईरान की निर्यात क्षमता को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचता है, तो वह बदले में होरमुज को बंद करने का कदम उठा सकता है। इससे वैश्विक बाजार में तेल की कीमतें न केवल $100 तक पहुंच सकती हैं, बल्कि इससे भी अधिक बढ़ने की संभावना है, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होगी।

विश्व पर प्रभाव: अर्थव्यवस्था, राजनीति और महंगाई का संकट
तेल की बढ़ती कीमतों का असर केवल तेल और गैस तक सीमित नहीं रहेगा। इसके परिणामस्वरूप पेट्रोल और डीजल की कीमतें भी बढ़ेंगी, जिससे आम आदमी के लिए आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छूने लगेंगी। परिवहन की लागत बढ़ने से खाद्य पदार्थों, दैनिक उपयोग की वस्तुओं और अन्य उत्पादों की कीमतें भी बढ़ जाएंगी।

अमेरिका, जहां नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं, में तेल की कीमतों का यह उछाल राजनीतिक बहस का मुख्य मुद्दा बन सकता है। यदि तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो गैस की कीमतों में भी इज़ाफा होगा, जिससे डेमोक्रेट्स पर विपक्षी दलों का दबाव और बढ़ेगा। राष्ट्रपति बाइडेन पहले से ही रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान तेल की कीमतों में उछाल का सामना कर चुके हैं, और अब ईरान-इज़राइल संघर्ष ने उनके लिए और चुनौतियां खड़ी कर दी हैं।


यूनाइटेड किंगडम, जो पहले से ही मुद्रास्फीति और आर्थिक संकट से जूझ रहा है, के लिए तेल की बढ़ती कीमतें एक और बड़ा झटका साबित हो सकती हैं। ब्रिटेन के लिए तेल की ऊंची कीमतें न केवल ऊर्जा क्षेत्र पर दबाव डालेंगी, बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी इसकी लहरें महसूस की जाएंगी।

भारत, जो पश्चिम एशिया से बड़े पैमाने पर तेल का आयात करता है, भी इस संकट का शिकार हो सकता है। तेल की कीमतों में वृद्धि से भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में भारी इज़ाफा होगा, जिसका असर परिवहन, कृषि, निर्माण और उद्योगों पर पड़ेगा। इसके परिणामस्वरूप भारत में महंगाई और बढ़ सकती है, जिससे आम जनता पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा।

तेल की कीमतों में वृद्धि: वैश्विक मुद्रास्फीति और आर्थिक सुधार पर असर
COVID-19 महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं अभी उभर ही रही थीं, और ऐसे में तेल की कीमतों में यह नई उछाल एक और बड़ा झटका साबित हो सकता है। दुनिया भर के केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति से निपटने और आर्थिक स्थिरता बहाल करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अगर तेल की कीमतों में इस प्रकार की वृद्धि होती है, तो यह सभी योजनाओं को विफल कर सकती है।

विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) जैसी संस्थाओं ने पहले ही चेतावनी दी है कि तेल की बढ़ती कीमतों से वैश्विक आर्थिक विकास की गति धीमी हो सकती है। 

यह संकट केवल कुछ ही देशों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसका असर पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। पेट्रोलियम उत्पादों की बढ़ती कीमतें न केवल ऊर्जा क्षेत्र को प्रभावित करेंगी, बल्कि इसके दूरगामी परिणाम हर उद्योग, व्यापार और उपभोक्ता तक पहुंचेंगे। 

वैश्विक तेल बाजार के लिए अनिश्चित भविष्य
ईरान और इज़राइल के बीच बढ़ते तनाव ने तेल की कीमतों में एक नया संकट खड़ा कर दिया है। यह न केवल इन दोनों देशों के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है। अगर इस संघर्ष का समाधान जल्द नहीं निकला, तो तेल की कीमतों में उछाल से वैश्विक आर्थिक संकट गहरा सकता है।
तेल की कीमतों का यह उछाल विश्व भर के देशों की अर्थव्यवस्था, राजनीति और आम जनजीवन पर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकता है। अब यह देखना होगा कि आने वाले दिनों में इस संकट का समाधान कैसे निकलता है, और वैश्विक बाजार कैसे इस चुनौती का सामना करते हैं।

✍️... रघुनाथ सिंह

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

व्यंग्य: सपनों का पेट, हकीकत का गिटार? कब बजेगी फिटनेस की तार?

हमारे समाज में फिटनेस अब एक नए 'संस्कार' के रूप में लोगों के दिमाग बैठ चुकी है। हर व्यक्ति इस राह पर चलने लगा है, जहां "प्रोटीन शेक्स" को आशीर्वाद की तरह लिया जाता है और वजन घटाने वाले डाइट प्लान को किसी शास्त्र की तरह माना जाता है। लेकिन हम सब जानते हैं कि फिटनेस की इस धारणा में कुछ बातें इतनी सरल नहीं हैं जितनी कि ये दिखती हैं। । खासकर जब हम 'पेट' जैसे जटिल विषय पर बात करें। तो आज हम इसी पेट के इर्द-गिर्द एक मजेदार और व्यंग्यपूर्ण यात्रा पर निकलते हैं, जिसमें फिटनेस की बात होगी, लेकिन चुटीले अंदाज में!  बढ़ता हुआ पेट और समाज का प्यारभरा आशीर्वाद सबसे पहले तो एक सवाल– क्या आपने कभी सोचा है कि पेट बढ़ता क्यों है? यह हमारे समाज का आशीर्वाद है। हां, यही बात है। शादी के बाद लोग तुरंत पूछते हैं, "अरे! पेट कब आएगा?" जब आपके पेट पर थोड़ा सा भी 'संकेत' मिलता है, तो समाज में हर व्यक्ति फिटनेस गुरू बन जाता है। पड़ोसी आंटी से लेकर ऑफिस के सहकर्मी तक, सब आपको हेल्दी डाइट प्लान और व्यायाम के सुझाव देने लगते हैं। और अगर आप जिम जाने का इरादा भी करते हैं,...

ध्यानी नहीं शिव सारस

!!देव संस्कृति विश्विद्यालय में स्थपित प्रज्ञेश्वर महादेव!! ध्यानी नहीं शिव सारसा, ग्यानी सा गोरख।  ररै रमै सूं निसतिरयां, कोड़ अठासी रिख।। साभार : हंसा तो मोती चुगैं पुस्तक से शिव जैसा ध्यानी नहीं है। ध्यानी हो तो शिव जैसा हो। क्या अर्थ है? ध्यान का अर्थ होता हैः न विचार, वासना, न स्मृति, न कल्पना। ध्यान का अर्थ होता हैः भीतर सिर्फ होना मात्र। इसीलिए शिव को मृत्यु का, विध्वंस का, विनाश का देवता कहा है। क्योंकि ध्यान विध्वंस है--विध्वंस है मन का। मन ही संसार है। मन ही सृजन है। मन ही सृष्टि है। मन गया कि प्रलय हो गई। ऐसा मत सोचो कि किसी दिन प्रलय होती है। ऐसा मत सोचो कि एक दिन आएगा जब प्रलय हो जाएगी और सब विध्वंस हो जाएगा। नहीं, जो भी ध्यान में उतरता है, उसकी प्रलय हो जाती है। जो भी ध्यान में उतरता है, उसके भीतर शिव का पदार्पण हो जाता है। ध्यान है मृत्यु--मन की मृत्यु, "मैं" की मृत्यु, विचार का अंत। शुद्ध चैतन्य रह जाए--दर्पण जैसा खाली! कोई प्रतिबिंब न बने। तो एक तो यात्रा है ध्यान की। और फिर ध्यान से ही ज्ञान का जन्म होता है। जो ज्ञान ध्यान के बिना तुम इकट्ठा ...

व्यंग्य: राजधानी दिल्ली की हवा हुई और खराब, राजनेताओं की बातों में कुछ नहीं 'खरा' अब

देश की राजधानी  दिलवालों की   दिल्ली  आजकल  किसी और  के लिए ही जानी जा रही है - वो है यहां की एयर क्वॉलिटी इंडेक्स । यहां की हवा में अब ऐसा जहर घुल चुका है कि सांस लेना किसी कारनामे से कम नहीं लगता। ख़राब एयर क्वॉलिटी से हालात इतने दयनीय हैं कि लोग गहरी सांस लेने की बजाय William Shakespeare के “Hamlet” की तरह सोच रहे हैं- "To breathe or not to breathe, that is the question." यहां की वायु में घुला यह धुआं किसी त्रासदी से कम नहीं, लेकिन सफेद कुर्ताधारियों के लिए यह बस राजनीति का नया मुद्दा ही अपितु एक पॉलिटिकल डायलॉग और लफ्फाजी का अखाड़ा बन चुका है। दिल्ली की ज़हरीली हवा में अब सांस लेना किसी बॉलीवुड के फिल्मी विलेन से लड़ने जैसा हो गया है। यहां के हालात देखकर “Hamlet” का एक अन्य संवाद याद आती है- "Something is rotten in the state of Denmark." बस, ‘डेनमार्क’ की जगह आप दिल्ली लिख लें, बाकी सब वैसा ही है। देश राजधानी की एयर क्वॉलिटी इंडेक्स का हाल पूछिए, तो जवाब आता है—जहांगीरपुरी 458, मुंडका 452, और आनंद विहार 456। अब यह AQI नहीं, जैसे कोई IPL Cricket Match का...